इंदिरा गांधी की घोषणा पर भारी पड़ी थी एके राय की लोकप्रियता
‘मेरी राय, आपकी राय, सबकी राय, एके राय…जेल का ताला टूटेगा, एके राय छूटेगा…सन् सतहत्तर की ललकार, दिल्ली में जनता सरकार…’ इन नारों के बीच 1977 में धनबाद में चुनाव की गहमागहमी बढ़ी. यही हुआ भी जीतने के बाद राय दा जेल से बाहर निकले. कांग्रेस प्रत्याशी थे तत्कालीन सीटिंग सांसद, मजदूर नेता व कद्दावर […]
‘मेरी राय, आपकी राय, सबकी राय, एके राय…जेल का ताला टूटेगा, एके राय छूटेगा…सन् सतहत्तर की ललकार, दिल्ली में जनता सरकार…’ इन नारों के बीच 1977 में धनबाद में चुनाव की गहमागहमी बढ़ी. यही हुआ भी जीतने के बाद राय दा जेल से बाहर निकले. कांग्रेस प्रत्याशी थे तत्कालीन सीटिंग सांसद, मजदूर नेता व कद्दावर कांग्रेसी राम नारायण शर्मा.
पुराने लोग बताते हैं कि चुनाव प्रचार में आयीं इंदिरा गांधी ने राय दा को पराजित करने पर कांग्रेस प्रत्याशी को मंत्री परिषद में जगह देने की घोषणा तक कर डाली. मगर इंदिरा जी की घोषणा पर राय दा की लोकप्रियता भारी पड़ी. 20 मार्च, 1977 में मतगणना शुरू हुई. धनबाद समाहरणालय परिसर में लगे शामियाना में गिनती हो रही थी. पहले चक्र से ही राय दा ने बढ़त ले ली.
रात डेढ़ बजे परिणाम घोषित हुआ. राय दा ने कांग्रेस प्रत्याशी राम नारायण शर्मा को 1,41, 849 मतों से पराजित कर दिया. राय दा को 2,05,495, राम नारायण शर्मा को 63,646 और सीपीआइ के गया सिंह को 17,658 मत मिले थे. चार निर्दलीय बुधन राम, हराधन सिंह, पदम कुमार राय और राम जान मियां भी खड़े थे. उन्हें एक प्रतिशत भी मत नहीं मिले. इसके बाद राय दा 1980 का लोस चुनाव भी जीते.
उन्होंने योगेश्वर प्रसाद योगेश को पराजित किया. 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देशव्यापी लहर में कांग्रेस के शंकर दयाल सिंह से राय दा पराजित हुए. आखिरी बार राय दा 1989 में जीते. उन्होंने कांटे की टक्कर में समरेश सिंह को पराजित किया था. स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों के कारण पिछले एक दशक से राय दा राजनीति से दूर हो गये थे.
कार्यकर्ताओं ने अपने खर्च पर किया था प्रचार
राय दा जब जनता पार्टी समर्थित मासस उम्मीदवार घोषित हुए. सवाल खड़ा हुआ कि नामांकन कैसे करेंगे? तब धनबाद से प्रकाशित युगांतर अखबार के संपादक मुकुटधारी सिंह ने गजब का जोश दिखाया. 70 वर्ष की उम्र.
पैर टूटा हुआ. बावजूद इसके मुकुटधारी सिंह मोटरसाइकिल में पीछे बैठकर हजारीबाग जेल गये. नामांकन पेपर पर राय दा का हस्ताक्षर करा लाये. चुनाव अभियान की कमान विनोद बिहारी महतो, एसके बक्सी, उमा शंकर शुक्ला, मुकुटधारी सिंह, सीएम सिंह, केसी राय चौधरी, जमुना सहाय, राज नंदन सिंह आदि ने संभाली. केपी भट्ट चुनाव एजेंट बने. विरोधियों ने कोशिश की कि राय दा को तीर-धनुष चुनाव चिह्न न मिल सके, मगर वे सफल नहीं हो सके. उस चुनाव में राय दा ने एक पैसे खर्च नहीं किये.
कार्यकर्ताओं ने अपने पैसे खर्च कर राय दा का चुनाव प्रचार किया. खुद जेल में बंद. कोई बैनर-पोस्टर नहीं. दीवाल लेखन व घर-घर प्रचार. आम जनता में भी काफी जोश था. मतदान संपन्न होने के बाद बूथ से जब बैलेट बाक्स स्ट्रांग रूम के लिए चला, तो कार्यकर्ता भी साथ गये थे. स्ट्रांग रूम में पहरा दिया.