राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2019 शिक्षा व्यवस्था को नयी दिशा

नौ सदस्यीय कस्तूरीरंगन समिति द्वारा तैयार नयी शिक्षा नीति के प्रारूप पर चर्चा जारी है. इस दस्तावेज पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने नागरिकों और संगठनों से सुझाव आमंत्रित किये हैं. केंद्र सरकार के गठन के तुरंत बाद प्रारूप के सार्वजनिक होते ही बहस इसके भाषा संबंधी हिस्से पर केंद्रित हो गयी. विवाद के माहौल […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 9, 2019 6:39 AM
नौ सदस्यीय कस्तूरीरंगन समिति द्वारा तैयार नयी शिक्षा नीति के प्रारूप पर चर्चा जारी है. इस दस्तावेज पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने नागरिकों और संगठनों से सुझाव आमंत्रित किये हैं.
केंद्र सरकार के गठन के तुरंत बाद प्रारूप के सार्वजनिक होते ही बहस इसके भाषा संबंधी हिस्से पर केंद्रित हो गयी. विवाद के माहौल में प्रस्तावों पर समुचित रूप से चिंतन नहीं हो सका है. आगामी दो दशकों से अधिक समय तक देश के शैक्षणिक भविष्य को निर्धारित करनेवाले इस प्रारूप पर देशव्यापी बहस आवश्यक है. नीतिगत प्रस्तावों के प्रमुख बिंदुओं के विवरण एवं विश्लेषण के साथ प्रस्तुत है आज का इन-दिनों…
शिक्षा नीति : मील के पत्थर
1948- डॉ राधाकृष्णन की अध्यक्षता में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग का गठन
1952- लक्ष्मणस्वामी मुदलियार की अगुआई में माध्यमिक शिक्षा आयोग बना
1964- दौलत सिंह कोठारी की अध्यक्षता में शिक्षा आयोग
1968- कोठारी आयोग के सुझावों पर शिक्षा नीति का प्रस्ताव
1986- नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू
1990- आचार्य राममूर्ति की अध्यक्षता में एक समीक्षा समिति बनी
1993- प्रो यशपाल के नेतृत्व में समीक्षा समिति का गठन
2017- नयी शिक्षा नीति का प्रारूप बनाने के लिए कस्तूरीरंगन समिति का गठन
मसौदे के मुख्य िबंदु
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2019 के प्रारूप में शिक्षण व्यवस्था को मुख्य रूप से चार भागों में बंटा गया है. पहले भाग में विद्यालयीय शिक्षा, दूसरे में उच्च शिक्षा और तीसरे में प्रौद्योगिकी, व्यावसायिक व वयस्क शिक्षा को रखा गया है. प्रारूप के चौथे भाग में राष्ट्रीय शिक्षा आयोग के जरिये शिक्षा में बदलाव लाने की बात कही गयी है. विद्यालयीय शिक्षा इसके तहत निम्न बातों को शामिल किया गया है.
बचपन की देखभाल और शिक्षा : वर्ष 2025 तक तीन से छह वर्ष की उम्र के सभी बच्चों को नि:शुल्क, सुरक्षित, उच्च गुणवत्ता पूर्ण और विकास के लिए उपयुक्त देखरेख और शिक्षा मुहैया कराने का लक्ष्य है.
यह सब स्कूल और आंगनबाड़ी जैसे संस्थानों के माध्यम से किया जायेगा. इन संस्थानों पर बच्चों के समग्र कल्याण यानी पोषण, स्वास्थ्य व शिक्षा की जिम्मेदारी होगी. ये संस्थाएं तीन वर्ष से कम उम्र के बच्चों के विकास के लिए उनके घरों में समान सहायता प्रदान करेंगी.
मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान : वर्ष 2025 तक ग्रेड पांच और ऊपर के प्रत्येक विद्यार्थी अपनी आयु के अनुसार मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान प्राप्त कर लें, इस प्रकार की विस्तृत योजना का खाका तैयार किया गया है. ऐसा करने का उद्देश्य बच्चों को पढ़ने, लिखने और प्राथमिक गणित को हल करने की योग्यता प्रदान करना है.
अनेक सरकारी और गैर सरकारी सर्वेक्षणों से यह बात सामने आयी है कि वर्तमान में प्राथमिक स्कूल के अधिकांश विद्यार्थी अपनी कक्षा की पुस्तकों को पढ़ने, लिखने और गणित के प्रश्न हल करने में सक्षम नहीं हैं.
सभी तक शिक्षा की पहुंच सुनिश्चित करना : वर्ष 2030 तक तीन से 18 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को नि:शुल्क और अनिवार्य गुणवत्ता युक्त स्कूली शिक्षा मुहैया कराना और स्कूलों तक बच्चों की पहुंच सुनिश्चित करना, नयी शिक्षा नीति का उद्देश्य है. इसके साथ ही सरकार का इरादा यह भी सुनिश्चित करना है कि बच्चे स्कूल आना जारी रखें और अपनी पढ़ाई अधूरी न छोड़ें.
नये पाठ्यक्रम और शिक्षण पद्धति : वर्ष 2022 तक स्कूली पाठ्यक्रम और शिक्षण के तरीके में बदलाव किया जायेगा, ताकि बच्चों के रटने की आदत में कमी आये और उनका समग्र विकास हो. साथ ही उनके भीतर गहन सोच, रचनात्मकता, वैज्ञानिक मनोवृत्ति, संचार, सहयोग, बहुभाषावाद, समस्या समाधान, नैतिकता, सामाजिक दायित्व और डिजिटल साक्षरता जैसी 21वीं सदी के कौशल का भी विकास हो.
इसके लिए शिक्षण पद्धति को 5+3+3+4 के स्वरूप में डिजाइन किया जायेगा. क्लासरूम को आकर्षक और मजेदार बनाया जायेगा, ताकि बच्चे पढ़ने के लिए उत्साहित हों. पाठ्यक्रम सामग्री कम की जायेगी. विद्यार्थियों, विशेष रूप से माध्यमिक स्कूल के छात्रों के लिए विषय चयन के लचीले और ज्यादा विकल्प उपलब्ध होंगे. बच्चे अच्छी तरह समझ सकें, इसके लिए ग्रेड पांच तक उन्हें मातृभाषा में पढ़ाने की सुविधा उपलब्ध कराने की बात भी कही गयी है.
शिक्षकों की नियुक्ति : नयी नीति के तहत यह भी सुनिश्चित करना होगा कि स्कूली शिक्षा के सभी स्तरों में पढ़ाने वाले शिक्षक जिज्ञासु, प्रोत्साहित करनेवाले, उच्च शिक्षित, प्रशिक्षित और गुणों से संपन्न हों. वर्ष 2030 तक शिक्षण के लिए न्यूनतम योग्यता चार वर्षीय लिबरल इंटेग्रेटेड बीएड डिग्री होगी.
शिक्षण क्षेत्र में आने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए उत्कृष्ट छात्रों को मेरिट-बेस्ड स्कॉलरशिप प्रदान की जायेगी. इसके तहत हाइस्कूल में बेहतर प्रदर्शन करनेवाले विद्यार्थियों के लिए, माध्यमिक स्कूल से ग्रेजुएशन तक और कॉलेज व विश्वविद्यालयों में चार वर्षीय इंटीग्रेटेड बीएड प्रोग्राम करने के लिए स्कॉलरशिप देने की शुरुआत की जायेगी.
शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया को कठिन और पारदर्शी बनाया जायेगा, ताकि बेहतर शिक्षकों की तलाश की जा सके. योग्यता और ज्ञान की बेहतर परख के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टेट) में सुधार किया जायेगा. इतना ही नहीं, टेट का दायरा भी बढ़ेगा और प्रीपरेटरी, मिडिल व सेकेंडरी स्कूल एजुकेशन के शिक्षकों के पात्रता की जांच भी अब टेट के माध्यम से होगी. स्कूलों में शिक्षकों की कमी दूर करना भी नयी शिक्षा नीति का हिस्सा है.
समावेशी व न्यायसंगत शिक्षा
नयी शिक्षा नीति के तहत सरकार का उद्देश्य ऐसी शिक्षण प्रणाली विकसित करना है, जहां बिना किसी भेदभाव के सभी बच्चों को शिक्षा का समान अवसर मिले और उनका विकास हो. देश के दूर-दराज के क्षेत्रों में विशेष शिक्षा क्षेत्र भी स्थापित किये जायेंगे. वर्ष 2030 तक सभी बच्चों तक शिक्षा की पहुंच सुनिश्चित करना भी शिक्षा नीति का हिस्सा है. वंचित व अल्पसंख्यक समुदाय के विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति, संसाधन और सुविधाएं प्रदान करने के लिए विशेष राष्ट्रीय कोष का गठन होगा.
सभी लड़कियों को गुणवत्ता युक्त व एक समान शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए अलग से राशि (जेंडर-इंक्लूजन फंड) मुहैया करायी जायेगी. विशेष सक्षम बच्चों की स्कूल तक पहुंच सुनिश्चित कराने के उपाय किये जायेंगे. बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए स्कूल परिसर को बुनियादी ढांचा, पुस्तकालय, कला संगीत शिक्षक समेत सभी संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी.
स्कूल रेगुलेटरी ऑथोरिटी का गठन
स्कूलों के रेगुलेशन के लिए स्वतंत्र राज्य विद्यालयीय नियामक प्राधिकरण का गठन किया जायेगा.
उच्च शिक्षा
गुणवत्ता आधारित विश्वविद्यालय और कॉलेज
उच्च शिक्षा तंत्र में व्यापक सुधार करते हुए देशभर में विश्वस्तरीय और विविध विषयों पर आधारित उच्च शैक्षणिक संस्थानों का निर्माण, वर्ष 2035 तक सकल नामांकन अनुपात को न्यूनतम 50 प्रतिशत तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है.
सभी उच्च शिक्षण बहुविषयक (मल्टी डिसीप्लनरी) संस्थानों में होंगे. संसाधनों के बेहतर इस्तेमाल से सभी विषयों और क्षेत्रों के अध्ययन को सुविधाजनक बनाया जायेगा.
संस्थागत पुनर्गठन और समेकन
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने वाले बहुविषयक संस्थान, जो भारत में उच्च शिक्षा क्षमता विकास और समान रूप से आम जन की पहुंच
में होंगे.
नयी संस्थागत वास्तु संरचना, जो शिक्षण और शोध क्षमता वृद्धि में सहायक होगी.
व्यावसायिक शिक्षण उच्च शिक्षा में अनिवार्य अंग होगा.
उच्च गुणवत्ता पर आधारित तीन प्रकार के संस्थान होंगे.
पर्याप्त सार्वजनिक निवेश किया जायेगा, जिससे सार्वजनिक शिक्षा का विस्तार और विकास होगा.
भौगोलिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों को वरीयता दी जायेगी. अगले पांच वर्षों के भीतर प्रत्येक जिले में कम से कम एक टाइप-1 संस्थान होगा.
सभी उच्च शिक्षा संस्थान या तो विश्वविद्यालय होंगे या डिग्री प्रदान करनेवाले स्वायत्त महाविद्यालय. किसी प्रकार के संबद्ध विश्वविद्यालय या महाविद्यालय नहीं होंगे.
अधिक उदार शिक्षा की ओर
छात्रों के बहुमुखी विकास के लिए कल्पनाशील और व्यापक तौर पर उदार शिक्षण व्यवस्था बनाने की पहल होगी. चुने गये विषय और क्षेत्र में विशेषज्ञता पर जोर दिया जायेगा.
भारत में लिबरल आर्ट्स शिक्षा प्राचीन काल से ही व्याख्यायित और प्रयोग में हैं. यह मस्तिष्क के दोनों पक्षों का विकास करता है- रचनात्मक पक्ष और विश्लेषणात्मक पक्ष.
स्नातक स्तर पर चुने गये विषय में गहनता और विशेषज्ञता पर जोर होगा.
विभिन्न विषयों को संचालित करनेवाले संस्थानों में मास्टर्स, प्रोफेशनल प्रोग्राम पर विशेष फोकस किया जायेगा.
चार वर्षीय बैचलर ऑफ लिबरल आर्ट्स/ एजुकेशन विषय के विविध पक्षों पर केंद्रित होगा. तीन वर्षीय प्रोग्राम बैचलर डिग्री पर आधारित होगा. कोर्स के दौरान बीच में निकलने का विकल्प होंगे, इस दौरान उचित प्रमाणीकरण की व्यवस्था होगी.
नियामक तंत्र में बदलाव
भारतीय भाषाओं को बढ़ावा
पाली, पर्सियन और प्राकृत भाषा के लिए राष्ट्रीय संस्थान की स्थापना.
वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली के विकास के लिए आयोग की पुनर्संरचना.
राष्ट्रीय शिक्षा आयोग
एक नयी शीर्ष संस्था, राष्ट्रीय शिक्षा आयोग या नेशनल एजुकेशन कमीशन का गठन किया जायेगा. यह प्रधानमंत्री के नेतृत्व में संचालित होगा.
राष्ट्रीय शिक्षा आयोग देश में शिक्षा के विकास, कार्यान्वयन, मूल्यांकन और दृष्टिकोण के विकास पर काम करेगा.
राज्य शीर्ष स्तर पर राज्य शिक्षा आयोग या स्टेट एजुकेशन कमीशन का गठन कर सकेंगे.
उच्च शिक्षा के क्षेत्र में प्रभावी विकास और गुणवत्ता आधारित शिक्षण के लक्ष्य को हासिल करने के लिए नियामक तंत्र में बदलाव होगा.
नियमन व्यवस्था जवाबदेही पूर्ण और उत्कृष्टता आधारित होगी.
मानक निर्धारण, वित्त पोषण, मान्यता और विनियमन जैसी व्यवस्थाओं को बेहतर और परस्पर स्वतंत्र किया जायेगा.
राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामक प्राधिकरण एकमात्र सभी प्रकार की उच्च शिक्षा के लिए नियामक संस्था होगी, जिसमें व्यावसायिक शिक्षा भी शामिल होगी.
सभी उच्च शिक्षा योग्यता, जो सीखने के परिणामों पर आधारित होगी, उसकी व्याख्या राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा योग्यता फ्रेमवर्क द्वारा निर्धारित की जायेगी.
सभी निजी और सार्वजनिक संस्थान नियामक व्यवस्था के तहत संचालित होंगे.
नेशनल रिपॉजिटरी ऑफ एजुकेशनल डेटा सभी संस्थानों, शिक्षकों और छात्रों का रिकॉर्ड डिजिटल प्रारूप में संरक्षित करेगा.
वोकेशनल एजुकेशन सभी स्कूल और उच्च शिक्षा का अभिन्न अंग होगा.
वोकेशनल एजुकेशन माध्यमिक स्कूल पाठ्यक्रम में शामिल होगा.
सभी उच्चतर शिक्षण संस्थान
वोकेशनल एजुकेशन कोर्स और प्रोग्राम संचालित करेंगे.
प्रौढ़ शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यक्रम फ्रेमवर्क तैयार किया जायेगा, जिसमें पांच प्रमुख क्षेत्रों को शामिल किया जायेगा- मूलभूत साक्षरता व संख्यात्मक ज्ञान, महत्वपूर्ण जीवन कौशल, व्यावसायिक कौशल, आधारभूत शिक्षा और वयस्क शिक्षा.
नीतियों को लागू करने में चुनौतियां
राष्ट्रीय शिक्षा नीति मसौदे में निश्चित ही प्रगतिशील विचारों को अहमियत दी गयी है. लेकिन, दिये गये सुझावों को लागू में करने में वित्तीय और प्रशासनिक स्तर पर कई अड़चनों का सामना करना है.
शिक्षा पर सार्वजनिक खर्च : मसौदे में पब्लिक फंडिंग को दोगुना करते हुए इसे जीडीपी के छह प्रतिशत तक करने का सुझाव है. साथ ही शिक्षा पर कुल सार्वजनिक खर्च को 10 फीसदी से बढ़ा कर 20 फीसदी करने लक्ष्य रखा गया है. चूंकि, ज्यादा तक खर्च राज्य को वहन करना होगा, ऐसे में हालात को देखते हुए यह काम थोड़ा मुश्किल हो सकता है. हालांकि, निजी क्षेत्रों को बढ़ावा देने की योजना का भी जिक्र है.
आरटीई का विस्तार : शिक्षा के अधिकार (आरटीइ) अधिनियम को विस्तार देते हुए इस में प्री-स्कूल के बच्चों को शामिल करने की बात कही गयी है. संरचनागत व्यवस्था और शिक्षकों की रिक्तियों को देखते हुए इसे लागू करने में समय लगेगा. अधिनियम में बदलाव में भी समय लगेगा.
राष्ट्रीय शिक्षा आयोग : प्रधानमंत्री के नेतृत्व में राष्ट्रीय शिक्षा आयोग का गठन का विचार दिया गया है. विभिन्न विभागों और कार्यक्रमों में एमएचआरडी के तहत यह आयोग कैसे काम करेगा, यह स्पष्ट नहीं है. प्रशासनिक स्तर की चुनौतियों के अलावा मेडिकल, एग्रीकल्चर और लीगल एजुकेशन को एक साथ व्यवस्था दे पाना आसान नहीं होगा.
राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामक प्राधिकरण : नियमन व्यवस्था को राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामक प्राधिकरण के तहत लाया जायेगा. इसके मानकों का निर्धारण सामान्य शिक्षा परिषद और वित्तपोषण उच्च शिक्षा अनुदान परिषद द्वारा किया जायेगा. इसकी व्यापक समीक्षा करनी होगी, क्योंकि भारत के उच्च शिक्षा आयोग से संबंधित मौजूदा विधेयक से इसके प्रावधान मिलते-जुलते हैं. मसौदा नीति में इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस और हायर एजुकेशन फंडिंग एजेंसी पर कोई स्पष्ट कार्ययोजना नहीं है.
भाषा के मुद्दे : भाषा का भावनात्मक मुद्दा है. इसके राजनीतीकरण को रोकना होगा और मुद्दों को प्रभावी तरीके से हल करना होगा. अमूमन, मसलों को समझे बगैर ही धरना-प्रदर्शन का दौर शुरू हो जाता है.
व्यावसायिक शिक्षा
21वीं सदी की मांग अनुरूप प्रोफेशनल तैयार करने के मकसद से नयी कार्ययोजना बनायी जायेगी. उच्च क्षमता वाले प्रोफेशनल तैयार करते समय सामाजिक और मानवीय मूल्यों के विकास पर भी बल दिया जायेगा.
व्यावसायिक शिक्षा उच्च शिक्षा का अहम और अभिन्न हिस्सा होगी.
मात्र प्रोफेशनल एजुकेशन के लिए ही विश्वविद्यालय निर्माण करने की प्रक्रिया पर रोक लगेगी.
केवल प्रोफेशनल या जनरल एजुकेशन आधारित संस्थानों को वर्ष 2030 तक दोनों प्रकार के पाठ्यक्रमों को एक साथ संचालित करनेवाले संस्थान के रूप में विकसित किया जायेगा.
शिक्षा सुधार की स्वागत योग्य पहल
जगमोहन राजपूत
पूर्व िनर्देशक, एनसीइआरटी
हर देश की आवश्यकता है कि वह अपनी शिक्षा नीति को गतिशील बनाये रखे. हमारे यहां शिक्षा नीति बनाने में थोड़ी देर हुई, लेकिन जो नीति बनी है, वह गहन विचार विमर्श के बाद बनी है. इसमें बहुत-सी ऐसी चीजें हैं, जो काफी फलदायी होंगी. एमएचआरडी का नाम अब शिक्षा मंत्रालय होगा, जिसे शिक्षा क्षेत्र के लोग बहुत पहले से चाहते थे.
पब्लिक स्कूल के नाम पर एक मजाक बहुत सालों से चल रहा था. उन स्कूलों को पब्लिक स्कूल कहते थे, जिनके दरवाजे के भीतर पब्लिक के जाने की संभावना नहीं थी. अब उन स्कूलों को ‘पब्लिक’ शब्द का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं होगी. ये प्राइवेट स्कूल हैं, प्राइवेट कहलायेंगे.
नयी व्यवस्था में स्कूली शिक्षा में तीन से 18 साल के बच्चों को शामिल किया गया है, यह एक प्रगतिशील कदम है. अब करिकुलर और एक्स्ट्रा करिकुलर का भेद समाप्त कर दिया जायेगा. यह आशाजनक काम है.
अध्यापकों की नियुक्ति के लिए भी कुछ सुझाव दिये गये हैं, इससे काफी सुधार होगा, क्योंकि अध्यापकों की नियुक्तियों को लेकर पिछले वर्षों में अनेक प्रकार की ‘दुर्घटनाएं’ हुई हैं. पांच-पांच, छह-छह सालों से अध्यापकों की नियुक्तियां ही नहीं हुई हैं. शिक्षाकर्मी और मानदेय वाले अध्यापकों की प्रथा समाप्त की जायेगी, जिसे बहुत पहले हो जानी चाहिए था. इस नीति में अनेक सुझाव हैं.
इन्हीं में से एक सुझाव उच्च शिक्षा में संबद्ध कॉलेज के कॉन्सेप्ट को लेकर है. एक विश्वविद्यालय से दो सौ-चार सौ कॉलेज संबद्ध होते हैं. इनमें से कई कॉलेजों में परीक्षाएं ही नहीं हो पाती हैं. होती भी हैं, तो पर्चे लीक हो जाते हैं. नतीजतन विद्यार्थी परेशान रहते हैं. इन सब परेशानियों को दूर करने के लिए संबद्ध कॉलेज की प्रथा धीरे-धीरे समाप्त की जायेगी. अब हर एक कॉलेज को अपने ढंग से शुरुआत करनी होगी.
विद्यार्थियों को डिग्री देना होगा और फिर जॉब मार्केट में उसका परिणाम देखना होगा. यह बहुत अच्छा कदम है. इसका फायदा यह होगा कि जो कॉलेज चलाना चाहेगा, वह चलायेगा, अपने कोर्स तैयार करेगा, विद्यार्थियों को पढ़ायेगा और उन्हें डिग्री देगा. ऐसे कॉलेजों में पढ़े बच्चे जब बाजार में नौकरी के लिए जायेंगे, तो उनकी गुणवत्ता के आधार पर उन्हें नौकरी मिलेगी. आजकल इंजीनियरिंग, एमबीए आदि कॉलेजों के बंद होने की खबरें आती रहती हैं. यहां प्रश्न उठता है कि आखिर वे कॉलेज क्यों बंद हो रहे हैं?
उत्तर है कि मार्केट में उनकी साख नहीं बची है. इसे ऐसे समझा जा सकता है कि दिल्ली में सीबीएसइ की साख है, लेकिन बिहार बोर्ड की परीक्षा की साख नहीं है. हालांकि इसमें सुधार की कोशिश हो रही है, जो अच्छी बात है. इसी बात को ध्यान में रख कर कहा गया है कि कॉलेज अपना उत्तरदायित्व निभाएं. अगर आप कॉलेज चलाते हैं, तो उस कॉलेज पर ध्यान दीजिए. बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराइए. ये क्या बात हुई कि पढ़ाई को लेकर कोई गंभीरता ही नहीं है. कॉलेज में पढ़ाई नहीं हुई, क्योंकि वहां अध्यापक ही नहीं थे.
ऐसी स्थिति में विद्यार्थियों को विषय संबंधी जानकारी कहां से होगी? उधर माता-पिता खेत बेच कर अपने बच्चों को पढ़ने भेजते हैं, लेकिन पढ़ कर जब बच्चे नौकरी की तलाश में निकलते हैं, तो उन्हें पांच हजार-सात हजार की नौकरी मिलती है. अब ऐसा नहीं चलने वाला. अब जो कॉलेज अपने बच्चों की पढ़ाई के साथ खिलवाड़ करेंगे, मार्केट में उनकी साख खत्म हो जायेगी. संबद्ध काॅलेज का कॉन्सेप्ट समाप्त हो जाने के बाद विश्वविद्यालय पर कोई प्रश्न नहीं उठायेगा. उसकी साख अब ऐसे कॉलेजों की वजह से प्रभावित नहीं होगी.
इस नयी शिक्षा नीति के तहत, बहुत अच्छे इंस्टीट्यूट भी बनाये जायेंगे, जहां उच्चतम स्तर का शोध होगा. इस तरह के बहुत से कदम उठाये जाने की बात ड्राफ्ट में की गयी है. यह भी कहा गया है कि यूजीसी, मेडिकल काउंसिल समेत जो तमाम नियामक संस्थाएं हैं, वे अलग-अलग जिम्मेदारियों को उठाने की बजाय कोई एक काम करेंगी.
जैसे यूजीसी पैसे भी दे, रेगुलेशन भी करे, मान्यता भी दे, रैंकिंग भी करे, यह सब अब नहीं होगा. अब एक संस्था एक काम करेगी यानी जिसे गुणवत्ता की जांच करनी है, वह गुणवत्ता की जांच करेगी, जिसे मानक देखना है, वह मानक देखेगी. इस व्यवस्था के अंतर्गत अब काम होगा.
अंत में, स्कूल के लिए एक रेगुलेटरी ऑथोरिटी बनाये जाने की बात भी कही गयी है. ये रेगुलेटरी ऑथोरिटी बतायेगी कि मानक कैसे होने चाहिए, स्कूल कैसे चलने चाहिए? ऐसे ही हायर एजुकेशन कमीशन बनेगा. प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय शिक्षा आयोग बनाने की सिफारिश भी की गयी है, इस ड्राफ्ट में.
(आरती श्रीवास्तव से बातचीत पर आधारित)

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