पेयजल और किफायती आवास के लिए बड़ी पहल की दरकार

देश में 16 करोड़ से अधिक यानी रूस की आबादी से भी ज्यादा भारतीय साफ और सुरक्षित पेयजल की पहुंच से दूर हैं. राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम जैसी योजनाओं पर हजारों करोड़ रुपये खर्चने के बाद भी पेयजल का संकट लगातार बढ़ रहा है. वहीं, दूषित जल की वजह से फैलनेवाली बीमारियां अतिरिक्ति बोझ बन […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 18, 2019 6:01 AM
देश में 16 करोड़ से अधिक यानी रूस की आबादी से भी ज्यादा भारतीय साफ और सुरक्षित पेयजल की पहुंच से दूर हैं. राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम जैसी योजनाओं पर हजारों करोड़ रुपये खर्चने के बाद भी पेयजल का संकट लगातार बढ़ रहा है. वहीं, दूषित जल की वजह से फैलनेवाली बीमारियां अतिरिक्ति बोझ बन रही हैं. देश में प्रति व्यक्ति पेयजल की कम होती उपलब्धता चिंताजनक है. दूसरी ओर, शहरी क्षेत्रों में रोजगार की तलाश में पहुंचनेवालों के लिए सस्ते आवास उपलब्ध कराना चुनौतीपूर्ण है.
आमजन के लिए पेयजल और सस्ते आवास की पहुंच सुनिश्चित हो, इसके लिए विभिन्न स्तरों पर जारी प्रयासों में गति आयी है. देश में पेयजल आपूर्ति की मौजूदा स्थिति, किफायती आवास और विशेषज्ञ के सुझाव के साथ प्रस्तुत है आज का इन-दिनों पेज…
60 करोड़ लोग जूझ रहे हैं पेयजल की कमी से
पिछले वर्ष जून में नीति आयोग की कंपोजिट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स (सीडब्ल्यूएमआइ)-2018 रिपोर्ट कहती है कि गर्मी के दिनों में भारत में जल संकट स्थायी समस्या बनता जा रहा है. इस बात की आशंका जतायी गयी है कि आनेवाले समय में जलसंकट और भी गंभीर हो
सकता है.
पहले जरूरी है जल संरक्षण
ममता दास जल प्रबंधन के क्षेत्र में कार्यरत
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी ग्रामीण घरों को साल 2024 तक नल से पानी पहुंचाने का आश्वासन दिया है. अगर ऐसा होता है, तो बहुत ही अच्छी बात होगी. ग्रामीण इलाकाें में शुद्ध पेयजल की जो दिक्कतें हैं, उसको देखते हुए मोदी जी की यह पहल कानों को सुनने में अच्छी लग रही है.
लेकिन, इसके साथ कुछ बुनियादी समस्याओं को भी ध्यान में रखना होगा. सबसे पहला और महत्वपूर्ण सवाल यह है कि देश के इतने बड़े ग्रामीण भू-भाग के लिए शुद्ध पानी कहां से आयेगा? आये दिन देश में देखने में आता है कि कहीं न कहीं कोई न कोई प्राकृतिक जल स्रोत सूखकर नष्ट हो रहा है.
प्राकृतिक जल स्रोतों का सूखना या नष्ट होना इस बात का द्योतक है कि हम जल-संरक्षण को लेकर जरा भी गंभीर नहीं हैं. जब जल का संरक्षण ही नहीं हो पा रहा है, बरसात का पानी हम बचा ही नहीं पा रहे हैं, तो ऐसे में इस बात की उम्मीद करना क्या बेमानी नहीं है कि महज पांच साल में सारे ग्रामीण क्षेत्रों में नल से पानी मिलने लगेगा?
पूरी दुनिया का इतिहास देख लीजिए, जहां कहीं भी प्राकृतिक जल संसाधन और स्रोत यानी नदियां रही हैं, वहां नगर बसाये गये. जहां बड़े-बड़े तालाब, कुएं और बावड़ियां आदि रहे हैं, वहां छोटे-छोटे गांव बसते चले गये. लेकिन, विडंबना यह है कि आज शहरीकरण के लिए हम अपने प्राकृतिक जल स्रोतों और संसाधनों को खत्म करते जा रहे हैं.
हर साल बाढ़ की चपेट में अच्छे-खासे विकसित शहर आ जाते हैं, क्योंकि हमने पानी के ठहरने के सारे ठिकानों को पाटकर वहां ऊंची-ऊंची इमारतें खड़ी कर दी हैं, इसलिए पानी निकलने के सारे रास्ते बंद हो गये हैं.
हमने पानी को सामाजिक संस्था के नजरिये से देखना बंद कर दिया है और उसे अब आर्थिक संस्था के नजरिये से देखने लगे हैं. इसका नतीजा यह हुआ है कि पानी अब प्लास्टिक में कैद होने लगा है और जलाशय सूखते चले जा रहे हैं. हमें इतनी भी समझ नहीं है कि अगर जलाशय सूख जायेंगे, तो प्लास्टिक में कहां से पानी लाकर कैद करेंगे? नदियों पर बड़े-बड़े बांध बनाकर पानी को रोका जा रहा है, जिससे बाढ़ की विभीषिका जन्म ले रही है.
सदियां बीतीं, मगर ‘जल है तो कल है’ की कहावत आज तक पुरानी नहीं हुई और न कभी होगी. पानी को प्रदूषण ने जितना खत्म नहीं किया है, उससे ज्यादा पानी के धंधे ने खत्म किया है. इसलिए हर घर को नल और हर नल को जल की नीति से पहले जल के संरक्षण की नीति बननी चाहिए. नदियां, तालाब, बावड़ियां सब प्रदूषित हैं, उन्हें स्वच्छ बनाने की कोशिश होनी चाहिए. पानी अपने आप पैदा नहीं होगा, उसे बचाना पड़ेगा. सरकार के पास बहुत पहले से ही पेयजल और स्वच्छता का मंत्रालय था और अब जलशक्ति मंत्रालय भी आ गया है.
लेकिन, पानी को बचाने को लेकर कोई बड़ी पहल नहीं दिखती है. जिस तरह से स्वच्छता अभियान चला और शौचालयों का निर्माण हुआ, वह सुनने और देखने में बहुत अच्छा लगा, लेकिन आज ढेर सारे शौचालयों में पानी की अनुपलब्धता के कारण उनका इस्तेमाल नहीं हो रहा है. इस उदाहरण से देखें, तो साल 2024 तक तो हर ग्रामीण घर में नल पहुंच जायेगा, लेकिन इसकी उम्मीद कम है कि उसमें से जल भी आयेगा.
हर नल को जल बहुत शानदार पहल है, लेकिन इसको बेवजह के प्रचार के जरिये सार्थक नहीं किया जा सकता है, जब तक हम पानी न बचा पायें. अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है, अगर हम आज से ही बरसात का पानी बचाने के लिए कमर कस लें, पारंपरिक जल स्रोतों को प्रदूषण से बचाने के लिए तैयार हो जायें और शहरों में पट चुके
तालाबों का फिर से उद्धार कर लें, तो हम कुछ साल में भारी मात्रा में पानी बचा लेंगे और हर नल को शुद्ध जल पहुंचाने में कामयाब हो जायेंगे. क्योंकि जल नहीं, तो किसी काम का नल नहीं.
ग्रामीण भारत की 80 प्रतिशत से अधिक आबादी के समक्ष जलसंकट
भारत की महज 18 प्रतिशत ग्रामीण आबादी के पास टैप वाटर की सुविधा मौजूद है, यानी ग्रामीण भारत की 80 प्रतिशत से अधिक आबादी के पास नल से जलापूर्ति की सुविधा नहीं है.
81 प्रतिशत ग्रामीण लोगों तक पीने के पानी की पहुंच है.
57 प्रतिशत ग्रामीण आबादी के लिए सार्वजनिक नलों के माध्यम से पीने के पानी की सुविधा उपलब्ध हो पाती है.
वर्ष ग्रामीण घरों में नल से जलापूर्ति
2014-15 13.3 प्रतिशत
2015-16 13.6 प्रतिशत
2016-17 15.6 प्रतिशत
2017-18 17.0 प्रतिशत
2018-19 18.3 प्रतिशत
स्रोत : राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम
शहरी आबादी को पीने के पानी की सुविधा
नीति आयोग की वर्ष 2018 की रिपोर्ट कहती है कि भारत के ज्यादातर राज्यों की शहरी जनसंख्या तक पेयजल की सुविधा का मौजूदा प्रतिशत ऊंचा है. पूर्वोत्तर और पूर्वी क्षेत्र में 50 प्रतिशत से कम शहरी आबादी को पीने के पानी की सुविधा उपलब्ध है.
महाराष्ट्र, तमिलनाडु और केरल जैसे बड़े शहरी इलाके वाले राज्य अपनी 53 से 72 प्रतिशत शहरी आबादी को पीने का पानी उपलब्ध कराते हैं.
क्या कहती है विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट
इस वर्ष मार्च में आयी विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक, विश्वभर में लगभग 2.1 अरब लोगों के घर में स्वच्छ पानी की उपलब्धता नहीं है. इस कारण इन्हें कालरा, डायरिया, डिसेंट्री, हेपेटाइटिस ए, टायफॉयड और पोलियो जैसी बीमारियों से ग्रस्त होने का खतरा बना रहता है. वैश्विक स्तर पर कम-से-कम दो अरब लोग प्रदूषित स्रोतों से मिलनेवाले पानी को पीने के लिए इस्तेमाल करते हैं. प्रदूषित पानी के इस्तेमाल व गंदे हाथों से खाने-पीने के कारण वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष आठ लाख, 42 हजार लोग कालरा से मर जाते हैं
केवल पांच राज्यों के 50 प्रतिशत ग्रामीण घरों में है टैप वाटर
पांच राज्य और एक केंद्र शासित प्रदेश के 50 प्रतिशत या उससे अधिक ग्रामीण घराें में नल से जलापूर्ति की सुविधा है. इन राज्यों में सिक्किम (99 प्रतिशत), गुजरात (78 प्रतिशत), हिमाचल (56 प्रतिशत), हरियाणा (53 प्रतिशत), पंजाब (53 प्रतिशत) और केंद्र शासित प्रदेश पुदुचेरी (50 प्रतिशत) हैं.
कर्नाटक के 44 प्रतिशत, महाराष्ट्र के 38 प्रतिशत, तेलंगाना व आंध्र प्रदेश के 34-34 प्रतिशत, जम्मू-कश्मीर व तमिलनाडु के 30-30 प्रतिशत ग्रामीण घरों में नल से जलापूर्ति की सुविधा है.
केरल के 17 प्रतिशत, मिजोरम के 16, उत्तराखंड के 14, राजस्थान व मध्य प्रदेश के 12-12 प्रतिशत और अंडमान व निकोबार के 10 प्रतिशत घरों में टैप वाटर की सुविधा है. अरुणाचल प्रदेश व छत्तीसगढ़ के छह-छह और नागालैंड के पांच प्रतिशत घरों में यह सुविधा मौजूद है.
बिहार के दो प्रतिशत ग्रामीण घरों में टैप वाटर
ओडिशा (4 प्रतिशत), त्रिपुरा (3 प्रतिशत), असम व बिहार (2-2 प्रतिशत) और उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल व मेघालय (एक-एक प्रतिशत) ऐसे राज्य हैं, जहां के पांच प्रतिशत से भी कम ग्रामीण घरों में टैप वाटर की सुविधा उपलब्ध है.
संतोषजनक नहीं है झारखंड की स्थिति
ग्रामीण घरों में नल से जलापूर्ति के मामले में झारखंड की स्थिति भी खराब है. यहां के महज छह प्रतिशत घर इस सुविधा से युक्त हैं.
नये कनेक्शन में सात प्रतिशत की कमी
राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम (नेशनल रूरल ड्रिंकिंग वाटर प्रोग्राम (एनआरडीडब्ल्यूपी)) के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2014-15 से 2018-19 तक टैप वाटर के लिए लगाये जानेवाले नये कनेक्शन में प्रगति बेहद धीमी रही है. वर्ष 2015 से 2019 के दौरान इस काम में सात प्रतिशत की कमी देखी गयी.
17.1 लाख नये कनेक्शन लगाये गये वर्ष 2014-15 में ग्रामीण इलाके में.
11.9 लाख नये कनेक्शन लगे वर्ष 2016-17 के दौरान.
12.9 लाख नये कनेक्शन लगे वर्ष 2015-16 के दौरान.
6.3 लाख ही नये कनेक्शन लग पाये वर्ष 2017-18 की अवधि में.
9.7 लाख नये कनेक्शन लगाये गये वर्ष 2018-19 में.
पांच वर्षों में 24 हजार करोड़ खर्च
राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम पर कैग की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2012 से 2017 के बीच ग्रामीण घरों में नल से जलापूर्ति सुनिश्चित करने के लिए 81,168 करोड़ रुपये खर्च किये गये. वर्ष 2015 से 2019 के बीच ग्रामीण घरों को पीने का पानी उपलब्ध कराने के लिए विभिन्न योजनाओं के माध्यम से केंद्र व राज्य सरकारों ने 24 हजार करोड़ रुपये खर्च किये हैं. बावजूद इसके अभी भी 80 प्रतिशत से अधिक घरों में पीने के पानी की उपलब्धता सुनिश्चित नहीं हो पायी है.
बीते पांच वर्षों में एनआरडीडब्ल्यूपी के तहत आवंटित राशि
वर्ष राशि (हजार करोड़ रुपये)
2015-16 4,373
2016-17 6,000
2017-18 7,050
2018-19 7,000
स्रोत : राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम
शहरी भारत में पीने के पानी की स्थिति
शहरीकरण, जलवायु परिवर्तन और कमजोर बुनियादी ढांचे के कारण पेयजल की मांग बढ़ रही है. वर्ष 2015-16 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़े के अनुसार, 31 प्रतिशत शहरी घरों में नल से जलापूर्ति या उन तक सार्वजनिक नल के पानी की पहुंच नहीं है.
जिन घरों में नल के कनेक्शन थे, पानी की कमी के कारण उसके सूखने का खतरा है.
भारत में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता में कमी आ रही है. जल की यह कमी लगातार बढ़ते रहने की आशंका है.
बीते वर्ष नीति आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2020 तक देश के 21 प्रमुख शहरों के डे जीरो (नल से पानी बंद
हो जाना) होने की संभावना है. डे जीरो (नल से पानी बंद हो जाना) होने की संभावना है.
गिर रहा है भू-जल स्तर
जल शक्ति मंत्रालय के अनुसार, बीते दो दशक के दौरान भारत के 10 सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले शहरों में से सात में भू-जल स्तर (भूजल उपलब्धता की माप) में तेजी से गिरावट दर्ज हुई है. भू-जल की गिरावट बढ़ने से पानी तक पहुंचने में कठिनाई होती है.
बीते दो दशक यानी वर्ष 1998 से 2018 के बीच दिल्ली, अहमदाबाद और बेंगलुरु जैसे शहरों में इसकी गिरावट लगभग दोगुनी हो गयी.
बेंगलुरु में जहां भू-जल की गहराई -93.7 प्रतिशत पर पहुंच गयी, वहीं अहमदाबाद व दिल्ली में यह -88.9 प्रतिशत रही.
मुंबई में भू-जल की गहराई जहां -34.1 प्रतिशत रही, वहीं चेन्नई में यह -34.0 प्रतिशत और पुणे में -30.4 प्रतिशत हो गयी. कानपुर में यह गहराई -1.5 प्रतिशत पर रही.
बढ़ती आबादी के लिए सस्ते मकान की जरूरत
लगभग 70 प्रतिशत नौकरियां शहरी क्षेत्रों में पैदा होती हैं. एक अनुमान है कि साल 2030 तक देश की 40 प्रतिशत आबादी शहरी क्षेत्रों की निवासी होगी.
आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय द्वारा जारी संशोधित अनुमान के मुताबिक 2017 में शहरी क्षेत्रों में 10 करोड़ हाउसिंग यूनिट की जरूरत थी. इसमें 95 प्रतिशत कमी किफायती आवास सेगमेंट में थी. शहरों में पलायन कर आनेवाले नये लोगों के लिए सस्ते आ‌वास की सुविधा उपलब्ध करा पाना चुनौतीपूर्ण है. वर्तमान में ऐसे 80 प्रतिशत लोग संकरे और पुराने घरों में रह रहे हैं.
एक निष्कर्ष के अनुसार वर्तमान में देश में 50 प्रतिशत लोग अपने खुद के मकान में और 30 प्रतिशत लोग किराये के मकान में रहते हैं. कच्चे मकानों में रहनेवाले की तादाद 10 लाख और देश में बेघरों की संख्या पांच लाख से अधिक है. प्रधानमंत्री आवास योजना का उद्देश्य ऐसे लोगों के लिए पक्का मकान देना है, जिसमें पानी कनेक्शन, शौचालय की सुविधा और 24X7 बिजली की आपूर्ति हो.
प्रधानमंत्री आवास योजना
सभी को आवास उपलब्ध कराने के मकसद से आवास एवं शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय ने जून, 2015 में प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) की शुरुआत की थी. यह क्रेडिट लिंक सब्सिडी योजना है. इस योजना के तहत नये घर की खरीद, निर्माण और मरम्मत के लिए ऊंची सब्सिडी पर कर्ज देने का प्रावधान किया गया है. इसे मुख्य रूप से तीन वर्गों में बांटा गया है- आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग (ईडब्ल्यूएस), न्यूनतम आय वर्ग (एलआईजी) और मध्यम आय वर्ग (एमआईजी).
ईडब्ल्यूएस/ एलआईजी वर्ग : एलआईजी (निम्न आय वर्ग) और ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) में उन परिवारों को रखा गया है, जिनकी सालाना आमदनी तीन लाख से 12 लाख रुपये के बीच है.
इस वर्ग के तहत अधिकतम ब्याज सब्सिडी 6.5 प्रतिशत निर्धारित की गयी है. इस सुविधा का लाभ लेने के लिए यह आवश्यक है कि बनाये या खरीदे गये मकान का क्षेत्रफल 60 वर्ग गज या 645.83 वर्ग फीट (लगभग) से अधिक नहीं होना चाहिए. ब्याज सब्सिडी अधिकतम छह लाख तक के ऋण पर दी जायेगी. साल 2017 में इस योजना के लाभ को मध्यम आय वर्ग (एमआईजी-1 और एमआईजी-2) तक बढ़ा दिया गया था.
एमआईजी-1 वर्ग : इस वर्ग में उन लोगों को रखा गया है, जिनकी सालाना आय 6 लाख से अधिक लेकिन 12 लाख रुपये से कम है. इस श्रेणी के आवेदक अधिकतम 4 प्रतिशत की ब्याज सब्सिडी के लिए पात्र हैं. निर्माण या खरीदे जानेवाले मकान का क्षेत्रफल 160 वर्ग मीटर या 1722.23 वर्ग फीट (लगभग) से अधिक नहीं होना चाहिए. ब्याज सब्सिडी के तहत अधिकतम ऋण नौ लाख रुपये है, जिसके लिए अ‌वधि 20 वर्ष है.
एमआईजी-2 वर्ग : इस वर्ग में उन लोगों को रखा गया है, जिनकी वार्षिक आमदनी 12 लाख से अधिक है, लेकिन 18 लाख रुपये से कम है. इसमें तीन प्रतिशत की ब्याज सब्सिडी का प्रावधान है. इसके अलावा निर्मित या खरीदे गये मकान का क्षेत्रफल 200 वर्ग मीटर या 2152.78 वर्ग फीट (लगभग) से अधिक नहीं होना चाहिए.
आवास योजना के लिए पात्रता
इस योजना के लाभार्थी के लिए यह अनिवार्य है कि देश में कहीं भी परिवार के किसी सदस्य के नाम पर पक्का मकान नहीं होना चाहिए. ऋण के लिए आवेदन करनेवाले विवाहित जोड़ों के लिए अनिवार्य है कि दोनों में से कोई एक या दोनों (संयुक्त रूप से) केवल एक ही व्यक्ति सब्सिडी के लिए पात्र होंगे. यह अनिवार्य है कि लाभार्थी परिवार ने केंद्र सरकार की पीएमएवाई के तहत किसी अन्य हाउसिंग स्कीम का पहले कोई लाभ न लिया हो.
केवल सात प्रदेशों ने सौंपा सोशल ऑडिट प्लान
केंद्र की इस महत्वाकांक्षी योजना के तहत अब लाखों मकानों का निर्माण किया जा चुका है. इसके बावजूद ज्यादातर प्रदेशों ने सोशल ऑडिट करने में कोई रुचि नहीं दिखायी है.
अब तक आंध्र प्रदेश, गुजरात, झारखंड, केरल, उत्तराखंड, मिजोरम और मणिपुर ने ही अपना सोशल ऑडिट प्लान सौंपा है. सोशल ऑडिट करने का मुख्य उद्देश्य स्कीम का सामान्य आदमी पर प्रभावों का व्यापक अध्ययन करना है.
1.4 लाख और मकानों के निर्माण को मंजूरी
शहरी गरीबों के लिए 1,40,134 और सस्ते मकानों के निर्माण को सरकार ने मंजूरी दी है. इसमें सर्वाधिक उत्तर प्रदेश में 54,277 मकानों और पश्चिम बंगाल में 26,585 मकानों का निर्माण प्रस्तावित है.
इस प्रकार प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत निर्मित किये जानेवाले मकानों की प्रस्तावित संख्या अब 85 लाख हो गयी है. पीएमएवाई (अर्बन) के तहत गुजरात में 26,183, असम में 9,328, महाराष्ट्र में 8,499, छत्तीसगढ़ में 6,507, राजस्थान में 4,947 और हरियाणा में 3,808 मकान प्रस्तावित किये गये हैं. कुल 492 प्रोजेक्ट की लागत 6,642 करोड़ है.

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