उतार-चढ़ाव से भरी रही वर्ष 2018 की राजनीति

साल 2018 राजनीतिक हलचलों से परिपूर्ण रहा. इस साल कश्मीर से लेकर कर्नाटक तक राजनीतिक उथल-पुथल मची रही, वहीं इस साल हुए चुनावों को 2019 के आमचुनावों से पहले का सेमीफाइनल कहा गया. दिल्ली की सड़कों पर किसान अपना हक मांगते दिखाई दिये और राजनीतिक दल अपने राजनीतिक हित साधने की फिराक में लगे रहे. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 27, 2018 6:01 AM
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साल 2018 राजनीतिक हलचलों से परिपूर्ण रहा. इस साल कश्मीर से लेकर कर्नाटक तक राजनीतिक उथल-पुथल मची रही, वहीं इस साल हुए चुनावों को 2019 के आमचुनावों से पहले का सेमीफाइनल कहा गया. दिल्ली की सड़कों पर किसान अपना हक मांगते दिखाई दिये और राजनीतिक दल अपने राजनीतिक हित साधने की फिराक में लगे रहे. साल की प्रमुख राजनीतिक गतिविधियां आज की विशेष प्रस्तुति में…

विधानसभा चुनाव

कर्नाटक : इस वर्ष मई में कर्नाटक की 222 विधानसभा सीटों के लिए हुए चुनाव में 104 सीटों के साथ भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनी. जबकि सत्ताधारी कांग्रेस को 78 सीटें ही मिलीं. जेडीएस को 37 व बसपा को एक सीटें मिलीं. कांग्रेस व जेडीएस ने यहां मिलकर सरकार बनायी व एचडी कुमारस्वामी राज्य के मुख्यमंत्री बने.

त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड : फरवरी में पूर्वोत्तर के इन तीनों राज्यों के क्रमश: 59-59 सीटों पर चुनाव हुए. त्रिपुरा में भाजपा को जीत मिली व बिप्लब देब मुख्यमंत्री बने वहीं, मेघालय में नेशनल पीपुल्स पार्टी को जीत मिली, कोनराड संगमा मुख्यमंत्री बने. नागालैंड में यूनाईटेड डेमोक्रेटिक पार्टी को जीत हासिल हुई.

मध्य प्रदेश : मध्य प्रदेश के 230 सीटों के लिए हुए चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा को पूर्व के 165 के मुकाबले महज 109 सीटें ही मिलीं, जबकि मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस ने 114 सीटों पर विजय प्राप्त की. अन्य दलों के सहयोग से कांग्रेस ने यहां सरकार बनायी व कमलनाथ राज्य के नये मुख्यमंत्री बने.

छत्तीसगढ़ : इस राज्य में भी भाजपा को कांग्रेस के हाथों हार का सामना करना पड़ा. भाजपा 90 विधानसभा सीटों में से महज 15 ही जीत पायी, जबकि कांग्रेस 68 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत से सत्ता में आ गयी. भूपेश बघेल राज्य के नये मुख्यमंत्री बनाये गये.

राजस्थान : इस राज्य के 199 सीटों के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस 99 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. जबकि पिछले चुनाव में 163 सीटें जीतने वाली भाजपा महज 73 सीटों पर सिमट गयी. पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक फिर राज्य की सत्ता संभाली.

तेलंगाना : तेलंगाना में सत्ताधारी दल तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) ने विधानसभा चुनाव में 119 सीटों की भारी जीत दर्ज की. के चंद्रशेखर राव एक बार फिर राज्य के मुख्यमंत्री बने.

मिजोरम : मिजोरम में 40 सीटों के लिए हुए चुनाव में मिजो नेशनल फ्रंट ने सर्वाधिक 26 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी को महज पांच सीटें (पिछले चुनाव में 34 सीटें) ही मिलीं.

उपचुनाव (लोकसभा)

इस वर्ष जनवरी में लोकसभा के तीन सीटों के लिए उपचुनाव हुए. इनमें राजस्थान के अजमेर और अलवर में कांग्रेस काे जीत मिली. इससे पूर्व ये दोनों सीटें भाजपा के पास थीं. वहीं पश्चिम बंगाल के उलुबेरिया में हुए उपचुनाव में तृणमूल कांग्रेस अपना सीट बचाने में सफल रही.

उत्तर प्रदेश की दो सीट (गोरखपुर और फुलपुर) और बिहार की एक सीट (अररिया) में इस वर्ष मार्च में उपचुनाव हुए. इस चुनाव में उत्तर प्रदेश की दोनों सीटें भाजपा की हाथ से निकल गयीं. इन सीटों पर इस बार समाजवादी के उम्मीदवार विजयी रहे. वहीं बिहार की अररिया सीट राष्ट्रीय जनता दल ने बरकरार रखी.

मई में एक बार फिर लोकसभा की चार सीटों के लिए उपचुनाव हुए, जहां उत्तर प्रदेश की कैराना सीट भाजपा के हाथों से निकल गयी. राष्ट्रीय लोकदल के उम्मीदवार यहां विजयी हुए. महाराष्ट्र की दो सीट भंडारा-गोदिया व पालघर के लिए हुए चुनाव में गोदिया सीट भाजपा नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के हाथों हार गयी, जबकि पालघर सीट बचाने में कामयाब रही. वहीं नागालैंड के नागालैंड संसदीय क्षेत्र के लिए हुए चुनाव मे नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) ने अपनी सीट नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) के हाथों गंवा दी.

कर्नाटक में इस वर्ष नवंबर में तीन सीटों पर उपचुनाव हुए. बेल्लारी में जहां भाजपा, कांग्रेस के हाथों हार गयी वहीं मांड्या में जनता दल (सेक्युलर) और शिवमोगा में भाजपा अपनी सीट बचाने में कामयाब रही.

महागठबंधन

इसी वर्ष कर्नाटक चुनाव के बाद कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में विपक्षी दलों के लगभग सभी नेताओं (बीजू जनता दल के नवीन पटनायक और टीआरएस के चंद्रशेखर राव को छोड़कर) का एक साथ मंच पर आना महागठबंधन का संकेत देता है. संभावना है कि 2019 में होनेवाले लोकसभा चुनाव में भाजपा से मुकाबला करने के लिए ये सभी विपक्षी मिलकर महागठबंधन का निर्माण करेंगे

विधानसभा उपचुनाव

इस वर्ष मई में 10 राज्यों के 11 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए. इन राज्यों में उत्तर प्रदेश की नूरपुर सीट से समाजवादी पार्टी, पंजाब के शाहकोट से कांग्रेस, बिहार के जोकिहाट से राष्ट्रीय जनता दल, झारखंड के गोमिया और सिल्ली से झारखंड मुक्ति मोर्चा, केरल के चेंगन्नूर से मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, महाराष्ट्र के पालुस-कादेगांव से कांग्रेस, मेघालय के अंपाती से कांग्रेस, उत्तराखंड के थराली से भाजपा, पश्चिम बंगाल के महेशतला से तृणमूल कांग्रेस और कर्नाटक के आरआर नगर से कांग्रेस के उम्मीदवार विजयी रहे.

जब राहुल ने गले लगाया

इस साल राहुल गांधी हमलावर की मुद्रा में रहे हैं. उन्होंने प्रधानमंत्री सहित दुनिया को तब चौंका दिया, जब जुलाई में सदन की कार्यवाही के दौरान अपना वक्तव्य खत्म करने के बाद वे प्रधानमंत्री मोदी के पास गये और उन्हें गले लगा लिया.

प्रजा कुटुमी गठबंधन: तेलंगाना विधानसभा चुनाव में तेलंगाना राष्ट्र समिति से मुकाबले करने के लिए कांग्रेस व तेलुगु देशम ने सीपीएम व तेलंगाना जन समिति के साथ मिलकर ‘प्रजा कुटुमी’ गठबंधन बनाया.

सपा-बसपा गठबंधन : कभी एक-दूसरे के धुर विरोधी रहे सपा व बसपा, भाजपा से मुकाबला करने के लिए उत्तर प्रदेश में इस वर्ष हुए लोकसभा व विधानसभा उपचुनाव में एक साथ मिलकर लड़े.

जेसीसी-बसपा गठबंधन : छत्तीसगढ़ में हाल में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में अजीत जोगी की जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ ने मायावती की बहुजन समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया.

कमल हसन ने बनायी पार्टी

भारतीय सिनेमा के प्रसिद्ध अभिनेता कमल हसन ने इस वर्ष अपनी राजनीतिक पार्टी शुरू की. उन्होंने अपनी पार्टी का नाम ‘मक्कल नीधि मय्यम’ रखा, जिसका अर्थ है लोक न्याय केंद्र पार्टी.

शिवपाल ने छोड़ी सपा

सपा से अलगाव के बाद शिवपाल सिंह यादव ने समाजवादी सेक्युलर मोर्चा गठित करने का आह्वान किया और ‘प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया’ नामक पार्टी की घोषणा की.

किसानों का प्रदर्शन

देश में कृषि संकट की स्थिति बनी हुई है और पिछले 20 सालों में तीन लाख से ज्यादा आत्महत्या कर चुके हैं. इस साल देशभर के लाखों किसानों ने मार्च महीने में मुंबई व 29-30 नवंबर को दिल्ली में राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन किया था और सरकार से कर्जमाफी, न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने तथा स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करने की मांग की थी. इस मौके पर 200 से ज्यादा किसान संगठन इकट्ठा हुए थे, जिनका महागठबंधन के नेताओं ने भी समर्थन किया. सरकार ने इस साल किसानों के सवाल पर अपनी उदासीनता को लेकर आलोचना झेली है.

नाम बदलने की राजनीति

देश में शहरों, स्टेशन आदि का नाम बदलने की राजनीति सालभर जारी रही. मुगलसराय स्टेशन का नाम बदलकर दीनदयाल उपाध्याय स्टेशन कर दिया गया, वहीं इलाहाबाद को प्रयागराज, फैजाबाद को अयोध्या कर दिया गया. उत्तर प्रदेश के कई ऐसे शहर हैं, जिनके नाम बदलने के कयास लग रहे हैं. भाजपा विधायक जगन प्रसाद गर्ग ने आगरा का नाम ‘आगरावन’ या ‘अग्रवाल’ करने की मांग की है, वहीं मुजफ्फरनगर का नाम लक्ष्मीनगर करने की मांग भाजपा विधायक संगीत सोम ने की है.

महाराष्ट्र में भाजपा की सहयोगी पार्टी शिवसेना ने औरंगाबाद का नाम संभाजीनगर और उस्मानाबाद का नाम धाराशिव करने की मांग की है, वहीं गुजरात सरकार अहमदाबाद का नाम कर्णावती करने पर विचार कर रही है. तेलंगाना में विधानसभा चुनाव प्रचार के बीच यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि अगर भाजपा सत्ता में आती है, तो हैदराबाद का नाम भाग्यनगर और करीमनगर का नाम करीमपुरम कर दिया जायेगा. इस बीच केंद्र सरकार अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह के रॉस, नील और हैवलॉक द्वीप का नाम बदलकर क्रमशः नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वीप, शहीद द्वीप और स्वराज द्वीप कर रही है.

जम्मू-कश्मीर

महबूबा मुफ्ती की पीडीपी और भाजपा की गठबंधन वाली सरकार भाजपा के अलग होने से जून में टूट गयी. इसके बाद भाजपा की ओर से जारी बयान में कहा गया था कि दोनों पार्टियां खंडित जनादेश में साथ आयीं थीं, लेकिन इस मौजूदा समय के आकलन के बाद महबूबा मुफ्ती की पीडीपी के साथ सरकार चलाना मुश्किल हो गया था. इसलिए भाजपा ने देश का हित चुना.

जम्मू-कश्मीर में साल का दूसरा राजनीतिक भूचाल तब देखने को मिला, जब राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने नवंबर में अचानक जम्मू-कश्मीर विधानसभा भंग कर दी थी, जब महबूबा मुफ्ती और सज्जाद लोन ने सरकार बनाने का दावा पेश किया था. व्हाट्सऐप पर भेजे पत्र में सज्जाद लोन ने कहा था कि उन्हें भाजपा का समर्थन हासिल है और इसके अतिरिक्त, उन्होंने 18 अन्य विधायकों के समर्थन का भी दावा किया था.

इसी बीच महबूबा मुफ्ती ने भी राज्यपाल को सरकार बनाने का दावा पेश करने के लिए संपर्क करने की कोशिश की थी. महबूबा ने नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के समर्थन से 55 विधायकों का दावा किया था. जिसके बाद विधायकों की खरीद-फरोख्त का हवाला देकर राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने जम्मू-कश्मीर संविधान के अनुसार विधानसभा भंग कर दी थी.

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