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अस्थमा को खुद पर न होने दें हावी, योगाभ्यास दिलायेगा राहत

कुमार राधारमण स्वर योग विशेषज्ञ, दिल्ली, संपर्क : krraman@rediffmail.com अस्थमा के कारण मनोवैज्ञानिक, अनुवांशिक तथा एलर्जिक हो सकते हैं. नाकारात्मक भावनाओं जैसे- ईष्या, क्रोध, द्वेष आदि से यह बढ़ सकता है. अस्थमा बदलते हुए मौसम में विशेष रूप से दिखायी देता है. इसके अलावा एलर्जिक भोजन व प्रदूषण दमा के प्रमुख कारण हैं. अस्थमा में […]

कुमार राधारमण
स्वर योग विशेषज्ञ, दिल्ली, संपर्क : krraman@rediffmail.com
अस्थमा के कारण मनोवैज्ञानिक, अनुवांशिक तथा एलर्जिक हो सकते हैं. नाकारात्मक भावनाओं जैसे- ईष्या, क्रोध, द्वेष आदि से यह बढ़ सकता है. अस्थमा बदलते हुए मौसम में विशेष रूप से दिखायी देता है. इसके अलावा एलर्जिक भोजन व प्रदूषण दमा के प्रमुख कारण हैं. अस्थमा में आनुवंशिक कारणों से भी होता है. कमजोर पाचन शक्ति एवं लंबे समय का कब्ज भी अस्थमा की वजह से उत्पन्न हो सकता है.
अस्थमा का यौगिक उपचार :
यौगिक उपचार का उद्देश्य शक्तिविहीन तथा अवरुद्ध प्राण ऊर्जा को मुक्त कर नाड़ियों को पुन: जीवन देना. धीरे-धीरे योगासन, प्राणायाम तथा षट् क्रियाओं के अभ्यास के माध्यम से पूर्णत: और दीर्घकालिक अस्थमा का बिना दवा के उपचार संभव है. अस्थमा के रोगियों को यदि कब्ज की शिकायत हो, तो सबसे पहले इसे ठीक कर जठराग्नि बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए.
आसन : अस्थमा के रोगियों को आसन हमेशा किसी अच्छे योग प्रशिक्षक के मार्गदर्शन या किसी आश्रम में जाकर शुरू करना चाहिए.
सूर्य नमस्कार : इसका अभ्यास श्वास की सजगता के साथ धीरे-धीरे सूर्योदय के समय पांच से सात चक्र में करना चाहिए. जिनके शरीर में कड़ापन है, वे सर्वप्रथम पवनमुक्तासन भाग 1, 2 और 3 का अभ्यास करें. इसके अलावे अपनी क्षमतानुसार हस्तोतानासन, द्विकोणासन, मार्जारी आसन, शशांक भुजंगासन, धनुरासन, प्रणामासन, कंधरासन, करासन, गोमुखासन, सर्वांगासन, मत्स्यासन, सिंहासन, लीलासन, तीलांगुलासन, परिवृत धानुशीर्षासन. ये आसन छाती व रीढ़ की हड्डी को सुदृढ़ तथा मांसपेशियों को मजबूत बनाते हैं.
प्राणायाम : इससे संपूर्ण स्नायुतंत्र शक्तिशाली बनता है तथा असंतुलित स्वचालित तंत्रिका तंत्र में पुन: संतुलन स्थापित होता है. इससे श्वास पर नियंत्रण भी बढ़ता है. इससे अस्थमा के दौरे को टाला जा सकता है.
शिथिलीकरण
योग निद्रा : योग निद्रा अस्थमा के दौरे को डिफ्यूज करने का एक अत्यंत प्रभावी माध्यम है. इसका अभ्यास प्रतिदिन करना उचित होगा. यह अभ्यास अस्थमा के रोगी को अपनी बार-बार उखड़ने वाली असामान्य श्वास से अधिक परिचित बना कर उसे सामान्य अवस्था में लाने में मदद करता है.
ध्यान : अस्थमा के रोगी को अजपादप का अभ्यास करने से श्वास धीमी और उन्मुक्त होने लगती है, जिससे अवचेतन की गहराई में छिपे रोगों को जन्म देनेवाले संस्कार उभर कर सतह पर आते हैं, जो इसके इलाज के लिए जरूरी है.
षट् क्रियाओं से भी मिलेगा लाभ
इस अभ्यास में हल्के गरम पानी का इस्तेमाल किया जाता है. इसका मुख्य उद्देश्य नासिका, श्वसन वृक्ष तथा पेट एवं निम्नपाचन पथ की श्लेष्मा में जमे हुए गाढ़े म्यूकस को द्रवीभूत कर बाहर निकालना होता है.
नेति क्रिया : नेति क्रिया सुबह के समय करनी चाहिए. यह नासिका पथ के अवरोध को दूर करता है तथा नासिका के शलेष्मा की झिल्ली द्वारा एलर्जिक और अति संवेदनशील प्रतिक्रियाओं के माध्यम से स्वचालित तंत्रिका तंत्र के स्नायु उत्तेजित होते हैं. इससे अस्थमा का दौरा अवक्षेपित तो होता ही है. निरंतर अभ्यास से अस्थमा को समाप्त किया जा सकता है.
कुंजल : इसके अभ्यास से अस्थमा के दौरे को समाप्त किया जा सकता है. इसके अभ्यास से फेफड़े के श्वसनी वृक्ष को साफ किया जाता है तथा फेफड़े के आंतरिक अंगों को सुदृढ़ किया जाता है. इसका अभ्यास हमेशा योग विशेषज्ञ के सामने करना चाहिए.
शंखप्रक्षालन : अस्थमा के रोगी की खोयी हुई पाचन शक्ति को लौटाने में तथा कब्ज को हटाने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इसका अभ्यास प्रात: एक दिन के अंतराल से एक हफ्ते तक किया जा सकता है. तदुपरांत भी महसूस हो, तो इसका अभ्यास कर लेना चाहिए.
अस्थमा मुद्रा से दमा को रखें दूर
ओशो सिद्धार्थ औलिया
योग विशेषज्ञ, ओशोधारा सोनीपत
अस्थमा महिलाओं के मुकाबले पुरुषों में ज्यादा पाया जाता है, खासकर कम उम्र वाले बच्चों को अस्थमा ज्यादा परेशान करता है, क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार अस्थमा वात और कफ से जुड़ी बीमारी है और बचपन में 7 साल की उम्र तक शरीर में कफ की मात्रा ज्यादा होती है और फेफड़े भी कमजोर होते हैं.
ऐसे में प्रदूषण और गलत खानपान के कारण बच्चों का इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है और सर्दी, खांसी, जुकाम धीरे-धीरे अस्थमा की बीमारी में बदल जाते है. अस्थमा हमारी श्वसन प्रणाली से जुड़ी बीमारी है. श्वास संबंधी कोई भी रोग, जैसे दमा, श्वास लेने में परेशानी आदि श्वास की नली में श्लेष्मा जमने से उत्पन्न होता है. ऐसे में फेफड़ों तक पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती है और व्यक्ति श्वास भीतर लेने से पहले ही श्वास छोड़ देता है. ऐसे में अस्थमा मुद्रा लाभदायक है. यह मुद्रा दमा ठीक करती है.
दोनों हाथों की मध्यमा ऊंगलियों को मोड़ कर उनके नाखूनों को आपस में मिला दें और शेष सभी ऊंगलियां व अंगूठे सीधे खोल कर रखें. अस्थमा मुद्रा का प्रयोग 5 मिनट दिन में 5 बार करें. दमा के रोगी अगर प्रतिदिन अस्थमा मुद्रा का प्रयोग करते रहें, तो उन्हें पूर्णकालिक लाभ मिलेगा. दमा के रोगी यदि नित्य प्रतिदिन 15 मिनट प्रातः और 15 मिनट शाम को खुली हवा में लंबे गहरे श्वास और अनुलोम विलोम प्राणायाम करें तो बहुत जल्दी लाभ होगा. ध्यान रहे कि धूल मिट्टी व दूषित वायु से बचाव जरूरी है.

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