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यूलिप और म्यूचुअल फंड : केवल टैक्स के मुद्दे पर इंस्ट्रूमेंट को न करें जज

जब से बजट में लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स की घोषणा हुई है, तब से इंश्योरेंश कंपनियां यूलिप के टैक्स फ्री की चर्चा कर रही और लोगों को यूलिप में निवेश के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं. लोग इस पर आकर्षित भी हो रहे हैं. लेकिन केवल आयकर बचाने मुद्दे पर ही निवेश करने के […]

जब से बजट में लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स की घोषणा हुई है, तब से इंश्योरेंश कंपनियां यूलिप के टैक्स फ्री की चर्चा कर रही और लोगों को यूलिप में निवेश के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं. लोग इस पर आकर्षित भी हो रहे हैं. लेकिन केवल आयकर बचाने मुद्दे पर ही निवेश करने के लिए किसी इंस्ट्रूमेंट को जज नहीं करना चाहिए. म्यूचुअल फंड्स में निवेश करना ज्यादा सरल और लाभप्रद होता है. प्रस्तुत है सात मुख्य पैरामीटर पर इनकी तुलनात्मक विशेषताएं.
प्रवीण मुरारका, निदेशक, पूनम सिक्युरिटीज
आयकर में छूट
इस मामले में यूलिप बहुत ही आगे है. लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स आने के बाद से इस मामले में यह विकल्प और मजबूत हुआ है. स्टॉक और म्यूचुअल फंड से लंबी अवधि में होने वाले लाभ पर टैक्स के प्रावधान के पहले ही यूलिप म्यूचुअल फंड की तुलना में अधिक आकर्षक निवेश विकल्प था.
इक्विटी म्यूचुअल फंड या बैलेंस्ड योजना में एक साल के निवेश पर शार्ट टर्म कैपिटल गेन के तहत 15 प्रतिशत का टैक्स लगता था, जबकि यूलिप योजना में इंश्योरेंश होने से यह पूरी तरह टैक्स फ्री था. 01 अप्रैल 2018 से लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर 10 प्रतिशत टैक्स लगा लेकिन यूलिप टैक्स फ्री ही रहा.
यूलिप में वैसे तो अधिक शुल्क लगता था लेकिन अब नये यूलिप योजनाओं में शुल्क को बहुत की कम कर दिया गया है जिससे वे बाजार में उनकी उपस्थिति और सुदृढ़ हो गयी है. यूलिप में मॉर्टिलिटी शुल्क को एक तरफ रख कर देखें तो कुछ यूलिप में वार्षिक शुल्क 1.5 फीसदी से भी कम है.
मॉर्टिलिटी शुल्क की वजह से यह निवेशक द्वारा किये गये निवेश को कम कर देता है. वैसे बहुत सारी इंश्योरेंश कंपनियां अब मॉर्टिलिटी शुल्क के प्रभाव को कम करने की कोशिश में लगी हुई है. कुछ कंपनियां इसकी भरपाई करने के लिए कुल पूंजी में बोनस या बूस्टर के रूप में अपने निवेशकों को अतिरिक्त लाभ भी दे रही है.
रिटर्न
म्यूचुअल फंड लगातार बेहतर परिणाम दे रहे हैं. और इसका लंबी अवधि में बहुत ही बढ़ा प्रभाव दिखता है. अगर सिर्फ एनएवी आधारित रिटर्न को देखा जाये तो म्यूचुअल फंड निवेशकों को रिटर्न देने में यूलिप की तुलना में बहुत ही आगे है. इंश्योरेंश कंपनिया इस संदर्भ में अपना तर्क देती हैं कि मॉर्टिलिटी शुल्क को रिटर्न पाने के तर्क में नहीं जोड़ना चाहिए क्योंकि यह शुल्क निवेशक की जीवन बीमा प्रदान करता है.
मॉर्निंगस्टर के आंकड़े दर्शाते हैं कि यूलिप के रिटर्न म्यूचुअल फंड की तुलना में 100 से 300 बेस प्वाइंट कम होता है. पिछले कुछ वर्षों में लार्ज कैप यूलिप फंड का औसत ग्रोथ 15.51 प्रतिशत रहा है जबकि लार्ज कैप म्यूचुअल फंड 18.83 प्रतिशत की दर से वृद्धि किया है.
रिटर्न में इस अंतर का असर 15-20 साल की लंबी अवधि में बहुत ज्यादा होता है. लार्ज कैप यूलिप फंड में अगर एक लाख का निवेश पांच वर्ष के लिए किया जाता है तो वह निवेश बढ़ कर Rs 1.96 लाख (14.42% की वार्षिक दर से) हो जाता है.
अगर इसी रकम को लार्ज कैप म्यूचुअल फंड में निवेश किया जाये तो इतनी ही अवधि में यह राशि बढ़ कर Rs 2.03 लाख हो जायेगी (15.25% की वार्षिक दर से). अगर निवेश की अवधि 20 वर्ष की हो तो रिटर्न में यह छोटा अंतर बहुत अधिक, लगभग 30 हजार हो जायेगा. यह सही है कि इक्विटी फंड पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगेगा लेकिन उसका असर बहुत ही कम होगा.
लचीलापन
निवेशक जब चाहें तब म्यूचुअल फंड में आसानी से बदलाव कर सकते हैं या निवेश को रोक सकते हैं, साथ ही जब चाहे तब उसे पुन: शुरू कर सकते हैं जबकि यह सुविधा यूलिप में नहीं होती है. यूलिप एक बहुवर्षिय योजना होती है जिसमें निवेशक को योजना की पूरी अवधि तक प्रीमियम का भुगतान करते रहना पड़ता है. उसे बीच में नहीं रोका जा सकता.
यूलिप लेने का मतलब है क्लोज एंडेड फंड में निवेश करना जो पांच साल के बाद मैच्योर होगा. यूलिप के निवेशकों को योजना की पूरी अवधि के लिए उसी कंपनी व पॉलिसी के साथ बने रहना पड़ता है. जबकि म्यूचुअल फंड में निवेश करनेवालों को इस तरह का कोई भी बंधन नहीं होता. वह आसानी से कभी भी अच्छे रिटर्न देने वाले फंड में अपने निवेश को बदल सकते हैं. निवेशक जब चाहे निवेश को बंद कर रिटर्न प्राप्त कर सकते हैं.
पारदर्शिता
बहुत सारी एजेंसियां म्यूचुअल फंड्स की निगरानी करती रहती हैं. निवेशक अपने पोर्टफोलियों को आसानी से देख सकते हैं, उसमें विभिन्न सेक्टरों में किये गये निवेश, मार्केट सेगमेंट और व्यक्तिगत स्टॉक की जानकारी ले सकते हैं. वैसे तो यूलिप भी अपने निवेशकों को पूरी जानकारी उपलब्ध कराती है लेकिन इनकी निगरानी बड़े स्तर पर नहीं होती.
बेहतर प्रदर्शन करनेवाले यूलिप की जानकारी केवल कुछ निवेशक ही जान पाते हैं. यूलिप के एनएवी जब 12 प्रतिशत की दर से वृद्धि होती है तब कॉर्पस वैल्यू (कुल पूंजी) में मात्र 10 प्रतिशत की वृद्धि होती है, क्योंकि कुछ यूनिट निरस्त हो जाती है. जबकि इन मामलों में म्यूचुअल फंड्स में पारदर्शिता बहुत ही अधिक होती है.
लिक्विडिटी
वैसे तो म्यूचुअल फंड्स और यूलिप में लंबे समय तक निवेश किया जा सकता है, लेकिन तुलनात्मक रूप से म्यूचुअल फंड्स में पैसे निकालना ज्यादा सरल है.
एक निवेशक कभी भी अपनी इच्छानुसार निवेश को बंद कर सकता है और पूरा पैसा निकाल सकता है. जरूरत के अनुसार निवेशक पूरा पैसा न निकाल कर कुछ हिस्सा ही निकाल सकता है. यह सुविधा यूलिप में नहीं होती. यूलिप में पांच वर्ष का लॉक इन होता है. इसके बाद ही निवेशक उसमें से कुछ हिस्सा निकाल सकता है. हां, 2010 के पहले की योजनाओं के मुकाबले अब यूलिप के निवेशकों को पांच वर्ष की अवधि के बाद सरेंडर शुल्क नहीं देना पड़ता.
कुछ लोगों का ऐसा मानना है कि यूलिप में पांच वर्ष तक बने रहने के लिए बाध्य करने का सकारात्मक असर होता है.
सरल और सहज (इज एंड च्वाइस)
म्यूचुअल फंड्स में निवेश शुरू करना बहुत ही आसान होता है और किसी भी म्यूचुअल फंड का चुनाव कर सरलता से कभी भी निवेश की शुरूआत की जा सकती है जबकि यूलिप केवल कुछ विकल्प ही पेश करता है.
अगर आपने एक बार म्यूचुअल फंड में निवेश कर दिया है और आपका केवाइसी पूरा हो चुका है, तो आप ऑनलाइन किसी भी म्यूचुअल फंड में निवेश कर सकते हैं. इसके लिए कोई अतिरिक्त कागजातों की जरूरत नहीं होती है.
जबकि यूलिप के निवेशकों को ऐसा मौका नहीं मिलता है. ऑनलाइन फॉर्म भर का जमा करने और उसका भुगतान करने के बाद भी उन्हें ऑफलाइन स्तर पर जरूरी कागजात को भरना पड़ता है. इसमें मेडिकल टेस्ट और आइटीआर के कागजात को भी जमा करना पड़ सकता है, खास कर जब आप एक बड़ा इंश्योरेंश पॉलिसी ले रहे हैं.

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