अनूठी है आदिवासी बच्चों की नामकरण परंपरा
राजेंद्र प्रसाद महतो ‘राजेन’ जनजाति समाज के लोगों का नाम ही आदिवासीयत की विशिष्ट पहचान है. सुदूरवर्ती जंगल व पहाड़ी की तराई में प्राचीन काल से निवास करने वाले कृषिमूलक जनजाति के नामकरण की अपनी परंपरा है. आदिवासी समुदाय का नामकरण प्रकृति से जुड़े पर्व-त्योहार, शारीरिक बनावट एवं अपने पूर्वजों की स्मृति में होता है. […]
राजेंद्र प्रसाद महतो ‘राजेन’
जनजाति समाज के लोगों का नाम ही आदिवासीयत की विशिष्ट पहचान है. सुदूरवर्ती जंगल व पहाड़ी की तराई में प्राचीन काल से निवास करने वाले कृषिमूलक जनजाति के नामकरण की अपनी परंपरा है. आदिवासी समुदाय का नामकरण प्रकृति से जुड़े पर्व-त्योहार, शारीरिक बनावट एवं अपने पूर्वजों की स्मृति में होता है. नामकरण के साथ दिन व महीने का समावेश रहता है.
जनजाति के नामकरण में जन्म राशि व ज्योतिष गणना की कोई जगह नहीं है. परिवार के बुजुर्ग व माता पिता के द्वारा दिया गया नामकरण श्रेष्ठ व सर्वमान्य माना जाता है. पूर्वजों की स्मृति में दादा व परदादा के नाम से लड़का का नामकरण की परंपरा ‘हो जनजाति’ में आज भी कायम है. बच्चों के रंग-रूप, चाल-चलन, आकार-प्रकार, स्वभाव आदि को भी आधार मानकर नामकरण करने की अति प्राचीन प्रथा है. जनजाति संस्कृति में व्यक्ति का नाम के अलावे कई डाकनाम होते हैं.
इस लिए एक बच्चे के कई नाम होते हैं. जन्म में बड़े, मझले व छोटे को भी नामकरण का एक आधार माना जाता है. जैसे माता पिता का सबसे बड़ा बेटा को बड़का व बहु को बड़की, छोटा बेटा को छटका व छुटु बहू को छटकी तथा मझला व साइझला को क्रमश: माइझला, माझली, साइझला, साझली के नाम से जाने जाते हैं. संथाल समुदाय में यह परंपरा खासे प्रचलित है, यही कारण है कि आदिवासी बहुल गांवों में एक ही नाम के अनेक महिला व पुरुष पाये जाते हैं.
परब-तेहार : करम, जितुआ, सहराई, मकर, धरम पूजा आदि परब के साथ नामकरण संस्कार गुंथा है. करम परब के जाउआ उठने के बाद व पूजा के भासान तक किसी बच्चे का जन्म होता है, तो उसका नाम करमु, करम, करमी, डाली, डाला आदि रखा जाता है तथा उस परिवार में करम उत्सव का दौर प्रारंभ हो जाता है.
जितिआ में जन्म हो तो जितु, जितेन, जातेन, जितन आदि नाम रखा जाता है तथा घर में जितिआ का आगमन माना जाता है. सहराई में होने पर सहरइ, बांदना, बंदनी आदि तथा मकर में होने पर मकरू, मकरा, मकरधज, मकराज, टुसू तथा धरम पूजा व धरम मास में जनम होने पर धरमु, धरनि, धीरु आदि के नाम से जाना जाता है.
दिन-वार : साप्ताहिक दिनों के नाम का भी नामकरण में खासे महत्वपूर्ण स्थान होता है . नाम से ही उनके जनम वार को स्पष्ट करता है.
सोमवार से संबंधित नाम सोमरा, सोमा, सोमबारी, मंगलवार से संबंधित नाम मंगला, मंगलि आदि होते हैं. बुधवार से बुधन, बुधनि, बुधु, बुधुआ, गुरुवार से गुरुबारि, गुरा, गुरूआ, शुक्रवार से सुकुमार, सुकुरमनि, सुकु, सुकरा, शनिवार से सनिचरि, सनि, सनु, संतु तथा रविवार से रबिबारि, रबि, रइबु आदि नाम होते है.
महीना : जनम के दिन कोई परब तेहार न हो तथा दिन का नाम सटीक व मनपसंद न लगे तो माह को आधार मानकर नामकरण किये जाते हैं.
मधु(माघ) मास में जनमे बच्चों का नाम मधुआ, मधु, मधुई, मधुकर, माधव व बिहामास( फागुन )में फागु, फालगुनि, फागुआ, मउहामास(चइत) माह के बच्चों का नाम चइतन, चइतालि, चइतु, चइति, निरनमास(बइसाक)का हो तो निरन, बुइसाकु, निइरु, निरा, धरनमास(जेठ) मास का हो तो धरअनि, जेठु, धरमु, धरमेनदर , बिहनमास(आसाड़) का हो तो आसाड़ि,आसा , रपामास (सराबन) मास का हो तो सराबन, सराबनि, करममास (भादर) का हो तो भदरु,भादअरि, भदानि, टानमास (आसिन) महीना का हो तो असनि, सहरइमास (कारतिक) मास का हो तो करतिक, सहरइ, सहरू, कारू, मगसिर (अघन) का हो तो अघनु, अघनि आदि. जाड़मास (पुस) माह का हो तो पुसुआ, पुसु आदि के नाम दिये जाने की पारंपरिक नेगाचारि है.
शारीरिक बनावट : शारीरिक बनावट को देखकर भी नाम रखे जाते हैं. रंग गोरा होने पर गअरा, गअरि, गरखा, गरखि, गरिमा, साफा, सेफाली आदि नाम पड़ता है.
काला होने पर कलिआ, कुइला, कुइलि, कालि व लंबा होने पर लंबु, लंबि, नाटा होने पर बुतरू, बुतरि गेएड़ा, गेएड़ी, मोटा होने पर मोटा, मोटी, मटु नाम स्वतः पड़ जाता है. चंचलता का आभास होने पर चनचल, चनचला तथा काफी स्थिर रहने की स्थिति में भअदा, भअदि आदि नाम से पुकारे जाते हैं. डरपोक हो तो पेलू, पेला व पलकू के नाम से पुकारे जाते हैं.