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पर्वतारोहण का आमंत्रण देते रांची के पठार
डॉ नितीश प्रियदर्शी पर्वतारोहण या पहाड़ चढ़ना शब्द का आशय उस खेल, शौक अथवा पेशे से है, जिसमें पर्वतों पर चढ़ाई, स्कीइंग अथवा सुदूर भ्रमण सम्मिलित हैं. पर्वतारोहण की शुरुआत अविजित पर्वत शिखरों पर विजय पाने की महत्वाकांक्षा से हुई थी और समय के साथ इसकी तीन विशेषज्ञता वाली शाखाएं बन कर उभरीं-चट्टानों पर चढ़ने […]
डॉ नितीश प्रियदर्शी
पर्वतारोहण या पहाड़ चढ़ना शब्द का आशय उस खेल, शौक अथवा पेशे से है, जिसमें पर्वतों पर चढ़ाई, स्कीइंग अथवा सुदूर भ्रमण सम्मिलित हैं. पर्वतारोहण की शुरुआत अविजित पर्वत शिखरों पर विजय पाने की महत्वाकांक्षा से हुई थी और समय के साथ इसकी तीन विशेषज्ञता वाली शाखाएं बन कर उभरीं-चट्टानों पर चढ़ने की कला, बर्फ से ढके पर्वतों पर चढ़ने की कला और स्कीइंग की कला.
तीनों में सुरक्षित बने रहने के लिए अनुभव, शारीरिक क्षमता व तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता होती है. पर्वतारोहण एक खेल, शौक या पेशा है, जिसमें पर्वतों पर चलना, लंबी पदयात्रा, आरोहण शामिल है. पर्वतारोहण दुनियाभर में एक लोकप्रिय खेल बन चुका है. यूरोप में यह काफी हद तक आल्प्स में आरंभ हुआ था और अब भी वहां बेहद लोकप्रिय है.
रांची के आसपास के पहाड़ पर्वतारोहण के लिए काफी उपयुक्त हैं. खासकर देश-विदेश के बड़े पर्वतों पर चढ़ने की ट्रेनिंग के लिए. रांची में जिस तरह से मैदान और खेलने के स्थान कम होते जा रहे हैं, खेल को नया आयाम देने में पर्वतारोहण मुख्य भूमिका निभा सकता है. रांची के आसपास कुछ पहाड़ जंगलों से भरे हुए हैं, तो कुछ नंगे हैं. इन सबका अलग उपयोग हो सकता है. सिर्फ ज्यादा अपरदित पहाड़ों पर ध्यान देने की जरूरत है.
रांची के पास नेतरहाट की पहाड़ियां इसके लिए सबसे उपयुक्त है, जिसके पहाड़ों की तीखी ढालें जंगल और घास से ढंकी हुई हैं. रांची के टाटीसिलवे के पास होरहाब का जंगल भी ठीक है, लेकिन यह थोड़ा मुश्किल जगह है. वैसे आसान जगह रातु और रांची-इटकी रोड पर टिकराटोली है.
रांची की चट्टानें ज्यादातर आग्नेय या फिर ग्रेनाइट नीस चट्टानों से बनी हुई हैं, जो अपरदित होकर गोल-गोल चट्टानों में तब्दील हो चुकी हैं. चट्टानों में दरार भी मौजूद है.
रांची के बरियातू में पहाड़ों के कई दृश्यांश हैं, जिनका उपयोग प्राथमिक ट्रेनिंग के लिए किया जा सकता है, लेकिन इन पहाड़ों पर कब्जा हो चुका है. कुछ तो फायरिंग रेंज में चला गया है. बरियातू पहाड़ पर तो हमलोग बचपन में खूब चढ़ा करते थे.
रांची के चुटूपालू घाटी में गोरखा पहाड़, जिसकी ऊंचाई 3800 फीट है, पर्वतारोहण के लिए उपयुक्त है. यहां रांची, रामगढ़ और हजारीबाग से आसानी से पहुंचा जा सकता है.
रांची-जमशेदपुर रोड और पतरातू घाटी में भी कई ऐसे पहाड़ हैं, जिनका उपयोग किया जा सकता है. सुवर्णरेखा नदी पर कई झरने हैं, खासकर हुंडरू फाल्स, जिनका उपयोग किया जा सकता है, खासकर जो अनुभवी पर्वतारोही हैं. यहां रस्सी के माध्यम से इन पहाड़ों पर चढ़ाई की जा सकती है. खासकर जब मौसम अच्छा हो. बरसात में यहां पर्वतारोहण करना काफी खतरनाक है. वहीं गौतमधारा पर जोन्हा फाल्स बहुत उपयुक्त नहीं है. यहां चढ़ते समय अपने पैरों का इस्तेमाल कैसे किया जाये, यह सीखा जा सकता है.
पर्वतारोहण या फिर पहाड़ों पर चलने का सबसे अच्छा मौसम यहां नवंबर से मार्च का महीना है. गर्मियों में भी यह काम किया जा सकता है, लेकिन वह काफी सुबह करना उचित होगा.
पर्वतारोहण में कई बार खतरे हो सकते हैं. वस्तुगत खतरे, जो पर्वतारोही के उपस्थित न होने पर भी उपस्थित होते हैं, जैसे चट्टानों का गिरना व खराब मौसम और व्यक्तिपरक खतरे, जो पर्वतारोही द्वारा शुरू किये गये प्रयासों के कारकों से ही संबंधित होते हैं.
खासकर चढ़ते समय ढीले चट्टानों का नीचे गिरना. प्रत्येक चट्टान कटाव के कारण धीरे-धीरे खिसकती हैं. चट्टानों का आकार उसके गिरने के कारण निरंतर परिवर्तित होता रहता है, जिस कारण से धोखा हो सकता है.
गिरती चट्टानें पर्वत पर गड्ढे बना देती हैं और इन गड्ढों (खड्डों) से काफी सावधानी से गुजरना होता है. इनके किनारे प्रायः सुरक्षित होते हैं, जबकि मध्य भाग पर पत्थर गिरते रहते हैं. ऐसे रास्तों पर गिरती चट्टानों का पता लगाने के लिए स्थानीय अनुभव मूल्यवान सिद्ध होते हैं. चट्टान की प्रकृति पर भी विचार जरूर करना चाहिए. जहां पत्थर अक्सर गिरते हों, वहां नीचे उसके टुकड़े पाये जायेंगे, जो दूर से ही नजर आ जाते है.
किसी नयी शिखर या एक अपरिचित मार्ग पर चढ़ने की योजना बनाने में पर्वतारोहियों को ऐसे निशानों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती. बहरहाल, झारखंड सरकार इस पर ध्यान देना चाहिए. पर्वतारोहण का विकास कर झारखंड के पर्यटन उद्योग को भी अच्छी तरह विकसित किया जा सकता है.
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