मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर विशेष : आम जनता के लेखक हैं प्रेमचंद

सत्यानन्द निरुपम संपादकीय निदेशक राजकमल प्रकाशन समूह प्रेमचंद की प्रासंगिकता हिंदी समाज में तब तक है, जब तक किसान बदहाल हैं. जब तक श्रम का उचित मोल नहीं है. जब तक समाज में जातिभेद, छुआछूत, पाखंड और अन्याय का बोलबाला है. प्रेमचंद का लेखन जनता का पक्षधर लेखन है. वह किसी वाद और व्यक्ति के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 31, 2019 7:56 AM
सत्यानन्द निरुपम संपादकीय निदेशक राजकमल प्रकाशन समूह
प्रेमचंद की प्रासंगिकता हिंदी समाज में तब तक है, जब तक किसान बदहाल हैं. जब तक श्रम का उचित मोल नहीं है. जब तक समाज में जातिभेद, छुआछूत, पाखंड और अन्याय का बोलबाला है. प्रेमचंद का लेखन जनता का पक्षधर लेखन है. वह किसी वाद और व्यक्ति के पीछे चलते जाने वाले नहीं, जनता के लिए सही राह के अन्वेषी लेखक हैं. अंधेरों और जंजालों में भटककर रोशनी की तरफ बढ़ने की कोशिश करते लेखक. इसीलिए वे किसी महामानव की तरफ देखकर भी बार- बार सामान्य जनता के बीच लौट आते हैं. राजकमल प्रकाशन का इतिहास जन-पक्षधर किताबों के प्रकाशन का इतिहास भी है.
इसकी स्थापना प्रेमचंद के इस दुनिया से जाने के 10-11 सालों बाद हुई. अपनी स्थापना के इन 70 सालों में इसने न केवल प्रेमचंद के लेखन को सही तरह से प्रस्तुत करने का काम किया, बल्कि उनकी परंपरा को आगे बढ़ाने वाले लेखन को सहेजने और प्रसारित करने का काम भी प्रमुखता से किया है. प्रेमचंद की लगभग 300 कहानियां ‘मानसरोवर’ नाम से 8 खंडों में छपी हों या चाहे गोदान के प्रामाणिक पाठ का राजकमल संस्करण छपा हो, उनकी उपलब्धता को एक नया आयाम मिला,नयी उम्र मिली. प्रेमचंद पर दिल्ली से पहली आलोचना पुस्तक- प्रेमचंद : एक विवेचन के लेखक इन्द्रनाथ मदान थे उसे भी राजकमल ने ही प्रकाशित किया था. रामविलास शर्मा की प्रेमचंद पर दोनों महत्वपूर्ण पुस्तकें राजकमल से ही आयी थीं, यही से हैं. अभी उनकी दो अत्यंत महत्वपूर्ण जीवनियों का पुनःप्रकाशन राजकमल से ही होने जा रहा है.
एक तो प्रेमचंद के सुपुत्र और यशस्वी लेखक अमृतराय की लिखी कलम का सिपाही. दूसरी, मदन गोपाल की लिखी कलम का मजदूर. इतिहास को सही संदर्भों में, समाज को सही दिशा देने के ध्येय के साथ पेश करने के लिए इनका पुनःप्रकाशन जरूरी था. प्रेमचंद पर हक की लड़ाई लड़ने वालों के लिए सबसे पहले जरूरी है, उनको समझना. उनके विचारों के लिए लड़ना. प्रेमचंद अपने विचारों में उत्तरोत्तर विकसित हुए. 1930 के बाद का उनका लेखन उनके पहले के विचारों से कई मायनों में भिन्न और विकसित है. इस बात को समझने में उनकी जीवनियों की उपलब्धता बहुत मददगार साबित होने वाली है. यह हमारे लिए बहुत संतोष और प्रेरणा का काम है.
प्रेमचंद रंगशाला में नहीं पढ़ सकते प्रेमचंद का साहित्य
प्रेमचंद रंगशाला में आज तक एक लाइब्रेरी भी नहीं बन पायीं. यहां अक्सर ही नाटकों का मंचन होता रहता है और हर रोज कलाकारों का जमघट लगा रहता है. प्रेमचंद की कहानी पर आधारित कई नाटक भी यहां होते रहते हैं. ऐसे में कलाकार हो या आम आदमी चाह कर भी यहां प्रेमचंद नहीं पढ़ सकते. रंगशाला में लाइब्रेरी नहीं होने से उन्हें निराशा होती है.
कई बार बिहार संगीत नाटक अकादमी की ओर से घोषणा की जा चुकी है कि यहां लाइब्रेरी बनायी जायेगी लेकिन आज तक नहीं बनी. प्राप्त सूचना के मुताबिक लाइब्रेरी के लिए कुछ किताबें भी आ चुकी हैं लेकिन उनका बेहतर इस्तेमाल हो नहीं रहा. अकादमी के सचिव विनोद अनुपम कहते हैं कि लाइब्रेरी बनाने के लिए हम प्रयासरत हैं. इसकी योजना भी बनायी जा चुकी है जल्द ही यह बन जायेगी.

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