मौत से डरना क्या, मैं पारी खेल चुका
अनुज कुमार सिन्हा डॉ कृष्णकांत सिन्हा (लोगों के लिए प्रचलित नाम डॉ केके सिन्हा) ने इंटरव्यू में कहा था, अब मौत से क्या डरना, मैं तो अपनी पूरी पारी खेल चुका हूं. और अपने कहे अनुसार उसी अंदाज में वे हमारे बीच से विदा हुए. आखिरी सांस तक अपने काम के प्रति समर्पित रहे. बचपन […]
अनुज कुमार सिन्हा
डॉ कृष्णकांत सिन्हा (लोगों के लिए प्रचलित नाम डॉ केके सिन्हा) ने इंटरव्यू में कहा था, अब मौत से क्या डरना, मैं तो अपनी पूरी पारी खेल चुका हूं. और अपने कहे अनुसार उसी अंदाज में वे हमारे बीच से विदा हुए. आखिरी सांस तक अपने काम के प्रति समर्पित रहे. बचपन से डॉ के के सिन्हा का नाम सुना था.
एक बार एक रिश्तेदार के इलाज के सिलसिले में 80 के दशक में उनसे मिला था. चार-पांच मिनट के लिए. बड़ी मुश्किल से नंबर मिला था.पहली बार उन्हें देखा था. सिर्फ इतना जानता था कि बड़े डॉक्टर हैं. फिर कभी आमने-सामने का माैका 2016 तक नहीं मिला. 10 अप्रैल, 2016 काे डॉ नाेशिर एच वाडिया का निधन हाे गया था. उन्हें फादर अॉफ न्यूराेलॉजी कहा जाता है. डॉ केके सिन्हा उन्हें अपना गुरु मानते थे.
उसी समय डॉ सिन्हा ने अपने गुरु के बारे में कुछ लिख कर मेरे पास डॉ डीके झा के माध्यम से भेजा था. मैंने मेहनत कर खुद उस लेख काे तैयार कर प्रकाशित किया था.
इस लेख काे पढ़ कर डॉ सिन्हा प्रभावित हुए थे आैर खुद इंटरव्यू देने के लिए तैयार हाे गये थे. लेकिन शर्त लगायी थी कि मुझे खुद जाना पड़ेगा. डॉ केके सिन्हा के इंटरव्यू के लिए काैन तैयार नहीं हाेता. वे मीडिया से दूर रहते थे, इंटरव्यू नहीं देते थे.
संभवत: प्रिंट मीडिया काे उनका वह पहला आैर अंतिम लंबा इंटरव्यू था. तीन साल पहले यानी अप्रैल 2016 में उनके रांची स्थित आवास पर यह बात हुई थी. उन्हाेंने उस दिन (तारीख मुझे याद नहीं है) शाम का अपना पूरा कार्यक्रम रद्द कर दिया था. लगभग तीन घंटे तक बात हुई थी, जिसे प्रभात खबर में दाे पेज में प्रकाशित किया गया था.
इस बातचीत के दाैरान कई आैर बातें हुई थीं. डॉ सिन्हा ने खुल कर बातें की थीं आैर ऐसी-ऐसी बात बतायी थी जाे पहली बार बता रहे थे. इसमें उन्हाेंने कुछ चीजाें काे उस समय प्रकाशित करने से मना कर दिया था.
अब डॉ केके सिन्हा इस दुनिया में नहीं हैं, इसलिए कुछ वैसी चीजें भी सामने आनी चाहिए. इंटरव्यू के दाैरान डॉ सिन्हा ने बचपन से लेकर अपनी इंग्लैंड आैर अमेरिका यात्रा से लेकर जीवन, माैत आदि विषयाें पर भी चर्चा की थी.
इसमें दाे राय नहीं कि चिकित्सा जगत काे दूसरा डॉ केके सिन्हा मिलनेवाला नहीं. उनकी लिखी किताबाें-उनके शाेध पत्र मेडिकल के छात्राें काे पढ़ाये जाते हैं. बिहार के मनेर से निकल कर डॉ सिन्हा ने दुनिया में अपनी पहचान बनायी.
प्राे स्टानले डेविडसन आैर प्राे डाेनाल्ड हंटर ने उन्हें इंग्लैंड में पढ़ाया था. इसका उनके जीवन पर गहरा असर पड़ा था. कड़ी मेहनत आैर जज्बा काे उन्हाेंने कभी नहीं छाेड़ा. जीवन के अंतिम दिनाें तक उन्हाेंने अपना फर्ज निभाया.
एक-डेढ़ माह पहले तक वे मरीजाें काे देखते रहे. सुबह चार आैर सवा चार बजे के बीच उठ जाना, फिर अध्ययन करना आैर उसके बाद 90 मिनट तक राेज टहलना उनकी आदत बन गयी थी. लाेग जानते हैं कि डॉ केके सिन्हा न्यूराे फिजिशियन हैं लेकिन उन्हाेंने खुद इंटरव्यू में खुलासा किया था कि जब वे इंग्लैंड में थे ताे न्यूराे सर्जन की भूमिका भी अदा करते थे, खाेपड़ी भी खाेलते थे.
पहली बार वे फरवरी 1956 में पढ़ाई के लिए इंग्लैंड गये आैर वहां कठिन परिश्रम करने की जाे आदत पड़ी, उस आदत काे उन्हाेंने नहीं छाेड़ा. हर दिन लगभग 12 घंटे मरीजाें काे देखना आसान काम नहीं हाेता. झारखंड-बिहार ही नहीं, देश के अन्य हिस्साें से भी लाेग उनका नाम सुन कर आते थे. डॉ सिन्हा किसी काे निराश नहीं करते थे.
देर रात तक देखने के बाद काेई अगर बच गया ताे दूसरे दिन सवेरे सबसे पहले वैसे मरीजाें काे देखते थे. डॉ सिन्हा यह नहीं मानते थे कि डॉक्टर भगवान हाेता है. डॉक्टर ताे अपना काम करता है. वे खुद भी भगवान में भराेसा नहीं करते थे. छाेटी-छाेटी बाताें का वे ख्याल करते थे. अपनी जिंदगी जीते थे.
उस समय उनकी उम्र 85 साल थी लेकिन उन्हाेंने कहा था-उम्र मत लिखिएगा. 85 साल लिखने पर लगेगा कि मैं बूढ़ा हाे गया हूं. आगे उन्हाेंने कहा-आइ एम स्टील यंग. सच में विचार, उत्साह, मेहनत आैर जज्बा से वे यंग (जवान) ही ताे थे.
जाे कह देते, वह करते थे. उन्हें काेई झुका नहीं सकता था. डॉ केके सिन्हा पहले रिम्स में थे. बिंदेश्वरी दुबे तब बिहार सरकार में मंत्री हुआ करते थे. डॉ सिन्हा अपने क्लिनिक में कुछ मरीज काे देखने के बाद रिम्स (तब आरएमसीएच) आते थे.
मंत्री ने उन्हें साे काउज कर दिया. उसी दिन डॉ सिन्हा ने तय कर लिया कि वे झुकेंगे नहीं. नाैकरी ही नहीं करेंगे आैर उन्हाेंने आरएमसीए से इस्तीफा दे दिया.
राजनीति में जाने का उन्हें अवसर मिला था, काेडरमा से टिकट का अॉफर दिया गया था. लेकिन उन्हाेंने तय कर लिया कि वे डॉक्टरी नहीं छाेड़ेंगे. राजनीति में जाकर वे मरीजाें काे समय नहीं दे पायेंगे. यह बताता है कि किसी मरीज का इलाज करना उनके लिए कितना मायने रखता था.
डॉ सिन्हा का यह स्वभाव था कि वे खुल कर मिलते थे. उस दिन इंटरव्यू के बाद उन्हाेंने तुरंत जाने नहीं दिया. अपने कमरे में रखे संगीत के सीडी काे दिखाया. एक से एक कलेक्शन. क्लासिकल संगीत का खजाना उनके पास था.
पिता के पत्राें काे उन्हाेंने सहेज कर रखा था, उसे दिखाया. अपनी लाइब्रेरी में एक अलमारी में बंद रखा था. पुरानी किताबाें का उनके पास संकलन है. चिकित्सा जगत के अलावा अन्य पुस्तकाें का भी.
इतिहास की बहुत गहरी जानकारी. जिसके बारे में बात कर लें, गहराई से बता सकते थे. अकबर काे काैन सी बीमारी थी, कैसे वह अक्षर काे पहचान नहीं पाता था, इस पर भी उन्हाेंने शाेध कर लेख लिखा था. उस लेख काे दिखाया.
बच्चाें काे वे निराश नहीं करना चाहते थे. जब फास्टफुड की चर्चा चली थी, उन्हाेंने कहा कि फास्टफुड ताे बच्चाें के लिए ही न बना है. ताे वे क्याें नहीं खायेंगे, बच्चे नहीं खायेंगे ताे क्या बूढ़े खायेंगे लेकिन बच्चाें काे इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उसकी मात्रा कितनी हाे.
इंटरव्यू हाेने आैर लाइब्रेरी देखने के बाद जब रात के साढ़े नाै बज गये, ताे मैंने उनका आभार व्यक्त करते हुए जाने की अनुमति मांगी. कहने लगे-ऐसे कैसे जायेंगे. मैंने भी ताे खाना नहीं खाया है. डॉ डीके झा, मैं आैर डॉ केके सिन्हा खाने की मेज पर थे.
अजीब चीज देखी. जब उन्हें खाना पराेसा गया ताे चावल, सब्जी आैर राेटी समेत सभी की कैलाेरी गिनने लगे. फिर चावल कम कराया आैर बताया कि मुझे इतनी ही कैलाेरी लेनी है. इतना अपने हेल्थ का वे ध्यान रखते थे.
आैर अंत में. बहुत कम लाेग यह जानते हैं कि डॉ सिन्हा चुपचाप जरूरतमंद लाेगाें की सेवा करते थे, मदद करते थे. इसका एक उदाहरण है-एक छात्रा की पढ़ाई पर तीन-चार लाख का खर्च आ रहा था. वह नहीं दे पा रही थी. डॉ सिन्हा ने चुपचाप उसका पता लिया आैर उसके खाते में पूरी पढ़ाई का खर्च डाल दिया. ऐसे उदार थे डॉ सिन्हा. बहुत-बहुत नमन.
मुझे कोई कैंसर-वैंसर नहीं है
इंटरव्यू के दाैरान उन्हाेंने एक खास बात का खुलासा किया था. उनसे मैंने पूछा था कि इस बात की चर्चा है कि आपकाे ब्लड कैंसर है आैर आप खून बदलने के लिए हर साल विदेश जाते हैं.
सवाल सुन कर डॉ सिन्हा हंस पड़े थे. कहा था कि मुझे भी यह पता है कि ऐसी बातें हाेती हैं. पर यह सच नहीं है. मुझे काेई कैंसर-वैंसर नहीं है. मैं अपनी बेटी से मिलने के लिए साल में एक बार अमेरिका जाता हूं. मुझे एक बार टीबी हाे गया था आैर उसके इलाज के लिए मैं विदेश भी गया था. लेकिन वहां भी ठीक नहीं हाे पाया.
मुझे किसी ने ठीक किया ताे वे थे मेरे गुरु डॉ ब्रह्मेश्वर प्रसाद. उसी समय से ही लाेग ऐसी बातें करते थे. मुझे फर्क नहीं पड़ता. उन्हाेंने कहा था कि इस बात काे मत छापिएगा कि मुझे कैंसर नहीं है. जाे साेचते हैं, उन्हें साेचने दीजिए. क्या फर्क पड़ता है. मुझे अपना काम करना है.
प्रभात खबर से बातचीत में कहा था
लाइफ मिस्टिरियस चीज है, भगवान में भरोसा नहीं करते, लाइफ में करते हैं
1. लाइफ है क्या? इसे आप किस रूप में देखते हैं?
लाइफ मिस्टिरियस चीज है. हम भगवान में भराेसा नहीं करते हैं लेकिन लाइफ में करते हैं. लाइफ बायाेलॉजिकल चीज है. कई ऐसी बीमारियां हैं जाे सिर्फ प्राेटीन की गड़बड़ी से हाेती हैं. एक में प्राेटीन सीधा-साधा है, एक में टेढ़ा-मेढ़ा. वायरस नहीं है वह, लेकिन उसके कारण बीमारी हाे गयी. ऐसी खतरनाक बीमारी, जिसके कारण जान भी जा सकती है. ये सारी मिस्टिरियस चीजें हैं जिसे हम राेज ही सीख रहे हैं.
2.शरीर में वह क्या है, जिसे आत्मा कहते हैं और जिसके निकल जाने से सब कुछ स्थिर हाे जाता है, डेड हाे जाता है.
इसकाे बॉयलॉजी में लाइफ कहते हैं. लाइफ के कारण ही ताे बॉयलॉजी है. लाेहा, साेना, चांदी में लाइफ नहीं है लेकिन बायाेलॉजिकल जितने भी सब्जेक्ट हैं चाहे वह सिंगल सेल हाे, डबल सेल हाे, बैक्टीरिया हाे, माेलेक्यूल्स हैं, सब में लाइफ है.
3.किस बीमारी काे आप मानते हैं कि अभी तक लाइलाज है?
कैंसर के बहुत-से केस ऐसे हैं जाे लाइलाज हैं. वायरल बीमारियाें के भी बहुत से मरीज ऐसे हैं, जिनका इलाज अभी संभव नहीं है. लेकिन आज नहीं ताे कल, लाेग कैंसर आैर वायरस पर नियंत्रण पा लेंगे.
4.लगता है कि भविष्य में मेडिकल साइंस माैत पर काबू पा लेगा?
माैत पर काबू पाने की बात ताे नहीं कह सकते हैं लेकिन मेडिकल साइंस आयु बढ़ा सकता है. 20 साल पहले की बात है, इंगलैंड में पचास ऐसे लाेग थे जिनकी औसत आयु साै वर्ष थी. अब वहां पांच हजार से ज्यादा हैं, जाे साै साल से ज्यादा के हैं.
5.आप भी कभी निराश हाेते हैं?
बहुत.
6.समाज ने एक केके सिन्हा काे देखा. क्या आप दूसरा केके सिन्हा देख पा रहे हैं?
हम उतना बड़ा अपने आपकाे नहीं मानते. आपने मुझे बहुत बड़ा बना दिया. हम उतने बड़े नहीं है. थाेड़ा नीचे आइए. आइएम वनली ए ह्यूमन. हमारे पास नॉलेज का एक छाेटा-सा फंड है. जाे है, उसे राेज अपडेट करने का प्रयास करते हैं और उसी के अनुसार हम ट्रीटमेंट करते हैं.हम चाहते हैं कि मरीज का कम खर्चा में काम चल जाये. लेकिन ऐसा हाेनेवाला नहीं है. दुनिया तेजी से बढ़ रही है. न्यूराेसाइंस में 20 साल में रिवाेल्यूशन हाे चुका है.
हमेशा साइंस की बातें, लेकिन अध्यात्म से भी था लगाव
डॉक्टर केके सिन्हा हमेशा साइंस की बातें करते थे. उनका कहना था कि साइंस है, तो सब है. ऊपर भगवान पर विश्वास नहीं करनेवाले डॉक्टर केके सिन्हा को अध्यात्म से भी लगाव था. अध्यात्म के बारे में उनको काफी जानकारी थी.
देश के हर अस्पताल में मिलता था सम्मान
डॉ केके सिन्हा की पर्ची की देश के सभी अस्पताल में सम्मान मिलता था. जब कोई मरीज उनसे दिखाकर किसी डॉक्टर के पास जाता था, तो पर्ची पर लिखी दवाओं को डॉक्टर कई बार देखते थे. इएनटी विशेषज्ञ डॉ हर्ष कुमार ने बताया कि जब वे दिल्ली में सीनियर रेजीडेंट थे, तो उनकी पर्ची को लेकर एक मरीज ले कर आया. यूनिट इंचार्ज ने गौर से देखा और उनकी पर्ची को सम्मान दिया.
नेपाल और अफगानिस्तान से आते थे मरीज
डाॅ केके सिन्हा से दिखाने के लिए देश ही नहीं विदेश से मरीज परामर्श लेने के लिए आते थे. एक वरिष्ठ चिकित्सक ने बताया कि कई बार देखा कि नेपाल व अफगानिस्तान से मरीज उनसे परामर्श लेने के आये हैं.
उनसे दिखाने के बाद लोगों को यह लगता था कि अब बीमारी ठीक हो जायेगी. कई बार डॉक्टर केके सिन्हा से न्यूरो की समस्या को छोड़कर अन्य बीमारी के लिए भी लोग परामर्श लेने आते थे. वह दवा लिख तो देते थे, लेकिन उसके विशेषज्ञ से परामर्श लेने की सलाह अवश्य देते थे.
उपसभापति हरिवंश ने जताया शोक
राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने डॉ केके सिन्हा के निधन पर गहरा शोक जताया है. उन्होंने कहा कि डॉ केके सिन्हा का जाना चिकित्सा जगत में एक युग का अंत है. इसकी भरपाई आसान नहीं है. पिछले कई दशक से डॉ सिन्हा ने रांची में रहकर चिकित्सा के क्षेत्र में झारखंड व बिहार को पहचान दी थी.
राष्ट्रीय स्तर पर चिकित्सा जगत में एक आइकॉन थे. कम लोगों को ही अपने जीवन में लीजेंड के साथ मिथ मुहावरा जैसा सौभाग्य प्राप्त होता है, लेकिन डॉ सिन्हा को अपनी प्रतिभा के कारण अपने पेशे के प्रति समर्पण व लगन से यह सौभाग्य मिला. उनका जाना एक निजी क्षति है.
हर जाति और समुदाय की सेवा की : डॉ सिद्धार्थ
डॉ केके सिन्हा के निधन पर उनके करीबी दोस्त और मशहूर चिकित्सक डॉ सिद्धार्थ मुखर्जी कहते हैं, कि उन्होंने अपने पेशे से हर जाति और समुदाय के लोगों की सेवा की. वह बड़ा सीधा था.
खुद के ज्यादा काम करने पर अक्सर कहा करता, कि मुखर्जी लोगों की सेवा करना भगवान की सेवा करने जैसा है. उसने इतनी लंबी उम्र अपने खान-पान और जीवन शैली में अनुशासन की वजह से पायी और जब तक जीवित रहा मरीजों को देखता रहा.
सुलझे हुए व्यक्ति थे : डॉ गुप्ता
अमेरिका के प्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ अविनाश गुप्ता ने डॉ कृष्ण कांत सिन्हा के निधन पर गहरा दुख प्रकट किया है. डॉ गुप्ता के अनुसार डॉ सिन्हा काफी सुलझे हुए व अनुभवी व्यक्ति थे. साथ ही एक्सलेंट टीचर भी थे. चिकित्सा जगत क्षेत्र में वे गुरु समान थे.
जब वह रिम्स में एसोसिएट प्रोफेसर थे, तो मैं सीनियर रेजीडेंट के रूप सेवा देता था. जब भी सर्जरी से संबंधित कोई समस्या होती थी, तो वह मुझसे राय लिया करते थे.
डाॅ मजीद आलम, वरिष्ठ सर्जन
चिकित्सा जगत के लिए यह अभूतपूर्व क्षति है. वे हमेशा मरीजों और मेडिकल साइंस के बारे में सोचते थे. उनके स्थान को पाना मुश्किल है.
डॉ एचपी नारायण, वरिष्ठ न्यूराे सर्जन
ऐसे डॉक्टर का जाना मेडिकल क्षेत्र के लिए बड़ी क्षति है. वह इतने सरल व सौम्य स्वभाव के थे कि जिसको पूरा नहीं किया जा सकता है.
डाॅ सुषमा प्रिया, वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ
मैं डॉक्टर केके सिन्हा के काफी करीब रहा हूं. जब उनके हार्निया का ऑपरेशन डॉ रामबली सिन्हा ने किया, तो मैंने उनको बेहोशी का इंजेक्शन दिया था.
डाॅ एसपी साहू, वरिष्ठ एनेस्थेटिक
मैंने उनके सेंटर में कई साल तक काम किया. कार्डियोइकोग्राफी जब यहां शुरू हुई, तो सेवा को शुरू करने का जिम्मा मेरे पास था.
डॉ एचडी शरण, वरिष्ठ फिजिशियन
वह मरीजों के लिए जीते थे. कभी कंप्यूटराइज्ड पर्ची नहीं देते थे. उनका मानना था कि मरीज से आइ टू आइ कॉन्टेक्ट ज्यादा मायने रखता है.
डॉ एसके पॉल, वरिष्ठ फिजिशियन
वह संगीत के काफी प्रिय थे. एक बार जब उनको पता चला कि मैं गीत गाता हूं, तो उन्होंने बुलाया और सुनने लगे. करीब दो घंटा तो मेरा गीत सुना.
डॉ उज्जवल रॉय, न्यूरो फिजिशियन
डॉ केके सिन्हा चिकित्सकों के लिए आदरणीय थे. डॉक्टरी पेशा को एक नयी दिशा दी. उनके जगह को पाना आसान नहीं है. युवा डॉक्टर को उनसे सीखने की जरूरत है.
डाॅ तुलसी महतो, पूर्व निदेशक रिम्स
चिकित्सा क्षेत्र में उनकी जगह कोई नहीं ले सकता है. यह चिकित्सा जगत के लिए बड़ी क्षति है, लेकिन उनके पद चिह्नों पर चलना ही उनकाे सच्ची श्रद्धांजलि होगी.
डॉ जेके मित्रा, विभागाध्यक्ष मेडिसिन