स्वच्छता के प्रति बढ़ी है जागरूकता

दुनू रॉय निदेशक, हजार्ड सेंटर, दिल्ली स्वच्छ सर्वेक्षण 2019 की रिपोर्ट आ गयी है, जिसे डिजिटल सर्वे के जरिये तैयार किया गया है. डिजिटल होना बहुत अच्छी बात है, इससे हम आधुनिक बनते हैं, लेकिन हर जगह डिजिटल होने का कोई तुक नहीं है. जमीनी सर्वेक्षणों के बाद अगर किसी चीज का डिजिटलीकरण किया जाये, […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 10, 2019 8:42 AM

दुनू रॉय

निदेशक, हजार्ड सेंटर, दिल्ली

स्वच्छ सर्वेक्षण 2019 की रिपोर्ट आ गयी है, जिसे डिजिटल सर्वे के जरिये तैयार किया गया है. डिजिटल होना बहुत अच्छी बात है, इससे हम आधुनिक बनते हैं, लेकिन हर जगह डिजिटल होने का कोई तुक नहीं है. जमीनी सर्वेक्षणों के बाद अगर किसी चीज का डिजिटलीकरण किया जाये, तो इससे सभी तक सही जानकारी पहुंच सकती है.

जमीनी स्तर से हुए डिजिटल सर्वे में कागज-पत्रों की बचत होती है और सर्वे भी तेजी से होता है. हालांकि, कूड़े के प्रबंधन और निस्तारण की जानकारी के लिए हमारे पास जमीनी सर्वेक्षण के साधन होने चाहिए, उसके बाद ही इस पर डिजिटल व्यवस्था कारगर हो सकती है. डिजिटल सर्वे के लिए भी जरूरी है कि जमीन पर जाकर सही जानकारी दर्ज की जाये. तब हमें न सिर्फ सही जानकारी मिलेगी, बल्कि स्वच्छता के मानकों को दुरुस्त करने में भी हमें मदद मिलेगी.

दरअसल, डिजिटल सर्वे के लिए एक एप बनाया गया है, जिस पर स्वच्छता संबंधी जानकारी को टिक किया जाता है. शहरों की नगरपालिकाओं के अधिकारी इस एप पर टिक करके बताते हैं कि फलां शहर स्वच्छता के मामले में कहां है. लेकिन, इससे सही-सही जानकारी नहीं मिल सकती कि किसी शहर की स्वच्छता की स्थिति क्या है.

मान लीजिये, बिना कूड़ा घर गये ही अगर हम एप पर यह टिक कर दें कि हमारे मोहल्ले में कूड़े का बेहतर प्रबंधन होता है और हमारी सड़कें स्वच्छ हैं, तो बरास्ते अधिकारी यह जानकारी सरकार के कंप्यूटर में फीड हो जायेगी. यही फीड अब डिजिटल सर्वे की रिपोर्ट में मौजूद है. इसलिए इस डिजिटल सर्वे में कुछ चीजों का अभाव दिखता है, जिसे दूर किया जाना चाहिए था.

हाल के दिनों में स्वच्छता को लेकर शहरों और लोगों में कुछ जागरूकता आयी है, जो बहुत अच्छी बात है. दिल्ली शहर में मुहल्ले की गलियों में कूड़ा बटोरने के लिए छोटी-छोटी गाड़ियां चलती हैं. उन गाड़ियों पर छोटा वाला लाउडस्पीकर लगा होता है, जिसमें उद्घोषणा होती रहती है कि साफ-सफाई का ध्यान रखें और कूड़ा यहां डालें. अब अगर वह गाड़ी गलियों में घूम रही है और अधिकारी उसे देखकर एप पर टिक कर देता है, तो बात यहीं तक खत्म नहीं हो गयी. सवाल यह है कि वह गाड़ी रोजाना हर घर से कूड़ा उठा रही है या नहीं. यही नहीं, कूड़े के तीनों प्रकार को अलग-अलग किया जा रहा है या नहीं, यह सब भी जानकारी का हिस्सा है.

क्योंकि गीले कूड़े से खाद बनाया जाता है और सूखे कूड़े को रिसाइकिल किया जाता है. इस तरह ही कूड़े का प्रबंधन करके देश को स्वच्छ बनाया जा सकता है.

सही-सही जानकारी उपलब्ध कराने के लिए डिजिटल सर्वे में भी ग्राउंड जीरो की रिपोर्टिंग का सहारा लिया जाना चाहिए. किसी भी सर्वे का मूलभूत सिद्धांत यही होता है कि ग्राउंड जीरो की रिपोर्टिंग उसमें नजर आये. इस डिजिटल सर्वे में एप के जरिये शौचालयों के बारे में भी टिक किया गया है.

एप ने शौचालयों की संख्या तो दर्ज कर ली, जिससे यह पता चलता है कि देशभर में बड़ी संख्या में शौचालयों का निर्माण हुआ है. लेकिन, उसमें इस जानकारी का अभाव है कि वहां का रख-रखाव और पानी की व्यवस्था कैसी है. दरअसल, शौचालयों, कूड़ाघरों या स्वच्छता के लिए जरूरी जगहों पर जाकर ही निरीक्षण किया जाना चाहिए, उसके बाद ही कोई रिपोर्ट तैयार की जानी चाहिए. यानी ऐसी सारी जानकारियां ग्राउंड जीरो से ही प्राप्त हो सकती हैं. इन जानकारियों का अगर डिजिटलीकरण किया जाये, तो मैं समझता हूं कि स्वच्छता को लेकर जागरूकता थोड़ी और बढ़ जायेगी.

स्वच्छता का मानक तय करने के लिए जरूरी है कि हर शहर की नगरपालिकाएं यह पता करें कि वहां हर रोज कितनी मात्रा में कूड़ा उत्पन्न होता है.

उस कूड़े में कितना प्रतिशत मलबा है, कितना प्रतिशत गीला है और कितना प्रतिशत सूखा है, यह भी पता करना होगा. मलबे को शहर से दूर कहीं ले जाकर डंप किया जायेगा, गीले कूड़े का खाद बनेगा और सूखे कूड़े का पुुनर्चक्रण होगा. इन तीनों प्रकार के कूड़े को तीन अलग-अलग जगहों पर ले जाना होगा, जहां इनकी प्रकृति के हिसाब से इनके साथ व्यवहार होगा. जब यह सब पता चल जाये, तो उसके प्रबंधन के तहत हम यह तय कर सकते हैं कि इतने कूड़े के निस्तारण के लिए कितनी गाड़ियां चाहिए, कितने अधिकारी चाहिए और कितने सफाईकर्मी चाहिए. ये सारी जानकारियां जमीनी सर्वेक्षण से ही पता चल पायेंगी. समस्या यह है कि अधिकारी सिर्फ यह बता पाते हैं कि शहर से कितना कूड़ा उन्होंने उठवाया, लेकिन यह नहीं बता पाते कि रोजाना कितना टन कूड़ा वहां पैदा हो रहा है. वह भी इस आधार पर बताया जाता है कि गाड़ियां शहर से रोज जितना कूड़ा उठा पाती हैं, उतना ही तय माना जाता है कि उस शहर में रोज उतना कूड़ा इकट्ठा होता है.

बाकी इसके अलावा कितना कूड़ा और शहर में कहीं जमा पड़ा है, उसकी कोई परवाह नहीं रहती. स्वच्छ सर्वेक्षण के लिए यह सब जानकारी भी जरूरी है. इस तरह एक विस्तृत सर्वेक्षण के बाद ही सारी जानकारी एप के जरिये सामने आनी चाहिए. इसी आधार पर स्वच्छता का मानक तैयार किया जाये और स्वच्छता संबंधी तमाम व्यवस्थाओं को मजबूत किया जाये. स्वच्छ सर्वेक्षण की रिपोर्ट तो आ गयी है और हम यह जान गये हैं कि कौन-सा शहर स्वच्छता के मामले में किस पायदान पर है. पर यह बहुत सीमित जानकारी है. तमाम शहरों से मिले फीडबैक ही सरकारी कंप्यूटरों में दर्ज है. लेकिन इस फीडबैक में कितनी तथ्यात्मक जानकारी है, यह समझ पाना फिलहाल संभव नहीं है. इसलिए फिलहाल यही कहूंगा कि डिजिटल सर्वे के दौरान जितनी भी जानकारी अधिकारियों ने इकट्ठा की है, उन सबको अपने-अपने शहर की वेबसाइट पर स्वच्छता का एक कॉलम बनाकर उसमें डाल देना चाहिए.

दरअसल, अब सर्वे तो आ गया है, लेकिन देश के विभिन्न शहरों में बैठे जागरूक लोगों को सही जानकारी नहीं मिलेगी, तो वे आरटीआई डालना शुरू करेंगे. इसलिए सरकार को चाहिए कि अभी से स्वच्छता संबंधी जानकारियों को हर शहर या जिले की सरकारी वेबसाइट पर डाल दे, ताकि लोग वहां से जानकारी पाकर संतुष्ट हो सकें.

(बातचीत : वसीम अकरम)

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