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कम-से-कम हो प्लास्टिक का उत्पादन

रवि अग्रवालडायरेक्टर, टॉक्सिक्स लिंक आज इंसानी जीवन के हर हिस्से में प्लास्टिक शामिल है. विडंबना यह है कि यह जानते हुए भी कि प्लास्टिक का इस्तेमाल खतरनाक है, फिर भी हम इसमें कमी करने की कोई कोशिश नहीं कर रहे हैं. बल्कि प्लास्टिक पर हमारी निर्भरता दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है. सबसे पहले सरकार […]

रवि अग्रवाल
डायरेक्टर, टॉक्सिक्स लिंक

आज इंसानी जीवन के हर हिस्से में प्लास्टिक शामिल है. विडंबना यह है कि यह जानते हुए भी कि प्लास्टिक का इस्तेमाल खतरनाक है, फिर भी हम इसमें कमी करने की कोई कोशिश नहीं कर रहे हैं. बल्कि प्लास्टिक पर हमारी निर्भरता दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है. सबसे पहले सरकार को इसका उत्पादन कम करने पर ध्यान देना चाहिए, साथ ही समाज में एक जागरूकता अभियान भी चलाये कि प्लास्टिक के खतरे क्या हैं और लोग इसके इस्तेमाल से कैसे बचें. प्लास्टिक का कूड़ा पानी को रोकता है और जमीन की उर्वरता को कमजोर करता है.

पचास प्रतिशत प्लास्टिक का इस्तेमाल वस्तुओं की पैकेजिंग में होता है. यह उपभोक्तावाद की बढ़ती प्रवृत्ति का नतीजा है और हद से ज्यादा हमारे सुविधाभोगी होने का परिणाम भी. तरह-तरह के प्लास्टिक उत्पादन में तरह-तरह के मेटल और रसायनों का इस्तेमाल होता है. ये रसायन हमारे जीवन के लिए बहुत घातक होते हैं. इसलिए सबसे पहला कदम प्लास्टिक उत्पादन को कम करने का उठाना चाहिए.
या फिर सरकार कंपनियों को निर्देश दे कि वे उसी प्लास्टिक से पैकेजिंग करें, जिसका रिसाइकिल हो सके. जिस प्लास्टिक का रिसाइकिल न हो सके, उससे पैकेजिंग पर पूरी तरह से प्रतिबंध हो, तो प्लास्टिक से उत्पन्न होनेवाले कुछ खतरों को कम किया जा सकता है. हमारा समाज सुविधाभोगी है, इसलिए वह प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम नहीं कर सकता. इसलिए जरूरी है कि सरकार ही उसके उत्पादन पर लगाम लगाये.
हम लोगों को भी कोशिश करनी चाहिए कि हम आंख बंद करके इस्तेमाल न करें, बल्कि इसके बारे में जानकारी रखें. यहां मीडिया की भूमिका बढ़ जाती है. मीडिया के जरिये लोगों को ज्यादा से ज्यादा जागरूक किया जा सकता है. लोग कहते हैं कि सरकार कंपनियों से टैक्स लेती है, इसलिए वह प्लास्टिक के उत्पादन पर रोक नहीं लगा पायेगी.
लेकिन, यूरोप में भी सरकारें प्लास्टिक कंपनियों पर टैक्स लगाती हैं, लेकिन वहां प्लास्टिक उत्पादन पर नियंत्रण के साथ मानक तय है िक वह हानिकारक नहीं होना चाहिए. यह तो हमारी सरकार की इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है कि वह प्लास्टिक कंपनियों से टैक्स भी ले और उनके उत्पादन पर नियंत्रण भी रखे, ताकि हानिकारक और घातक रसायनों से युक्त प्लास्टिक का निर्माण न हो सके.
क्या कहता है प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन कानून
2016 के प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन कानून, केंद्र सरकार द्वारा प्लास्टिक कचरे का पृथक्करण, संग्रहण, प्रसंस्करण और उसके निबटान के लिए बुनियादी ढांचा स्थापित करने हेतु स्थानीय निकायों को उत्तरदायी बनाता था.
हालांकि वर्ष 2018 में सरकार ने इस कानून को संशोधित किया. संशोधित कानून के अनुसार, उत्पादकों (निर्माता, आयातक और प्लास्टिक पैकेजिंग का उपयोग करनेवाले) के साथ-साथ ब्रैंड मालिकों पर अपने उत्पाद द्वारा उत्पन्न किये जाने वाले कचरे को एकत्रित करने का दायित्व होगा.
प्रतिबंध को लेकर राज्य सरकारें गंभीर नहीं
हमारे देश में 50 माइक्राे से कम के प्लास्टिक कैरी बैग पर पूर्ण प्रतिबंध के बावजूद देश के अनेक हिस्सों में इसका धड़ल्ले से उपयोग हो रहा है. यहां तक कि राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशाें इसकी उचित निगरानी के लिए कोई व्यवस्था नहीं है.
प्लास्टिक कचरे की समस्या से निपटने के लिए 30 अप्रैल, 2019 तक सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को प्लास्टिक कचरा प्रबंधन कानून 2016 के आधार एक योजना प्रस्तुत करने का आदेश नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने दिया था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इससे नाराज ट्रिब्यूनल ने 25 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को फटकार लगायी है.
सिंगल यूज प्लास्टिक वितरण में पूर्वोत्तर एशिया आगे
आइसीआइएस सप्लाइ व डिमांड डाटाबेस (2014) की रूपांतरित रिपोर्ट कहती है कि सिंगल यूज या डिस्पोजेबल प्लास्टिक (कम गुणवत्ता वाले प्लास्टिक, जिनका दुबारा इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है) दुनिया में कुल उत्पादित प्लास्टिक का 50 प्रतिशत हिस्सा है.
इस प्लास्टिक का सबसे ज्यादा 26 प्रतिशत वितरण पूर्वोत्तर एशिया (नॉर्थ इस्ट एशिया) द्वारा किया गया. वहीं उत्तरी अमेरिका में इसका वितरण 21 प्रतिशत, पश्चिम एशिया में 17, यूरोप में 16, एशिया और प्रशांत क्षेत्र में 12, मध्य व दक्षिण अमेरिका में चार, पूर्व सोवियत संघ में तीन अौर अफ्रीका में एक प्रतिशत हुआ.
इन बीमारियों का खतरा
प्लास्टिक सूप फाउंडेशन का कहना है कि प्लास्टिक में मौजूद रसायन के कारण न सिर्फ हमें कैंसर, हार्ट फेलियर, अल्जाइमर, डिमेंशिया, पार्किंसंस, गठिया, बांझपन जैसी समस्यायें हो सकती हैं, बल्कि गर्भ में पल रहे बच्चों को भी इससे नुकसान पहुंच सकता है. क्योंकि समुद्र में पहुंचने वाला प्लास्टिक हमारे भोजन चक्र को प्रभावित कर रहा है. हेल्थ इश्यूज इंडिया का कहना है कि लैंडफिल साइटों पर इसके प्रदूषण से भूजल, वायु और धरती प्रदूषित हो रहे हैं, जो हमें अस्वस्थ बना रहे हैं.
बड़े प्रयासों की दरकार
प्लास्टिक प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक को समाप्त करना, जीवाश्म ईंधन-आधारित सामग्रियों के विकल्प को बढ़ावा देना, प्लास्टिक के सौ प्रतिशत रिसाइक्लिंग को बढ़ावा देना होगा. साथ ही, कॉरपोरेट व सरकार की जवाबदेही और प्लास्टिक से संबंधित मानव व्यवहार में भी बदलाव लाना होगा. इन छोटे-छोटे प्रयासों के साथ कुछ बड़े प्रयासों की भी दरकार होगी.
एक वैश्विक ढांचा बनाना और जमीनी स्तर पर इसे आंदोलन की शक्ल देना.
दुनिया भर में नागरिकों को शिक्षित करना, जुटाना और उन्हें सक्रिय करना, ताकि वे सरकारों और निगमों से प्लास्टिक प्रदूषण को नियंत्रित और साफ करने की मांग कर सकें. साथ ही वे प्लास्टिक प्रदूषण काे व्यक्तिगत जिम्मेदारी मानकर उसके उपयोग को रोकें, कम करें, दुबारा उपयोग करें और उसे रिसाइकिल करें.
स्थानीय सरकारी नियामक और अन्य प्रयासों को बढ़ावा देना.
एकल उपभोग वाले प्लास्टिक पर रोक के प्रयास
भारत में एकल उपभोग वाले प्लास्टिक के इस्तेमाल पर रोक को लेकर कदम उठाये जा रहे हैं. ट्रेडर्स बॉडी कंफेडेरेशन ऑफ आॅल इंडिया ट्रेडर्स (सीएआइटी) ने एक खुला पत्र लिखकर कॉरपोरेट्स और मैन्युफैक्चरर से पैकेजिंग के लिए एकल उपभोग वाले प्लास्टिक का उपयोग न करने का आग्रह किया है.
दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर अनिल बैजल ने अपने प्राधिकरण से राज्य में इसके उपभोग को खत्म करने की तैयारी कहने को कहा है. एयर इंडिया ने भी घोषणा की है कि वह बैग, कप व स्ट्रॉ जैसे एकल उपभोग वाले प्लास्टिक उत्पाद को अपने सभी उड़ानों में प्रतिबंधित करेगा.
अमूल ब्रैंड ने भी कहा है कि वह दूध के पैकेट के लिए रिसाइकिल प्लास्टिक का इस्तेमाल जारी रखेगा. लोकसभा सचिवालय ने भी पानी की बोतल और दुबारा इस्तेमाल नहीं किये जा सकने वाले प्लास्टिक पर संसद में प्रतिबंध लगा दिया है. इसके साथ ही रेलवे भी सभी स्टेशनों और ट्रेन में एकल उपभोग वाले प्लास्टिक उत्पादों पर प्रतिबंध की तैयारी में है.
वैश्विक स्तर पर 6.3 अरब टन प्लास्टिक कचरा
400 साल लगता है, एक प्लास्टिक बॉटल को अपघटित यानी समाप्त
होने में.
6.3 अरब टन प्लास्टिक कचरा वैश्विक स्तर पर एकत्रित हो चुका है.
12 अरब टन प्लास्टिक संभवत: 2050 तक धरती में समा चुके होंगे.
79 प्रतिशत प्लास्टिक धरती और प्राकृतिक संसाधनों (नेचुरल एनवॉयरनमेंट) मे हैं.
स्रोत : स्टडी इन साइंस एडवांसेज
प्रतिवर्ष पांच ट्रिलियन प्लास्टिक बैग का उपभोग
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण की एक रिपोर्ट कहती है कि वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष पांच ट्रिलियन से अधिक प्लास्टिक बैग का उपभोग होता है. वहीं वैश्विक स्तर पर उत्पादित प्लास्टिक का महज नौ प्रतिशत ही रिसाइकिल किया जाता है, जबकि तकरीबन 12 प्रतिशत को जला दिया जाता है.

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