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चंद्रयान-2 : संपर्क टूटा है, संकल्प नहीं, ऑर्बिटर अभी भी चांद की परिक्रमा में

जो शोर के बीच संगीत सुन सकता है, वही बड़ी उपलब्धियां अर्जित कर सकता है. चांद की सतह से मात्र 2.1 किलोमीटर पहले लैंडर ‘विक्रम’ से इसरो नियंत्रण कक्ष का संपर्क टूटने की घटना को भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक विक्रम साराभाई की इस उक्ति के माध्यम से देखा जाना चाहिए. चंद्रयान अभियान के माध्यम […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 8, 2019 2:13 AM

जो शोर के बीच संगीत सुन सकता है, वही बड़ी उपलब्धियां अर्जित कर सकता है. चांद की सतह से मात्र 2.1 किलोमीटर पहले लैंडर ‘विक्रम’ से इसरो नियंत्रण कक्ष का संपर्क टूटने की घटना को भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक विक्रम साराभाई की इस उक्ति के माध्यम से देखा जाना चाहिए.

चंद्रयान अभियान के माध्यम से अनुसंधान की दिशा में अनेक मील के पत्थर पार किये जा चुके हैं और ऑर्बिटर के सक्रिय रहने के साथ यह यात्रा अब भी जारी है. लैंडर से संपर्क टूटना एक अवसर है, जिसके अनुभव व सबक से हमारे वैज्ञानिकों को वर्तमान और भविष्य की योजनाओं में बड़ी मदद मिलेगी.
भारत के दूसरे चंद्र अभियान की खासियत
भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो द्वारा चंद्रयान-2 को भारत में निर्मित जीएसएलवी मार्क 3 (जियोसिंक्रोनस सेटेलाइट लॉन्च व्हिकल मार्क-3) रॉकेट के जरिये लांच किया गया था. यान की लैंडिंग के दौरान आखिरी 15 मिनट काफी चुनौतीपूर्ण थे. आखिरकार चंद मिनट पहले इससे इसरो का संपर्क टूट गया.
इस अभियान के तीन मॉड्यूल्स थे – लैंडर, ऑर्बिटर और रोवर. लैंडर का नाम विक्रम, रोवर का प्रज्ञान रखा गया था. इस अभियान के माध्यम से चंद्रमा की चट्टानों का अध्ययन करना और खनिज तत्वों की खोज शामिल थी. इस अंतरिक्ष यान का वजन 3.8 टन था.
विविधताओं का अध्ययन मुख्य लक्ष्य
चंद्रमा के अध्ययन से पृथ्वी के प्रारंभिक इतिहास और आंतरिक सौरमंडल के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है. चंद्रमा की उत्पत्ति और विकास का पता लगाने के लिए इसकी सतह की संरचना और विविधताओं का अध्ययन जरूरी है.
चंद्रमा पर जल की मौजूदगी के बारे में जानने के लिए चंद्रयान-1 द्वारा खोजे गये पानी के अणुओं के साक्ष्य के बारे में और जानकारी जुटानी होगी. इसके लिए चंद्रमा की सतह पर, सतह के नीचे और दसवें चंद्र बहिर्मंडल में बिखरे जल कण के अध्ययन की आवश्यकता है. चंद्रयान-2 के माध्यम से इन सब वैज्ञानिक जानकारियों को हासिल करने का एक बड़ा भारतीय प्रयास किया गया.
दक्षिणी ध्रुव को जानने की कोशिश
चंद्रयान-2 की लैंडिंग के लिए चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव को चुना गया. चंद्रमा के हिस्से के बारे में दुनिया अभी तक अनजान है.
इसरो की मानें तो चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस हिस्से में छाया है और चंद्रमा का जो सतह क्षेत्र छाया में रहता है, वह उत्तरी ध्रुव की तुलना में बहुत ज्यादा बड़ा है. इसी छाया वाले क्षेत्र में पानी की उपस्थिति की संभावना है. इसके अलावा, दक्षिण ध्रुव क्षेत्र में क्रेटर हैं. ये क्रेटर कोल्ड ट्रैप हैं, जिनके पास प्रारंभिक सौरमंडल का जीवाश्म अभिलेख यानी फॉसिल रिकॉर्ड उपलब्ध है.
हमें बहुत अधिक चिंतित नहीं होना चाहिए. मेरी राय में इस अभियान ने अपने 95 प्रतिशत उद्देश्य को पूरा कर लिया है.
– जी माधवन नायर, पूर्व प्रमुख, इसरो
चंद्रयान-2 ऑर्बिटर के आठ पेलोड्स
ऑर्बिटर में टेरेन मैपिंग कैमरा 2 (टीएमसी 2) है, जिसका प्राथमिक उद्देश्य चंद्रमा की सतह का मानचित्रण करना है. इसके द्वारा इकट्ठा किये गये डेटा से चंद्रमा के विकास कालक्रम को जानने में मदद मिलेगी, साथ ही चंद्रमा की सतह का 3डी मानचित्र भी तैयार किया जा सकेगा.
इसमें चंद्रयान-2 लार्ज एरिया सॉफ्ट एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (क्लास) लगा है. क्लास चंद्रमा के एक्स-रे प्रतिदीप्ति वर्णक्रम को मापेगा. मुख्य रूप से इसका कार्य चंद्रमा पर मौजूद तत्वों जैसे- मैग्नीशियम, एल्युमिनियम, सिलिकॉन, कैल्शियम, टाइटेनियम, आयरन और सोडियम आदि का पता लगाना है.
इसमें सोलर एक्स-रे मॉनिटर (एक्सएएम) संलग्न है. इसका मुख्य कार्य सूर्य और उसके कोरोना द्वारा निकलनेवाली एक्स-किरणों का पर्यवेक्षण करना है. साथ ही सूर्य की विकिरण की तीव्रता को मापना और क्लास को सपोर्ट करना है.
चंद्रयान-2 में लगा ऑर्बिटर हाई-रिज्योलूशन कैमरा (ओएचआरसी) का कार्य लैंडिंग साइट की हाई रिज्योलूशन तस्वीरों को इकट्ठा करना है.
इसमें लगा इमेजिंग आईआर स्पेक्ट्रोमीटर (आईआईआरएस) का मुख्य कार्य चंद्रमा के वैश्विक खनिज और अस्थायी मानचित्रण करना है.
चंद्रयान-2 में ड्युअल फ्रिक्वेंसी सिंथेटिक अपर्चर राडार (डीएफएसएआर) का कार्य ध्रुवीय क्षेत्रों में पानी-बर्फ का मात्रात्मक अनुमान, रेजोलिथ की मोटाई और इसके फैलाव का अनुमान लगाना है.
चंद्रयान-2 एटमॉस्फेरिक कंपोजिशनल एक्सप्लोरर 2 (चेस 2)का मुख्य उद्देश्य चंद्रमा की संरचना, बर्हिमंडल और परिवर्तनशीलता वितरण का वैज्ञानिक अध्ययन करना है.
ड्युअल फ्रिक्वेंसी रेडियो साइंस (डीएफआरएस) का मुख्य उद्देश्य चंद्रमा के आयनमंडल में इलेक्ट्रॉन घनत्व के अस्थायी विकास का अध्ययन करना है.
चंद्रमा की सतह पर पहुंचने से पहले विक्रम लैंडर से टूटा संपर्क
चंद्रमा की सतह पर विक्रम लैंडर के उतरने से चंद मिनट पहले ही चंद्रयान-2 के साथ संपर्क टूट गया. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष के सिवन के अनुसार, सब कुछ निर्धारित योजना के अनुसार हो रहा था, लेकिन सतह से 2.1 किलोमीटर की दूरी पर विक्रम लैंडर के साथ अचानक संपर्क टूट गया.
उन्होंने कहा कि पूरे मामले में डेटा की समीक्षा की जा रही है. चंद्रमा की सतह पर 6 सितंबर की रात्रि 1:30 बजे से 2:30 बजे के बीच विक्रम को लैंड करना था.
ऑर्बिटर सफलता से कर रहा चंद्रमा का परिक्रमण
इसरो के मुताबिक, मिशन में मात्र पांच प्रतिशत का ही नुकसान हुआ है, शेष 95 फीसदी मिशन सलामत है, जो कि चंद्रयान-2 ऑर्बिटर है. यह सफलता पूर्वक चंद्रमा का परिक्रमण कर रहा है. नासा स्पेसफ्लाइट के लेखक और मैनेजिंग एडिटर क्रिश जी इससे सहमति जताते हुए कहते हैं कि मिशन में ऑर्बिटर सबसे अहम है, जिस पर 95 प्रतिशत प्रयोग निर्भर है.
क्रिश जी के मुताबिक केवल विक्रम ही सफलतापूर्वक लैंड नहीं हो पाया है, जबकि चंद्रमा की कक्षा में ऑर्बिटर परिक्रमण कर रहा है और मिशन को आगे बढ़ा रहा है. इसे पूरी तरह से असफलता के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.
ऑर्बिटर लापता लैंडर की भी भेज सकता है तस्वीर
अगर हम मिशन पेलोड्स को देखें, तो मौजूदा हालात को आसानी से समझा जा सकता है. चंद्रयान-2 ऑर्बिटर चंद्रमा का परिक्रमा कर रहा है, जो इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क (आईडीएसएन) से संवाद स्थापित कर पाने में सक्षम है.
इस मिशन की अवधि एक वर्ष है. इस अवधि के दौरान ऑर्बिटर चंद्रमा की कई तस्वीरें ले सकता है और उसे इसरो को भेज सकता है. यहां तक कि ऑर्बिटर लैंडर की भी तस्वीर ले कर भेज सकता है, जिससे पूरे घटना की बारीकी से पड़ताल की जा सकती है.
दक्षिणी ध्रुव पर मिशन भेजनेवाला भारत पहला देश
इसरो के चंद्रयान-2 के लिए चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव को चुना गया था. यहां विक्रम लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग कराना था. निर्धारित लक्ष्य के काफी करीब पहुंचने के बाद सतह से मात्र 2.1 किलोमीटर की दूरी पर लैंडर से संपर्क टूट गया. चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर मिशन भेजनेवाला भारत दुनिया का पहला देश है. अब तक ज्यादातर मिशन चंद्रमा की मध्यरेखा के आस-पास ही उतरे हैं.
अभी तक अमेरिका, रूस और चीन ही चंद्रमा पर किसी अंतरिक्ष यान की सॉफ्ट लैंडिंग करा सके हैं. विक्रम लैंडर को पहले चांद की कक्षा में मौजूद ऑर्बिटर से अलग करके उसे चंद्रमा की सतह की ओर ले जाना था. लैंडर के सुरक्षित उतर जाने के बाद प्रज्ञान रोवर को सतह पर घूमना और वैज्ञानिक पड़ताल करना था.
उम्मीद अब भी बरकरार
विक्रम के साथ संपर्क टूट जाने के बाद भी पूरी तरह से उम्मीद खत्म नहीं हुई है. संभावना जतायी जा रही है कि लैंडर से पुन: संपर्क स्थापित हो सकता है.
अगर इसरो का प्रज्ञान रोवर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में स्थित विशाल गड्ढों से पानी के साक्ष्य जुटा पाता, तो यह निश्चित ही भारत नहीं, बल्कि दुनिया के लिए बड़ी खोज होती. साल 2024 में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी चंद्रमा के दक्षिणी हिस्से पर मिशन भेजने की योजना बना रहा है. चंद्रयान-2 मिशन की कामयाबी नासा के लिए भी मददगार साबित हो सकती थी.
भारत का पहला चंद्र अभियान
भारत का पहला चंद्र अभियान, मून इंपैक्ट प्रोब (चंद्रयान-1) 22 अक्तूबर, 2008 को लॉन्च किया गया था. यह यान चंद्र सतह से 100 किमी की ऊंचाई पर चंद्रमा की परिक्रमा कर रहा था. यह भारत, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, स्वीडन और बुल्गारिया में बने 11 वैज्ञानिक उपकरण अपने साथ लेकर गया था. इस अभियान के सभी प्रमुख उद्देश्यों के सफलतापूर्वक पूरा होने के बाद, मई 2009 में कक्षा को 200 किमी तक बढ़ा दिया गया था.
इस यान ने चंद्रमा के चारों ओर 3400 से अधिक बार परिक्रमा की. चंद्रयान-1 ने चांद पर पानी होने की पुष्टि की थी. साथ ही यह भी बताया था कि चंद्र सतह पर हाइड्रॉक्सिल आयनों और पानी के अणुओं के निर्माण की एक सतत प्रक्रिया है. इस अभियान का समापन तब हुआ जब 29 अगस्त, 2009 को इस यान का धरती के साथ संचार-संपर्क समाप्त हो गया.

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