हिंदी साहित्य जगत में बिहार के गोपालगंज की शुरू से ही एक अलग पहचान रही है. यहां के साहित्यकारों, लेखकों व कवियों ने अपनी रचनाओं से साहित्य को एक नया आयाम दिया है. इसी माटी में पल्लवित कुछ युवा कवि आज अपनी विलक्षण प्रतिभा से न सिर्फ अपने देश बल्कि विदेशों में भी हिंदी का परचम लहरा रहे हैं. इन युवा कवियों ने गोपालगंज की धरती को गौरवान्वित किया है.
गोपालगंज : विजयीपुर प्रखंड के पटखौली गांव निवासी डॉ अनिल चौबे आज देश के शीर्ष हास्य कवियों में शुमार हैं. अपनी उत्कृष्ट रचनाओं व छंदबद्ध हास्य, व्यंग के कविताओं की बदौलत उन्होंने विदेशों में भी हिंदी का परचम लहरया है. भारत-पाक के बीच तल्ख रिश्तों के बीच डॉ चौबे की कविता ‘जितना तू बढ़ चढ़कर बोलता है पाक प्यारे, उतने भारत के कुत्ते भौंक देते है.’ ने खुब बाहबाही बटोरी है. पिछले दो दशक से हास्य-व्यंग कवि के रूप में डॉ अनिल चौबे एक हजार से अधिक मंचों पर काव्य पाठ कर चुके हैं. यूके, दक्षिण अफ्रीका, दुबई, बैंकॉक सहित आधा दर्जन से अधिक देशों में अपनी हास्य कविताओं को लेकर छाये हुए हैं. 16 से 20 अक्तूबर तक ओमान में अप्रवासी भारतीयों के आयोजन में काव्य पाठ करेंगे. विभिन्न टीवी चैनलों व सोशल मीडिया पर डॉ अनिल चौबे दर्शकों के सबसे चहेते हास्य कवि बन चुके हैं. देश के बड़े मंचों से काव्यशेखर, प्रयागरत्न, स्व योगेश्वर दयाल वर्मा स्मृति प्रणाम सम्मान, स्माइल गुरु आदि सम्मानों से इन्हें नवाजा जा चुका है. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से एमए के साथ डॉक्टरेट की शिक्षा ग्रहण करने के बाद काशी को ही अपना कर्म भूमि बना चुके है.
कान से होकर कलेजे तक दस्तक देतीं अनूप की कविताएं
पंचदेवरी: पंचदेवरी प्रखंड के लोहटी निवासी अनूप पांडेय ने आज संवेदनशील कविताओं व मर्यादित प्रस्तुति से देश के युवा कवियों में अपनी पहचान बना ली है. ऑल इंडिया रेडियो व दर्जन भर टीवी चैनलों पर अपनी रचना प्रस्तुत कर चुके अनूप युवाओं के चहेते बनते जा रहे हैं. शृंगार रस व मानवीय संवेदनाओं पर आधारित उनकी कविताएं सोशल मीडिया पर छायी हुई हैं. हाल ही में दादा-पोते के रिश्ते पर आधारित उनकी कविता पूरे देश में चर्चित रही. मर्मस्पर्शी शब्दों से रिश्तों को आवाज देती अनूप की यह कविता कान से कलेजे तक दस्तक देती है. 2009 में मैट्रिक की परीक्षा देने के बाद वे रोजी-रोटी की तलाश में दिल्ली गये, लेकिन भोजपुरिया माटी की साहित्यिक संवेदनाएं उन्हें कुरेदती रहीं. अंततः वे सीए की तैयारी छोड़ काव्य पाठ करने लगे. हमार टीवी चैनल पर उन्होंने सबसे पहले काव्य पाठ किया. 2015 में भोजपुरी एकेडमी दिल्ली द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन में काव्य पाठ करने के बाद देश के शीर्ष मंचों पर अपनी जगह बना ली. वर्तमान में दिल्ली में एक हिंदी दैनिक अखबार से जुड़े अनूप अपनी लेखनी से हिंदी साहित्य को भी सिंचित कर रहे हैं. उन्हें मदन मोहन मालवीय पत्रकारिता सम्मान, गाजियाबाद गौरव सहित दर्जन भर से अधिक सम्मानों से नवाजा जा चुका है.
अस्तित्व की गजलों की दीवानी है युवा पीढ़ी
हथुआ: युवा साहित्यकार अस्तित्व अंकुर की गजलें आज पूरे देश पढ़ी जा रही हैं. आज की युवा पीढ़ी उनकी गजलों की दीवानी है. हिंदी व भोजपुरी की उत्कृष्ट रचनाओं से इनको काफी लोकप्रियता मिली है. रेडियो व विभिन्न टीवी चैनलों के साथ-साथ देश के बड़े साहित्यिक मंचों पर इनकी कविताएं व गजलें सुनी जा रही हैं. वे हरियाणा में एक प्राइवेट कंपनी में प्रबंधक के पद पर कार्यरत है, लेकिन साहित्य उनके रग-रग में समाहित है. इस युवा शायर ने अपनी पहली रचना ‘तुम्हारा दर्द भी क्या-क्या कमाल करता है, रुला के आंख में मोती बहाल करता है. तुम्हारा रेत पर भी नाम अब लिखूं कैसे, मैं जानता हूं समंदर बवाल करता है’ से ही अपनी विलक्षण प्रतिभा का परिचय दे दिया. दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद 2013 से अस्तित्व काव्य पाठ करना शुरू किये. इतने कम समय में ही इन्होंने एक संयुक्त और एक एकल काव्य संग्रह की पुस्तकें साहित्य जगत को दी है. अस्तित्व की पुस्तक ‘मंजिलें उनकी, रास्ता मेरा’ को देश के बड़े साहित्यकारों ने सराहा है. खासकर व्यंगात्मक लहजे में राजनीतिक ढर्रों पर प्रहार व हृदय भेदती गजलों के लिए अस्तित्व को काफी प्रसिद्धि मिली है.
रोजगार, विज्ञान व न्यायपालिका की भाषा बने हिंदी : डॉ मैनेजर पांडेय
पंचदेवरी : हिंदी की वर्तमान दशा और दिशा दोनों खराब है. इसका कारण यह है कि आज तक यह देश में रोजगार, विज्ञान व न्यायपालिका की भाषा नहीं बन पायी. साहित्य की भाषा तो यह पहले भी थी, आज भी है और आगे भी रहेगी. उक्त बातें देश के हिंदी के प्रख्यात समालोचक व जेएनयू के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ मैनेजर पांडेय ने अपने गांव गोपालगंज जिले के पंचदेवरी प्रखंड के लोहटी में हिंदी की वर्तमान दशा व दिशा पर चर्चा करते हुए पत्रकारों से कही. उन्होंने कहा कि जितनी भी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय कंपनियां हैं, वे अंग्रेजी पढ़नेवालों को ही महत्व देती हैं. इस वजह से पढ़ाई करने वाले लड़के हिंदी को छोड़कर अंग्रेजी में प्रवीणता प्राप्त करने की कोशिश करते हैं. इसे देखते हुए सरकार को यह चाहिए कि हिंदी को भी नौकरी की भाषा बनाये. आज का युग विज्ञान का है. ऐसी स्थिति में हिंदी विज्ञान की भाषा होनी चाहिए. विज्ञान की किताबें, जो हिंदी में अनुवाद की गयी हैं, उस अनुवाद का व्यावहारिक हिंदी से कोई संबंध नहीं है. कहीं भी कोर्ट में हिंदी का प्रयोग नहीं किया जाता है. ऐसी स्थिति में हिंदी की प्रतिष्ठा बढ़ने का सवाल ही नहीं है. हिंदी स्वाधीनता आंदोलन की भाषा थी. महात्मा गांधी ने इस आंदोलन से जोड़कर इसे राष्ट्रीय फलक देने का प्रयास किया था. हिंद स्वराज में उन्होंने लिखा भी था कि ‘हिंदी ही देश की राष्ट्रभाषा बन सकती है’. लेकिन, उसके बाद इस पर कोई पहल नहीं की गयी. जिस तरह पितृपक्ष में हम पितरों को याद करते हैं और फिर भूल जाते हैं, वहीं स्थिति हिंदी की भी है. हर साल 14 सितंबर को हम हिंदी दिवस मनाते है और उसके बाद हिंदी के प्रति अपने दायित्वों को भूल जाते हैं. हिंदी प्रदेशों में ही हिंदी का अपमान होता है. यह चिंता का विषय है. सबको इस पर ध्यान देने की जरूरत है, तभी हिंदी की प्रतिष्ठा बच पायेगी.
कॉलेजों में हिंदी दिवस पर आयोजित होगा सेमिनार
गोपालगंज . जयप्रकाश विश्वविद्यालय ने हिंदी दिवस के मौके पर सभी कॉलेजों में सेमिनार आयोजित करने का निर्देश जारी किया है. महाविद्यालयों में हिंदी दिवस के मौके पर होनेवाले कार्यक्रम में छात्र-छात्राएं शामिल होंगे. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो हरिकेश सिंह ने बताया कि सेमिनार में हिंदी भाषा के विकास पर चर्चा होगी. इधर, कमला राय कॉलेज, महेंद्र महिला कॉलेज, बीपीएस कॉलेज भोरे, गोपेश्वर कॉलेज हथुआ, एसएमडी कॉलेज जलालपुर में हिंदी दिवस को लेकर तैयारी शुरू हो गयी है. बीपीएस कॉलेज के प्राचार्य डॉ विजय कुमार ने बताया कि हिंदी दिवस को लेकर आयोजित संगोष्ठी में बेहतर प्रदर्शन करनेवाले छात्र-छात्राओं को सम्मानित किया जायेगा.