संताली भाषा प्रहरी धनेश्वर मांझी

नागेश्वर जीवन में काफी झंझावात झेल सुदूर गांव में शिक्षा व संताली भाषा के प्रति सजग प्रहरी के रूप में आदिवासी भाषा-साहित्य के क्षेत्र में जिस नये पौधों का अंकुरण हुआ, उनमें डॉ धनेश्वर मांझी का नाम उल्लेखनीय है. छात्र जीवन से ही अपनी सृजनात्मकता भूमिका की शुरुआत करने वाले मांझी झारखंड के भाषाई आंदोलन […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 30, 2019 8:44 AM

नागेश्वर

जीवन में काफी झंझावात झेल सुदूर गांव में शिक्षा व संताली भाषा के प्रति सजग प्रहरी के रूप में आदिवासी भाषा-साहित्य के क्षेत्र में जिस नये पौधों का अंकुरण हुआ, उनमें डॉ धनेश्वर मांझी का नाम उल्लेखनीय है. छात्र जीवन से ही अपनी सृजनात्मकता भूमिका की शुरुआत करने वाले मांझी झारखंड के भाषाई आंदोलन में नयी पीढ़ी के सजग रचनाकार हैं.

इनकी रचनाएं संताल समाज के विस्मृत जातीय इतिहास के तलाश में पुरखा जड़ों तक पहुंचती हैं. परंपरा व आधुनिकता का द्वंद्व इनकी रचनाओं में दिखता है.

उन्होंने संताली समाज में बिखरी लोककथाओं को दुनिया को न सिर्फ सफलतापूर्वक सामने लाया है बल्कि उन कथाओं में व्याप्त संताली समाज के जीवन-दर्शन, इतिहास, अर्थ तंत्र, राजनीतिक ढांचा, धार्मिक विश्वास और संस्कृति के विविध पक्षों को भी आलोकित करने का काम किया है. सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी संताल जीवन का आइना है लोक कथाएं. इन लोक कथाओं में जितना पुराकालिक इतिहास छिपा है उतना ही भविष्य भी झांकता है.

वे कहते हैं कि लोक कथाएं हमारे इसी आशय हमारे सामने रखती हैं. संताली साहित्य की लोक कथाएं सदियों की ज्ञान परंपरा को अक्षुण्ण व प्रवाहमान बनाये रखने का सर्वाधिक सशक्त माध्यम है. डॉ मांझी का कहना है कि संताल समाज झारखंडी जीवन का एक प्रमुख अंग है. इस अर्थ में संताली परंपराओं, आख्यानों, इतिहास और लोक साहित्य का महत्व असंदिग्ध है.

लोक कथा में आदिवासी संस्कृति विरासत धरोहर की रक्षा में संताल समाज सदैव अग्रणी रहा है. भाषा और साहित्य के मोर्चे पर संतालों की देन अमूल्य है. संताली समाज लोकजीवन और इतिहास पर जितना कुछ अन्य भारतीय एवं विदेशी भाषाओं में लिखा है और संरक्षित किया गया है उसकी तुलना में हिंदी मे काम कम हुआ है.

डॉ मांझी ने अपने लोक कथा पुस्तक में संताल जनजाति सामान्य परिचय के संतालों के सामाजिक जीवन, आर्थिक जीवन, राजनीतिक संरचना, धार्मिक विश्वास, सांस्कृतिक उपकरण, भाषा की विशेषताएं, व्याकरण, लिपि, ध्वनि समूह, अर्थ परिभाषा, विशेषताएं एवं वर्गीकरण, सृष्टि कथा, गोत्र कथा, संस्कार कथा, परिकथा, आख्यान कथा, प्रकृति के साथ समन्वय, आधुनिक समाज-व्यवस्था में संताली लोक कथाओं में प्रतिबिंब आदि विषयों पर बड़ी ही बारीकी से उद्धृत किया है.

परिचय

गोमिया प्रखंड अंतर्गत टीकाहारा गांव जिला बोकारो के निवासी हैं. प्रारंभिक शिक्षा प्रावि टीकाहारा, मवि बड़कीपुनू से हासिल की. हाइ स्कूल की शिक्षा तेनुघाट नदी घाटी सिंचाई योजना तथा तेनुघाट कॉलेज से स्नातक की शिक्षा प्राप्त की है.

05 जून 1975 में जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा रांची विश्वविद्यालय से एमए और पीएचडी की उपाधि ली. लगभग एक वर्ष 29 मई 2009 तक पूर्व प्रादेशिक भाषा केंद्र भुवनेश्वर ओड़िशा में अतिथि प्राध्यापक के रूप में काम करने के बाद 29 मई 2009 से विश्व भारती विश्वविद्यालय शांति निकेतन में संताली भाषा के प्रोफेसर हैं.

समाचार संपादक का भी काम किया : डॉक्टर मांझी ने ‘जोहर दिशुम खबर’ पाक्षिक अखबार में संताली भाषा के समाचार संपादक के रूप में काम किया.

झारखंडी साहित्य भाषा के जरिए भाषाई आंदोलन में अगुवा भूमिका अदा की. रचनाएं : संताली लोक कथा, पुरखा कहानियां, संताल लोक कथा दुनिया, संताली लोक गीत, दो कविता संताली और हिंदी में पहला तोडय सुतम (काल्पनिक धागा) दूसरी हिंदी गाना (मकरजाल) पुस्तक संताली समाज को जागृत कर रहा है.

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