वीआइपी का इलाज करते समय भूल जाओ कि वह काैन है, सिर्फ मरीज समझो
डॉ डीके झा : सुबह जैसे ही खबर मिली कि मेरे गुरु डॉ केके सिन्हा नहीं रहे, कुछ क्षणाें के लिए अवाक रह गया. उस दाैरान उनके साथ बिताये गये 30 साल का एक-एक पल याद आने लगा. का तो उनके साथ लंबे समय से कर रहा था, लेकिन 15 साल से तो मैं उनका […]
डॉ डीके झा :
सुबह जैसे ही खबर मिली कि मेरे गुरु डॉ केके सिन्हा नहीं रहे, कुछ क्षणाें के लिए अवाक रह गया. उस दाैरान उनके साथ बिताये गये 30 साल का एक-एक पल याद आने लगा. का तो उनके साथ लंबे समय से कर रहा था, लेकिन 15 साल से तो मैं उनका इलाज भी कर रहा था. डॉ सिन्हा का निजी चिकित्सक होना बहुत बड़ा सम्मान है.
मैं आज जिस जगह पर खड़ा हूं, उसमें डॉ सिन्हा का बहुत बड़ा याेगदान है. 15 साल पहले की एक घटना मुझे याद है. उस दिन डॉ साहब की तबीयत खराब थी. मुझे ब्लड प्रेशर नाप कर दवा देने को कहा. मैं चुपचाप खड़ा था. उन्हाेंने कहा-क्या हुआ डीके? मैंने कहा-सर, मैं डर गया हूं. आपकाे दवा कैसे लिख सकता हूं. उसी समय डॉ साहब ने एक ब्रह्म वाक्य बताया.
कहा-डीके, किसी भी वीआइपी का इलाज करते वक्त भूल जाआे कि किसका इलाज कर रहे हाे. उस समय उसके शरीर काे देखाे. वह सिर्फ मरीज है आैर तुम डॉक्टर. उसके पद-पावर काे दिमाग में मत आने दाे आैर निर्भीक हाेकर इलाज कराे. इसके बाद मैंने डॉ साहब का बिना डरे इलाज करना शुरू किया आैर इसे अंतिम क्षणाें तक निभाया.
मैंने उनके साथ 27 मई, 1997 से काम करना आरंभ किया था. उसके पहले से परिचय जरूर था. एक दिन उन्हाेंने बुला कर कहा था-मेरे साथ रिसर्च में काम कराेगे. तुम्हारी अंगरेजी अच्छी है आैर एकाडेमिक में रुचि भी.
मैंने हां कह दिया था. डॉ साहब (हम ताे गुरुदेव कहते थे) के पास समय हाेता नहीं था. वे पांच मिनट में मरीजाें काे देखते थे आैर मैं लाइब्रेरी में क्रिटिकल केस का एनालाइसिस करता था, पेपर तैयार करता था. ऐसा ही एक पेपर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत हुआ आैर छपा भी. उस दिन से मुझे बहुत मानने लगे.
हम दाेनाें ने साथ में लगभग 12 किताबें लिखीं. उनके लेख में एक भी गलती नहीं जाये, इसलिए बार-बार चेक करते थे. एक बार एक मरीज काे उन्हाेंने मेरे सामने खड़ा कर उसके बारे में बताने काे कहा. मैं कुछ समझ नहीं पाया. गुरुदेव ने कहा-डीके, अगर तीन मिनट में मरीज की असली परेशानी काे समझ नहीं पाआेगे ताे 30 मिनट में भी नहीं समझाेगे.
यह सही बात है कि उनकी फीस ज्यादा थी, लेकिन वे अनावश्यक जांच नहीं कराते थे, फालतू दवा नहीं लिखते थे आैर हम सभी काे सलाह देते थे कि काम भर की ही दवा लिखाे. उनकी दिनचर्या गजब की थी. अध्ययन बहुत करते थे. सुबह-सुबह पढ़ते, फिर टहलते थे आैर 10 बजे से मरीज काे देखने लग जाते.
देर रात तक देखते रहते. जब थक जाते ताे संगीत का आनंद उठाते थे. फिल्मी संगीत वे नहीं सुनते थे. छाेटे गुलाम अली, बड़े गुलाम अली, बेगम अख्तर आैर क्लासिकल संगीत सुनते थे. लाेकगीत में उनकी रुचि थी. कहते थे-संगीत में बहुत ताकत है. व्यस्त रहने के बावजूद क्रिकेट देखते जरूर थे. हाल-हाल तक आइपीएल देखते थे.
जाे भी खिलाड़ी अच्छा करता, उसकी तारीफ करते थे. जाे कह देते, करते थे. इसी वर्ष मेरी बेटी की शादी थी. कार्ड देने वक्त उन्हाेंने कहा था कि आऊंगा. 88 साल की उम्र में थाेड़ा अस्वस्थ हाेने के बावजूद डॉ साहब मेरे घर पर आये, हरिवंश भी साथ थे. दाेनाें दाे घंटे तक बैठे. यह मेरे लिए बहुत खुशी का क्षण था.
गुरुदेव विजनरी थे. 90 के दशक में रांची में एक कारपाेरेट अस्पताल की कल्पना की थी. याेजना भी बन गयी थी लेकिन किसी कारणवश पूरा नहीं हाे सका था. उनमें कई गुण थे. मरीजाें काे कभी डांटते नहीं थे. उससे सीखने का प्रयास करते थे. अगर कभी काेई मरीज उलटी बात करता ताे भी नाराज नहीं हाेते थे.
कहते थे कि हमलाेग भगवान नहीं हैं. मरीज काे ठीक करना हमारा काम है. डॉ साहब ने जीवन में कभी प्रचार पर भराेसा नहीं किया. कहते थे कि मरीज का बेहतर तरीके से इलाज कराे, ठीक कराे, वही हर जगह तुम्हारा नाम लेगा. इससे बड़ा प्रचार नहीं हाे सकता है.
मुझे याद है कि जब भी मैं उनके पास जाता आैर बताता कि सर, यह लेख इस विदेशी पत्रिका में छप गयी है, बहुत खुश हाेते थे. जब भी काेई नया काम लेकर उनके पास जाते, वे खुश हाेते थे, उत्साह बढ़ाते थे. कहते थे कि मैं ताे अपनी पारी खेल चुका हूं. अब इन नये कामाें काे तुम सब आगे बढ़ाआे. मेरे ऊपर जितना वे विश्वास करते थे, वही मेरी पूंजी है. उनका स्थान काेई ले नहीं सकता. उनकी कमी काे काेई पूरा नहीं कर सकता.
डॉ डीके झा रिम्स के मेडिसिन विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर हैं. वह डॉ केके सिन्हा के साथ काफी दिनों से जुड़े रहे हैं. वर्तमान में वह लालू प्रसाद का इलाज कर रही टीम में भी हैं. डॉ झा पिछले 18 साल से डॉ केके सिन्हा के फिजिशियन रहे हैं.