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#HappyDiwali2019 रंगोली एक, नाम अनेक: सुख-समृद्धि का प्रतीक है रंगोली

‘रंगोली’ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द ‘रंगावली’ से हुई है, जो ‘रंग’ और ‘आवली’ अर्थात ‘पंक्ति’ से मिल कर बना है, जिसका अर्थ है- ‘रंगों की एक पंक्ति’. रंगोली भारत की प्राचीन सांस्कृतिक परंपरा और लोक-कला है. रंगोली को ‘अल्पना’ के नाम से भी जाना जाता है. देश के विभिन्न प्रांतों की लोककलाओं में रंगोली […]

‘रंगोली’ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द ‘रंगावली’ से हुई है, जो ‘रंग’ और ‘आवली’ अर्थात ‘पंक्ति’ से मिल कर बना है, जिसका अर्थ है- ‘रंगों की एक पंक्ति’. रंगोली भारत की प्राचीन सांस्कृतिक परंपरा और लोक-कला है. रंगोली को ‘अल्पना’ के नाम से भी जाना जाता है.

देश के विभिन्न प्रांतों की लोककलाओं में रंगोली के नाम और निर्माण शैलियों में भी विविधता देखने को मिलती है, लेकिन इसके पीछे निहित भावना, उद्देश्य और संस्कृति में पर्याप्त समानता है. इसकी यही विशेषता इसे विविधता देती है और इसके विभिन्न आयामों को भी प्रदर्शित करती है. रंगोली सामान्यतः त्योहार, व्रत, पूजा, उत्सव, विवाह आदि शुभ अवसरों पर सूखे और प्राकृतिक रंगों से बनाये जाते हैं. विभिन्न अवसरों पर आधारित पारंपरिक कलाकृतियों के विषय और अवसरों के अनुरूप रंगोली में विभिन्नता देखने को मिलती है. रंगोली के डिजाइन अक्सर प्राकृतिक तत्वों से प्रभावित होते हैं. इनमें तोते, हंस, आम, फूल-पत्ते आदि प्रमुख हैं, जिन्हें दीवार व फर्श पर चित्रित किया जाता है.
रंगोली बनाने के लिए प्राय: प्राकृतिक रंगों जैसे कि- पीसा हुआ सूखा या गीला चावल, मैदा, सिंदूर, रोली, हल्दी, सूखा आटा आदि का उपयोग किया जाता है. हालांकि आजकल रंगोली बनाने के लिए रासायनिक रंगों का प्रयोग भी होने लगा है.
सिंधु सभ्यता में भी बनाते थे रंगोली
रंगोली या अल्पना निर्माण एक अति प्राचीन लोक कला का हिस्सा है. ‘अल्पना’ शब्द की व्युत्पति संस्कृत के ‘ओलंपेन’ शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है- लेप करना. ऐतिहासिक साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि मोहनजोदड़ो और हड़प्पा सभ्यताओं में भी मांडी हुई अल्पनाएं बनायी जाती थीं. खुदाई में इससे संबंधित कई चिह्न मिले हैं. अल्पना वात्स्यायन के कामसूत्र में वर्णित चौसठ कलाओं में से एक है. प्राचीन काल में लोगों का विश्वास था कि ये कलात्मक चित्र शहर व गांवों को धन-धान्य से परिपूर्ण रखने में समर्थ होते है और अपने जादुई प्रभाव से संपत्ति की सुरक्षा करते हैं. इसी दृष्टिकोण से धार्मिक व सामाजिक अवसरों पर घरों, मंदिरों तथा सांस्कृतिक स्थलों पर अल्पना बनाने की शुरुआत हुई. अल्पना से संबंधित इन प्राचीन मान्यताओं से प्रेरणा लेकर अवनींद्रनाथ टैगोर ने शांति निकेतन के कला भवन में चित्रकला के अन्य विषयों के साथ-साथ अल्पना कला को भी एक अनिवार्य विषय बनाया था. इस कला में गौरी देवी मजा का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जिन्हें शांति निकेतन के ‘अल्पना की जननी’ माना जाता हैं.
विभिन्न प्रांतों की रंगोली
रंगोली एक अलंकरण कला है. भारत के विभिन्न प्रांतों में इसके अलग-अलग नाम है. साथ ही, इन्हें बनाने के तरीके और स्थान में भी थोड़ी-बहुत भिन्नता देखने को मिलती है. बिहार और झारखंड में अक्सर शादी-ब्याह, पूजा, उत्सव आदि अवसरों पर रंगोली बनाने का प्रचलन है. महाराष्ट्र में लोग अपने घरों के दरवाजे पर सुबह के समय रंगोली बनाते हैं. उनकी मान्यता है कि इससे घर में किसी बुरी ताकत का प्रवेश नहीं होता है. केरल में ओणम के अवसर पर फूलों की रंगोली बनायी जाती है. दक्षिण भारतीय प्रांत- तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश और कर्नाटक के ‘कोलम’ में बनायी जानेवाली रंगोली की मूल बातें तो यथावत होती हैं, लेकिन इनका आकार ज्यामितीय और सममितीय होता हैं. इसके लिए चावल के आटे या घोल का इस्तेमाल किया जाता है.

राजस्थान का मांडना को ‘मंडन’ शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ है सज्जा या सजावट. मांडना के डिजाइन एवं आकृतियों को विभिन्न पर्वों, उत्सवों तथा ॠतुओं के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है. कुमाऊं के ‘लिखथाप’ या थापा में अनेक प्रकार के आलेखन प्रतीकों, कलात्मक डिजाइनों, बेलबूटों का प्रयोग किया जाता है. लिखथाप में समाज के अलग-अलग वर्गों द्वारा अलग-अलग चिह्नों और कला माध्यमों का प्रयोग किया जाता है. आमतौर पर दक्षिण भारतीय रंगोली ज्यामितीय आकारों की प्राथमिकता होती है, जबकि उत्तर भारत की रंगोली शुभ चिह्नों पर आधारित होती है.

इनपुट : सुरभि डेस्क

रंगोली एक, नाम अनेक
उत्तर प्रदेश चौक पूरना
राजस्थान मांडना
बिहार अरिपन
बंगाल अल्पना
महाराष्ट्र रंगोली
कर्नाटक रंगवल्ली
तमिलनाडु कोल्लम
उत्तरांचल ऐपण
आंध्र प्रदेशमुग्गु या मुग्गुलु
हिमाचल प्रदेश अदूपना
कुमाऊं लिखथाप या थापा
केरल कोलम

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