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मधुमेह से कमर दर्द तक लाभकारी है उष्ट्रासन
स्वामी निर्मल राणा योगाचार्य, ओशोधारा मनुष्य जीवन ऐसा पड़ाव है, जहां परमआनंद की प्राप्ति की जा सकती है. इसके लिए शरीर का पूर्ण स्वस्थ एवं मन की पूर्ण निर्मलता आवश्यक है. योगासन की इस शृंखला में उष्ट्रासन पूर्ण स्वास्थ्य प्रदान करने में सहायक है. उष्ट्र का अर्थ ऊंट है. इस आसन में शरीर के सभी […]
स्वामी निर्मल राणा
योगाचार्य, ओशोधारा
मनुष्य जीवन ऐसा पड़ाव है, जहां परमआनंद की प्राप्ति की जा सकती है. इसके लिए शरीर का पूर्ण स्वस्थ एवं मन की पूर्ण निर्मलता आवश्यक है. योगासन की इस शृंखला में उष्ट्रासन पूर्ण स्वास्थ्य प्रदान करने में सहायक है. उष्ट्र का अर्थ ऊंट है. इस आसन में शरीर के सभी अंगों को मोड़ कर ऊंट जैसी आकृति बनायी जाती है. अतः इसे उष्ट्रासन कहते हैं.
नियम : योगासन धीमी गति से व ढीले कपड़े पहन कर करें. योग खुली हवा में अथवा हवादार कमरे में करना चाहिए. जब हम शरीर को फैलाते हैं, तो सांस अंदर लेना चाहिए और जब शरीर को संकुचित करते हैं, तो सांस छोड़ना चाहिए. समझ न आये, तो स्वभाविक सांस लें. योग करते समय जमीन के ऊपर मोटी दरी बिछा लें, ताकि आपकी ऊर्जा विसर्जित न हो.
विधि : वज्रासन में बैठ जाएं. पीछे हथेलियां टिका कर थोड़ा धड़ को उठाएं व एंड़ियों व घुटनों को कंधों के बराबर फैला दें. पंजे ऊपर की ओर हों. अब दाहिने हाथ से दायें पैर को एंड़ी के नीचे व बायें हाथ से बायें पैर को एंड़ी के नीचे मजबूती से पकड़ें.
अब दोनों हाथों को तानकर सीधे करते हुए, धीरे-धीरे सिर व धड़ को पीछे झुकाते हुए घुटने के ऊपर जंघाओं को सीधा करते हुए हाथों को तानें व उठें. सिर व धड़ पीछे की ओर झुके हों व जंघाएं कमर तक सीधी तनी हों. दोनों हाथ भी सीधे व पूरे तने हों. यह उष्ट्रासन की पूर्ण स्थिति है. इस स्थिति में 10 से 15 सेकेंड तक रूकें. सांस सामान्य लें. बाद में अभ्यास होने पर एक मिनट तक आसान में रहा जा सकता है. अब सांस छोड़ते हुए धीरे-धीरे हाथों का सहारा लेकर वज्रासन में आ जाएं. शरीर को कोई भी झटका न दें. इसे तीन से पांच बार दोहरा सकते है.
लाभ : यह आसन कमर दर्द के लिए रामबाण है. कमर दर्द मुख्य रूप से रीढ़ के लंबर रीजन में L4-L5 डिस्क पर दबाव से अपने स्थान पर से हिल जाने व सूजन के कारण होता है. हमेशा आगे झुक कर काम करने या गलत ढंग से बैठने से स्पाॅन्डिलाइटिस हो जाता है. यह आसन गोटियों को स्वभाविक स्थिति में लाने में सहायक है.
इससे स्लिप डिस्क ठीक होती है. सर्वाइकल की पीड़ा समाप्त होती है. यह आसन रीढ़ के तीनों भाग गर्दन, पीठ व कमर को लाभ पहुंचाता है. लचीला व मजबूत रीढ़ यौवन एवं आयु प्रदान करता है. पेट पर खिंचाव पड़ने से पाचन तंत्र मजबूत होता है. पैक्रियाज क्रियाशील होता है, जिससे मधुमेह को ठीक करने में सहायता मिलती है.
इससे दमा के रोगी को आराम मिलता है. इससे कंधा व कमर दर्द दूर होते हैं. आंखों की रोशनी बढ़ती है. यह एंड़ी, तलवा, पैर, पिडलियां व जंघाओं को मजबूत करता है. यह आसन पेट, लिवर, किडनी, तिल्ली, आंत व फेफड़े को भी निरोग रखता है. गले के रोग जैसे- टॉन्सिल, थायराॅइड आदि को ठीक करने में यह लाभकारी है. इस आसन से सभी अन्तःस्रावी ग्रंथियां सक्रिय होती हैं व आरोग्य एवं आनंद प्रदान प्राप्त करती हैं. यह आसन विशुद्ध चक्र, अनाहत चक्र एवं मणिपुर चक्र को जागृत करता है. पूरे शरीर को तनाव मुक्त करता है.
सावधानी : जिन्हें भी उच्च रक्तचाप व हृदय रोग हो, उन्हें यह आसन नहीं करना चाहिए. घुटने, टखने के पुराने दर्द में यह आसन न करें. गर्भवती महिलाओं को एवं मासिक धर्म में यह आसन वर्जित है. बुखार अथवा इन्फेक्शन में यह आसन न करें. पेट दर्द हो, तो भी इस आसन को न करें. सभी योगासन को धीरे-धीरे, प्रेम व सुख पूर्वक करना चाहिए. आसन करते समय किसी भी अंग को पीड़ा हो, तो आसन तुरंत छोड़ दें. किसी भी अंग को झटका न दें. आसन के समाप्त होने पर विश्राम करें.
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