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वर्षांत 2018 : नये कलेवर के लिए तैयार हुआ बॉलीवुड
हिंदी सिनेमा का साल 26 जनवरी को किसी बड़ी फिल्म के रिलीज होने से शुरू होता है और 25 दिसंबर को पूरा हो जाता है. इस बीच बहुत-सी फिल्में रिलीज होती हैं, जिनमें से जरूर कुछ ऐसी होती हैं, जो दर्शकों के दिल और दिमाग पर अपनी छाप छोड़ जाती हैं, तो कुछ फिल्में वक्त […]
हिंदी सिनेमा का साल 26 जनवरी को किसी बड़ी फिल्म के रिलीज होने से शुरू होता है और 25 दिसंबर को पूरा हो जाता है. इस बीच बहुत-सी फिल्में रिलीज होती हैं, जिनमें से जरूर कुछ ऐसी होती हैं, जो दर्शकों के दिल और दिमाग पर अपनी छाप छोड़ जाती हैं, तो कुछ फिल्में वक्त बर्बाद करके जाती हैं. हिंदी सिनेमा के लिए कैसा रहा यह साल और कौन-कौन-सी फिल्में रहीं चर्चा में, इन्हीं पहलुओं पर विस्तार से बता रहे हैं सिने समीक्षक विनोद अनुपम.
विनोद अनुपम
2018 की चर्चित फिल्में
पद्मावत : निर्देशक- संजय लीला भंसाली. कलाकार- दीपिका पादुकोण, रणबीर सिंह.
संजू : निर्देशक-राज कुमार हिरानी. कलाकार- रणबीर कपूर, अनुष्का शर्मा
बधाई हो : निर्देशक- अमित रवींद्रनाथ शर्मा. कलाकार- आयुष्मान खुराना, सान्या मल्होत्रा
पैडमैन : निर्देशक-आर बाल्की. कलाकार- अक्षय कुमार, सोनम कपूर, राधिका आप्टे
हिचकी : निर्देशक-सिद्धार्थ मल्होत्रा. कलाकार- रानी मुखर्जी
अक्टूबर : निर्देशक-सुजीत सरकार. कलाकार-वरुण धवन, गीतांजली राव
मुल्क : निर्देशक-अनुभव सिन्हा. कलाकार-ऋषी कपूर, तपसी पन्नू
राजी : निर्देशक-मेघना गुलजार. कलाकार-आलिया भट्ट, विकी कौशल
सुईधागा : निर्देशक-शरत कटारिया. कलाकार-वरुण धन, अनुष्का शर्मा
मंटो : नंदिता दास-नवाजुद्दीन सिद्दिकी
हिंदी सिनेमा के इतिहास में जो साल ‘ठग्स आॅफ हिंदुस्तान’ और ‘जीरो’ के लिए याद किया जानेवाला था, वह यदि ‘स्त्री’, ’बधाई हो’ और ‘मुल्क’ के लिए याद किया जा रहा है, तो इससे हिंदी सिनेमा में आ रही नयी बयार के मजबूत होते जाने का अंदाजा लगाया जा सकता है. साल की शुरुआत में तमाम सितारों के बीच अपनी पहचान के साथ हिंदी प्रदेश को बचाये रखनेवाले अभिनेता पंकज त्रिपाठी के लिए नेशनल फिल्म अवाॅर्ड की घोषणा होती है और साल के अंत में उन्हें स्क्रीन स्टार अवाॅर्ड से सम्मानित किया जाता है. स्पष्ट है हिंदी सिनेमा में सदा से उपेक्षित देशज कहानियों का दौर, जिसकी शुरुआत बीते दो-चार वर्षों में हुई थी, 2018 में और भी सशक्त हुई. आश्चर्य नहीं कि इस वर्ष की अधिकांश सफल फिल्मों की पृष्ठभूमि में छोटे शहर रहे. इतना ही नहीं, ये शहर स्टूडियो में क्रिएट नहीं किये गये.
एक व्यापक वातावरण दिखाने के लिए फिल्मों की शूटिंग के लिए छोटे शहरों को प्राथमिकता दी गयी. साल की शुरुआत ही अनुराग कश्यप की ‘मुक्काबाज’ से हुई. हिंदी सिनेमा के लिए गैर पारंपरिक कहानी, गैर पारंपरिक अभिनेता, गैर पारंपरिक ट्रीटमेंट, लेकिन इसी नयेपन में दर्शकों ने अपने को कहीं ढूंढ लिया. नायक के व्यक्तित्व में, नायक के संघर्ष में उन्हें अपनी जद्दोजहद दिखाई दी और फिर दर्शकों ने कुछ और ढूंढने की जरूरत नहीं समझी.
नयी कहानियों पर बनी फिल्में
साल 2018 में दर्शकों की यह समझ कमोबेश पूरे साल बरकार रही. कमाल यह कि अपनी इंटरटेनमेंट की चाहत के लिए बदनाम हिंदी दर्शकों ने इस वर्ष इंटरटेनमेंट की बजाय इमोशन को तरजीह दी. पैडमैन, राजी, मुल्क, अक्तूबर, परमाणु, मंटो, मुक्काबाज जैसी फिल्मों को देशभर में दर्शक मिले. इनमें से अधिकांश फिल्में नयी कहानी, नये विचार के साथ आयीं, जो हिंदी सिनेमा के लिए एक दुर्लभ सत्य है.
यहां नयी कहानी की चाहत सभी व्यक्त करते रहे, लेकिन उसे पर्दे पर उतारने का जोखिम इस वर्ष थोड़ा अधिक लिया गया. आर बाल्की जैसे निर्देशक माहवारी की समस्या पर विमर्श करती फिल्म ‘पैडमैन’ लेकर आये. मनोरंजन से इतर समाज में सिनेमा की स्वीकार्यता किस तरह बढ़ी, उसके प्रतीक रूप में पैडमैन को देखा जा सकता है, जिसने माहवारी पर बातचीत की वर्जना को लगभग खत्म कर दिया. सिद्धार्थ मल्होत्रा यशराज के बैनर से ‘हिचकी’ जैसी संवेदनशील फिल्म लेकर आये.
सूजीत सरकार ने एक संवेदनशील प्रेम कहानी ‘अक्तूबर’ को साकार किया, उमेश शुक्ला ने अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर जैसे प्रौढ अभिनेताओं के साथ बुजुर्गों पर केंद्रित फिल्म ‘102 नाॅटआउट’ बनायी. हंसल मेहता हमेशा की हिंदी दर्शकों की पसंद को चुनौती देते हुए एक आतंकवादी को संवेदनशीलता से चित्रित करती ‘ओमेर्टा’ के साथ आये. विशाल भारद्वाज ने दो बहनों की कहानी ‘पटाखा’ को पर्दे पर उतारा. जाहिर है नयी कहानी कहने के दबाव में इस वर्ष नये निर्देशक ही नहीं, स्थापित घराने और स्थापित निर्देशक भी दिखे.
बायोपिक फिल्में खूब पसंद की गयीं
यह वर्ष सिनेमा के लिए इसलिए भी खास माना जा सकता है, क्योंकि बायोपिक के क्षेत्र में ‘मैरी काम’ और ‘पान सिंह तोमर’ से मिली सफलता का प्रभाव खुल कर दिखा. अभिनेत्रियों और अपराधियों से अलग विभिन्न क्षेत्रों के गुमनाम नायकों तक हिंदी सिनेमा ने पहुंचने की सार्थक कोशिश की. शायद पहली बार हिंदी सिनेमा में कोई लेखक इस वर्ष साकार हुआ. नंदिता दास ने हिंदुस्तान के सुपरिचित लेखक ‘मंटो’ को इसी नाम से बनी फिल्म में साकार किया.
साथिया जैसी प्रेम कहानी बनानेवाले शाद अली ने बायोपिक ‘सूरमा’ के लिए हाॅकी खिलाड़ी संदीप कुमार का चयन किया, जो एक दुर्घटना में अपनी विकलांगता के कारण व्हील चेयर पर आ गये थे, लेकिन अपनी जिद पर हाॅकी मैदान में वापस आये और ओलिंपिक तक देश के लिए खेलने पहुंचे. ‘पैडमैन’ दक्षिण भारत में महिलाओं के लिए सस्ती कीमतों पर सैनेटरी पैड उपलब्ध करानेवाले अरुणाचलम मुरुगनथम की वास्तविक जिंदगी पर आधारित है. ‘ओमेर्टा’ आतंकवादी सईद ओमर शरीफ के जीवन के अनछुए पहलुओं को सामने लाती है.
बायोपिक की बात करें, तो इनमें ‘संजू’ वर्ष की खास फिल्म के रूप में याद की जा सकती है, जो 2018 की सबसे अधिक कमाई करनेवाली फिल्म बनती हुई यह सवाल छोड़ गयी कि भारतीय दर्शकों को इस फिल्म ने आकर्षित किया या फिर वे संजय दत्त के जीवन से प्रभावित होकर सिनेमा घर तक आये. बहरहाल, बायोपिक नयी कहानियों के सबसे सशक्त श्रोत के रूप में इस वर्ष सामने आयी, जिससे 2019 तक के प्रभावित रहने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता.
फॉर्मूला फिल्में रहीं असफल
वास्तव में वर्ष की शुरुआत ही विक्रम भट्ट की ‘1921’, सैफ अली खान अभिनीत ‘कालाकांडी’, नीरज पांडे की ‘अय्यारी’, ’वेलकम टू न्यू याॅर्क’, जिसमें करण जौहर, सोनाक्षी सिन्हा जैसे स्टार थे, अनुष्का शर्मा की ‘परी’ की असफलता से हुई, तो यह तय हो गया कि फाॅर्मूला और पारंपरिक तौर पर आ रही फिल्में दर्शकों को आकर्षित करने में सफल नहीं हो सकतीं. आश्चर्य नहीं कि लंबी पारी के बाद सलमान खान की ‘रेस 2’ भी ईद के सुरक्षित समय में रिलीज होने के बावजूद नहीं चल सकी.
दशहरे पर आयी परफेक्शनिस्ट माने जाने वाले आमिर खान की ‘ठग्स आॅफ हिंदुस्तान’ को दर्शकों ने अमिताभ बच्चन के बावजूद नकार दिया. आनंद एल राय कहानी के मास्टर माने जाते रहे हैं, लेकिन शाहरुख के साथ लगता है उनकी बोलती बंद हो गयी और दर्शकों ने ‘जीरो’ को पहले ही दिन जीरो करार दे दिया. इसके अलावा तथाकथित मनोरंजन के भ्रम में बनी अय्यारी, वेलकम टू न्यू याॅर्क, हेट स्टोरी-4, रेड, वीरे द वेडिंग, धडक, लवयात्री, साहब बीवी और गैंगस्टर-3, हैपी फिर भाग जायेगी, जीनियस, यमला पगला दीवाना, फिरसे, पलटन, नमस्ते इंग्लैंड, बाजार, केदारनाथ जैसी अधिकांश फिल्मों को दर्शकों ने अपनी लागत निकालने का भी अवसर नहीं दिया.
कुछ धारणाएं भी टूटीं
इस वर्ष ‘स्त्री’ और ‘बधाई हो’ चौंकाने वाली फिल्म मानी जा सकती हैं. इन दोनों ही फिल्मों ने इस धारणा को तोड़ा कि फिल्में प्रचार से चलती हैं. बहुत ही कम बजट में आयुष्मान खुराना और सान्या मल्होत्रा जैसे कलाकारों के साथ बनी यह फिल्म चुपके से आयी और अपनी अभिनव-कहानी के बल पर दर्शकों के दिलों पर छाने लगी. ‘स्त्री’ भी इसी तरह एकदम ही सामान्य कलेवर में आयी, लेकिन पंकज त्रिपाठी और राजकुमार राव के अभिनय ने उसे खास बना दिया. ये दोनों ही फिल्में वर्ष की दस सफल फिल्मों में शुमार हैं. यह कहीं-न-कहीं हिंदी दर्शकों की प्रौढ़ता का प्रमाण है. ऐसी ही फिल्मों में अनुभव सिन्हा की ‘मुल्क’ शामिल की जा सकती है, जो देश को झकझोरती हुई आयी और आम जन के मनोभावों को अभिव्यक्त कर गयी.
चुनौती बनकर आयी वेब सीरीज
यह वर्ष राजकुमार राव, पंकज त्रिपाठी, आयुष्मान खुराना और तापसी पन्नू का रहा. शायद इसलिए कि भारत का मध्यवर्ग इनसे रिलेट कर सका.
इस वर्ष सिनेमा के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनकर वेब सीरीज आयी. मुफ्त के डाटा और सस्ते एंड्रायड फोन की उपलब्धता ने हर हाथ में एक स्क्रीन उपलब्ध करा दिया, जिसमें लोगों ने अपनी सुविधा से मनोरंजन किया. नेटफ्लिक्स, आल्ट बाला जी, हाॅट स्टार, अमेजन प्राइम जैसे चैनल ने सीरीज बनाये, ताकि दर्शक अपने काम के बीच के समय फिल्में देख लें.
पंकज त्रिपाठी वेब सीरीज के लोकप्रिय अभिनेता बनकर उभरे और ‘मिर्जापुर’ में केंद्रीय भूमिका निभायी. सेक्स और हिंसा की अधिकता ने प्रतिबद्ध युवा दर्शकों को सिनेमा से दूर कर वेब सीरीज के करीब ला दिया, लेकिन सात इंच के स्क्रीन में 70 एमएम के प्रभाव की कल्पना नहीं की जा सकती. ‘पद्मावत’ जैसी फिल्मों की भव्यता बड़े पर्दे पर ही दिख सकती है, लेकिन सिनेमा इसकी चुनौती से मुंह भी नहीं मोड़ सकती है. आश्चर्य नहीं कि शाहरुख खान खुद आगे आकर नयी कहानियों की मांग कर रहे हैं.
वेब सीरीज, हॉलीवुड और घटते सिनेमाघरों की चुनौतियों से युक्त सिनेमा की 2019 में भी नयी कहानियों के लिए बेचैनी दिखेगी. जिसके लिए फिल्मकार बायोपिक और ऐतिहासिक घटनाओं की शरण में जाते दिख रहे हैं.
बीते वर्ष विवादों के बीच मिली पद्मावत की सफलता से फिल्मकारों की ललक ऐसे विवादास्पद विषयों के प्रति बनी रहेगी. दर्शकों का आकर्षण इस वर्ष राकेश ओम प्रकाश मेहरा की फिल्म ‘मेरे प्यारे प्रधानमंत्री’ भी रहेगी और सलमान खान की ‘भारत’ भी. इन सबके बीच ‘टोटल धमाल’, ‘एबीसीडी’, ‘रंगीली राजा’, ‘हाउस फुल-4’ जैसी पारंपरिक फिल्में भी आती रहेंगी.
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