पाकिस्तान की शह पर पनपते आतंकवाद से एक निर्णायक लड़ाई की दरकार
मुचकुंद दूबे पूर्व विदेश सचिव सबसे पहले तो यह बात समझनी चाहिए कि देश की सुरक्षा का सीधा संबंध देश के भीतर हो रही घटनाओं से होता है. इसके अलावा, देश में जो अन्य चीजें हो रही हैं, उन पर भी दृष्टि डालनी चाहिए. मसलन, देश के अल्पसंख्यक समुदायों के साथ कैसा बर्ताव किया जा […]
मुचकुंद दूबे
पूर्व विदेश सचिव
सबसे पहले तो यह बात समझनी चाहिए कि देश की सुरक्षा का सीधा संबंध देश के भीतर हो रही घटनाओं से होता है. इसके अलावा, देश में जो अन्य चीजें हो रही हैं, उन पर भी दृष्टि डालनी चाहिए.
मसलन, देश के अल्पसंख्यक समुदायों के साथ कैसा बर्ताव किया जा रहा है, देश के अलग-अलग राज्यों के अरमान व ख्वाहिशें किस हद तक पूरी हो रही हैं, देश की लाचार जनता को बुनियादी मानवाधिकारों से वंचित किया जा रहा है; इन सबको ध्यान में रखना पड़ेगा.
इन बातों से जनता में असंतुष्टि पैदा होती है, विद्रोह पैदा होता है और इस तरह की हर चीजें घटित होती हैं. ऐसा मान लेना कि पुलवामा में जो हुआ, उसका कश्मीर में भारत सरकार की नीति से कोई संबंध नहीं है, बिल्कुल गलत बात है. हमने कश्मीर को उस कगार पर पहुंचा दिया है कि वहां की जनता सौ फीसदी हमसे विक्षुब्ध है और हम पर भरोसा करने से हिचकिचाती है. सरकारों ने एक ऐसा वातावरण बना दिया है, एक ऐसी बिसात तैयार कर दी है जिससे बाहरी आतंकी शक्तियों को मौका मिलता है, और वे जब यहां आती हैं तो स्थानीय असंतुष्ट शक्तियों से उनको शह मिलता है.
अगर कहीं की जनता आपसे नाराज है और असंतुष्ट है, तो वह तो किसी भी तरह की बदले की कार्रवाई के लिए हर तरह की जानकारी बाहर की शक्तियों को दे सकती है. यह एकदम स्पष्ट है और हकीकत है कि इस तरह की गतिविधियों में स्थानीय लोग भागीदारी कर रहे हैं. जब तक हमारे पास समुचित कश्मीर नीति नहीं होगी, तब तक मैं नहीं मानता कि हम आतंकवाद से लड़ सकते हैं.
सरकार देश के सामने बदले की बात कर रही है. एमएफएन (मोस्ट फेवर्ड नेशंस) लिस्ट से पाकिस्तान को बाहर कर रही है. लेकिन, इससे क्या होगा?
एमएफएन से बाहर करना कोई बड़ी बात नहीं होती है. कड़े शब्दों में कहूं, तो पाकिस्तान ने पैर पकड़ कर खुशामद नहीं की थी कि हमें शामिल कीजिए. एमएफएन भारत ने खुद दिया था और बहुत सारी बातों को सोचने के बाद ही दिया. पहले हम गैट के अंतर्गत थे और अब डब्ल्यूटीओ के सदस्य हैं.
ऐसे में, कानूनी तौर पर एमएफएन ट्रीटमेंट देना हमारे लिए लाजमी है. अगर हम नहीं देते हैं, तो यह अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करना है. पाकिस्तान पहले से ही इस कानून का उल्लंघन कर रहा है. राष्ट्रीय सुरक्षा कानूनी धारा है, जिसके द्वारा इस उल्लंघन से बचा जा सकता है. सरकार को इसी धारा का प्रयोग करना पड़ेगा, अगर पाकिस्तान को बाहर करना है.
मेरा मानना है कि पाकिस्तान अगर अंतरराष्ट्रीय कानून का पालन नहीं करता है, तब भी हमें पालन करना चाहिए. अगर सरकार व्यापार को नियंत्रित करे, उतनी ही चीजों को आने दे जितने की आवश्यकता है, फिर तो एमएफएन की कोई वैल्यू नहीं होती है. एमएफएन से बाजार में दूसरों देशों के साथ प्रतियोगिता में आपको फायदा मिलता है. आपके साथ अगर व्यापार ही नहीं होता है और आपके दोनों तरफ से नियंत्रित है, फिर एमएफएन का क्या फायदा है. यानी पाकिस्तान को एमएफएन से बाहर करके सरकार गीदड़भभकी दे रही है. इससे होना यह है कि थोड़ा सा जो व्यापार होता था, वह भी बंद हो जायेगा.
हमारे देश के अंदर जो चीजें हो रही हैं, हम उन्हीं के शिकार हैं. इसके चलते ही देश में हमले होते हैं, घटनाएं होती हैं, दंगे होते हैं, सब तरह की चीजें होती हैं.
जब तक एक राष्ट्र के रूप में हम रहना नहीं सीख जाते, हर नागरिक को सम्मान नहीं देते और उसे यह अनुभव नहीं करने देते कि वह समान नागरिक है व उसे देश में पूर्ण सुरक्षा प्राप्त है, तब तक इस तरह की घटनाएं होती रहेंगी और आप इसे कभी रोक नहीं पायेंगे. रक्षा नीति, विदेश नीति कोई जादू की छड़ी नहीं है कि इन पर रोक लगा देगी. आप बदले की कार्रवाई से भी इन्हें नहीं खत्म कर पायेंगे. सरकार कहे कि उन्होंने हमारे चार आदमियों को मारा, तो हम उनके दस आदमियों को मार गिरायेंगे, इससे कुछ नहीं होने वाला है.
हो सकता है इससे कुछ वक्त के लिए आतंक पर रोक लग जाये, पर कोई गारंटी नहीं है कि उसके बाद ऐसी घटनाएं नहीं होंगी. बदले की कार्रवाई से पशुओं की तरह आनंदलाभ लेने से कुछ नहीं मिलने वाला है. सरकारों की गलतियों का ही फायदा पाकिस्तान जैसे देश उठाते हैं और ऐसी घटनाओं को अंजाम देते हैं. और वे ही नहीं हम भी उनकी गलतियों का फायदा उठाते हैं, कोई भी देश उठाता है. बातचीत द्वारा ही कोई हल ढूंढ़ा जा सकता है. हमें पाकिस्तान के साथ संबंधों को सुधारना ही होगा. पाकिस्तान में भी तमाम तरह की समस्याएं हैं. लेकिन, मुझे लगता है कि वर्तमान सरकार ने जो रुख अपनाया है कि उनसे बातचीत न की जाये, जो भी पाकिस्तान से बातचीत की बात उठाये उसे देशद्रोही बोल दो, गिरफ्तार करा दो.
कोई किसी मंच पर खड़ा होकर यह नहीं कह सकता कि पाकिस्तान के साथ व्यापार बढ़ना चाहिए या पाकिस्तान के साथ एमएफएन से भी ज्यादा करीबी देश का ट्रीटमेंट देना चाहिए. इस माहौल में दोस्ती की बात कोई कर ही नहीं सकता है, जबकि जिन मुद्दों पर दोनों देशों के साझा हित जुड़े हैं, उन मुद्दों पर तो साथ आया ही जा सकता था. पिछले बहुत से सालों से ये सब चल रहा है.
इन स्थितियों में आप आतंकवाद को खत्म करने के लिए हम चाहे जो नीति अपनाएं, वह नाकाफी साबित होगी और आतंकवाद को तो वह बिल्कुल ही खत्म नहीं कर सकती. आप कुछ करेंगे, तो सामने वाला भी चुप नहीं बैठेगा.
उसके पास भी सेना है, न्यूक्लियर हथियार हैं. ऐसे में यह लड़ाई अनवरत चलती रहेगी, शांति कभी नहीं आयेगी. इसलिए, जितनी जल्दी बातचीत शुरू हो, सौहार्दपूर्ण संबंध कायम किये जायें, वही सबके लिए अच्छा होगा.
हालांकि, ऐसा मुश्किल लगता है. पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आता और हमारे यहां भी राजनेताओं ने जहरबुझा माहौल बना दिया है. फिर भी मैं कहूंगा कि लड़ाई जैसी सतही नीतियों के बजाय, ठोस नीतियां अपनायी जायें और शांति कायम की जाये.
(बातचीत : देवेश)