जमीन से उठ आसमान छूने वाली शख्शियत थे संप्रदा बाबू
डॉ सत्यजीत सिंह प्रसिद्ध चिकित्सक संप्रदा सिंह देश और दुनिया में जाने – माने कारोबारी थे. उन्होंने फार्मा सेक्टर को बुलंदियों पर पहुंचाया. लेकिन इन सबसे बढ़कर वह एक बेहतरीन इंसान थे. बेहद विनम्र स्वभाव के हर दिल अजीज संप्रदा सिंह बहुत सामान्य बैकग्राउंड से निकल कर आये थे.उनके बारे में कहा जा सकता है […]
डॉ सत्यजीत सिंह
प्रसिद्ध चिकित्सक
संप्रदा सिंह देश और दुनिया में जाने – माने कारोबारी थे. उन्होंने फार्मा सेक्टर को बुलंदियों पर पहुंचाया. लेकिन इन सबसे बढ़कर वह एक बेहतरीन इंसान थे. बेहद विनम्र स्वभाव के हर दिल अजीज संप्रदा सिंह बहुत सामान्य बैकग्राउंड से निकल कर आये थे.उनके बारे में कहा जा सकता है कि वह जमीन से उठ कर आसमान को छूने वाली शख्शियत थे. इतने बड़े उद्योगपति होने के बाद भी अहंकार लेस मात्र भी नहीं था. मैंने खुद उन्हें अपनी आंखों से गाय दूहते और गाय को खाना खिलाते देखा है.
उन्होंने कारोबार की शुरुआत बहुत छोटे स्तर से की थी. पीएमसीएच के पास स्थित बिहार फार्मा में वह सेल्समैन हुआ करते थे. इसके बाद एग्जीबिशन रोड में उन्होंने अजंता फार्मा नाम से अपना काम शुरू किया था. तब स्लाइन, ग्लूकोज आदि का कहीं और प्रोडक्शन करवाते और यहां लाकर बेचते थे.
इसके बाद महेंद्र सिंह के साथ मिलकर एरिस्ट्रो फार्मा की शुरुआत की, बाद के दिनों में अपनी खुद की कंपनी एल्केम बनायी जो देश ही नहीं दुनिया की बड़ी फार्मा कंपनियों में से एक है. एक सेल्स मैन से शुरू हुआ उनका सफर एल्केम ग्रुप के चेयरमैन तक गया.
वह हमारे रिश्तेदार भी लगते थे, पटना आने पर मुलाकाते होती रही हैं, जब तक मेरे पिता स्वर्गीय चिंताहरण सिंह जीवित थे उनसे मिलने जरूर आते थे. उनकी पत्नी भी उनकी तरह ही सरल स्वभाव की महिला थी. इतनी ऊंचाई को छूने के बाद भी वह अपने गांव और बिहार से जुड़े रहे. यहां के अनेकों लोगों को नौकरियां दी उन्हें रोजगार से जोड़ा. सब को लेकर चलने वालों में से थे वह कभी किसी को नहीं भूले.
यही कारण है कि उनके कर्मचारी उन्हें सिर्फ मालिक नहीं बल्कि देवता की तरह पूजते थे. मैंने खुद देखा है कि वह अपने कर्मचारियों का कितना ख्याल रखते थे. जब भी किसी का स्वास्थ्य खराब होता या पारिवारिक परेशानी आती तो आगे बढ़ कर उसकी मदद करते.
मैं एक डॉक्टर हूं और अपना अस्पताल चलाता हूं इसलिए मेरा खुद का अनुभव है कि कई बार वह मुझे फोन करते कि सत्यजीत मेरा यह कर्मचारी तुम्हारे अस्पताल में जा रहा है इसका बेहतर से इलाज सुनिश्चित करना. बाद में उसकी खैरियत भी पूछते रहते थे. एक बार की बात है जब वह पटना आये तो उनके ऑफिस में मिलने गया.
मेरे काम – काज की जानकारी लेने के बाद बेहद खुश हुए और अपने भाई वासुदेव सिंह को बुलाकर कहा कि देखों इसे, एक डॉक्टर होने के साथ ही साथ अच्छा अस्पताल भी चला रहा है. खूब आशीर्वाद दिया था उन्होंने उस दिन. इतनी बड़ी शख्शियत से आशीर्वाद और तारीफ सुन मेरा आत्मविश्वास भी काफी बढ़ा. वह सही मायने में एक महान व्यक्ति थे. उनके जाने से देश और समाज को बड़ा नुकसान हुआ है.