”सभ्यता एक बड़ी हिपोक्रेसी है”
पश्चिम बंगाल के नाडिया जिले के कृषनगर वूमेंस कॉलेज की प्रिंसिपल मानोबी बंद्योपाध्याय आज किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं. समाज में ट्रांसजेंडर्स की कोई पहचान नहीं है और वे केवल ताली बजाकर फूहड़ नाच ही कर सकते हैं, इस मिथक को तोड़ा है ‘पुरुष तन में फंसा मेरा नारी मन’ जैसी आत्मकथा लिखने वाली […]
पश्चिम बंगाल के नाडिया जिले के कृषनगर वूमेंस कॉलेज की प्रिंसिपल मानोबी बंद्योपाध्याय आज किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं.
समाज में ट्रांसजेंडर्स की कोई पहचान नहीं है और वे केवल ताली बजाकर फूहड़ नाच ही कर सकते हैं, इस मिथक को तोड़ा है ‘पुरुष तन में फंसा मेरा नारी मन’ जैसी आत्मकथा लिखने वाली मानोबी बंद्योपाध्याय ने. मां-बाप से मिले नाम सोमनाथ की यात्रा केवल सोमनाथ से मानोबी बनने की नहीं है, उनकी कहानी संघर्षों और चुनौतियों से लड़ने और उन्हें परास्त करने की भी है. स्त्री मन में पुरुष देह की भी है.लेखिका मानोबी बंद्योपाध्याय से सुमन वाजपेयी की उनसे हुई मुलाकात के कुछ अंश…
Qअपनी जीवन यात्रा के बारे में कुछ बताएं?
-अगर मैंने अपनी जीवन यात्रा के बारे में बताना शुरू किया तो वह वेद बन जाएगा, उपनिषद् बन जाएगा, यानी इतनी लंबी है मेरी जीवन यात्रा. वैसे जैसे ट्रांसजेंडर होते हैं, वैसी ही है मेरी जीवन यात्रा. फर्क इतना है कि आज मैं उच्च शिक्षित हूं और कॉलेज की प्रिंसिपल बन गई हूं.
मेरी सारी शिक्षा का श्रेय मेरी माताजी और पिताजी को जाता है, जिन्होंने यह जानने के बाद भी कि मैं आम मानव नहीं हूं, मुझे समाज के भय से घर से नहीं निकाला और मुझे उच्च शिक्षा दिलवाई. हमेशा उन्हें यही चिंता रही कि मैं खूब पढ़ूं. आज मेरी पास पीएचडी करने के बाद डॉक्टर की उपाधि है.
आज मेरे पास ताकत है… शिक्षा की वजह से मेरे जीवन में अंतर आया है, पर हम ट्रांसजेंडर हैं, यहबात समाज हमें कभी भूलने नहीं देता है. मैंने इतनासंघर्ष किया है कि मेरा दुख एक पहाड़ के समान है.इतने आंसू मैंने बहाए हैं कि एक समुद्र बन जाए. लेकिन उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा.
Qसमाज आपके साथ कैसा व्यवहार करता है?
लोगों के व्यवहार की चिंता नहीं करती, केवल अपने भीतर झांककर देखती हूं, अपने से सवाल करती हूं कि मैं क्या चाहती हूं. कोई मेरे साथ बुरा व्यवहार क्यों कर रहा है, इसको लेकर मैं परेशान नहीं होती हूं.
कभी इस बात पर विचार नहीं किया कि समाज मुझे किस ढंग से देखता है, मेरे बारे में क्या सोचता है. मेरे लिए महत्व की बात है कि मैं कैसे समाज को देखती हूं. आज मेरे पास कुछ करने की पावर है, इसलिए मैं जैसा चाहती हूं, वैसा करती हूं. मैं समाज को जवाब देना चाहती थी इसलिए उच्च शिक्षा हासिल की.
Qक्या अब आपके अस्तित्व को स्वीकारती मिली है?
कोई मुझे स्वीकारे न स्वीकारे, इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है. वैसे भी आप मुझे बताएं कि एक्सेप्टेंस की परिभाषा क्या है…सब बेकार की बात है, इसलिए किसी की स्वीकृति की मोहर मुझे अपने ऊपर नहीं लगानी है. क्या मैं कोई ग्रहण हूं, क्या मैं कोई गंदी चीज हूं जो मुझे स्वीकारने का प्रश्न उठता है.
लोग चंद्रग्रहण लगने पर, सूर्यग्रहण लगने पर उसे नहीं देखते, घर बैठकर पूजा करते हैं. क्या मैं किसी ग्रहण की तरह हूं जिस पर काली छाया आ गई हो, और इसलिए मुझसे दूर भागना चाहिए. मेरे लिए जरूरी है आत्मसम्मान और और उसी के साथ सिर उठाकर मैं अपनी राह पर चल रही हूं. ‘पहले मेरी आत्मा स्त्री की थी और शरीर पुरुष का, अब मेरी आत्मा और शरीर दोनों एक हो गए हैं.
मेरा मानना है कि सभ्यता एक बड़ी हिपोक्रेसी है. इस सभ्यता से मेरा कोई संबंध नहीं है. जो लोग अपने को सभ्य मानते हैं, वही सबसे ज्यादा असभ्य हैं. मैं बचपन से देख रही हूं ऐसे सभ्य लोगों को जो ट्रांसजेंडर्स का यूज करके उन्हें छोड़ देते हैं. ये लोग लड़कियों का यूज करके उन्हें वेश्या बना देते हैं. हम तो वेश्या भी नहीं हैं, हम तो रास्ते में खड़े होकर भीख मांगते हैं. हर ट्रांसजेंडर का यौन शोषण होता है. बचपन में न जाने कितनी बार मेरा यौन शोषण हुआ है और वह भी परिवार के लोगों द्वारा.
Qअपने अध्यापन के अनुभव के बारे में बताएं?
मैं केवल अपना काम कर रही हूं, सरकार ने मुझे एक ओहदा दिया है और मैं उसका सम्मान करती हूं. आम व्यक्ति की तरह मुझे भी अपनी जिम्मेदारी का दबाव महसूस होता है, प्रिंसिपल के कतर्व्यों के प्रति इसलिए हमेशा सचेत रहती हूं. मुझे खुशी है कि मेरे छात्र मुझसे बहुत प्यार करते हैं.
छात्र बहुत मासूम होते हैं, पर टीचर उन्हें मेरे खिलाफ भड़काते रहते हैं. लेकिन मैं डटी रहूंगी और अपना ज्ञान उन्हें बांटती रहूंगी. मैं चाहती हूं कि शिक्षा को ज़्यादा से ज़्यादा ट्रांसजेंडर लोगों तक पहुंचाऊं जो इस अधिकार से अकसर वंचित रह जाते हैं.
Qआप कविताएं भी लिखती हैं, क्या ये आपकी भावनाओं को व्यक्त करने का माध्यम हैं?
यह सच है कि मैं कविताओं के माध्यम से अपने दर्द को बाहर उड़लती हूं, पर सच तो यह है कि मेरी जिंदगी कविता नहीं है, वह एक कठिन गद्य (प्रोज) है. मेरी लाइफ रियलिस्टिक है, रोमांटिक नहीं. बचपन से ही मैं कविताएं लिख रही हूं.
Qआपने लिंग परिवर्तन के ऑपरेशन कराए. आप अपने इस बदलाव से खुश हैं?
अपनी रीअसाइनमेंट सर्जरी (एसआरएस) के बाद मैं स्त्री बन गई. हालांकि बचपन से मानसिक रूप से स्त्री तो थी ही, पर शरीर पुरुष का था, पर अब मैं पूर्णतया स्त्री बन गई हूं. मैं खुश हूं. मेरी आत्मा जो चाहती थी वो मुझे मिल गया. पहले मेरी आत्मा स्त्री की थी और शरीर पुरुष का, अब मेरी आत्मा और शरीर दोनों एक हो गए हैं.
Qसोमनाथ नाम बदलकर मानोबी रखने की वजह?
सारी मनुष्य जाति मानव है, पर हम न तो पुरुष हैं न ही स्त्री. यहां तक कि हमें मनुष्य तक नहीं समझा जाता है, मानो हम कोई और लोक के हैं. लोगों ने यहां तक कहा कि यह तो हिजड़ा प्रिंसिपल है जो साड़ी पहनने का नाटक करती है और जिसका पेनिस साये के अन्दर छुपा है और औरत बनी फिरती है. मुझे ‘सेक्समनियक’ और ‘मेन स्टैकर’ तक कहा गया. मैंने तय किया कि मैं अपना नाम मानोबी रखूंगी, जिसका बंगाली में अर्थ होता है मानवता. हम न मैन हैं न वूमैन, हम ओमैन हैं, यानी शगुन.