लोकगीतों को जीवन देता तिरियो बैंड

सुनील मिंज छोटानागपुर कई मायनों में राज्य के दूसरे इलाके की तुलना में कुछ अनूठा है. बात चाहे भूगोल की करें या इतिहास की, या कला अथवा संस्कृति की, लोकरंगों की सतरंगी विविधता यहां देखने को मिलती है. छोटानागपुर में लोकगीतों की एक समृद्ध परंपरा है. यहां संताली, मुंडारी, कुडुख, खड़िया, हो, नागपुरी, खोरठा, कुड़मालि […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 30, 2019 8:46 AM
सुनील मिंज
छोटानागपुर कई मायनों में राज्य के दूसरे इलाके की तुलना में कुछ अनूठा है. बात चाहे भूगोल की करें या इतिहास की, या कला अथवा संस्कृति की, लोकरंगों की सतरंगी विविधता यहां देखने को मिलती है.
छोटानागपुर में लोकगीतों की एक समृद्ध परंपरा है. यहां संताली, मुंडारी, कुडुख, खड़िया, हो, नागपुरी, खोरठा, कुड़मालि और पंचपरगनिया लोकगीत गाये जाते हैं. हालांकि सरकारी संवेदनहीनता की वजह से ये साझी विरासत संकट में हैं. इस लोक में प्रचलित अकूत साझी विरासत के संरक्षण में साझेदारी निभाने का एक छोटा प्रयास किया है, तिरियो बैंड ने.
तिरियो बैंड एक संताली बैंड है, जिसकी शुरुआत 2015 में तब हुई जब अनुरंजन किडो संत जेवियर कालेज, रांची में उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे थे. यह वह दौर था जब खड़िया युवा आधुनिकता की ओर तेजी से कदम रख रहे थे.
उस वक्त उनका साथ समीर सौरभ बिलुंग और विकास बिलुंग ने दिया. इस ग्रुप ने जोआकिम डुंगडुंग के खड़िया गानों का रीमेक बनाया और उसका नाम रखा – ‘आलोंगनाइंग प्रभु’. शुरूआती दिनों में ही इस कैसेट ने तहलका मचा दिया. परिणाम यह हुआ कि विकास कुल्लू, संजीत क्लेबिन लिंडा, रेशमा केरकेट्टा, और बबिता सोरेंग जिन्हें प्लेटफॉर्म की वाकई जरूरत थी, बैंड के साथ जुड गये.
बबिता सोरेंग, रेशमा केरकेट्टा, नोमिता सोरेंग, अन्जुरानी डुंगडुंग, रजत सोरेंग, और अनुराग इंदवार आज गायक कलाकार हैं. विकास बिलुंग, अभय डुंगडुंग और रजत सोरेंग की अंगुलियां जब गिटार के तार पर थिरकती हैं तो अनायास ही लोकगीत निकल पड़ते हैं. रितेश केरकेट्टा, समीर सौरभ बिलुंग और रजत सोरेंग कीबोर्ड पर राज करते हैं. जबकि मांदर और ड्रम पर विकास कुल्लू और संजीत क्लेबिन लिंडा के थाप से माहौल लोकरंगी बन जाता है.
ये गाने ‘आओ चलें’… यू ट्यूब पर भी सुना जा सकता है. इसे तकरीबन 3.2 मिलियन लोगों ने सुना है. यह बैंड खड़िया लोकगीतों के साथ ही, अन्य आदिवासी भाषाओं खास तौर पर ‘नागपुरी लोकगीतों’ में भी प्रदर्शन करता रहा है. स्थानीय प्रदर्शन के अलावे राज्य के बाहर पश्चिम बंगाल, ओड़िशा आदि में भी बैंड की आवा-जाही नियमित रूप से बनी रही है. पिछले तीन सालों से आकाशवाणी रांची के लिए काम करते रहे हैं.
लोकगीत समूह की रचनाएं होती हैं. सामुदायिक रूप से ही ये फलते-फूलते हैं और अभिव्यक्ति भी समूह में ही पाते हैं. समूह के इस उद्देश्य को तिरियो बैंड बखूबी लागू करता आया है. बैंड के निदेशक निरंजन चिंता व्यक्त करते हैं कि कोई भी समुदाय ऐसा न हो जाए कि जहां लोकगीत ही न बचे.
डीजे के जमाने में यह संभव है कि समूह का व्यक्ति लोकगीत की रचना ही न करे. लेकिन यह बैंड इस खतरे को जानता है, इसलिए उसने युवा लोक गायकों की एक लंबी फेहरिस्त अपने पास रखी है ताकि हर कोई गीतों की रचना करता रहे.

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