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कार्यशील आयुवर्ग की जनसंख्या में बढ़ोतरी से अर्थव्यवस्था को मिलेगी गति

जनसांख्यिकीय लाभांश (डेमोग्राफिक डिवीडेंड) की स्थिति अर्थव्यवस्थाओं के लिए बेहतर अवसर पैदा करती है और विकास को गति प्रदान करती है. भारत के नजरिये से ऐसा वक्त शुरू हो गया है, जब देश में कार्यशील आबादी का औसत बढ़ रहा है, जिससे आने वाले वक्त में अर्थव्यवस्था को बेहतर गति मिल सकती है. शैक्षणिक योग्यता […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 13, 2019 6:20 AM
जनसांख्यिकीय लाभांश (डेमोग्राफिक डिवीडेंड) की स्थिति अर्थव्यवस्थाओं के लिए बेहतर अवसर पैदा करती है और विकास को गति प्रदान करती है. भारत के नजरिये से ऐसा वक्त शुरू हो गया है, जब देश में कार्यशील आबादी का औसत बढ़ रहा है, जिससे आने वाले वक्त में अर्थव्यवस्था को बेहतर गति मिल सकती है. शैक्षणिक योग्यता व कौशल क्षमता जैसी कई चुनौतियां भी हमारे सामने हैं, जिनसे हमें पार पाने की जरूरत है. इन्हीं सारी बहसों के इर्द-गिर्द आज का इन दिनों…
देवेंद्र सिंह
राष्ट्रीय कार्यक्रम अधिकारी, संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष
जनसांख्यिकीय लाभ के अनोखे दौर से गुजरता देश
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) द्वारा भारत में जनसांख्यिक लाभ पर किये गये एक अध्ययन से दो दिलचस्प बातें निकल कर सामने आयी हैं.
पहली तो यह है कि भारत में जनसांख्यिक लाभ का यह सुअवसर 2005-06 से लेकर 2055-56 तक के लगभग पांच दशकों तक सुलभ है, जो विश्व के किसी भी अन्य देश की तुलना में अधिक है. दूसरा तथा इससे भी दिलचस्प तथ्य यह कि जनसांख्यिक मापदंडों पर उनके भिन्न व्यवहार की वजह से भारत के विभिन्न राज्यों के लिए यह मौका अलग-अलग वक्त में उपलब्ध होगा.
जनसांख्यिक लाभ की स्थिति तब उत्पन्न होती है, जब किसी आबादी में कामकाजी उम्र के लोगों की संख्या ऊंची होती है और उन पर बच्चों एवं वृद्धों की संख्यात्मक निर्भरता का अनुपात कम होता है. ऐसी स्थिति यह अवसर प्रदान करती है कि मानवीय क्षमताओं में बढ़ोतरी लाने की दिशा में निवेश बढ़ाकर वृद्धि तथा विकास में गति लायी जा सके. वर्तमान काल में समग्र देश के रूप में भारत की एक बड़ी आबादी युवा है,
मगर यह स्थिति देश के सभी राज्यों में एक साथ मौजूद नहीं है, क्योंकि जनसांख्यिक मापदंडों पर अतीत में विभिन्न राज्यों का व्यवहार भिन्न-भिन्न रहा है और विशेषज्ञों ने भविष्य में भी उनमें भिन्नताएं रहने की संभावनाएं व्यक्त की हैं.
इस स्थिति का विश्लेषण प्रारंभ करें, तो देश के कुछ राज्यों तथा क्षेत्रों में अन्य राज्यों एवं क्षेत्रों-खासकर अंदरूनी क्षेत्रों में बसे राज्यों-की अपेक्षा प्रजनन दर में कमी आने की शुरुआत पहले हो गयी.
इसने प्रजनन दर गिरावट की रफ्तार और वक्त में क्षेत्रीय विभेद पैदा कर दिये. यदि प्रजनन स्तर के लिहाज से भारत के सभी राज्यों की स्थिति देखी जाये, तो हमें उत्तर भारत की आबादी में युवाओं, जबकि दक्षिण तथा पश्चिमी भारत की जनसंख्या में बुजुर्गों की अधिकता दिखेगी. कुल मिलाकर हालात ये बने हैं कि जहां कुछ राज्यों में प्रजनन दर प्रति महिला 1.6 बच्चे तक नीचे आ चुकी है, वहीं कुछ दूसरे राज्य अभी 2.1 की विस्थापन प्रजनन दर के गिर्द स्थित हैं, जबकि कई अन्य अब भी 3 बच्चे प्रति महिला अथवा उससे भी ऊंची प्रजनन दर से जूझ रहे हैं.
जनसांख्यिक मानदंडों के बदलावों एवं संयोजनों ने विभिन्न राज्यों में विभिन्न आयु तथा लैंगिक संरचनाओं को जन्म दिया है. यूएनएफपीए के अध्ययन में राज्यों के तीन वर्गों को साफ तौर पर देखा जा सकता है, जो दर्शाये गये चार्ट के अनुसार विभिन्न कालखंड में जनसांख्यिक लाभ हासिल कर सकेंगे. पहले वर्ग के राज्य मुख्यतः देश के दक्षिणी तथा पश्चिमी हिस्सों में हैं, जिनमें केरल, तमिलनाडु, दिल्ली, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, गुजरात, पंजाब और पश्चिम बंगाल शामिल हैं, जिनके लिए इस लाभ की स्थिति अगले पांच वर्षों में समाप्त हो रही है.
दूसरे वर्ग के राज्य वे हैं, जो यह लाभ अगले 10-15 वर्षों तक प्राप्त कर सकते हैं और इनमें कर्नाटक, ओडिशा, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, जम्मू एवं कश्मीर, असम, उत्तराखंड और हरियाणा शामिल हैं. राज्यों का तीसरा वर्ग उच्च प्रजनन दर का है, जो मुख्यतः भारतीय भूभाग के अंदरूनी हिस्सों में स्थित हैं, जैसे छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश तथा बिहार. इन राज्यों के लिए जनसांख्यिक लाभ की यह स्थिति अभी शुरू भी नहीं हो सकी है और उसकी अवधि 2050 एवं 2060 के दशकों में भी आ सकती है.
इस अध्ययन का मुख्य निष्कर्ष यह है कि अपने जनसांख्यिक चरित्र के बदलाव के कारण विभिन्न राज्य इस लाभ का अनुभव विभिन्न कालखंडों में करेंगे. नतीजा यह होगा कि समग्र देश के रूप में भारत इस स्थिति का फायदा एक लंबे समय तक उठाता रहेगा.
इस निष्कर्ष का महत्व यह है कि अलग-अलग वर्गों के इन राज्यों की आयु तथा लैंगिक संरचना के अनुसार उनके लिए तदनुकूल सामाजिक-आर्थिक नीति का निर्माण किया जा सकेगा. यूएनएफपीए भी राज्यों की इन विशेषताओं के अनुरूप नीति तथा कार्यक्रम निर्माण की वकालत करता है.
उदाहरण के लिए उन राज्यों के लिए जहां अब यह लाभ समाप्ति की कगार पर है, नीतियों एवं कार्यक्रमों के केंद्र में बढ़ती आयु तथा प्रवासी-हितैषी दृष्टि होनी चाहिए, जबकि जिन राज्यों के लिए लाभ की यह स्थिति अगले 10-15 वर्षों तक मौजूद रहेगी, मुख्य जोर बालिका-महिला सशक्तीकरण, युवाओं के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा कौशल विकास कार्यक्रमों तथा रोजगार सृजन पर होना चाहिए.
दूसरी ओर, वैसे राज्यों के लिए जहां जनसांख्यिक लाभ अभी आगे मिलने वाला है, तीन बातों पर बल देना होगा-बाल विवाह जैसी हानिकारक प्रथाओं पर अंकुश, सबके लिए गुणवत्तापूर्ण यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य तथा परिवार नियोजन सेवाएं मुहैया कराने के अलावा युवाओं को स्वास्थ्य, शिक्षा, जीवन एवं व्यावसायिक कौशल प्रदान करना.
योजना निर्माण तथा कार्यक्रम क्रियान्वयन को जनसांख्यिक विशिष्टताओं के अनुरूप संयोजित करना सदैव अधिक सामाजिक-आर्थिक असर पैदा करने के अतिरिक्त जनता के लिए वृहत्तर लाभ का वाहक बनेगा.(अनुवाद: विजय नंदन)
एशिया के कार्यबल का 50 प्रतिशत भारत के पास
36.5 करोड़ (365 मिलियन) बुजुर्गों की आबादी थी 2017 में एशिया में, जो 2027 तक बढ़कर 52 करोड़ (520 मिलियन) से अधिक हो जायेगी.
65 वर्ष से अधिक उम्र वाले एशियाई लोगों की संख्या 2024 तक यूरोजोन व उत्तरी अमेरिका के कुल जनसंख्या से अधिक हो जायेगी.
65 प्रतिशत से अधिक भारतीय आबादी के 35 वर्ष के होने के कारण एशिया में भारत की स्थिति काफी बेहतर हाेगी. इस कारण वह आर्थिक महाशक्ति के रूप में आगे बढ़ेगा. इतना ही नहीं, आनेवाले दशक में भारत, एशिया के संभावित कार्यबल का 50 फीसदी से अधिक की आपूर्ति करने में सक्षम होगा.
एशिया की आबादी तेजी से बुजुर्ग हो रही है, इस सदी के मध्य तक एक अरब लोग इस महाद्वीप में 65 व इससे अधिक उम्र के हो जायेंगे.
स्रोत : वाॅयस ऑफ एशिया थर्ड एडिशन
महिला श्रमबल के कम होने का विकास पर असर
भले ही हमारे देश में कार्यशील उम्र की आबादी बढ़ रही हो, लेकिन यह पूरी तरह श्रमबल में परिवर्तित नहीं होगी. इसके कई कारणों में एक है हमारे देश के श्रमबल में महिलाओं की भागीदारी का कम होना. विश्व बैंक द्वारा 2004-05 और 2011-12 के बीच किये अध्ययन के मुताबिक, इस अवधि में भारत में महिला श्रमबल भागीदारी (एफएलएफपी) दर महज 27 प्रतिशत थी, जबकि इसी अवधि में चीन में यह भागीदारी दर 63.9 प्रतिशत थी.
चूंकि भारत की जनसंख्या में महिलाओं का प्रतिशत लगभग 50 है, ऐसे में, कार्यबल में उनका कम संख्या में होना, कुल श्रमबल के औसत पर काफी नकारात्मक असर डालता है, जिससे विकास प्रभावित होता है.
करोड़ों युवाओं में कौशल क्षमता की कमी
जनसांख्यिकीय लाभांश की बेहतर स्थिति के बीच चिंता का विषय है कि देश में 21-35 आयु वर्ग की लगभग 10 करोड़ आबादी ऐसी है, जिसके पास कोई कौशल क्षमता (अनस्किल्ड) नहीं है, या कम कौशल क्षमता प्राप्त हैं, लिहाजा, वे अर्थव्यवस्था के लिए अनुपयुक्त साबित हो रहे हैं.
एक अध्ययन के अनुसार साल 2025 तक इस श्रेणी में 10 करोड़ लोग अपनी न्यूनतम कौशल क्षमता और शैक्षणिक योग्यता में कमी के कारण और जुड़ जायेंगे. उसके बाद देश में 21-45 आयुवर्ग के 20 करोड़ लोग न्यूनतम कौशल क्षमता वाले हो जायेंगे, जो देश की अर्थव्यवस्था के लिए अनुपयुक्त होंगे. ऐसे में वर्तमान स्थिति और भविष्य के लिए जतायी गयी आशंका के बीच भारत जनसांख्यिकीय लाभांश का कितना लाभ उठा पायेगा, यह चिंता का विषय होगा.
इस अध्ययन में हालिया दो दशकों का विश्लेषण किया गया है. यह विश्लेषण बताता है कि इस दौर में शैक्षिक सुधारों में भारी कमी रही और अपेक्षित स्तर के सुधार भी लागू नहीं किये गये. अब नये सिरे से सुधारों के प्रयास किये जा रहे हैं, लेकिन इनका प्रभाव आने वाले दस सालों तक दिखायी देगा.
दुखद यह है कि वर्तमान पीढ़ी इसके असर से बाहर रह जायेगी. इसलिए, यह बेहद जरूरी हो गया है कि कुछ ऐसे उपाय ढूंढें जायें, जिससे ऐसा न हो और हमें जनसांख्यिकीय लाभांश के सकारात्मक अवसर को भुनाने का मौका मिले.
भारतीय स्टेट बैंक की एक रिपोर्ट यह भी कहती है कि भारत के पास विकसित देश की श्रेणी में जाने के लिए और अपनी स्थिति बदलने के लिए केवल एक दशक है और शिक्षा व्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, अन्यथा बहु-प्रतीक्षित जनसांख्यिकीय लाभांश नुकसान में भी बदल सकता है.
स्रोत: यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड
मानव पूंजी में निवेश से मिलेगा लाभ
कार्यशील उम्र वाले लोगों पर अपनी पूरी क्षमता से निवेश करके भारत जनसांख्यिकीय लाभांश का फायदा उठा सकता है. इस निवेश का आर्थिक वृद्धि, स्थायित्व व सुरक्षा के बीच काफी गहरा संबंध होता है. स्वास्थ्य, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, नौकरी व कौशल के माध्यम से लोगों पर निवेश करने से मानव पूंजी के निर्माण में मदद मिलती है.
आर्थिक विकास को सहायता करने, गरीबी खत्म करने और ज्यादा समावेशी समाज के निर्माण में यह पूंजी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. यह मानव पूंजी आज भारत की संपदा का सबसे तेजी से बढ़नेवाला घटक है. लेकिन भारत के पास जो मानव पूंजी है, उसकी क्षमता ऐसी नहीं जिससे जनसांख्यिकीय लाभांश का फायदा उठाया जा सके.
इस पूंजी का लाभ उठाने के लिए हमें शिक्षा के क्षेत्र में तेज गति से काम करने की आवश्यकता है. चूंकि जनसांख्यिकीय लाभांश सीमित-अवधि के लिए अवसर देता है, ऐसे में नीति निर्माताओं को मानव पूंजी को बढ़ावा देने के अपने प्रयासों को तीव्र करने की जरूरत है ताकि यह आर्थिक विकास और रोजगार सृजन में योगदान दे सके. अपने कामकाजी जनसंख्या, जिसमें महिला व पुरुष दोनों शामिल होते हैं, के पूर्ण योगदान के बिना कोई भी देश विकास की राह पर तेज गति से नहीं चल सकता है. इसलिए बिना मानव पूंजी में निवेश के जनसांख्यिकीय लाभांश का फायदा नहीं उठाया जा सकता. इस पूंजी में निवेश करना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि अगर ऐसा नहीं हुआ तो यह स्थिति भविष्य में आर्थिक व सामाजिक अंतर को बढ़ाने का काम करेगी, जो देश की प्रगति में बाधक सिद्ध होगी
जनसांख्यिकीय लाभांश व आर्थिक विकास
विश्व बैंक की मानें, तो जनसांख्यिकीय लाभांश का आर्थिक विकास को तीव्र करने में छह तरीके से योगदान हो सकता है. पहला, ज्यादा लोगों के कामकाजी उम्र के होने यानी श्रमबल बढ़ने के कारण. दूसरा, बच्चों पर व्यय से लेकर भौतिक व मानवीय जरूरत की चीजों में निवेश के लिए संसाधनों के अलग-अलग इस्तेमाल से.
तीसरा, कार्यबल में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी से. चौथा, बचत दर में वृद्धि के कारण, क्योंकि कामकाजी आयु के दौरान ही प्रमुख तौर पर बचत होती है. पांचवां, अवकाशप्राप्ति की लंबी अवधि के लिए बचत करने से बचत को अतिरिक्त प्रोत्साहन मिलने के कारण. छठा, मध्यम वर्गीय समाज में बड़़ेे पैमाने पर आये बदलावों के कारण. अब इस समाज के युवा भी शिक्षा, गृह स्वामित्व, बेहतर आर्थिक सुरक्षा और अधिक टिकाऊ वस्तुओं की चाहत रखने लगे हैं, जिसका फायदा अर्थव्यवस्था को मिल सकता है.
क्या है जनसांख्यिकीय लाभांश
जनसांख्यिकीय लाभांश उस स्थिति को कहते हैं जब जनसंख्या के ढांचे में उम्र के आधार पर आनेवाले बदलाव के कारण किसी भी देश की अर्थव्यवस्था तेज होती है. इस स्थिति में आश्रित जनसंख्या के मुकाबले कार्यशील जनसंख्या ज्यादा होती है. ऐसा माना जाता है कि कार्यशील आयु की अधिक आबादी से न सिर्फ देश की अर्थव्यवस्था विकास की ओर अग्रसर होती है, बल्कि इससे प्रति व्यक्ति आय में भी वृद्धि होती है. इस स्थिति का लाभ लेने के लिए रोजगार की स्थिति को बेहतर करने के साथ ही कार्यशील आबादी का कुशल होना भी जरूरी होता है, तभी वह संतोषजनक आय स्तर तक पहुंच सकती है. ऐसा होने पर ही अर्थव्यवस्था को लाभ होता है.
कैसी है भारत की जनसांख्यिकीय स्थिति
जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) की रिपोर्ट कहती है कि वर्तमान में भारत की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा युवा है. असल में यह अध्ययन भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश के दो तथ्यों पर रोशनी डालता है. पहला यह कि भारत में इस लाभांश का अवसर 2005-06 से 2055-56 तक पांच दशकों के लिए मौजूद है, जो दुनिया के किसी भी देश को इस अवसर के लिए मिलने वाले समय से कहीं ज्यादा है. दूसरा, इस लाभांश के मौके अलग-अलग समय पर भारत के अलग-अलग राज्यों में उपलब्ध हैं.
विश्व के सबसे युवा देशों में शुमार भारत
27 वर्ष है भारत की माध्य आयु इस समय चीन के 35 व जापान के 45 वर्ष के मुकाबले.
28 वर्ष रहेगी भारत की माध्य आयु वर्ष 2020 में, जबकि इसी वर्ष चीन व अमेरिका की 37, पश्चिमी यूरोप की 45 और जापान की माध्य आयु 49 वर्ष रहेगी.
39 करोड़ (390 मिलियन) मिलेनियल्स (80 के दशक से 2000 के बीच पैदा हुई पीढ़ी) और 44 करोड़ (440 मिलियन) जेनरेशन जेड (1990 के मध्य और 2000 के बीच जन्म लेने वाली पीढ़ी) की पलटन है लगभग इस वक्त भारत के पास, एक अनुमान के अनुसार,
1.2 करोड़ (12 मिलियन) लोग प्रतिवर्ष यहां कार्यबल में शामिल हो रहे हैं.
69 प्रतिशत हो जायेगी 2040 तक भारत की कार्यशील आबादी, जबकि 2013 में इसका प्रतिशत 64 था. इस प्रकार, 2040 तक भारत की कार्यशील आबादी में 30 करोड़ यानी 300 मिलियन लोग और जुड़ जायेंगे.
2024 तक भारत विश्व का सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश हो जायेगा, एक अनुमान के मुताबिक.
स्रोत : वाॅयस ऑफ एशिया थर्ड एडिशन, संयुक्त राष्ट्र व अन्य
भारतीय राज्यों के समक्ष जनसांख्यिकीय लाभांश से पैदा होनेवाले अवसर
दिल्ली, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना में अवसर बने हुए हैं, लेकिन वे आने वाले सालों में सांख्यिकीय लाभांश के दायरे से बाहर आ सकते हैं. वहीं गुजरात, पंजाब और पश्चिम बंगाल के लिए अगले पांच वर्षों तक लाभांश के अवसर बने रहेंगे.
कर्नाटक, ओडिशा, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर, असम, उत्तराखंड और हरियाणा में साल 2031 तक लाभांश के अवसर मौजूद रहेंगे. इन राज्यों के लिहाज से अगला एक दशक बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है.
जनसांख्यिकीय लाभांश के अवसर केरल और तमिलनाडु में फिलहाल उपलब्ध नहीं हैं. इसका कारण राज्य की आबादी में उम्रदराज आबादी की हिस्सेदारी में लगातार बढ़ोतरी होना है, कार्यशील आबादी की तुलना में.
पूरे देश के लिहाज से भारत में अगले 15 वर्षों तक लाभांश के अवसर मौजूद रहेंगे.
छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों के लिए साल 2041 से 2051 के बीच जनसांख्यिकीय लाभांश के अवसर उत्पन्न होंगे.

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