जहां नदियां कराती हैं विवाह, पेड़ बनते हैं साक्षी

जसिंता केरकेट्टा (यात्रा वृतांत) उस दिन पहाड़ के उस पार एक गांव जाना था. किसी की शादी में शामिल होने के लिए. मेरे नदी से नहाकर लौटते ही गांव की लड़कियों ने मुझे जल्दी-जल्दी तैयार किया. घर से निकलते हुए देखा कि सब पहले से ही तैयार होकर मेरा इंतजार कर रही हैं. लड़कियों ने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 27, 2019 7:15 AM
जसिंता केरकेट्टा
(यात्रा वृतांत)
उस दिन पहाड़ के उस पार एक गांव जाना था. किसी की शादी में शामिल होने के लिए. मेरे नदी से नहाकर लौटते ही गांव की लड़कियों ने मुझे जल्दी-जल्दी तैयार किया. घर से निकलते हुए देखा कि सब पहले से ही तैयार होकर मेरा इंतजार कर रही हैं. लड़कियों ने सफेद, हरी, नीली साड़ियां पहन रखी है, जबकि बाकी दिन वे सफेद साड़ियों में नजर आती हैं. गले में लोहे के पतले-पतले हार हैं. बालों में बहुत सारे सुनहरे क्लिप. उनके माथे पर लाल, पीले फूल सजे हैं. कुछ ने विवाह वाले घर को उपहार देने के लिए सिर पर कांसा का गगरा रख लिया है. कुछ ने बच्चों को बेतरा रखा है. यह ओड़िशा के नियमगिरि पहाड़ों के बीच बसा लखपदर गांव है.
शाम करीब चार बजे हमने गांव से चलना शुरू किया. लड़कियां जल्दी-जल्दी चल रही हैं. उन्होंने मुझे अपने झुंड के बीच में रखा है. वे नंगे पांव ही तेज़ी से चल रही हैं. पहाड़ चढ़ते समय मैं जगह-जगह रुकती हूं. एक बार पीछे पलट कर देखा. हल्की बारिश के बीच जंगल गजब की ख़ूबसूरती समेटे हुए है. मैं रुक गयी. देखती रही. एक दूसरे के पीछे छिपे पहाड़ हुलक – हुलक कर झांक रहे हैं. उसपर बादलों की लुका-छिपी और हल्की बारिश…
लड़कियों ने कहा ‘वाही मंजी..’ मैंने भी वही दुहराया. उन्होंने इशारे से कहा ‘थकने लगो तो कहना, वाही मंजी ई..’ मैंने मुस्कुराकर कहा ‘ठीक है.’ वे भी हंसी और सबने एक साथ कहा ‘ ठीक है.’ अक्सर वे मेरी हिंदी दुहराती और जोर-जोर से हंसती. मैं भी कुई भाषा के शब्द दुहराती और फिर हम सब एक साथ हंसतीं.
किसी की गोद में बच्चा, तो किसी के कंधे में कांसे का घड़ा, पर एक-एक कदम रखते हुए सीधे पहाड़ पर वे सहजता से चढ़ रही थीं. ऊपर पहुंचते ही एक पत्थर पर बैठते हुए मैंने गहरी सांस ली. मैं पसीने से लथपथ हो रही थी. लड़कियां करीब आकर बैठ गईं. इधर कुछ दिनों से गांव में रहते हुए थोड़े ही समय में मुंजाली, सोबे, राणी, सुको, गांव की सारी कुई लड़कियां मेरे निकट आ गईं थीं. भाषा न समझते हुए भी हम बातें करतीं. हर शब्द बोलने के बाद वे इशारे में समझातीं. मैं अधिकांश समय चुप रहती और मुस्कुराती. वे भी यही करती, पर हमें ज्यादा बोलने की जरूरत नहीं थी. वे मेरी चुप्पी पढ़ लेती थीं। आंखें पढ़ती थीं.
तभी मूंजाली और राणी पास आयी और मेरे बाल संवारने लगी. मैंने कहा बाल जैसे हैं वैसे ही रहने दो. उन्होंने इशारे से आंखें दिखा कर कहा ‘चुपचाप बैठी रहो.’ मैं हंसने लगी. मेरे बाल भी अपनी तरह बना कर सुनहरे रंग के क्लिप खोंस दिये. फिर अपने गले से लोहे के बने पतले-पतले हार निकालकर मुझे पहना दिया. रंग-बिरंगी माला मेरे गले में डाल दी. फिर कंधे पर गमछा डाल दिया. मैंने कहा ‘हो गया ? अब चलें?’ वे दुहराईं ‘हो गया।’ फिर हंसने लगी.
अब हम पहाड़ की ढलान पर हैं। दूर-दूर तक गांव नजर नहीं आ रहा है. जंगल इतना घना कि शाम ज्यादा ही गहरा रही है. अंधेरा होने से ठीक पहले एक गांव नजर आने लगा. यह कोमबेस गांव है. पहाड़ों के बीच एक छोटा सा गांव. इस गांव से नियमगिरि पहाड़ की श्रृंखला साफ़ दिखाई देती है। गांव के पास से एक नदी गुजरती है. हम जैसे – जैसे गांव के पास पहुंचने लगे, गाने की आवाज़ साफ़ सुनाई देने लगी. ढोल की आवाज भी. लोग आगवानी के लिए निकल आए. गांव के सारे लड़के हमें देख रहे थे. वहां पहुंचते ही दरवाजे के बाहर पैर धोकर हम विवाह घर में घुस गईं. देखा, जिस लड़की की शादी होने वाली है, वह चेहरे पर रुमाल रखे रो रही है. रोते हुए कुई भाषा में कुछ बोल रही है. उसके साथ दो लड़कियां भी बैठी हैं. वे बीच-बीच में रुमाल से उसके आंसू पोछ रही हैं. मैंने मुंजाली के कान में कहा ‘ वह इतना क्यों रो रही और क्या बोल रही है?’ मुंजाली ने इशारे से पूछा ‘क्या कहा?’ मैंने उसे इशारे से समझाया कि मैं क्या बोल रही थी. तब वह टूटी फूटी उड़िया भाषा में बोली ‘अपने माता-पिता और पुरखों का नाम ले रही कि वह उन्हें छोड़ कर जा रही है, जिन्होंने उससे बहुत प्यार किया है. वे उसके बिना भला कैसे रहेंगे?’ मैंने हम्म… कहते हुए सहमति में सिर हिलाया.
लड़कियों ने घर वालों को उपहार में लाया सारा सामान थमा दिया. हमें बैठाया गया और पत्ते के दोने में थोड़ा-थोड़ा शराब दिया गया. मैंने शराब लेकर लड़कियों की ओर बढ़ा दिया, जिसे उन्होंने आपस में बांट लिया. तब, विवाह घर की लड़कियां हमें एक ओर चलने का इशारा करने लगीं. वे हमें हल्दी पानी से नहाने ले गईं. मैंने जिलकी से पूछा ‘हल्दी पानी से क्यों नहलाया जाता है?’ उसने इशारे से समझाया कि तभी हम लड़की की संगी बन सकेंगी. सभी लड़कियां हल्दी पानी से नहाने के बाद आकर एक साथ बैठ गईं. मैं भी उनके साथ थी. वे मुझे एक पल के लिए भी अलग नहीं छोड़ती. हमेशा अपने झुंड में रखती. मैं मन ही मन हंसती कि वे मेरा ध्यान किसी छोटी बच्ची की तरह रख रहीं थीं. इसके बाद हम भोजन करने गये. अंधेरा घिरते ही दूसरे गांव के लोग भी आने लगे. खाने के बाद लड़के, लड़कियां रात भर नाचते रहे. मैं लकड़ी के कुंदे पर बैठी उन्हें देखती रही. गांव के बहुत से लड़के आकर मेरे आस – पास बैठ गये. वे मुझसे बात करने की कोशिश कर रहे थे. एक लड़के को टूटी फूटी हिंदी आती थी. मैंने पूछा ‘ तुम्हें हिंदी कैसे आती है?’ उसने बताया कि वह कुछ साल आंध्र प्रदेश में काम कर चुका है, इसलिए थोड़ी हिंदी आती है. दूसरे सारे लड़के उसका मुंह ताक रहे थे. वह हमारी बातचीत उन्हें कुई भाषा में समझाता, फिर समझते ही लड़के मेरी तरफ देखकर मुस्कुरा देते.
न जाने कितनी रात तक लड़के लड़कियां साथ नाचते रहे. गीत गूंजते रहे. ढोल बजते रहे. मेरी पलकें भारी हो रही थी. मैं सोना चाहती थी. एक लड़के ने मेरे लिए घर के बरामदे में चटाई बिछा दी. एक चादर भी लाकर दिया. मैं वहीं सो गयी. कब गहरी नींद में डूबी पता ही नहीं चला. दूसरे दिन सुबह उठते ही लड़कियां मुझे लेकर नदी गईं. मुंह हाथ धोकर जब गांव वापस आए, तो वे मेरे बिगड़े बाल संवारने लगीं. थोड़ी देर में गांव के लड़के सूखे आम के छिलके लेकर आए. गर्मी के दिनों में गांव के लोग आम सुखा कर रख लेते हैं. मैंने थोड़े से छिलके लेते हुए इशारे से कहा ‘सबको दीजिए. मैं इतना अकेली नहीं खा नहीं सकती.’ तब उन्होंने उसे सबके बीच बांट दिया. मैं देख रही थी कि लड़के ध्यान खींचने के लिए कुछ न कुछ कर रहे थे और लड़कियां मेरे लिए पूरी तरह प्रोटेक्टिव हो रहीं थीं.
नाश्ते के बाद लड़कियां फिर नाचने लगीं. इस बीच दुल्हन को दो सखियां गांव के हर घर लेकर जाती. वहां उसके सामने तीन थाली में गर्म भात रखा जाता. दुल्हन और उसकी दो सखियां, तीनों की हथेलियों से भात को छुआया जाता. फिर उनके माथे पर तेल मला जाता. यही क्रिया हर घर में दोहराया जा रहा था. रात को ही दूल्हे के घर वाले पहुंच गये. दोपहर को दूल्हे और उसके दो साथी को आम पेड़ की डालियों से बने मड़वा के नीचे बैठाया गया. गांव की लड़कियां उन्हें दुल्हन की तरह सजाने लगीं. उनके हाथ, पैर, माथे पर रंग बिरंगे आलता से फूल, पत्ते बनाए गये। इस दौरान पूरा गांव गीत गाता रहा.
पूरी तरह सजा कर पहले लड़के को नदी के पास लाया गया. यहां पहले से नदी के बीच पत्थरों से पूजा करने की जगह बनायी गयी है. उसपर पाहन बैठा है. लड़की के आने का इंतज़ार है. गांव की महिलाएं दुल्हन और उसकी दोनों सखियों को लेकर धीरे धीरे आ रही हैं. लड़की दो दिन से लगातार रो रही है. उसका रोना किसी मार्मिक गीत की तरह जंगल में गूंज रहा है. नदी तक पहुंचने से पहले वह बार बार बेहोश भी हो रही है. महिलाओं और लड़कियों का झुंड रुक गया है. उसके चेहरे पर पानी छिड़का जा रहा. फिर वह धीरे-धीरे आगे बढ़ती है. दुल्हन और उसकी दोनों सखियों का चेहरा एक ही सफेद कपड़े से ढंक दिया गया है। वे धीरे-धीरे चलती हुई नदी के पास पहुंचती हैं. पूरा गांव नदी के किनारे खड़ा है.
थोड़ी देर में दुल्हन और दोनों सखियों को आगे और दूल्हे और उसके दोनों साथी को उनके पीछे नदी के बीच में खड़ा किया जाता है. पाहन पूजा करता है. गांव की बुजुर्ग महिलाएं नदी का पानी दूल्हे, दुल्हन के माथे पर लगाती हैं. नदी के बीच विवाह के रस्म पूरे होते हैं. अब सभी धीरे-धीरे गांव की ओर लौटते हैं. अंधेरा घिरने से पहले लड़के के परिवार वाले लड़की को गहने पहनाते हैं. इनमें लोहे के बहुत सारे हार, कान के झुमके, माला, साड़ी के ऊपर कमर में बांधने के लिए सुनहरी जंजीर, तरह तरह की अंगूठियां, चूड़ियां आदि चीजें हैं. सूरज नियमगिरि पहाड़ के पीछे धीरे-धीरे छिप रहा है. अंधेरा होने को है. यह दिन भी ढल रहा है. रातभर लड़कियां नाचती हैं. लड़के ढोल बजाते हैं, कुछ साथ में नाचते हैं. उनके गीतों में मैं भी डूब रही हूं. यह एक अलग ही दुनिया है, जहां नदी नए जोड़े का विवाह कराती है. यहां आम के पेड़ उनके विवाह के साक्षी बनते हैं. और नदियों के बिना किसी का विवाह संपन्न नहीं होता.
सोच रही हूं, आज सारी दुनिया पर्यावरण बचाने के लिए सड़क पर आ रही है. लेकिन हजारों सालों से जंगल, पहाड़ में रहने वाले आदवासियों ने कैसे प्रकृति को अपने परिवार, समाज, जीवन का हिस्सा बना रखा है. कैसे वे अपने पर्व, त्योहार, शादी विवाह में उन्हें शामिल करते रहे हैं. वे सच ही तो कहते हैं. जिन्हें वे देख नहीं सकते, उन्हें ईश्वर नहीं मानते. उनका ईश्वर उनके आस – पास रहता है. जो नदी की तरह उनके बीच बहता है.

Next Article

Exit mobile version