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स्वच्छता की ओर अग्रसर देश, जानें क्या है स्वच्छ सर्वेक्षण?

महात्मा गांधी राजनीतिक स्वतंत्रता से कहीं ज्यादा जरूरी स्वच्छता को मानते थे. बापू को ही समर्पित कर शुरू किया गया स्वच्छ भारत अभियान उनके विचारों को साथ लेकर प्रगति कर रहा है. स्वच्छ सर्वेक्षण की हालिया रिपोर्ट बताती है कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सभी देशवासी इस अभियान में अपनी भूमिका निभा रहे हैं […]

महात्मा गांधी राजनीतिक स्वतंत्रता से कहीं ज्यादा जरूरी स्वच्छता को मानते थे. बापू को ही समर्पित कर शुरू किया गया स्वच्छ भारत अभियान उनके विचारों को साथ लेकर प्रगति कर रहा है.
स्वच्छ सर्वेक्षण की हालिया रिपोर्ट बताती है कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सभी देशवासी इस अभियान में अपनी भूमिका निभा रहे हैं और देश खुले में शौच से मुक्त होने की दिशा में अग्रसर है. अभियान के तहत अपशिष्टों का बेहतर प्रबंधन किया जा रहा है और सफाई कर्मचारियों को बेहतर संसाधनों से लैस किया जा रहा है. सरकार द्वारा संचालित स्वच्छ सर्वेक्षण 2019 की प्रमुख बातें आज के इन दिनों में..
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बड़ी सफलता : 37,000 से अधिक सार्वजनिक/सामुदायिक टॉयलेट गूगल टॉयलेट लोकेटर पर दर्ज किये जा चुके हैं, जिन तक टॉयलेट जाने की जरूरत मालूम पड़ने पर अब गूगल द्वारा पहुंचा जा सकता है.
रिपोर्ट की प्रमुख बातें
4,041 शहर खुले में शौच से मुक्त हो चुके हैं. देश के कुल शहरों का यह 94 फीसदी आंकड़ा है.23 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के शहर खुले में शौच से मुक्त हो चुके हैं.
62.7 लाख टॉयलट बने हैं और निर्माणाधीन हैं, घरेलू लैट्रिन अनुप्रयोग (आईएचएचएल) के अंतर्गत. निर्माणाधीन टॉयलेटों का 93.4 प्रतिशत निर्माण-कार्य पूरा हो चुका है.
5.12 लाख सामुदायिक एवं सार्वजनिक टॉयलेट शीट्स बनाये गये हैं और अभी निर्माण-कार्य जारी है. निर्माणाधीन टॉयलेट शीट्स का 99.2 प्रतिशत कार्य पूरा हो चुका है.
51 फीसदी ठोस अपशिष्ट व कचरा नगरपालिकाओं के अंतर्गत संसाधित किया जा चुका है.89 प्रतिशत शहरी वार्डों में ठोस कचरे व अपशिष्ट पदार्थों को नगरपालिका द्वारा शत-प्रतिशत तरीके से डोर-टू-डोर जाकर उठाया जाता है.
61 फीसदी शहरी वार्डों में ठोस कचरे व अपशिष्टों का नगरपालिका द्वारा 100 प्रतिशत सही पृथक्करण किया जाता है.
गंगा किनारे बसे शहरों की श्रेणी में गौचर सबसे साफ
उत्तराखंड के चमोली जिले के कर्णप्रयाग तहसील स्थित गौचर शहर को गंगा किनारे बसे नगरों की स्वच्छता श्रेणी में पहला स्थान प्राप्त हुआ है. अलकनंदा के तट पर बसे इस पर्यटन स्थल को स्वच्छता सर्वेक्षण 2019 में कुल 1,250 में से 1,177 अंक प्राप्त हुआ है.
सर्वेक्षण के दौरान इस छोटे से शहर के लगभग 96 प्रतिशत आवासीय और व्यावसायिक क्षेत्र स्वच्छ पाये गये, जबकि 94प्रतिशत सामुदायिक व सार्वजनिक शौचालय रौशन व हवादार होने के साथ ही बिजली व पानी की आपूर्ति/फ्लश की सुविधा से लैस थे.
इतना ही नहीं, स्वच्छता के कई मानकों पर इस शहर ने शत-प्रतिशत अंक भी प्राप्त किये. जबकि इस सूची में झारखंड का राजमहल नगर पंचायत दूसरे व साहिबगंज नगर परिषद तीसरे स्थान पर है. स्वच्छता के विभिन्न मानकों पर इन दोनों शहरों को 1,250 में से 1,172 व 1,127 अंक प्राप्त हुए हैं.
क्या थे सर्वेक्षण के मानक
इस बार स्वच्छ सर्वेक्षण 2019 में सतत विकास और जन भागीदारी पर जोर दिया गया था और पूरे देश में 4 जनवरी से 31 जनवरी के बीच सभी शहरों में स्वच्छ सर्वेक्षण कराया गया था. खुले में शौच से मुक्त होने का दर्जा हासिल करने की प्रक्रिया को जारी रखने तथा व्यावहारिक बदलाव सुनिश्चित करने के लिए ओडीफ+ और ओडीएफ++ के दिशा-निर्देश तय किये गये.
इसके अलावा, शहरों को स्थायी रूप से कचरा मुक्त बनाने के लिए स्टार रेटिंग पर भी जोर दिया गया था. शहरों के योजनाबद्ध प्रबंधन और विकास के माध्यम से लोगों का जीवन स्तर सुधारने हेतु प्रोत्साहित करने के लिए पहली बार जीवन सुगमता सूचकांक जारी किया गया था. इस सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य शहरों को कचरा और खुले में शौच से मुक्त कराने के प्रयास में व्यापक स्तर पर जन भागीदारी सुनिश्चित करना तथा समाज के सभी वर्ग के लोगों के लिए शहरों को जीने लायक बेहतर स्थान बनाने के प्रति जागरूकता पैदा करना है.
सर्वेक्षण के जरिये लोगों को शहरों में साफ-सफाई के लिए किये जा रहे कार्यों की विश्वनीय और प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध कराने की भी कोशिश भी की गयी. सर्वेक्षण के संकेतक/प्रश्नावली 5000 अंक की थी, जबकि साल 2018 के सर्वेक्षण में 4000 अंक रखे गये थे. सर्वेक्षण के लिए डेटा संकलन में सेवा स्तर पर हुई प्रगति, प्रत्यक्ष निगरानी, लोगों से प्राप्त फीडबैक और प्रमाणन शामिल था.
स्टार रेटिंग के लिए मंत्रालय द्वारा निर्धारित 12 मानकों के आधार पर शहरों का आकलन किया गया था. इसमें शहरों में नालियों और जल स्रोतों की साफ-सफाई, प्लास्टिक कचरा प्रबंधन, निर्माण और तोड़फोड़ की गतिविधियों के दौरान निकलने वाले कचरे का निपटान आदि सवाल शामिल थे. इनकी कड़ी समीक्षा के बाद ही किसी शहर को स्टार रेटिंग दी गयी थी. साफ-सफाई के कार्यों का आकलन बनाये गये शौचालयों की संख्या के आधार पर नहीं, बल्कि वार्डों और शहरों की संख्या के आधार पर किया गया, जहां शौचालय बनाये गये हैं.
क्या है स्वच्छ सर्वेक्षण?
स्वच्छ सर्वेक्षण की शुरुआत साल 2015-16 में भारत सरकार द्वारा की गयी थी. स्वच्छ सर्वेक्षण का उद्देश्य भारत के शहरों और ग्रामीण इलाकों में स्वच्छता अभियान के अंतर्गत किये जानेवाले कार्यों और योजनाओं की जमीनी स्थिति का समय-समय पर आंकलन करना है.
इसके अतिरिक्त, देश के बड़े जनसमूह तक पहुंचना, स्वच्छता अभियान में शामिल करना और समाज के सभी वर्गों में स्वच्छता के प्रति जागरूकता फैलाना भी उसके उद्देश्यों में शामिल है. इसके अंतर्गत, शहरी विकास मंत्रालय शहर का और पेयजल व स्वच्छता मंत्रालय ग्रामीण इलाकों में सर्वेक्षण की जिम्मेदारी संभालती है. क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया (क्यूसीआई) को इसकी निगरानी करने की जिम्मेदारी दी गयी है.
शौचालय के लिए बजट का 51 प्रतिशत स्वीकृत
बीते चार वर्षों में स्वच्छ भारत अभियान के तहत सरकार द्वारा जो बजट आवंटित किये गये थे उससे एक बात साफ हो जाती है कि सरकार का पूरा ध्यान शौचालय निर्माण पर रहा है. स्वच्छ भारत अभियान के तहत शहरों के लिए कुल बजट का 33 प्रतिशत हिस्सा शौचालय निर्माण और 50 प्रतिशत ठोस कचरा प्रबंधन के लिए तय किया गया था. लेकिन बीते चार वर्षों में केंद्र सरकार द्वारा शहरी बजट का 51 प्रतिशत हिस्सा शौचालय निर्माण के लिए स्वीकृत किया गया, जबकि ठोस कचरा प्रबंधन के लिए केवल 38 प्रतिशत ही स्वीकृत किया गया.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी माना स्वच्छता अभियान का लोहा
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी स्वच्छ अभियान का लॉन्च होने के समय से ही स्वागत किया है. पिछले वर्ष विश्व स्वास्थ्य संगठन के दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्रीय दफ्तर ने स्वच्छ भारत मिशन की सराहना करते हुए रिपोर्ट प्रस्तुत की थी. इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि विश्व स्वास्थ्य संगठन स्वच्छ भारत अभियान के तहत भारत की सुरक्षित स्वच्छता सेवाएं अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने की प्रतिबद्धता की प्रशंसा करता है.
उन्होंने रिपोर्ट में अभियान की प्रगति को देखते हुए यह भी सुखद संभावना जतायी थी कि दो अक्तूबर 2019 तक इस अभियान का 100 फीसदी लक्ष्य हासिल कर लिया जायेगा और साल 2014 में शुरू हुए इस मिशन से साल 2019 तक अतिसार (दस्त) और प्रोटीन ऊर्जा कुपोषण से भारत में होनेवाली लगभग 300,000 मौतों को रोका जा सकेगा.
ये शहर सबसे निचले पायदान पर
जनवरी में हुए स्वच्छ सर्वेक्षण की रिपोर्ट कहती है कि रॉबरट्सन पेट, दानापुर, सिल्चर, छपरा और सहरसा स्वच्छता के मानक पर निचले पायदान पर हैं. इस सर्वेक्षण के अनुसार, बिहार का सहरसा निचले पायदान (425वां स्थान) पर है. कुल 5,000 अंकों में से इसने महज 634.28 अंक ही प्राप्त किया है. वहीं 685.74 अंकों के साथ छपरा (बिहार) 424वें, 735.26 अंकों के साथ सिल्चर (असम) 423वें, 809.19 के साथ दानापुर (बिहार) 422वें और वहीं 881.49 के साथ कर्नाटक के रॉबर्ट्सन पेट ने 421वां स्थान हासिल किया है.
बड़ी सफलता : 83,898 अनौपचारिक तौर पर कचरा उठानेवाले, कूड़ा बीनने वाले जो असंगठित क्षेत्र से आते थे, जिनकी आमदनी का कोई ठिकाना नहीं था, उन्हें स्थायी आजीविका के तहत एकीकृत कर सक्षम बनाया गया है.
कारगर रहा है स्वच्छ भारत अभियान
रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर कंपैशियोनेट इकोनॉमिक्स (आरआईसीई) द्वारा 2014 से 2018 के बीच उत्तर भारत के चार राज्यों के 3,235 घरों का सर्वेक्षण किया गया था. इस सर्वेक्षण के नतीजे बताते हैं कि स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत के बाद से खुले में शौच करनेवाले लोगों में 26 पर्सेंटेज प्वाइंट की कमी आयी है. इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2014 में जहां घरेलू शौचालयों तक 34 प्रतिशत लोगों की पहुंच थी, वह 2018 में बढ़कर 71 प्रतिशत हो गयी.
लेकिन शौचालयों तक पहुंच का मतलब यह नहीं है कि खुले में शौच से देश को मुक्ति मिल गयी है. आरआईसीई के सर्वेक्षण बताते हैं कि वैसे लोग जिनके पास शौचालय है, उनमें से 23 प्रतिशत अभी भी खुले में शौच जाते हैं और इनमें राजस्थान अौर मध्य प्रदेश जैसे राज्य भी शामिल हैं, जिन्हें खुले में शौच से मुक्त राज्य घोषित किया जा चुका है.
स्वच्छ सर्वेक्षण 2019
पांच सबसे स्वच्छ राज्य
आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय द्वारा जारी स्वच्छ सर्वेक्षण 2019 की रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ को सर्वाधिक स्वच्छ राज्य माना गया है. इस सर्वेक्षण के अनुसार झारखंड, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गुजरात स्वच्छता के मामले में क्रमश: दूसरे, तीसरे, चौथे और पांचवे स्थान पर हैं.

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