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…जब मैं बीमा के चलते लज्जित हुआ

ट्रांसवाल में भारतीय समाज के अधिकारों के लिए किस प्रकार लड़ना पड़ा, और एशियाई विभाग के अधिकारियों के साथ कैसा व्यवहार करना पड़ा. इसका वर्णन करने से पहले मेरे जीवन के दूसरे अंग पर दृष्टि डाल लेना आवश्यक हैं. अबतक कुछ द्रव्य इकट्ठा करने की मेरी इच्छा थी , परमार्थ के साथे स्वार्थ का मिश्रण […]

ट्रांसवाल में भारतीय समाज के अधिकारों के लिए किस प्रकार लड़ना पड़ा, और एशियाई विभाग के अधिकारियों के साथ कैसा व्यवहार करना पड़ा. इसका वर्णन करने से पहले मेरे जीवन के दूसरे अंग पर दृष्टि डाल लेना आवश्यक हैं. अबतक कुछ द्रव्य इकट्ठा करने की मेरी इच्छा थी , परमार्थ के साथे स्वार्थ का मिश्रण था.

जब बंबई में दफ्तर खोला तो एक अमेरिकन बीमा एजेंट मिलने आया था. उसका चेहरा सुंदर था और बातें मीठी थी. उसने मेरे साथ भावी हित की बातें ऐसे ढंग से की मानो हम पुराने मित्र हों. अमेरिका में तो आपकी स्थिति के सब लोग अपने जीवन का बीमा कराते हैं. आपको भी ऐसा करके भविष्य के विषय में निश्चिंत हो जाना चाहिए. जीवन का भरोसा है ही नहीं. अमेरिका में तो हम बीमा कराना अपना धर्म समझते हैं. क्या में आपको एक छोटी सी पॉलिसी लेने के लिए ललचा नहीं सकता?
तब एक दक्षिण अफ्रीका में और हिंदुस्तान
में बहुत से एजेंटों की बात मैंने मानी नहीं थी. मैं सोचता था कि बीमा कराने में कुछ भीरुता और ईश्वर के प्रति अविश्वास रहता है. पर इस बार मैं लालच में आ गया. वह एजेंट जैसे- जैसे बातें करते जाता वैसे-वैसे मेरे सामने पत्नी और बच्चों की तस्वीर खड़ी होती जाती.
भले आदमी तुमने पत्नी के सब गहने बेच डाले हैं. यदि कल तुम्हें कुछ हो जाये तो पत्नी और बच्चों के भरण पोषण का भार उन गरीब भाई पर ही पड़ेगा न, जिन्होंने पिता का स्थान लिया है और उसे सुशोभित किया है. यह उचित न होगा. मैंने अपने मन के साथ इस तरह की दलीलें की और दस हजार का बीमा करा लिया.
पर दक्षिण अफ्रीका में मेरी स्थिति बदल गयी और फलत: मेरे विचार भी बदल गये. दक्षिण अफ्रीका की नयी आपत्ति के समय मैंने जो कदम उठाये सो ईश्वर को साक्षी रखकर ही उठाये थे. दक्षिण अफ्रीका में मेरा कितना समय चला जायेगा, इसकी मुझे कोई कल्पना नहीं थी.
मैनें समझ लिया था कि मैं हिंदुस्तान वापस नहीं जा पाऊंगा. मुझे अपने बाल- बच्चों को साथ ही रखना चाहिए. अब उनका वियोग बिल्कुल नहीं होना चाहिए. उनके भरण.हर साल दुनियाभर में 1.7 करोड़ लोगों की मौतें हृदय से जुड़ी बीमारियों के कारण होती हैं, लेकिन अनुमान है कि 2030 तक आंकड़ा 2.3 करोड़ पर पहुंच जायेगा.
अन्य गैर-संचारी रोगों की तरह इस बीमारी की वजह से गरीबी, विशेषकर सूक्ष्म और मध्यम आय वर्ग के देशों में तेजी से बढ़ती है. स्वास्थ्य पर बढ़ता खर्च गरीबी के दलदल में धकेल देता है. हृदय को स्वस्थ रखने के लिए जीवनशैली में बदलाव लाना बहुत जरूरी है. रोजाना 30 मिनट का शारीरिक व्यायाम और संतुलित व स्वस्थ भोजन जरूरी है.
पोषण की व्यवस्था भी दक्षिण अफ्रीका में होनी चाहिए. इस प्रकार सोचने के साथ ही उक्त पॉलिसी मेरे लिए दुखद बन गयी. बीमा एजेंट के जाल में फंस जाने के लिए मैं लज्जित हुआ. यदि बड़े भाई पिता के समान हैं तो छोटे भाई की विधवा के बोझ को वे भारी समझेंगे , यह तू ने कैसे सोच लिया. यह भी क्यों माना कि तू ही पहले मरेगा.
पालन करने वाला तो ईश्वर हैं. बीमा करारकर तूने अपने बच्चों को भी पराधीन बना दिया है. वे स्वावलंबी क्यों न बनें? असंख्य गरीबों के बाल-बच्चों का क्या होता है? तू अपने को उन्हीं के समान क्यों नहीं मानता?
महात्मा गांधी की आत्मकथा से साभार

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