भारतीय नागरिक हितों को तवज्जो देना सुषमा स्वराज की विरासत

सुशांत सरीन रक्षा विशेषज्ञ सुषमा जी की जो विरासत है, वह उनकी कार्यशैली से स्पष्ट है. विदेश नीति में दो स्तंभ होते हैं. विदेश नीति का पहला स्तंभ राष्ट्रीय हित है, उसको कैसे आप आगे बढ़ाते हैं, यह सबसे महत्वपूर्ण है. दूसरा यह कि आप नागरिकों के हित को कैसे आगे ले जाते हैं. सुषमा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 8, 2019 8:13 AM
सुशांत सरीन
रक्षा विशेषज्ञ
सुषमा जी की जो विरासत है, वह उनकी कार्यशैली से स्पष्ट है. विदेश नीति में दो स्तंभ होते हैं. विदेश नीति का पहला स्तंभ राष्ट्रीय हित है, उसको कैसे आप आगे बढ़ाते हैं, यह सबसे महत्वपूर्ण है. दूसरा यह कि आप नागरिकों के हित को कैसे आगे ले जाते हैं. सुषमा जी से पहले हमारी विदेश नीति पहले स्तंभ पर थी, यानी राष्ट्रीय हितों पर हमारा ध्यान अधिक था. नागरिकों के हितों पर कोई बहुत ज्यादा तवज्जो नहीं दी जाती थी. सुषमा जी ने आकर दूसरे स्तंभ को बहुत मजबूत किया.
जिस तरह से उनके कार्यकाल में भारत का विदेश मंत्रालय दुनिया के किसी कोने में रह रहे भारतीयों के लिए सक्रिय हुआ, उससे कार्यशैली में परिवर्तन हुआ. दुनिया के अन्य देशों में रह रहे भारतीय जब भी किसी विपदा में खुद को पाते थे, वे सुषमा जी को याद करते थे. भारतीय दूतावास जिस तरह से विदेशों में रह रहे भारतीयों के लिए सक्रिय हुए, यह सुषमा जी के कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि है. यह किसी के लिए भी बदलना असंभव हो जायेगा.
सुषमा जी के नेतृत्व में भारतीय दूतावासों ने यह जो काम शुरू किया, वह हम पहले केवल पश्चिमी देशों के दूतावासों में देखा करते थे. अगर उनका कोई व्यक्ति हताहत हो गया या कोई समस्या आ गयी या वह जेल में चला गया या संकटग्रस्त हुआ, तो पश्चिमी दूतावास उन लोगों की सहायता के लिए सक्रिय हो जाते थे. उनके दूतावास ही यह सुनिश्चित करते थे कि कैसे उनके नागरिकों को राहत मिले और कैसे बचाया जाये. यह सब चीजें भारत के दूतावास कभी नहीं करते थे. लेकिन, अब हालात बदल गये हैं, उनका दायित्व बदला है.
अब कोई भी भारतीय मूल का व्यक्ति या यहां तक कि विदेशी व्यक्ति भी, जिन्हें भारत से मदद चाहिए, वे सीधे भारतीय दूतावास या भारतीय विदेश मंत्रालय से सीधा संवाद कर सकते हैं. यहां तक कि भारतीय मूल के लोग, जो अन्य देशों के नागरिक होते थे, वे जिस देश की नागरिकता रखते थे, वे वहां गुहार नहीं लगाते थे, वे सुषमा जी से मदद मांगते थे.
यह बिल्कुल नयी चीज थी, जो सुषमा जी के कार्यकाल में देखने को मिली. अमूमन, अगर आप भारतीय मूल के हैं, लेकिन आपके पास अमेरिका की नागरिकता है, तो आपकी मदद में भारत की जिम्मेदारी नहीं है. आप अमेरिकी नागरिक हैं, तो जिम्मेदारी अमेरिका की है. लेकिन, ऐसी स्थिति में भी लोग सुषमा जी के पास आते थे. यह सुषमा जी की सबसे बड़ी विरासत है.
कुलभूषण जाधव मामले में सुषमा जी ने जो भूमिका निभायी, वह सराहनीय है. कोई भी भारतीय मूल का व्यक्ति, जहां कहीं भी समस्याओं में घिरा, सुषमा जी हमेशा उसकी मदद के लिए तत्पर रहीं. पाकिस्तानी नागरिकों के मामले में भी सुषमा जी जिस प्रकार मदद के लिए आगे आयीं, वह उनकी ममता का उदाहरण है.

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