150 साल बस सात दिनों बाद महात्मा गांधी के जन्म के 150 वर्ष पूरे हो जायेंगे. वही गांधी, जिनके बारे में मशहूर वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टाइन ने कहा था कि “बहुत मुमकिन है कि आनेवाली पीढ़ियां शायद ही इस बात पर यकीन करें कि हाड़-मांस का एक ऐसा इंसान इस धरती पर मौजूद था.” आइए इस अवसर पर प्रभात खबर की खास प्रस्तुति-शृंखला के जरिये याद करें मोहन से महात्मा बने गांधी को.
कक्षा में ईमानदारी की हुई जीत
गांधी याद करते थे: “एक घटना है, जो हाइ स्कूल के मेरे पहले साल में इम्तिहान के दौरान घटित हुई थी और जो दर्ज करने लायक है. एजुकेशनल इंस्पेक्टर मिस्टर गाइल्स निरीक्षण के लिए स्कूल में आये थे. उन्होंने हिज्जे के अभ्यास के लिए हमें पांच शब्द दिये थे. इनमें से एक शब्द था- Kettle.
मैं इसका गलत हिज्जे लिख रहा था. अध्यापक ने धीरे से अपने जूते की नोक चुभाते हुए मेरी सहायता करने की कोशिश की, लेकिन मैं उसका अनुसरण नहीं कर सका. वह चाहते थे कि मैं पड़ोसी छात्र की स्लेट को देखकर उस हिज्जे को अपनी स्लेट पर उतार लेता, लेकिन यह बात मेरी सोच से परे थी, क्योंकि मैं सोचता था कि अध्यापक वहां इसलिए थे, ताकि हम लोग नकल न कर सकें.
नतीजा यह हुआ कि मेरे अलावा हर लड़के ने सारे शब्दों की सही हिज्जे लिखी थी. सिर्फ मैं ही बेवकूफ निकला था. बाद में उस अध्यापक ने मुझे मेरी उस बेवकूफी का अहसास दिलाने की कोशिश की, लेकिन उसका कोई फायदा नहीं हुआ. मैं ‘नकल करने की कला’ कभी नहीं सीख सका.”
(साभार: गांधी एक सचित्र जीवनी, लेखक: प्रमोद कपूर)