इतिहास बना, भूगोल बदला: 75 लाख रुपये से अस्तित्व में आया था जम्मू-कश्मीर
भारत के सबसे उत्तर में स्थित जम्मू-कश्मीर पर केंद्र सरकार ने सोमवार को बड़ी घोषणा की. जम्मू-कश्मीर अब राज्य नहीं, एक केंद्र शासित प्रदेश बन गया है. केंद्र सरकार के इस कदम से जहां जम्मू-कश्मीर राज्य एक इतिहास बन गया, वहीं देश का भूगोल भी बदल गया है. लद्दाख को भी एक अलग केंद्रशासित प्रदेश […]
भारत के सबसे उत्तर में स्थित जम्मू-कश्मीर पर केंद्र सरकार ने सोमवार को बड़ी घोषणा की. जम्मू-कश्मीर अब राज्य नहीं, एक केंद्र शासित प्रदेश बन गया है. केंद्र सरकार के इस कदम से जहां जम्मू-कश्मीर राज्य एक इतिहास बन गया, वहीं देश का भूगोल भी बदल गया है. लद्दाख को भी एक अलग केंद्रशासित प्रदेश के रूप में जम्मू-कश्मीर से अलग कर दिया गया है. भारत के बंटवारे के बाद जम्मू-कश्मीर के राजा हरि सिंह एक राजा के रूप में अपनी स्वतंत्र सत्ता बनाये रखना चाहते थे. लेकिन, पाकिस्तान की तरफ से लगातार सामने आ रही चुनौतियों के कारण हरि सिंह के सामने सीमित विकल्प थे. पाकिस्तान से डर और जनविरोध के बाद उन्होंने स्वतंत्र रियासत के अपने सपने को समाप्त करते हुए आखिरी समय में हिंदुस्तान के साथ विलय पत्र (26 अक्तूबर, 1947) पर दस्तखत करने के लिए राजी हुए थे. इसके बाद भारतीय सेनाओं ने पाकिस्तानी कबाइलियों को खदेड़ा और कश्मीर हिंदुस्तान-पाकिस्तान के इतिहास और भूगोल का एक अलग अध्याय बन गया.
1846 में गुलाब सिंह ने 75 लाख देकर बनायी जम्मू-कश्मीर रियासत : 16 मार्च , 1846 तक गिलगित-बाल्टिस्तान पंजाब का हिस्सा थे. 1845 में अंग्रेजों और सिखों के बीच पहला युद्ध हुआ. युद्ध के बाद दोनों में नौ मार्च, 1846 को लाहौर में समझौता हुआ. अंग्रेजों ने युद्धविराम के सात दिन बाद यानी 16 मार्च को अमृतसर संधि के जरिये जम्मू-कश्मीर के इलाके को पंजाब से काटकर जम्मू के डोगरा शासक गुलाब सिंह को 75 लाख रुपये में बेच दिया. इसके बाद डोगरा शासक गुलाब सिंह ने पंजाब रियासत का कश्मीर वाला हिस्सा लेकर जम्मू और कश्मीर रियासत बनायी.
पाक ने भेजे हथियारबंद कबाइली, राजपरिवार की हालत बंधक जैसी : 15 अगस्त, 1947 को देश आजाद हुआ. ब्रिटिश और भारतीय अधिकारियों की काफी कोशिशों के बावजूद हरि सिंह किसी फैसले पर नहीं पंहुच सके थे. वह कश्मीर को आजाद रखना चाहते थे और इस वजह से वह चाहते थे कि विलय को जितना हो सके, टालते रहे. इधर, आजादी के बाद पाकिस्तान ने हथियारबंद कबाइलियों को कश्मीर भेजना शुरू कर दिया था. इसके कारण वहां स्थिति बिगड़ने लगी.
महाराजा हरि सिंह ने जल्दी-जल्दी में 26 अक्तूबर, 1947 को विलय पत्र पर दस्तखत कर दिये. इसके बाद भारत की सेना ने कश्मीर में कमांड लेकर कबायलियों को खदेड़ना शुरू किया. तमाम दिक्कतों के बावजूद भारतीय फौज ने पाकिस्तानियों को श्रीनगर में घुसने से रोक दिया. उन्होंने उन लोगों को कश्मीर घाटी से बाहर भी धकेल दिया, पर वे उन्हें पूरी रिसायत से बाहर नहीं निकाल पाये.