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जम्मू-कश्मीर: नेहरू जानते थे कि एक दिन खत्म होगा 370, 1962 में लिखी थी ये बात

जम्मू-कश्मीर के मसले पर अपनी नीतियों को लेकर आलोचनाओं का शिकार होने वाले प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी जानते थे कि एक-न-एक दिन अनुच्छेद 370 को हटना ही है. यह अनुच्छेद इसलिए लाया गया था कि तब वहां युद्ध जैसे हालात थे और उधर (पीओके) की जनता इधर पलायन करके आ रही थी. ऐसे में […]

जम्मू-कश्मीर के मसले पर अपनी नीतियों को लेकर आलोचनाओं का शिकार होने वाले प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी जानते थे कि एक-न-एक दिन अनुच्छेद 370 को हटना ही है. यह अनुच्छेद इसलिए लाया गया था कि तब वहां युद्ध जैसे हालात थे और उधर (पीओके) की जनता इधर पलायन करके आ रही थी. ऐसे में वहां भारत के संपूर्ण संविधान को लागू करना तत्कालीन प्रधानमंत्री शायद पं जवाहर लाल नेहरू ने उचित नहीं समझा था. उनकी इस भविष्यवाणी की झलक जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन नेता पं प्रेमनाथ बजाज को लिखे एक पत्र में दिखती है. 21 अगस्त, 1962 को अनुच्छेद 370 के संबंध में पं प्रेमनाथ बजाज के पत्र का उत्तर देते हुए जवाहर लाल नेहरू ने लिखा था-‘वास्तविकता यह है कि संविधान में इस अनुच्छेद के रहते हुए भी, जो कि जम्मू-कश्मीर को एक विशेष दर्जा देती है, बहुत कुछ किया जा चुका है और जो कुछ थोड़ी बहुत बाधा है, वह भी धीरे-धीरे समाप्त हो जायेगी. सवाल भावुकता का अधिक है, बजाय कुछ और होने के. कभी-कभी भावना महत्वपूर्ण होती है, लेकिन हमें दोनों पक्षों को तौलना चाहिए और मैं सोचता हूं कि वर्तमान में हमें इस संबंध में और कोई परिवर्तन नहीं करना चाहिए.’

72 वर्षों से जारी है जम्मू-कश्मीर की समस्या, बदलाव की उम्मीद

1947 : बंटवारे के बाद पाक कबाइली सेना ने कश्मीर पर हमला कर दिया तो कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने भारत के साथ विलय की संधि की. इस पर भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो गया.

1948 : भारत ने कश्मीर का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उठाया. संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव के मुताबिक पाकिस्तान ने कश्मीर से अपने सैनिक हटाने से इन्कार कर दिया और फिर कश्मीर को दो हिस्सों में बांट दिया गया.

1951 : भारतीय कश्मीर में चुनाव हुए और भारत में विलय का समर्थन किया गया. भारत ने कहा, अब जनमत संग्रह की जरूरत नहीं बची. पर संयुक्त राष्ट्र और पाकिस्तान ने कहा, जनमत संग्रह तो होना चाहिए.

1953 : जनमत संग्रह समर्थक और भारत में विलय को लटका रहे कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्लाह को गिरफ्तार कर लिया गया. नयी सरकार ने भारत में कश्मीर के विलय पर मुहर लगायी.

1957 : भारत के संविधान में जम्मू-कश्मीर को भारत के हिस्से के तौर पर परिभाषित किया गया.

1962-63 : चीन ने 1962 की लड़ाई में भारत को हराया और अक्साई चीन पर नियंत्रण कर लिया. इसके अगले साल पाकिस्तान ने कश्मीर का ट्रांस काराकोरम ट्रैक्ट वाला हिस्सा चीन को दे दिया.

1965 : कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान का युद्ध हुआ. लेकिन आखिर में दोनों देश अपने पुरानी पोजिशन पर लौट गये.

1971-72 : दोनों देशों का फिर युद्ध हुआ. पाकिस्तान हारा और 1972 में शिमला समझौता हुआ. जिस रेखा पर संघर्ष बंद हुआ था, युद्धविराम के बाद रेखा को नियंत्रण रेखा बनाया गया और बातचीत से विवाद सुलझाने पर सहमति हुई.

1984 : भारत ने सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण कर लिया, जिसे हासिल करने के लिए पाकिस्तान ने कई बार कोशिश की. लेकिन कामयाब नहीं हुआ.

1987 : जम्मू-कश्मीर में विवादित चुनावों के बाद राज्य में आजादी समर्थक अलगाववादी आंदोलन शुरू हुआ. पाक पर उग्रवाद भड़काने का आरोप, जिसे पाकिस्तान ने खारिज किया.

1990 : गवकदल पुल पर भारतीय सुरक्षा बलों की कार्रवाई में 100 प्रदर्शनकारियों की मौत. घाटी से लगभग सारे हिंदू चले गये. जम्मू-कश्मीर में सेना को विशेष शक्तियां देने वाले आफ्सपा कानून लगा.

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