मिथ्या अहंकार से बाहर निकलिए आपके जीवन में भी फूटेगी हंसी

ओशो शैलेंद्र आध्यात्मिक गुरु (ओशो के अनुज) ओशोधारा नानक धाम, मुरथल जीवन का यह एक अद्भुत नियम है कि बाहर के जगत की जितनी भी चीजें हैं, वे बांटी जायें, तो घटती जाती हैं और भीतर के जगत की जितनी चीजें हैं, वे बांटने पर बढ़ती जाती हैं. बाहर का कोई भी खजाना अकूत नहीं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 3, 2019 7:24 AM
ओशो शैलेंद्र
आध्यात्मिक गुरु (ओशो के अनुज)
ओशोधारा नानक धाम, मुरथल
जीवन का यह एक अद्भुत नियम है कि बाहर के जगत की जितनी भी चीजें हैं, वे बांटी जायें, तो घटती जाती हैं और भीतर के जगत की जितनी चीजें हैं, वे बांटने पर बढ़ती जाती हैं. बाहर का कोई भी खजाना अकूत नहीं है- कुबेर का भी नहीं! हंसी भी ऐसी ही है. हम अक्सर हंसने में संकोच करते हैं. और, जो आदमी हंसी को जितना रोकता है, उसकी हंसी उतनी मरती जाती है. धीरे-धीरे, वह हंसना ही भूल जाता है.
ऐसे बहुत-से लोग हैं, जो हंसना भूल गये हैं. जो संपदा बांटने से बढ़ सकती थी, उसमें भी वे कंजूसी कर रहे हैं और उनका मुस्कुराना भी एक तरह का अभ्यास ही रह गया है, क्योंकि वह मुस्कान कृत्रिम है, हृदय से उठी हुई नहीं. दरअसल, हमारे तनाव ने हमसे हंसी छीन ली है.
तनाव और हंसी में से कोई एक ही रह सकता है. यदि आप तनावग्रस्त हैं, तो आप हंस नहीं सकते और यदि आप हंसते हैं, तो आप तनावग्रस्त नहीं रह सकते. हंसते समय हमारा मस्तिष्क एक तरह की विचार शून्य अवस्था में चला जाता है. यही ध्यान का, मेडिटेशन का पहला चरण है. इस अर्थ में आप कह सकते हैं कि हंसना ध्यान ही है.
हंसी से हमारा तनाव छू मंतर हो जाता है और हमारे भीतर एक नये उत्साह का संचार होता है. यही उत्साह, यही स्फूर्ति व्यक्ति की कार्यक्षमता का आधार होती है.
इसी से व्यक्ति में सहजता आती है. यह हमारे भीतर के क्रोध, भय, राग, द्वेष, पीड़ा और हिंसा को दूर करने में सहायक बनती है. तनाव से हमारे भीतर हिंसा और एकाकीपन को बढ़ावा मिलता है जबकि हंसी हमें हल्का करती है और हमारे भीतर मैत्रीभाव तथा उल्लास को जन्म देती है. यही नहीं, हमें निरोग रखने और ध्यान में प्रवेश कराने की भी अद्भुत क्षमता है हंसी में. वस्तुतः, हंसी हमारे आंतरिक रसायन और मस्तिष्क की विद्युत तरंगों को परिवर्तित करती है.
हंसी हमारी प्रतिभा और बुद्धिमत्ता को भी प्रभावित करती है. मन के जो हिस्से सुसुप्तावस्था में होते हैं, हंसी से वे जाग उठते हैं. हंसी का संबंध हमारे दिल-दिमाग की गहराइयों से है. इसलिए, आप किसी हंसमुख व्यक्ति को शायद ही आत्महत्या करते पायेंगे. इसके विपरीत, आत्महत्या करने वाले व्यक्ति की पृष्ठभूमि यह भी बताती है कि वह अक्सर गुमसुम रहने वाला व्यक्ति होता है. हंसने वाला व्यक्ति मौन के जगत को जान लेता है. जिसकी हंसी थम जाती है, उसका मन भी थम जाता है. ऐसे ही, हंसी जितनी गहरी होती जाती है, शांति भी उतनी गहन होने लगती है. इस अर्थ में, हंसी प्रकृति प्रदत्त सबसे कारगर औषधि है.
हम जितना हंसते हैं, उतने ही निर्मल होते जाते हैं. हंसी हमारे भीतर की रुढ़ियों को, कूड़े-कचरे को साफकर हमें एक नयी जीवन-दृष्टि देती है, जिससे हम अधिक जीवंत, ऊर्जावान और सृजनशील बनते हैं. यदि बीमारी के दौरान आप हंस सकें तो आप जल्दी स्वस्थ हो सकते हैं.
ऐसे ही, अगर स्वस्थ रहकर आप न हंस सके तो आप जल्दी ही बीमार पड़ सकते हैं. दरअसल, हास्य हमारी आंतरिक शक्ति को जगाकर बाह्य तल पर ले आता है. इससे हमारे भीतर एक ऊर्जाधारा प्रवाहित होती है. प्राणों की गहराई से हंसते ही, मन अकस्मात ठहर जाता है, हमारी विचार-शृंखला टूट जाती है, क्योंकि सोचना और हंसना साथ-साथ संभव नहीं.
कई जेन आश्रमों में तो दिन की शुरुआत और रात्रि का समापन- दोनों ही हंसी से करने का विधान है. आप भी इसे जीवन में उतार कर देखिए. अच्छा महसूस करेंगे. शुरू-शुरू में थोड़ा पागलपन लगेगा, क्योंकि हमारे चारों तरफ इतने गमगीन लोग हैं कि वे समझ ही नहीं पाते कि कोई प्रसन्न क्यों नजर आ रहा है. लोग आपसे उदासी का कारण कभी नहीं पूछते, क्योंकि सभी उदास हैं.
अब जब किसी सुबह जब आप बिस्तर छोड़ रहे होंगे, वह क्षण वैसा ही नहीं होगा, जैसा कल तक था. इसलिए जी भर के हंसिए. ध्यान रहे, हंसना भी तभी तक संभव है जब तक यह जीवन है. नींद टूटने को हो, तो आंख खोलने से पहले ही हंसना शुरू कर दें. जिसकी भोर हंसी के साथ होती है, उसकी पूरी दिनचर्या पर इसका असर पड़ेगा. उसके आसपास के लोग भी इससे अछूते नहीं रह जायेंगे. यह जीवन हंसने-हंसाने के लिए है. मिथ्या अहंकार हटे, तो आपके भीतर भी अकारण हंसी फूटने लगेगी. अपनी मनःस्थिति का रूपांतरण ही वास्तविक सफलता है, परमानंद है, धार्मिकता है.

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