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उपभोक्ता संरक्षण विधेयक-2019 : उपभोक्ता अधिकारों को मिलेगा संबल

वैश्विक आपूर्ति शृंखला के उभार, वैश्विक व्यापार और ई-कॉमर्स के तेज विकास ने नयी सेवाओं और उत्पादों की आमजन तक पहुंच को बहुत आसान बना दिया है. आज उपभोक्ताओं के पास खरीदारी के नये विकल्प और तमाम तरह के मौके हैं. ऐसे में गुमराह करनेवाले विज्ञापनों, टेली-मार्केटिंग, बहुस्तरीय मार्केटिंग, सीधी बिक्री और विशेषकर ई-कॉमर्स ने […]

वैश्विक आपूर्ति शृंखला के उभार, वैश्विक व्यापार और ई-कॉमर्स के तेज विकास ने नयी सेवाओं और उत्पादों की आमजन तक पहुंच को बहुत आसान बना दिया है. आज उपभोक्ताओं के पास खरीदारी के नये विकल्प और तमाम तरह के मौके हैं. ऐसे में गुमराह करनेवाले विज्ञापनों, टेली-मार्केटिंग, बहुस्तरीय मार्केटिंग, सीधी बिक्री और विशेषकर ई-कॉमर्स ने उपभोक्ता अधिकारों के समक्ष बड़ी चुनौती पेश की है. उपभोक्ता जागरूकता प्रसार और उपभोक्ता अधिकारों के संरक्षण के लिए सरकार ने नया कानूनी खाका ‘उपभोक्ता संरक्षण विधेयक-2019’ प्रस्तुत किया है, जिसे दोनों सदनों से मंजूरी मिल गयी है.

उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री रामविलास पासवान ने 8 जुलाई, 2019 को लोकसभा में उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, 2019 पेश किया था. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के स्थान पर लाया गया यह विधेयक 30 जुलाई को लोकसभा से और 6 अगस्त को राजसभा से पारित हो गया. इस विधेयक में उपभोक्ता की परिभाषा, उसके अधिकार, केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण समेत तमाम बातों की व्याख्या की गयी है.
कौन हैं उपभोक्ता
विधेयक के अनुसार, उपभोक्ता वह व्यक्ति है, जो अपने इस्तेमाल के लिए कोई वस्तु खरीदता है या सेवा प्राप्त करता है. दोबारा बेचने के लिए किसी वस्तु को प्राप्त करनेवाला या व्यावसायिक उद्देश्य के लिए किसी वस्तु या सेवा को हासिल करनेवाले व्यक्ति को उपभोक्ता की परिभाषा में जगह नहीं दी गयी है. इस परिभाषा के अंतर्गत इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों, टेलीशॉपिंग, मल्टी-लेवल मार्केटिंग या सीधे खरीद के जरिये किये जानेवाले ऑफलाइन और ऑनलाइन सभी तरह के लेन-देन शामिल हैं.
उपभोक्ता के अधिकार : इस विधेयक में उपभोक्ताओं के छह अधिकारों को स्पष्ट किया गया है.
ऐसी वस्तुओं और सेवाओं की मार्केटिंग के खिलाफ सुरक्षा का अधिकार, जो जीवन और संपत्ति के लिए नुकसानदेह है. वस्तुओं या सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, शक्ति, शुद्धता, मानक और मूल्य के विषय में सूचित किये जाने का अधिकार, ताकि अनुचित व्यापारिक प्रथा से उपभोक्ता को संरक्षित किया जा सके.
प्रतिस्पर्धात्मक मूल्यों पर वस्तु, उत्पाद और सेवा उपलब्ध होने के आश्वासन का अधिकार.
उचित मंच पर उपभोक्ता के हित सुने जाने और उस पर विचार किये जाने काे सुनिश्चित करने का अधिकार.
अनुचित या प्रतिबंधित व्यापार या उपभोक्ताओं के अनैतिक दोहन की स्थिति में मुआवजे की मांग करने का अधिकार.
केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण का गठन
केंद्र सरकार उपभोक्ता के अधिकारों को बढ़ावा देने, उनका संरक्षण करने और उन्हें लागू करने के लिए केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) का गठन करेगी. यह प्राधिकरण उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन और अनुचित व्यापार व भ्रामक विज्ञापनों से संबंधित मामलों को विनियमित करेगी. इसकी एक अन्वेषण शाखा (इनवेस्टिगेशन विंग) होगी, जो महानिदेशक की अध्यक्षता में ऐसे उल्लंघनों की जांच या पड़ताल करेगी.
सीसीपीए के कार्य
उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन की जांच-पड़ताल और उपयुक्त मंच पर कानूनी कार्रवाई शुरू करना.
जोखिम पहुंचानेवाले वस्तुओं या सेवाओं को वापस लेने का आदेश जारी करना, चुकायी गयी कीमत की भरपाई करवाना और अनुचित व्यापार को बंद कराना.
संबंधित व्यापारी/ निर्माता/ प्रचारक (एन्डोर्सर)/ विज्ञापनदाता/ प्रकाशक को झूठे या भ्रामक विज्ञापन बंद करने या उसे सुधारने का आदेश जारी करना.
जुर्माना लगाना.
खतरनाक और असुरक्षित वस्तुओं और सेवाओं को लेकर उपभोक्ताओं को सुरक्षा सूचना जारी करना.
उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग
शिकायतों के निबटारे के लिए जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (सीडीआरसी) का गठन किया जायेगा. इस आयोग में अनुचित और प्रतिबंधित तरीके से किये जानेवाले व्यापार, दोषपूर्ण वस्तु या सेवा, अधिक कीमत वसूलना या गलत तरीके से कीमत वसूलना, और ऐसी वस्तुओं या सेवाओं को बिक्री के लिए प्रस्तुत करना, जो जीवन और सुरक्षा के लिए खतरनाक साबित हो सकती हैं, के बारे में उपभोक्ता अपनी शिकायत दर्ज करा सकेंगे.
वहीं अनुचित अनुबंध के खिलाफ केवल राज्य और राष्ट्रीय सीडीआरसी में शिकायत की जा सकेगी. जिला सीडीआरसी की अपील की सुनवाई राज्य सीडीआरसी में होगी. जबकि, राज्य सीडीआरसी की अपील की सुनवाई राष्ट्रीय सीडीआरसी और अंतिम अपील की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय में होगी.
क्या होगा सीडीआरसी का क्षेत्राधिकार
जिला सीडीआरसी के पास वैसे मामलों की सुनवाई का अधिकार होगा, जिनमें वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य एक करोड़ रुपये से अधिक न हो. राज्य सीडीआरसी उन शिकायतों की सुनवाई का अधिकार रखेगी, जिनमें वस्तुओं और सेवाओं की कीमत एक करोड़ रुपये से अधिक, लेकिन 10 करोड़ रुपये से अधिक न हो. 10 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य वाली वस्तुओं और सेवाओं से संबंधित शिकायतें राष्ट्रीय सीडीआरसी द्वारा सुनी जायेंगी.
उपभोक्ता संरक्षण परिषद
इस नये विधेयक में सलाहकार निकाय के रूप में जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता संरक्षण परिषद स्थापित करने की बात कही गयी है. यह परिषद उपभोक्ताओं के अधिकारों का संवर्धन और उनके संरक्षण पर सलाह देने का कार्य करेगी. केंद्रीय और राज्य परिषद प्रमुख क्रमश: केंद्र और राज्य स्तर के उपभोक्ता मामलों के प्रभारी मंत्री होंगे. जबकि जिला परिषद का प्रमुख जिलाधिकारी होगा.
उत्पाद उत्तरदायित्व के तहत मुआवजे का हक
यह नया विधेयक, उत्पाद उत्तरदायित्व (प्रोडक्ट लायबिलिटी) के तहत उपभोक्ता को उत्पाद के निर्माता, सेवा प्रदाता या विक्रेता से मुआवजा प्राप्त करने का हक देता है. विधेयक में यह प्रावधान है कि किसी खराब वस्तु या दोषयुक्त सेवा के कारण अगर उपभोक्ता को कोई नुकसान या चोट पहुंचता है, तो उत्पाद के निर्माता, सेवा प्रदाता या विक्रेता को उपभोक्ता को मुआवजा देना होगा.
यह प्रावधान सभी सेवाओं पर लागू होता है. इस हर्जाने को प्राप्त करने के लिए उपभोक्ता को विधेयक में दी गयी शर्तों में से किसी एक के आधार पर वस्तु या सेवा में खराबी या दोष साबित करना होगा.
उत्पाद की जवाबदेही और दंड प्रावधान
उत्पाद की जवाबदेही निर्धारित करने का प्रावधान इस विधेयक का सबसे महत्वपूर्ण भाग है. वर्तमान विधेयक के खंड-6 में खराब उत्पाद के संदर्भ में उत्पाद की जवाबदेही का विवरण दिया गया है. इसमें उत्पाद निर्माता, उत्पाद सेवा प्रदाता और उत्पाद विक्रेता का जिक्र है. साथ ही खराब उत्पाद पर मुआवजे की जिम्मेदारी का प्रावधान किया गया है.
हालांकि, उत्पाद के जिम्मेदार व्यक्ति पर कैसे कार्रवाई होगी, यह स्पष्ट नहीं है. ऐसा प्रतीत होता है कि उपभोक्ता की शिकायत के आधार पर कार्रवाई, विधेयक के खंड-2(6) में वर्णित ‘कार्रवाई’ की परिभाषा के अनुरूप है. हालांकि, पूर्व के अधिनियम 1986 के अंतर्गत भी यह प्रावधान था कि ‘खराब उत्पादों से होनेवाले नुकसान पर कार्रवाई की जायेगी.
ई-कॉमर्स के नियमन की व्यापक दरकार
प्रस्तावित कानून में ‘उत्पाद विक्रेता’ की परिभाषा को व्यापक बनाया गया है. जिसमें कहा गया है- ‘वह व्यक्ति, जो वाणिज्यिक उद्देश्य के लिए उत्पाद रखता है.’ इस प्रकार यह माना जा सकता है कि ई-कॉमर्स प्लेटफार्म इसके दायरे में आते हैं, जो कि अब तक यह तर्क देते रहे हैं कि वे उत्पादों के समूहक मात्र हैं.
वास्तव में ‘इलेक्ट्रॉनिक सेवा प्रदाता’ की परिभाषा का प्रावधान विशेष तौर पर किया गया है. यहां तक कि 1986 के अधिनियम में यह प्रावधान था कि अगर उपभोक्ता को खराब वस्तु से किसी प्रकार का नुकसान होता है, तो वह उपभोक्ता फोरम का रुख कर सकता है. ऐसे में ‘उत्पाद की जवाबदेही’ का खंड जोड़ने भर से कोई खास बदलाव होता नहीं दिख रहा है.
उम्मीद की जाती है कि आगे सरकार ई-कॉमर्स के लिए विस्तृत तौर पर नियमन का प्रावधान ला सकती है. विधेयक की विशेष बात है कि अगर किसी मिलावटी या खराब सामान से कोई क्षति या मृत्यु होती है, तो जुर्माने के साथ जेल का प्रावधान किया गया है. यह अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती भी है.
अनुचित व्यापार पर सख्त कार्रवाई
नये कानून में अनुचित व्यापार पर लगाम लगाने के लिए कई बड़े प्रावधान किये गये हैं, जिसमें उपभोक्ता की शिकायत पर बिक्री किये गये उत्पादों और दी गयी सेवा से संबंधित रसीद नहीं देने, बेचे गये उत्पाद को 30 दिनों के भीतर वापस नहीं लेने और उपभोक्ता द्वारा दी गयी गोपनीय जानकारियों को किसी और से साझा करने पर कार्रवाई होगी.
उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन, व्यापार की अाव्यावहारिक गतिविधियों, गलत और गुमराह करनेवाले विज्ञापन जैसे मामलों में प्रावधान पहले से अधिक सख्त किये गये हैं. यह विधेयक सरकार को यह शक्ति देता है कि ई-कॉमर्स में अनियमितता, उपभोक्ता अधिकारों के लिए नये सिरे से नियम बना सके.
केंद्र सरकार बनायेगी नियम
इस अधिनियम में निहित प्रावधानों को कार्यान्वित करने के लिए केंद्र सरकार के पास अधिसूचना के माध्यम से नियम बनाने का अधिकार होगा. हालांकि, कई मामलों में राज्य सरकार के पास भी अपने नियम बनाने का अधिकार होगा.
विधेयक का दूसरा पहलू
विधेयक में वर्तमान में मूल समस्या यानी जटिल और लंबी मुकदमेबाजी की प्रक्रिया का स्पष्ट समाधान नहीं है. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत उपभोक्ता फोरम का गठन किया गया था. उपभोक्ता मंचों के विकल्प के तौर पर मध्यस्तता का नया प्रारूप प्रस्तावित है.
विधेयक एक नियामक का प्रावधान करता है, लेकिन नियामक के कार्यों का विस्तृत विवरण नहीं दिया गया है.
विधेयक में उपभोक्ता अधिकारों की परिभाषा सामान्य और सीधी नहीं है, जिससे कि उपभोक्ता अपने हक के बारे में आसानी से जान सकें.
यह भी जरूरी
उपभोक्ताओं से जुड़े मामलों का 90 दिनों के भीतर समाधान जरूरी.
उपभोक्ता शिक्षा और उचित जागरूकता जरूरी है, जिससे मानकों का अनुपालन हो.
अन्य देशों से सीख सकते हैं :
कनाडा, एस्टोनिया समेत कई देशों में विज्ञापन के लिए सख्त कानून हैं. बच्चों के लिए अस्वास्थ्यकर भोज्य पदार्थों के विज्ञापन पर कड़ा प्रतिबंध है.
ब्रिटेन, आयरलैंड और बेल्जियम समेत कुछ देशों में अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों के लिए सेलिब्रिटी एडवर्टाइजमेंट विशेष रूप से प्रतिबंध किया गया है. इस तरह के प्रतिबंध का सकारात्मक असर आम जन पर पड़ता है.
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग यानी जिला आयोग सामान्य तौर पर जिला मुख्यालय में कार्य करेगा. यह आयोग, शिकायत दर्ज होने के 21 दिनों के भीतर कार्रवायी शुरू करेगा. जिसके तहत विरोधी पक्ष को 30 दिनों के भीतर अपना पक्ष रखने का निर्देश जारी किया जायेगा. विशिष्ट परिस्थितियों में इस 30 दिनों की अवधि को अधिकतम 15 दिनों तक और बढ़ाया जा सकता है.
जिला आयोग के समक्ष होनेवाली प्रत्येक कार्यवाही भारतीय दंड संहिता की धारा 193 और 228 के तहत न्यायिक कार्रवाही मानी जायेगी और जिला आयोग को दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 195 और चैप्टर XXVI के प्रयोजनार्थ दंड न्यायालय माना जायेगा.
राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग राज्य की राजधानी में कार्य करेगा. इस आयोग के पास किसी भी दिये गये आदेश की समीक्षा 30 दिनों के भीतर करने का अधिकार होगा.
राज्य आयोग या राष्ट्रीय आयोग को अपने समक्ष दायर की गयी अपील पर यथासंभव शीघ्र सुनवायी करनी होगी और अपील दायर किये जाने के 90 दिन के भीतर उसका अंतिम रूप से निबटान करना होगा.

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