SPECIAL: यादों में सुषमा स्वराज- बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा
शशांक पूर्व विदेश सचिव भारतीय राजनीति में सुषमा स्वराज की भूमिका महत्वपूर्ण और अनूठी रही है. वे बहुत विद्वान और संस्कृत की प्रकांड पंडित थीं. विदेशी मसलों को उन्होंने काफी सूझबूझ से संभाला था. विदेशी प्रतिनिधियों के सामने अपनी बात को वे बेहद समझदारी से प्रकट करती थीं. अपने देश की नीतियों को हर प्रकार […]
शशांक
पूर्व विदेश सचिव
भारतीय राजनीति में सुषमा स्वराज की भूमिका महत्वपूर्ण और अनूठी रही है. वे बहुत विद्वान और संस्कृत की प्रकांड पंडित थीं. विदेशी मसलों को उन्होंने काफी सूझबूझ से संभाला था. विदेशी प्रतिनिधियों के सामने अपनी बात को वे बेहद समझदारी से प्रकट करती थीं. अपने देश की नीतियों को हर प्रकार से आगे ले जाने का उन्होंने काम बखूबी किया.
अपने साथियों और खासकर अपने मातहतों के साथ उनका व्यवहार बहुत अच्छा रहा. उनकी खूबी थी कि वे अपने साथ काम करनेवालों के साथ मिलजुलकर, उन्हें प्रोत्साहन देकर न सिर्फ उनका सर्वश्रेष्ठ निकालती थीं, बल्कि किसी भी मसले का सर्वश्रेष्ठ हल क्या हो सकता है, वे भी निकालती थीं. बहुत अच्छा नेतृत्व रहा उनका.
विदेशी मसले में अपने समकक्ष विदेशी प्रतिनिधियों में विश्वास पैदा करना, अपनी बात को उन्हें पूरी तरीके से समझाना और अपनी बात के लिए मनाना बहुत आवश्यक होता है और सुषमा जी ऐसा ही करती थीं. वे सूझबूझ की धनी महिला थीं और इसी के साथ कोई काम करती थीं. पड़ोसी देशों के साथ संबंध सुधारने के लिए भी उन्होंने काफी काम किया. जहां कहीं भी भारतीय परेशानी में रहे उनको बहुत प्यार से, बहुत तेजी से सहायता दी गयी. भारतीयों के अलावा, अन्य देशों के नागरिकों को भी मुसीबत से बाहर निकालने में वे काफी सक्रिय रहती थीं. दूसरे देशों के राजप्रमुख, विदेशमंत्री से बातकर घर वापसी में उनकी हरसंभव सहायता की.
हामिद मियां का मामला काफी जटिल था. वे पाकिस्तान की जेल में बंद थे और लगता नहीं था कि वहां से छूटकर कभी अपने घर आयेंगे. इस मामले में सुषमा ने पाकिस्तान के अपने समकक्षों से, वहां के राजनेताओं से बात करके सकारात्मक माहौल बनाया और हामिद की वतन वापसी सुनिश्चित की. इस दौरान वे बड़े अपनेपन के साथ हामिद के परिवार से भी मिलीं और उनका हौसला बढ़ाया.
हालांकि, उनके पास कई सारे जरूरी काम रहते थे, लेकिन जैसे ही उन्हें पता चलता था कि विदेश में कोई भारतीय नागरिक या भारतीय मूल का व्यक्ति परेशानी में है, वे पूरे जोर-शोर से उसकी परेशानी दूर करने में जुट जाती थीं. अपने साथी कर्मचारियों से भी ऐसा ही करने को कहती थीं.
वे सिर्फ मुसीबत में फंसे लोगों की मदद ही नहीं करती थीं, बल्कि उनके भीतर यह विश्वास भी उत्पन्न करती थीं कि वे अकेले नहीं हैं, बल्कि मुसीबत की इस घड़ी में भारत सरकार उनके साथ है. मुसीबत के वक्त अपनों के मन में विश्वास जगाना, यह बहुत बड़ी बात थी. दुनिया के छोटे-छोटे देशों में जो भारतीय मूल के लोग रह रहे हैं, उन सबके साथ वे बहुत प्यार से पेश आती थीं, उनका मनोबल बढ़ाती थीं. भारतीय मूल के लोगों के साथ न सिर्फ उनका अपनापन रहा, बल्कि उन्हें उन्होंने भारत व भारतीय संस्कृति से जोड़ा.
डेढ़-दो सौ साल पहले जो लोग कुली बनकर इस देश से बाहर निकल गये, उनके परिवारों को भी उन्होंने पूरी तरीके से अपने साथ जोड़ा. मुझे अभी भी याद है कि मॉरिशस में जब भारतीय मूल के लोग अपने वहां पहुंचने की 150वीं वर्षगांठ मना रहे थे, तो उस समय मॉरिशस में मौजूद सुषमा भी उस उत्सव में शामिल हुईं और भारतीय मूल के लोगों का उत्साहवर्धन किया. भारत और भारतीय संस्कृति से उन्हें जोड़ा. राजनीति से परे भी उनका व्यक्तित्व काफी शानदार था.
चाहे उनका पहनावा हो, लोगों से बात करने का तरीका, लोगों से मिलने का तरीका, उन्हें सहायता देने का तरीका हो, इन सबमें वे पूरे तरीके से भारतीय संस्कृति को प्रदर्शित करती थीं. वे भारतीय संस्कृति की दूत थीं. वो गजब की वक्ता भी थीं. सबके विचारों को समझकर, हर एक प्वाइंट को लेकर बहुत ही अच्छी तरीके से अपनी बात रखने की कला में वे माहिर थीं.
बातचीत : आरती श्रीवास्तव