कभी नहीं चाहा कि साहित्य में स्थापित हो जाऊं

Q आपके जीवन में साहित्य की शुरुआत कैसे हुई? कथा-लेखन को ही विषय क्यों बनाया? साहित्य की शुरुआत काॅलेज में पढ़ते वक्त ही हो गयी थी. मगर तब कविताएं लिखता था. बाद में कुछ कथा लिखने की इच्छा हुई, तो कुछ छोटी-छोटी कहानियां लिखीं. मैंने कथा लेखन को विधा के रूप में इसलिए चुना कि […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 14, 2018 9:12 AM
Q आपके जीवन में साहित्य की शुरुआत कैसे हुई? कथा-लेखन को ही विषय क्यों बनाया?
साहित्य की शुरुआत काॅलेज में पढ़ते वक्त ही हो गयी थी. मगर तब कविताएं लिखता था. बाद में कुछ कथा लिखने की इच्छा हुई, तो कुछ छोटी-छोटी कहानियां लिखीं. मैंने कथा लेखन को विधा के रूप में इसलिए चुना कि लगा इसी माध्यम से मैं झारखंड आंदोलन को कुछ दे सकता हूं. मेरे लिए यह सबसे उचित माध्यम है. मेरी पहली कहानी शालपत्र नामक पत्रिका में 1977 में छपी, कहानी का नाम था- एक मजदूर की मौत
संयोगवश तब इस कहानी का कई भाषाओं में अनुवाद भी हुआ. इस कथा के बाद मैंने सोचा कि झारखंड के मजदूरों को भी कहानी का पात्र बनाया जाना चाहिए. शालपत्र झारखंड आंदोलन की ही साहित्यिक पत्रिका थी और उस पत्रिका का संपादक भी मैं ही था. इसलिए इन विषयों पर खुद ही कथालेखन करता रहा. हालांकि अपनी कहानियों की कभी कोई किताब नहीं छपवायी, क्योंकि छपने में मेरी रुचि नहीं थी. मैंने कभी नहीं चाहा कि साहित्य में स्थापित हो जाऊं. मेरे लिए कहानियां बस झारखंड आंदोलन को स्वर देने का जरिया थीं, इसलिए लिखता रहा.
Q आपका उपन्यास ‘गगन घटा घहरानी’ अपने प्रकाशन के दो दशक से अधिक समय बीतने पर भी लोगों को आकर्षित करता है. इस उपन्यास का विचार आपके मन में कैसे आया था?
उस जमाने में कलकत्ता से रविवार पत्रिका निकलती थी. उस पत्रिका के अंग्रेजी संस्करण संडे में पटना के जाने-माने पत्रकार अरुण रंजन ने एक लंबी रिपोर्ट लिखी थी, मैन इटर ऑफ मनातू. उस जमाने में यह रिपोर्ट काफी चर्चित भी हुई. हालांकि रिपोर्ट के छपने से पहले पलामू के बाघ पालने वाले उस परिवार की कथा मुझे मालूम थी, हां इसके रिपोर्ताज के रूप में प्रकाशन के बाद मुझे लगा कि इसे उपन्यास में ढाला जा सकता है. यह ऐसा प्लॉट हो सकता है, जिसके साथ झारखंड की समस्याओं को सामने लाया जा सकता है. उस कथा में झारखंड आंदोलन के सवालों को शामिल कर मैंने यह उपन्यास रचा.
Q कहते हैं, जब नवभारत टाइम्स अखबार ने इसे धारावाहिक के रूप में छापने की इच्छा प्रकट की, तो आपने शर्त रखी थी कि यह रोज छपे. इसकी क्या वजह थी?
पुस्तक प्रकाशन के तत्काल बाद नवभारत टाइ्म्स, पटना के संपादक अरुण रंजन ने प्रस्ताव भेजा कि हमलोग इसे अपने अखबार में धारावाहिक छापना चाहते हैं, ताकि यह कथा ज्यादा- से – ज्यादा लोगों तक पहुंच सके. तब मैंने शर्त रखी कि इसे साप्ताहिक के बदले दैनिक प्रकाशित करें, ताकि पाठकों की रुचि बनी रहे. इसे संपादक ने मान भी लिया. तब नवभारत टाइम्स बिहार का सबसे पॉपुलर अखबार था, लिहाजा इस कथा की पहुंच घर-घर तक हो गयी. जब वह प्रकाशित हो रहा था, उसी वक्त जेरोक्स मशीन आयी थी. कई लोगों ने उस धारावाहिक कथा का जेरोक्स करवाया और मढ़वा कर रखा. कुछ लोगों ने वह प्रति मुझे दिखाया भी. यह 1992 की बात है. 90 दिनों तक रोज इलेस्ट्रेशन के साथ उसके अंश छपते रहे. और लेखक की मजदूरी भी बिना तय किये हुए अखबार ने दी. तब मुझे 7500 हजार रुपये मिले.
Q इस उपन्यास के कुछ महत्वपूर्ण पात्रों का आपसे नजदीकी रिश्ता रहा है. खास तौर पर वे लोग, जिनकी इस उपन्यास में नकारात्मक छवि थी, उन्होंने इसे पढ़ने के बाद किस तरह की प्रतिक्रिया दी?
नकारात्मक और सकारात्मक दोनों तरह के पात्र थे. उनसे नजदीकियां रही हैं, मगर उन लोगों ने भी पढ़ने के बाद उपन्यास पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी. सबसे बड़ी बात है कि किरदार के रूप में उन्होंने खुद को पहचाना भी. इसके कारण कोई खटास नहीं हुआ बल्कि संबंधों में और मिठास ही आयी.
Q ‘गगन घटा घहरानी’ को झारखंड आंदोलन को प्रेरित करने वाला उपन्यास माना जाता है. आज जब झारखंड अलग राज्य बन गया है, तो आप उसे किस रूप में पाते हैं?
झारखंड राज्य तो अलग हो गया, लेकिन उसकी जो समस्याएं थीं, उनमें से किसी का भी समाधान नहीं हुआ. जिन समस्याओं की वजह से आंदोलन हुआ. उनमें से एक मांग भी पूरी नहीं हुई. बल्कि झारखंड का शोषण करने वालों के लिए सुविधाएं और बढ़ गयीं. अब जैसे कल-परसों के अखबार में ही पढ़ा कि दलमा पहाड़ जो रांची से जमशेदपुर के रास्ते में है. बहुत सुंदर पहाड़ है. वहां प्लेटिनम मिला है, उसकी खुदाई होगी.
अब सोचिए कि इस इलाके के पर्यावरण की दशा. पूरे झारखंड को खोद कर उसके सौंदर्य को बरबाद किया जा रहा. वह इलाका जो वण्य प्राणियों से संपन्न था. अब उसे भी नष्ट कर दिया जायेगा. नेतरहाट जैसे खूबसूरत इलाके को बॉक्साइट की खदानों ने नष्ट कर दिया है.
Q बाद में आपने कई रचनाएं देने का मन बनाया. कुछ रचनाएं आधी से अधिक लिखी भी, मगर वे पूरी नहीं हो पायीं. इसकी वजह क्या रही? कहीं ‘गगन घटा घहरानी’ की सफलता उन रचनाओं पर भारी तो नहीं पड़ रही थी?
उस रचना से कोई बाधा नहीं हुई. रचना से लिखने का और साहस मिला. लेकिन, मुझे लगा कि जरूरत नहीं है, उसकी. सिर्फ वर्णन के लिए होगा, सिर्फ मनोरंजन जैसा होगा. लोगों को मिलेगा क्या. अब भी वो चीजें दिमाग में है.
आलस्य भी एक बड़ा कारण रहा. बीस-पच्चीस वर्षों तक कोई रचना बनी रहे. ‘गगन घटा घहरानी’ से पहले कोयला खदानों पर लिखने की योजना थी. कल-परसों भी इस पर वीरभारत तलवार और खदानों के नेता रामलाल जी से खूब बातें हुईं. ऐसा नहीं है कि नहीं लिखूंगा. आधा लिखा है तो पूरा करने के लिए. दूसरा झारखंड के वामपंथी आंदोलन की विद्रूपता. कोयला खदान पर तो जरूर लिखने का मन है. 1971 में इसका राष्ट्रीयकरण हुआ, अब निजीकरण हो रहा है. एक साइकिल पूरा हो गया है.

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