फूलमनी…नाम के माफिक बिल्कुल फूल सी. चेहरे पर हमेशा मुस्कुराहट. सामाजिक बदलाव की ऐसी जिद का नाम है फूलमनी, जिनके बढ़ते कदम दिवंगत पति संजय मुंडा के बेइंतहा जुल्मोसितम भी नहीं रोक पाये. अपने सीने में दर्द का समंदर छिपाये गांव की महिलाओं की जिंदगी बदल रहीं फूलमनी से जब आप मिलेंगे, तो आपको सहसा यकीन नहीं होगा, लेकिन प्रताड़ना से लेकर सम्मान के लिए संघर्ष तक की दास्तां सुनकर आप दांतों तले अंगुलियां दबा लेंगे. उपराष्ट्रपति एम वेंकैयानायडू ने झारखंड की राजधानी रांची की इस बिटिया के जीवन संघर्ष की सराहना करते हुए अपना आशीर्वाद दिया है.
छोटी उम्र, कई किरदार
वर्ष 2001 में महज 15-16 वर्ष की उम्र में इनकी शादी (बाल विवाह) हो गयी. इससे दसवीं के बाद पढ़ाई रुक गयी. गरीबी के कारण अपनी सास के साथ हड़िया शराब बेचने लगीं. पास के सरना चौक पर गुमटी में पान दुकान खोलीं. होटल चलाईं और फिर जिंदगी ने करवट ली और रानी मिस्त्री बनकर अपनी नयी पहचान बना लीं. अब महिलाओं को नया जीवन दे रही हैं. कम उम्र में कई किरदार निभाने की बेबसी. ये कहानी है जीवन संघर्ष की आग में तपकर सोने की तरह निखरीं तीन बच्चों की मां 34 वर्षीया फूलमनी की.
अंधेरे से उजाले की ओर
आदिवासी बाहुल्य गुटुवाटोली 150 घर और करीब 600 की आबादी वाला गांव है. अपने घर के बाहर पेड़ की छांव में जमीन पर बैठीं फूलमनी बह रही ठंडी हवाओं के बीच बातचीत करते हुए अपने अतीत में खो जाती हैं. कहती हैं कि वर्ष 2005 में पैर फ्रैक्चर होने के बाद पति घर पर रहने लगे. इस दौरान वह शराब के नशे में डूब गये. काफी मशक्कत के बाद भी लत नहीं छूटी. लिहाजा पहले की तरह परिवार पालने की जद्दोजहद करती ही रही. इसी बीच वर्ष 2016 में झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रोमोशन सोसाइटी से जुड़ी. रोशनी महिला समूह की अध्यक्ष बनकर बचत करने लगी.
आती थी, तो ठीक से खाती नहीं थी बिटिया
फूलमनी कहती हैं कि जब ससुराल आयी थी, तो बिजली व शौचालय कुछ भी नहीं था. थोड़ा अटपटा लगा, लेकिन झाड़ियों में शौच जाने की मजबरी थी. अपनी ननिहाल (रांची) में रहकर पढ़ रही बिटिया खुशी जब घर आती थी, तो चाहकर भी ठीक से खाना नहीं खा पाती थी क्योंकि घर में शौचालय नहीं था. मेरे या भाई के साथ खुले में शौच जाने की बेबसी थी. वर्ष 2017 में स्वच्छ भारत अभियान के तहत महिला समूह को शौचालय बनाने का जिम्मा मिला. जब घर में शौचालय बना, तो सबसे ज्यादा खुश बेटी हुई. बोली-अब घर आऊंगी, तो इत्मीनान से मनपसंद खाना खाऊंगी.
मोटे डंडे से पीटता था, कई रात दूसरे घर रही
शराबी पति पारिवारिक जिम्मेदारियों से मुक्त था. उसे केवल सुबह-शाम शराब से ही मतलब था. अपने तीन बच्चों खुशी (16 वर्ष), अमन (12 वर्ष) और अनमोल (6 वर्ष) के लिए फूलमनी ही मां-बाप सबकुछ थीं. पति को इनका घर से बाहर निकलना भी नागवार गुजरता था. हर बात पर मारपीट जैसे इनकी जिंदगी बन गयी थी. शौचालय निर्माण के लिए इन्हें रानी मिस्त्री का प्रशिक्षण मिला. महिला समूह की दो सदस्यों के साथ अपने गांव गुटुवाटोली में शौचालय बनवाने लगीं. अपनी पीठ पर सबसे छोटे बेटे अनमोल को लेकर वह दिनभर शौचालय बनवाती रहती थीं, लेकिन देर शाम घर लौटने पर शराबी पति मोटे डंडे से इनकी पिटाई करता था. डर के मारे कई रात दूसरे के घर गुजारीं. वार्ड पार्षद एवं मुखिया द्वारा भी पति को समझाया गया, लेकिन कोई असर नहीं हुआ. फूलमनी ने भी 125 शौचालय बनवाकर गांव को खुले में शौच मुक्त(ओडीएफ) बनाकर ही दम लिया.
बुजुर्गों का स्नेह
गांव के बुजुर्ग जब उन्हें बेटी कहकर सम्मान देते हैं, तो उन्हें सुकून मिलता है. पति का बेइंतहा जुल्म भी भूल जाती हैं. शौचालय बनने से पहले बुजुर्गों को खुले में शौच जाने में काफी परेशानी होती थी. अब घर में शौचालय होने से वह काफी खुश हैं. वे कहते हैं कि बिना पैसा लिए शौचालय बनवाकर फूलमनी ने नेक काम किया है. शौचालय के नाम पर कई लोगों ने पैसे लिए, लेकिन नहीं बनवाया. बहू होकर बेटी का काम की है.
नशामुक्त गांव की ओर बढ़ते कदम
कड़े संघर्ष की उपज फूलमनी अंधेरे में रोशनी की तरह हैं, जिन्होंने सिर्फ अपनी मुस्कुराहट के बल पर जुल्म पर जीत हासिल की. पहले अधिकतर के घरों में शराब बनती थी. फूलमनी भी शराब बेचती थीं. उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ और वर्ष 2017 में उन्होंने रातू इलाके में नशामुक्ति के लिए अभियान चलाया. इसका असर हुआ. महिलाएं शराब बनाना छोड़ मेहनत-मजदूरी कर रही हैं. रोजगार के अभाव में कुछ बुजुर्ग महिलाएं सशर्त हड़िया बेच रही हैं, लेकिन आजीविका से जुड़ते ही वे शराब बेचना छोड़ देंगी.
उपराष्ट्रपति का आशीर्वाद
स्वच्छता ही सेवा के तहत वर्ष 2018 में रांची के नामकुम (भुसुर फुटबॉल मैदान) में आयोजित जनसंवाद सह जागरूकता समारोह में उपराष्ट्रपति एम वेंकैयानायडू बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित थे. रानी मिस्त्री के रूप में फूलमनी भी मंच पर अपने अनुभव साझा कर रही थीं. इस दौरान उपराष्ट्रपति इनके जीवन संघर्ष सुनकर भावुक हो गये. उन्होंने अपने पास बुलाया और कार्य की सराहना करते हुए आशीर्वाद दिया.
आदर्श गांव बनाने का लक्ष्य : फूलमनी
फूलमनी कहती हैं कि पति शराबी थे, लेकिन तमाम जुल्म ढाने के बावजूद प्रेम भी करते थे. वह आज नहीं हैं, तो कमी खलती है. जैसे भी थे. घर के मालिक थे. महिला समूह से महिलाओं को जागरूक कर गांव में बदलाव ला रही हूं. एक आदर्श गांव बनाना है. अच्छी परवरिश के लिए अपने तीनों बच्चों को निजी स्कूल में पढ़ा रही हूं.