दहक रहे हैं अमेजन के जंगल, चरम पर है विनाश
ब्राजील के अमेजन जंगलों में फैली आग की लपटें मानवजनित विनाश को भयावह रूप दे रही हैं. दुनिया का सबसे बड़ा यह उष्णकटिबंधीय वन ऑक्सीजन का बड़ा स्रोत तो है ही, साथ ही अरबों टन कॉर्बन डाइ ऑक्साइड को अवशोषित कर धरती पर जीवन को आसान बनाने में मददगार भी है. दक्षिण अमेरिकी भू-भाग पर […]
ब्राजील के अमेजन जंगलों में फैली आग की लपटें मानवजनित विनाश को भयावह रूप दे रही हैं. दुनिया का सबसे बड़ा यह उष्णकटिबंधीय वन ऑक्सीजन का बड़ा स्रोत तो है ही, साथ ही अरबों टन कॉर्बन डाइ ऑक्साइड को अवशोषित कर धरती पर जीवन को आसान बनाने में मददगार भी है.
दक्षिण अमेरिकी भू-भाग पर 55 करोड़ हेक्टेयर में फैले इन वनों में जारी अग्नि विनाशलीला से न केवल तीन करोड़ से अधिक अादिवासियों के लिए संकट उत्पन्न हो गया है, बल्कि पारिस्थितिकीय असंतुलन का भी खतरा मंडरा रहा है.
जलवायु परिवर्तन की गंभीर होती चुनौतियों के बीच दुनियाभर के तमाम जंगलों में आग लगने की घटनाएं भविष्य के लिए खतरनाक संकेत हैं. जंगली आग से पर्यावरण को नुकसान, अमेजन समेत विभिन्न हिस्सों में लगी आग और इससे उपजे संकट पर प्रस्तुत है आज का इन-डेप्थ…
हर मिनट एक फुटबॉल मैदान जितना जंगल आ रहा चपेट में
इस गर्मी अमेजन के जंगल में लगी आग अभी तक नहीं बुझ पायी है. प्रतिदिन लाखों टन कार्बन डाइ-ऑक्साइड वातावरण में फैल रहा है. लेकिन, वैज्ञानिकों में इससे अधिक आग के फैलाव को लेकर चिंता है.
उनका मानना है कि इस आग में अवैध वनों की कटाई जैसा ही इजाफा होता जा रहा है, जो भयावह है. अगर ऐसा ही रहा तो जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से बचानेवाले जंगलों से दुनिया वंचित हो जायेगी.
ब्राजील के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस रिसर्च (आइएनपीइ) के अनुसार, यह आग प्रति मिनट एक फुटबॉल मैदान जितने क्षेत्र को अपनी चपेट में लेती जा रही है. सेटेलाइट से प्राप्त प्रारंभिक आंकड़ों के अनुसार, पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष जून में वनों के नष्ट होने में 90 प्रतिशत और जुलाई में 28 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है.
अमेजन धरती की जलवायु प्रणाली का एक प्रमुख घटक है. यह संपूर्ण वातावरण के लगभग एक चौथाई कॉर्बन को नियंत्रित करता है और प्रतिवर्ष हम जितना कार्बन डाइ-ऑक्साइड छोड़ते हैं, उसका पांच प्रतिशत यह खुद ही अवशोषित कर लेता है.
लेकिन अगर वनों की कटाई या उसका नष्ट होना इसी तरह जारी रहा, तो वैश्विक तापमान को नियंत्रित रखने का प्रयास विफल हो जायेगा. वैज्ञानिक इस बात को लेकर चिंतित हैं कि इस आग के कारण अमेजन वन के कुछ हिस्से सूखे और जंगली घास के मैदान में बदल सकते हैं. अगर ऐसा होता है तो यह न केवल दक्षिण अमेरिकी लोगों के लिए, बल्कि दुनिया के लिए भयावह परिणाम ला सकता है
चरम पर विनाश
ब्राजील के साओ पाउलो यूनिवर्सिटी के जलवायु वैज्ञानिक, कार्लोस नोब्रे का कहना है कि अब हम चरम बिंदु के बहुत करीब पहुंच चुके हैं. अगर हमने इस बिंदु को पार कर लिया तो यह बदलाव अपरिवर्तनीय होगा. यह रुझान विशेष रूप से खतरनाक है, क्योंकि एक दशक से अधिक समय तक विश्व के इस सबसे बड़े वर्षावन को संरक्षित करने के प्रयास के बाद हम इस बिंदु के करीब पहुंचे हैं.
अन्य हिस्सों में भी झुलस रहे जंगल
अमेजन जैसे ही हालात दुनिया के अन्य हिस्सों में भी हैं. साइबेरिया के जंगल में 21 हजार मील क्षेत्र आग की चपेट में आ गया था. रूस के सामने जंगली आग का यह सबसे भयावह साल है.
कैनरी द्वीप में जंगलों में लगी आग की वजह से 8000 से अधिक लोगों को विस्थापित होना पड़ा.
अलास्का में बीते हफ्ते फिर से आग भड़क गयी, इस मौसम में आग लगने का लंबा सिलसिला चलता है.
डेनमार्क ने ग्रीनलैंड में भड़की आग को नियंत्रित करने के लिए अग्निशमन दल भेजा. अधिकारियों का मानना है कि आग का यह सिलसिला पूरे सर्द मौसम में चल सकता है. इससे ग्रीनलैंड में जमी बर्फ के पिघलने की प्रक्रिया और तेज हो सकती है.
वर्ष 2018 में कैलीफोर्निया सबसे विनाशकारी जंगली आग की चपेट में था. तुलनात्मक रूप से इस बार अभी तक कोई बड़ी घटना नहीं हुई है, लेकिन आग की आशंका अभी भी बरकरार है.
जंगलों में आग लगने की घटनाओं के पीछे बड़ी वजह इस वर्ष दुनिया के तमाम हिस्सों में तापमान और सूखापन भी बढ़ना है. अमेजन के जंगलों में लगी आग यह दर्शाती है कि इस ग्रह को मानव जाने-अनजाने में कैसे तबाह करने पर आमादा है.
औसत तापमान वृद्धि है समस्या
इस जुलाई महीने का औसत वैश्विक तापमान 20वीं सदी के औसत से 1.71 डिग्री फॉरेनहाइट से अधिक था. पिछले जुलाई में अधिकतम तापमान रिकॉर्ड स्तर पर था. नीदरलैंड, जर्मनी, बेल्जियम जैसे देशों में हर साल तापमान के नये रिकॉर्ड बन रहे हैं.
जिन क्षेत्रों में आग विकराल रूप धारण की हुई है, जैसे साइबेरिया, अलास्का और केनरी द्वीप का पिछले महीने का तापमान अधिक था. अलास्का और कैनरी द्वीप में इस वर्ष सूखे की चपेट में भी रहा. बढ़ती उष्णता और कम होती नमी की वजह से वनस्पतियां सूख रही हैं. इसमें बड़ी भूमिका मानवीय गतिविधियों की भी है.
अनियंत्रित आग में झुलस रहे हैं बोलिविया के जंगल
पिछले 18 अगस्त से 23 अगस्त के बीच बोलिविया के विशिष्ट प्रकार के चिक्विटैनो जंगलों में लगी आग से आठ लाख एकड़ जंगल नष्ट हो चुका है. बीते दो वर्षों में यह नुकसान सर्वाधिक है. विशेषज्ञों का मानना है कि आग से हुए इस पारिस्थितिकीय नुकसान की भरपाई में दो सदी लग जायेगी.
आग की लपटों की वजह से 500 से अधिक जंगली प्रजातियों को नुकसान पहुंचा है.बोलिविया के जंगल को दुनिया का सबसे बड़ा स्वस्थ उष्णकटिबंधीय शुष्क जंगल के तौर पर जाना जाता है. यहां स्थानीय लोगों के अलावा तमाम तरह के जंगली जीवों का ठिकाना है. इसमें तेंदुआ, विशालकाय आर्मेडिलो और टैपीर जैसे जीवों का निवास स्थल है. चिक्विटैनो जंगल कुछ ऐसी प्रजातियों का ठिकाना है, जो धरती पर अन्यत्र कहीं नहीं पाये जाते.
भारत में बढ़ी जंगलों की आग लगने की घटनाएं
भारत के जंगलों में आग लगने की घटनाओं में पिछले छह वर्षों के दौरान 158 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. बीते वर्ष सरकार द्वारा बताया गया कि देश में जंगली आग की 35,888 घटनाएं हुई.
सर्दियों और मॉनसून पूर्व अवधि में लंबे समय तक सूखा रहने से वन्य क्षेत्रों के तापमान में वृद्धि हो जाती है, जो आग लगने का बड़ा कारण बनता है. भारत में औसत वार्षिक तापमान में बीती सदी के मुकाबले 1.2 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हो चुकी है. जलवायु परिवर्तन की वजह से सूखापन बढ़ रहा है. जंगलों में आग लगने की घटना की पीछे बड़ी वजह मिट्टी और वातावरण में नमी खत्म हो जाने से उत्पन्न सूखा है.
उत्तराखंड के जंगलों में आग से नुकसान : उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने की घटनाएं हर साल होती हैं. इससे राज्य के वन्य क्षेत्र के साथ-साथ जंगली जीवों को क्षति पहुंचती है और धुएं के गुबार से प्रदूषण फैलता है. इस वर्ष उत्तराखंड में 1400 से अधिक मामलों में 2000 से ज्यादा जंगलीय भूमि पर तबाही हुई है. उत्तराखंड के अलावा मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओड़िशा समेत कई राज्यों के जंगल में आग लगने की घटनाएं सामने आती हैं.
आग लगने की वजह : उत्तराखंड में देवदार वृक्षों के घने जंगल हैं. उनकी सूखी पत्तियों में आसानी से आग पकड़ लेती है, जो जंगल की सतह पर तेजी से फैलती है.
जंगलों के लिए प्राकृतिक विविधता है जरूरी
राजीव नयन बहुगुणा
पर्यावरण कार्यकर्ता
जंगल में आग पकड़ने का एक ही कारण है- एकल प्रजाति के पेड़ों का विस्तार. जंगल कोई खेत नहीं हैं, जहां एक तरह के पेड़ लगा दिये जायें. पहले विविध प्रकार के पेड़-पौधों से भरे प्राकृतिक जंगलों को मनुष्यों ने काटना शुरू किया और फिर सरकारों ने एक ही तरह के पेड़ों का पौधारोपण शुरू किया. इसका नतीजा आज दिख रहा है.
भारत में विविध प्रकार के पेड़-पौधों के जंगल थे, जिनको अंग्रेजों ने काटकर फर्नीचर में लगा दिया और फिर चीड़ के जंगलों का विस्तार करना शुरू कर दिया. वे यह भूल गये कि जंगल कभी मानव-निर्मित नहीं हो सकता, उसके लिए प्राकृतिक विविधता की जरूरत होती है, जो प्रकृति-प्रदत्त हो. मानव-निर्मित चीड़ के जंगल तो खेत की तरह हैं, अगर वहां आग लगेगी, तो उसे कोई बचा नहीं पायेगा. प्राकृतिक जंगल नाना प्रकार के पेड़ों के समुदायों का निर्माण करते हैं, जैसे भारत में हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई आदि समुदाय हैं.
वहां जब एक प्रजाति के पेड़ों पर कोई बीमारी लगती है, तो दूसरी प्रजाति के पेड़ उस बीमारी को रोकने में समर्थ होते हैं. ठीक इसी तरह, पुराने जमाने में प्राकृतिक जंगलों के एक समुदाय में आग लगती थी, तो दूसरे समुदाय उस आग को बढ़ने से रोक देते थे. आज ऐसा संभव नहीं है. चाहे अमेजन के जंगल हों या फिर उत्तराखंड के, इनमें एकल प्रजाति के पेड़ों का ही विस्तार है, जो आग लगने पर नष्ट होने से रोक पाने में सक्षम नहीं हैं.
इसका एक ही उपाय है कि जंगलों की प्रकृति को न छेड़ा जाये और मानव-निर्मित जंगल का विस्तार न किया जाये. जंगल का जीवन उसकी विविधता पर टिका हुआ है. उसकी विविधता नष्ट होगी, उसके किनारे बहनेवाली नदियों को दूषित किया जायेगा, तो जंगल खत्म होते चले जायेंगे.
बीस हजार मील कम हुआ अमेजन वन क्षेत्र
वर्ष 2004 में ब्राजील की तत्कालीन सरकार ने वनों के विनाश को रोकने के लिए ज्यादा से ज्यादा क्षेत्र को संरक्षित और जनजातीय लोगों के लिए आरक्षित करने जैसे कदम उठाये थे.
इस दौरान नियम का उल्लंघन करनेवालों पर जुर्माना लगाया गया या उन्हें गिरफ्तार किया गया. इन एहतियाती कदमों से 2012 तक वन क्षेत्र के नुकसान में 75 प्रतिशत की कमी दर्ज हुई. जलवायु वैज्ञानिक नोब्रे की मानें तो, राष्ट्रपति जैर बोलसोनारो के सत्ता में आने के कुछ महीने बाद, मई से वनों की कटाई में तेज वृद्धि हुई है. इस वर्ष अब तक 2,000 वर्ग मील जंगल कम हो चुके हैं.
इन वजहों से कम होते जा रहा है अमेजन वन क्षेत्र
प्राकृतिक तौर पर अमेजन शायद ही कभी जलता है. लेकिन आइएनपीइ ने अकेले इसी महीने अमेजन वन में 25,000 से अधिक बार आग लगने की घटना की गणना की है. लपटों से निकलने वाला धुआं इतना घना था कि यहां से एक हजार मील दूर साओ पाउलो शहर में दिन में ही अंधेरा छा गया.
लेकिन यह कोई नयी बात नहीं है. मई, जून और जुलाई में प्राप्त उपग्रह चित्रों में, वनों की कटाई में वृद्धि देखी गयी. वन में आग लगने से पहले ही यह चित्र लिये गये थे. नासा के गोड्डर स्पेस फ्लाइट सेंटर के बायोस्फेरिक साइंसेज लेबोरेटरी के प्रमुख डॉग मोर्टन के मुताबिक, अमेजन के ऊंचे-ऊंचे पेड़ों को गिराने के लिए कुल्हाड़ी या मैचेट की बजाय अब लोग बुल्डोजर और जंजीर लगे विशाल ट्रैक्टरों का उपयोग करते हैं.
इतना ही नहीं, एक ही साथ बड़े पैमाने पर हजारों एकड़ वन जमीन को कृषि कार्यों के लिए मंजूरी दे दी गयी है. इस जमीन का उपयोग पशु चारागाह के तौर पर या सोयाबीन जैसी फसल उगाने के लिए किया जाता है.
कुछ तथ्य
यह वन क्षेत्र धरती की सतह का कुल चार प्रतिशत हिस्सा है. अमेजन वर्षावन विश्व के कुल बचे जंगल का 60 प्रतिशत अकेले बनाता है.
प्रतिवर्ष दुनिया के वनों द्वारा वातावरण से हटाये गये 2.4 अरब टन कॉर्बन के एक चौथाई हिस्से को अमेजन वन अवशोषित करता है. यह लगभग 86 अरब टन कार्बन, या एक तिहाई से अधिक कार्बन अवशोषित करता है.
अमेजन कुल पौधों और जानवरों की प्रजातियों में से 30 प्रतिशत का घर है. इसमें 16 हजार प्रजातियों के 390 अरब पेड़ हैं, जो धरती के बायोमास का 10 प्रतिशत हिस्सा हैं. अमेजन नदी विश्व की सबसे लंबी नदी है.
अमेजन वन का 60 प्रतिशत हिस्सा ब्राजील में है, जबकि इसका 40 प्रतिशत हिस्सा बोलिविया, पेरु, पराग्वे, इक्वाडेार, उरुग्वे, उत्तरी अर्जेंटीना, उत्तरी-पश्चिमी कोलंबिया और गुयाना तक फैला हुआ है.
इस वर्ष के पहले सात महीने में वनों के विनाश में 67 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
2019 में ब्राजील के जंगलों में लगने वाली आग की संख्या वर्ष 2013 से दुगनी से ज्यादा है