बदतर होती नदियों की स्थिति, बढ़ रहा प्रदूषण
इंडस्ट्रियल कचरे, घरेलू अपशिष्टों और हमारी उदासीनता से भारत में नदियों की हालत नाजुक है. विकास की अंधी दौड़ में औद्योगिकीकरण एवं शहरीकरण के बीच देश की नदियों में प्रदूषण का स्तर खतरे की सीमा रेखा को पार कर गया है और हम बस देखते रहे हैं. गंगा-यमुना व अन्य नदियों की सफाई के लिए […]
इंडस्ट्रियल कचरे, घरेलू अपशिष्टों और हमारी उदासीनता से
भारत में नदियों की हालत नाजुक है. विकास की अंधी दौड़ में औद्योगिकीकरण एवं शहरीकरण के बीच देश की नदियों में प्रदूषण का स्तर खतरे की सीमा रेखा को पार कर गया है और हम बस देखते रहे हैं.
गंगा-यमुना व अन्य नदियों की सफाई के लिए अलग-अलग सरकारों ने कई योजनाएं शुरू कीं, लेकिन नदियों में गंदगी बढ़ती ही दिखायी दे रही है. पेय जल की स्वच्छता भी अब सवालों के घेरे में है और बीमारियां हमारा दरवाजा खटखटा रही हैं. इन्हीं बहसों पर केंद्रित है आज का इन दिनों…
पर्यावरणविद
ज्ञानेंद्र रावत
पर्यावरणविद
बिन नदी जीवन मुश्किल
यह विडंबना है कि जिन नदियों ने लाखों सालों से हमें गले लगा रखा है, जो जीवनदायिनी हैं, वे जीवनरेखा कही जानेवाली सदानीरा नदियां आज मर रहीं हैं. एनजीटी के लाख प्रयासों के बावजूद देश की नदियां औद्योगिक कचरा कहें या फिर औद्योगिक रसायन युक्त अपशेष से मुक्त नहीं हो पायी हैं.
जो नदियां प्रदूषण मुक्त हो पायीं भी हैं, उनमें निजी प्रयासों की बहुत बड़ी भूमिका है. सरकार दावे करते नहीं थकती कि वह गंगा-यमुना सहित देश की अधिकांश नदियों को प्रदूषण मुक्त कर देगी. गंगा-यमुना पहले से और भी अधिक मैली हैं और वे अब नदी नहीं, गंदे नाले का रूप अख्तियार कर चुकी हैं. जब गंगा-यमुना आज तक प्रदूषण मुक्त नहीं हो पायी हैं, जो बदहाली की जीती-जागती मिसाल हैं, तो देश की बाकी नदियों की शुद्धि की उम्मीद बेमानी नहीं तो और क्या है.
बढ़ रहा प्रदूषण
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की मानें, तो देश की तकरीबन 521 में से 323 नदियों की हालत इतनी बुरी है कि उनके पानी में नहा भी नहीं सकते हैं. इन नदियों की बदहाली का आलम यह है कि इनके पानी में ऑक्सीजन की मात्रा लगातार घटती जा रही है.
इनमें बीओडी 3 मिग्रा प्रति लीटर से भी कहीं ज्यादा है. मानक के अनुसार पीने के पानी में अधिकतम बीओडी दो या उससे कम होना चाहिए और नहाने के पानी में यह तीन से किसी भी कीमत पर अधिक नहीं होना चाहिए. सबसे अधिक प्रदूषित 33 नदियों में देश की सबसे पूज्य पुण्यसलिला, मोक्षदायिनी और पतितपावनी नदी गंगा और यमुना भी शामिल हैं.
इनके अलावा गुजरात की अमलाखेड़ी, खारी, हरियाणा की मारकंडा, मध्य प्रदेश की खान, बेतवा, उत्तर प्रदेश की वरुणा, घाघरा, काली और हिंडन, आंध्र की मुंसी, महाराष्ट्र की भीमा सर्वाधिक प्रदूषित नदियों की सूची में शीर्ष पर हैं. गोमती और पांडु जैसी तो असंख्य हैं. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, देश की 198 नदियां स्वच्छ पायी गयी हैं. ये सभी दक्षिण-पूर्व भारत की हैं. अकेले महाराष्ट्र की तकरीबन 45 से अधिक नदियां बुरी तरह प्रदूषित हैं.
बोर्ड भले यह दावा करे कि दक्षिण-पूर्व की नदियों की हालत उत्तर भारत की नदियों के बनिस्बत काफी अच्छी है, जबकि हकीकत यह भी है कि नदियों की बदहाली में मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, केरल और पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड भी पीछे नहीं हैं. बोर्ड का मानना है कि नदियों के किनारे बसे अधिकांश शहरों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट न होने के चलते नदियों में प्रदूषण बढ़ रहा है. नदियों में प्रदूषण का अहम कारण सीवेज है.
ऑक्सीजन की मात्रा घटी
बीओडी बढ़ने की भी अहम वजह सीवेज ही हैं. इसके अलावा कचरा, इंसान एवं पशुओं के शव और फूल-पत्तियों का प्रवाह भी नदियों में बीओडी की मात्रा बढ़ा कर नदियों के संतुलन को बिगाड़ने में अहम भूमिका निबाहता है. इनके खात्मे में काफी बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन खर्च होती है. यही वजह है जिसके चलते नदी में ऑक्सीजन की मात्रा लगातार कम होती चली जाती है.
गंभीर बीमारियों के खतरे
दुख इस बात का है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड औद्योगिक प्रदूषण के बारे में बिल्कुल मौन है, जबकि देखा जाये तो देश की अधिकांश नदियों के प्रदूषण में उद्योगों के रसायनयुक्त अवशेषों की प्रमुख भूमिका है.
पर्यावरण विज्ञान केंद्र का शोध-अध्ययन इसका सबूत है कि देश की नदियों में मानक से ज्यादा खतरनाक विषैले तत्व मौजूद हैं. इसके चलते वे विषैली हो गयी हैं. देश की तकरीबन 445 नदियों के अध्ययन में पाया गया है कि उनके प्रदूषण का स्तर असामान्य है. उनमें भारी निर्धारित मानक से कई गुना ज्यादा हैवी मेटल मौजूद हैं.
उनका पानी पीने लायक तक नहीं है. यदि सिलसिलेवार जायजा लें, तो पता चलता है कि देश की तकरीबन 137 नदियों में आयरन, 69 में लेड, 50 में कैडमियम और निकल, 21 में क्रोमियम और 10 में कॉपर अधिकतम मात्रा में पाया गया है. हालात की गंभीरता का अंदाजा इससे लग जाता है कि इसके चलते लोग लीवर सिरोसिस, डायबिटीज, हृदय रोग, गुर्दा रोग, अनीमिया, फेफड़े, सांस, पेट के रोग, जोड़ों में दर्द, सीने में खिंचाव, बेहोशी, मांसपेशियों में दर्द, खांसी, थकान, उच्च रक्तचाप, कैंसर, अल्सर, हड्डियों की बीमारी व डायरिया के शिकार होकर मर रहे हैं. सबसे बुरी हालत गंगा और ब्रह्मपुत्र की है, जिसका पानी सबसे ज्यादा गंदा है.
नदियों का सवाल सबका है
नदियों का सवाल प्रकृति और पर्यावरण से जुड़ा है. नदियों के बिना मानव जाति ही नहीं, जीव-जंतु यानी संपूर्ण प्राणी जगत अपूर्ण है. युग परिवर्तन के साथ-साथ नदियों के प्रति हमारी सोच में भी बदलाव आया है.
नदियों की बदहाली उसी सोच का नतीजा है. हमारे यहां नदियों की पूजा होती है व उन्हें मां मानते हैं. अधिकांश मेले नदियों के तट पर ही लगते हैं. अर्धकुंभ-कुंभ इसके सबूत हैं. यहां अहम सवाल यह है कि नदियां प्रदूषण मुक्त होनी चाहिए, वे अविरल बहनी चाहिए. यह बेहद जरूरी है.
नदियां जितनी जल्दी शुद्ध हों, उतना ही उनके और देश के भविष्य के लिए अच्छा है. लेकिन, इस सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता कि राष्ट्र्ीय हरित अधिकरण द्वारा देश की नदियों को बदहाली से उबारने की खातिर की गयीं लाख टिप्पणियों, सरकार को दी चेतावनियों और अधिकारियों को अपने दायित्व के ढंग से निर्वहन न किये जाने को लेकर बार-बार फटकारने के बावजूद, नदियां और बदहाल होती चली गयी हैं.
कौन करेगा साफ?
राजीव गांधी सरकार ने अपने कार्यकाल के दौरान सबसे पहले गंगा के शुद्धीकरण की शुरुआत की थी. दस-बारह साल पहले यमुना को टेम्स बनाने का वायदा किया गया था. आज भी यमुना में 860 मिलियन लीटर गैलन सीवर का पानी रोजाना यमुना में गिराया जा रहा है.
मोदी सरकार आने के बाद साल 2014 में नमामि गंगे मिशन की शुरुआत हुई. उसके बाद उमा भारती ने तवी नदी के उद्धार का बीड़ा उठाने का वायदा किया. लेकिन, दुख है कि न गंगा साफ हुई, न यमुना साफ हुई और न तवी. ऐसे में देश की अन्य नदियों की शुद्धि की आशा कैसे की जा सकती है.
नदी मामलों की जानकार डाॅ साफिया खान का कहना है कि हमारे मनीषियों ने नदियों को धर्म के साथ इसलिए जोड़ा कि मानव धार्मिक भावना के वशीभूत हो जीवनदायिनी मान कर उनकी पूजा करे, उनकी रक्षा करे, उनको दूषित न करे. यही वह अहम वजह रही जिसके चलते नदियों के किनारे मेले लगना शुरू हुए. कुंभ, अर्धकुंभ इसके जीवंत प्रमाण हैं. लेकिन, आज उस भावना का सर्वत्र अभाव है.
नदी-प्रदूषण के प्रमुख कारण
कृषि अपशिष्ट, रसायन, उर्वरक और कृषि क्षेत्र के कीटनाशक द्वारा.
औद्योगिक अपशिष्ट और भारी धातुओं के पानी का नदियों से जा मिलना.
नदियों के किनारे विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करना.
दूषित हवा के कण के साथ गिरने से प्राकृतिक बारिश द्वारा प्रदूषण, जिसे अम्लीय वर्षा भी कहा जाता है.
घरों से निकलनेवाले अपशिष्ट पदार्थों और गंदे नालों का नदियों में मिलना.
मानव अस्थियों-अवशेषों का नदियों में प्रवाहित होना.
प्लास्टिक थैले, प्लास्टिक की अन्य वस्तुएं, ठोस अपशिष्ट और फूल-मालाओं आदि का नदियों में अपवहन.
जलाशयों में पशुओं को नहलाना, वाहनों को धोना और धोबीघाटों का नदी किनारे होना भी प्रदूषण का कारण.
रामगंगा व गर्रा नदियां सर्वाधिक प्रदूषित
नदियों की तुलना पर बायलॉजिकल वाटर क्वाॅलिटी (2014-18) की रिपोर्ट कहती है कि 2017-18 के पोस्ट-मॉनसून की अवधि में रामगंगा और गर्रा नदी जल भारी प्रदूषण वाली नदियों की श्रेणी में शामिल थे.
इस अध्ययन में यह भी कहा गया है कि कुछ स्थानों (उत्तराखंड में जगजीतपुर और उत्तर प्रदेश में कानपुर, इलाहाबाद व वाराणसी) पर 2014-15 की तुलना में 2017-18 में गंगा नदी जल की गुणवत्ता खराब हो गयी थी. वहीं, 2017-18 में, हरिद्वार बैराज में मॉनसून के पहले और बाद की अवधि में गंगा नदी का जल सबसे ज्यादा स्वच्छ था, जबकि प्री-मॉनसून के दौरान कानपुर और वाराणसी के विभिन्न निगरानी स्थलों पर यह नदी गंभीर रूप से प्रदूषित दर्ज की गयी.
97 में 66 शहर के नाले गंगा में गिरते हैं
गंगा किनारे बसे 97 में से 66 शहर ऐसे हैं, जिनका कम-से-कम एक नाला गंगा में गिरता है. इनमें से 31 शहर पश्चिम बंगाल के हैं. गंगा किनारे बसे महज 19 शहरों में ही शहर के भीतर म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट प्लांट बने हुए हैं, जबकि 33 शहरों में कम-से-कम एक घाट पर सॉलिड वेस्ट यानी ठोस कचरा तैरता हुआ पाया गया.
प्रयागराज, रामनगर, वाराणसी व कानपुर सहित उत्तर प्रदेश के 13 और हरिद्वार व ऋषिकेश सहित उत्तराखंड के 10 शहरों के नाले सीधे गंगा में गिरते हैं. बिहार के 17 और पश्चिम बंगाल के 34 शहरों में डंपिंग साइट घाट के करीब बने हैं.
स्रोत : क्वाॅलिटी काउंसिल ऑफ इंडिया, शहरी विकास मंत्रालय
गहरा सकता है जल संकट
ग्लोबल वाटर मॉनिटर एंड फॉरकास्ट वाच लिस्ट की बीते वर्ष नवंबर में आयी रिपोर्ट में कहा गया है कि इस वर्ष भारत में जल संकट के बढ़ने के साथ ही उसके गहराने का भी अनुमान है.
इस रिपोर्ट के अनुसार जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और मिजोरम को जहां पानी की गंभीर कमी से जूझना पड़ेगा, वहीं बिहार को मध्यम से गंभीर जल संकट से जूझना पड़ सकता है. देश में फरवरी से अप्रैल तक, इस समस्या के मध्यम होने और पूर्वी क्षेत्र के कुछ स्थानों पर सामान्य होने की उम्मीद जतायी गयी है.
हालांकि गुजरात, मध्य प्रदेश और कर्नाटक से लेकर तुंगभद्रा नदी के किनारे बसे शहरों को पानी की भारी कमी से जूझना पड़ेगा. इस पूर्वानुमान की मानें तो महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और मध्य प्रदेेश में इस वर्ष गंभीर जल संकट की स्थिति उत्पन्न हो सकती है.
यमुना में पैदा होती सब्जियों में जहर
दिल्ली, गाजियाबाद और नोएडा के इलाकों में सीजन के अनुसार हरी सब्जियों की भरमार रहती है. भिंडी, टमाटर, मूली, लौकी, तुरई, लाल और हरी मिर्च, पालक, बथुआ जैसे साग दशकों से समयनुसार दिल्ली और आसपास के बाजारों में उपलब्ध रहते हैं. गौरतलब है कि ये सभी यमुना के जल में उगायी जा रही हैं. प्रदूषित जल में पैदा होने के कारण इन सब्जियों में हानिकारक रासायनिक तत्व मौजूद हैं, जो स्वास्थ्य के लिए जानलेवा हैं.
यमुना खादर के इलाकों में उगायी गयी इन सब्जियों के सैंपल में लेड, पारा और आर्सेनिक की भारी मात्रा पायी गयी थी. गंगा की तरह यमुना को लेकर भी दशकों से विभिन्न योजनाओं के दावे किये जाते रहे हैं, पर यमुना को इंडस्ट्रियल कचरे से लेकर घरेलू अपशिष्टों का ठिकाना बनाकर छोड़ दिया गया है.
समंदर में सबसे अधिक कचरा ले जाने वाली 10 नदियां: दुनिया की 10 नदियां समंदर में कचरे के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं. एक अध्ययन के मुताबिक, समंदरों के प्लास्टिक कचरे का 90 प्रतिशत हिस्सा इन्हीं से आता है.
1. यांग्त्जे, चीन
2. गंगा, भारत
3. येलो, चीन
4. पर्ल, चीन
5. एमर, रूस और चीन
6. सिंध, भारत
7. मिकांग, चीन
8. वेई, चीन
9. नील, अफ्रीका
10. नाइजर, अफ्रीका
नदी-प्रदूषण से बचने के उपाय
कारखानों व औद्योगिक इकाइयों से निकलनेवाले अवशिष्ट पदार्थों के निष्पादन की समुचित व्यवस्था की जानी चाहिए. नदी या अन्य किसी जलस्रोत में अवशिष्ट डालना दंडनीय अपराध घोषित किया जाना चाहिए.कार्बनिक पदार्थों को निष्पादित करने से पहले उनका आक्सीकरण कर दिया जाना चाहिए.पानी में जीवाणुओं को नष्ट करने के लिए रासायनिक पदार्थ या ब्लीचिंग पाउडर आदि का प्रयोग करना चाहिए.अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समुद्रों और नदियों के किनारे किसी भी तरह के औद्योगिक प्लांट या परमाणु परीक्षणों आदि पर रोक लगानी चाहिए. देश के सभी नागरिकों को नदी व जल प्रदूषण के खतरे के प्रति जागरूक होना चाहिए और दूसरों को भी करना चाहिए.
जल प्रदूषण से बीमारियों का खतरा
जल प्रदूषण की भयावहता के कारण देश की 47.41 करोड़ आबादी फ्लोराइड, आर्सेनिक, लौह तत्व और नाइट्रेट सहित अन्य लवण एवं भारी धातुओं के मिश्रण वाला पानी पीने को मजबूर हैं.
खतरनाक रासायनिक तत्वों की मिलावट वाले दूषित पानी से सर्वाधिक प्रभावित राज्यों में राजस्थान, पश्चिम बंगाल और असम शीर्ष पर हैं. केंद्रीय एजेंसी एकीकृत प्रबंधन सूचना प्रणाली (आईएमआईएस) के आंकड़ों के मुताबिक, पूरे देश में 70,736 बस्तियां फ्लोराइड, आर्सेनिक, लौह तत्व और नाइट्रेट सहित अन्य लवण एवं भारी धातुओं के मिश्रणवाले दूषित जल से प्रभावित हैं, जिसके दायरे में 47.41 करोड़ आबादी शामिल है.
पानी में फ्लोराइड की अधिकता से फ्लूरोसिस, नाइट्रेट की अधिकता से सांस संबंधी बीमारियां, लौह एवं लवणयुक्त पानी से ऑस्टियोपोरोसिस, आर्थराइटिस और आर्सेनिक युक्त दूषितजल से कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है. अध्ययन के अनुसार, विश्व भर में 80 फीसदी से अधिक बीमारियों में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रदूषित पानी का ही हाथ होता है. ऐसे में, जल प्रदूषण की भयावहता को समझना जरूरी है.
प्रदूषित नदियों की संख्या में वृद्धि
गत वर्ष सितंबर में नदियों के मूल्यांकन के आधार पर सीपीसीबी ने अपनी रिपोर्ट पेश की, जिसमें कहा गया है कि बीते दो वर्षों में प्रदूषित नदियों की संख्या घटने की बजाय बढ़ गयी है. इस मूल्यांकन के अनुसार, 302 से बढ़कर 351 हो गयी है प्रदूषित नदियों की संख्या.34 से बढ़कर 45 हो गयी है गंभीर रूप से प्रदूषित नदियाें की संख्या.
351 प्रदूषित नदियों में से 117 महाराष्ट्र (53), असम (44) तथा गुजरात (20) में हैं. यह रिपोर्ट यह भी कहती है कि महाराष्ट्र, असम तथा गुजरात की नदियों की तुलना में बिहार और उत्तर प्रदेश के कई नदी खंड कम प्रदूषित हैं.
कैसा है गंगा का हाल
बीते दिसंबर गंगा के हाल पर बायलॉजिकल वाटर क्वाॅलिटी एसेसमेंट (2017-18) की आयी रिपोर्ट (जिसे केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने सार्वजनिक किया था) की मानें, तो बीते वर्ष मॉनसून के पहले की अवधि (प्री-मॉनसून सीजन) में गंगा के गुजरने के 41 स्थानों में से 37 स्थानों पर इस नदी का जल मध्यम से गंभीर स्तर तक प्रदूषित पाया गया.
प्री-मॉनसून के दौरान इन 41 में से महज चार स्थानों पर ही नदी जल या तो स्वच्छ था या हल्का प्रदूषित, वहीं मॉनसून के बाद की अवधि में 39 में से केवल एक ही स्थान पर (केवल हरिद्वार में) गंगा का पानी स्वच्छ था.
2016-17 के प्री-मॉनसून की अवधि में गंगा नदी के 34 क्षेत्रों में मध्यम दर्जे का प्रदूषण देखा गया, जबकि इसके तीन क्षेत्रों में गंभीर प्रदूषण दर्ज किया गया. इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि उत्तर प्रदेश की दो मुख्य सहायक नदियां पांडु और वरुणा नदी गंगा में प्रदूषण के स्तर को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हैं.गंगा नदी की मुख्यधारा में, हालांकि एक भी स्थान गंभीर रूप से प्रदूषित नहीं था, लेकिन अधिकांश स्थानों में प्रदूषण का स्तरमध्यम था.
गंगा के संरक्षण, संवर्धन व स्वच्छता कार्यक्रम के लिए एनआरसीपी (नेशनल रिवर कंजर्वेशन प्लान) के तहत 2007-08 में 251.83 करोड़ और 2008-09 के दौरान 276 करोड़ रुपये खर्च किये गये. नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, मौजूदा सरकार ने भी वर्ष 2015 में सिर्फ गंगा संरक्षण यानी नमामि गंगे योजना के लिए 21,000 करोड़ की धनराशि स्वीकृत की थी.
कचरे व सीवेज से प्रदूषण
बीते वर्ष दिसंबर में सीपीसीबी की सितंबर 2018 में आयी रिपोर्ट के हवाले से लोकसभा में बताया था कि 351 नदी क्षेत्रों में से 323 क्षेत्रों के प्रदूषण का मुख्य कारण अशोधित और आंशिक रूप से शोधित कचरा व सीवेज (मल, गंदा पानी, नाले का पानी आदि) हैं.
मानक से अधिक भारी धातु हैं देश की
42 नदियों में बीत वर्ष केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) ने ग्रीष्म, शरद व मॉनसून के दौरान देश की नदियों जल के नमूने लिये थे. इन नमूनों के अध्ययन में सीडब्ल्यूसी ने देश की 42 नदियों में विषैले भारी धातुओं (शीशा, निकल, लौह, तांबा, क्रोमियम, कैडमियम) की संख्या मानक से अधिक पाया. जबकि गंगा में पांच भारी धातु क्रोमियम, तांबा, निकेल, शीशा व लौह और अर्कावती, ऑरसैंग, राप्ती, साबरमती, सरयू व वैतरणा में चार भारी धातु मानक से कहीं अधिक मात्रा में पाये गये.
अध्ययन के चौरान नदियों के साथ-साथ बनाये गये 414 स्टेशनों के नमूनों की जांच के बाद जो नतीजे आये, उससे पता चला कि 168 स्टेशनों का पानी सिर्फ इसलिए पीने योग्य नहीं हैं, क्योंकि उनमें लोहे की अत्यधिक मात्रा मौजूद है, जबकि 136 के पानी को इस अध्ययन में पीने योग्य माना गया.