महाराष्ट्र को लेकर भाजपा ने अपनी रणनीति बदली है. उसने चुप रह कर बाकी सभी पार्टियों पर साइकोलॉजिक वार किया है. भाजपा अंदर ही अंदर मनोवैज्ञानिक तरीके से अपना गेम खेल रही थी, लेकिन बाकी पार्टियां बाहर ही बाहर खिचड़ी पकाने में लगी हुई थीं.
नीरजा चौधरी,राजनीतिक विश्लेषक
महीनेभर की खींचतान के बीच भाजपा के देवेंद्र फड़णवीस का महाराष्ट्र का दूसरी बार मुख्यमंत्री पद का शपथ लेना, वह भी सुबह-सुबह, जब सब अभी नींद से पूरी तरह से जगे भी नहीं थे, एक क्लासिक स्टडी है. क्लासिक स्टडी मैं इसलिए कह रही हूं कि बीते दो-तीन सप्ताह से एनसीपी, शिवसेना और कांग्रेस जिस तरह से रोज-रोज बैठकें कर रही थीं, लग रहा था कि सरकार अब बनी कि तब बनी, लेकिन अचानक सरकार भाजपा की बन गयी. अब भाजपा बहुमत साबित कर पायेगी कि नहीं, यह एक दूसरा मसला है, जिसके लिए अभी तीस नवंबर तक का वक्त है. अंदरखाने का जो मसला है, उसकी बात करना ज्यादा जरूरी है. पिछले दिनों मैंने कहा था कि भाजपा के दो शीर्ष नेताओं की चुप्पी बहुत मायने रखती है. उस दौरान न तो नरेंद्र मोदी ने कुछ कहा था और न ही अमित शाह ने. यह चुप्पी इस नतीजे तक पहुंचेगी, इसका किसी को भी अंदाजा नहीं था. खुद शरद पवार कह रहे हैं कि अजित पवार का यह व्यक्तिगत फैसला है, एनसीपी उसका समर्थन नहीं करती. शाम तक कुछ भी पता नहीं होता कि सुबह क्या होनेवाला है और सुबह देवेंद्र शपथ लेते हैं, तो यह सब बेहद ही नाटकीय लगता है. भारतीय राजनीति का यह नाटकीय पहलू लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है.
फिलहाल भाजपा की सरकार बन गयी है और उसके पास संख्या भी पूरी होने की संभावना है. क्योंकि इसमें शक नहीं कि सभी पार्टियों से लोगों को अपने साथ लाने की कोशिश भाजपा करेगी. डर है कि इस कोशिश में महाराष्ट्र का हाल कहीं कर्नाटक जैसा न हो जाये. लेकिन एनसीपी की टूट से यह बात तो साबित है कि भाजपा ने तीनों पार्टियों की सरकार बनने की सूरत पर फिलहाल विराम लगा दिया है. शिवसेना के इनकार के बाद भाजपा चाहती थी कि हर हाल में शिवसेना को बड़ा झटका लगे. और सरकार बनाकर उसने यह साबित भी कर दिया. साथ ही, तेजी से उभर कर आयी एनसीपी को भी तोड़ दिया. भाजपा ऐसी रणनीतियों को अंजाम देने में माहिर है. आज सबसे कमजोर हालत में एनसीपी है, क्योंकि टूट इसी पार्टी में हुई है. यह विडंबना है कि कांग्रेस ने अपने विधायकों को जयपुर में बिठा दिया. शिवसेना ने अपने विधायकों को मड आइलैंड में बिठा दिया कि कहीं भाजपा उन्हें तोड़ न ले. वहीं एनसीपी ने आत्मविश्वास के साथ अपने विधायकों को कहीं नहीं छुपाया. नतीजा- एनसीपी टूट गयी. शरद पवार और अजित पवार के बीच कहीं न कहीं परिवार की लड़ाई का सीधा फायदा भाजपा ने उठाया, और विडंबना देखिए कि यही उसका मास्टरस्ट्रोक कहा जायेगा.
शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस को इतने दिन मिले थे सरकार बनाने के लिए, लेकिन तीनों ने अपनी-अपनी हठधर्मिता के चलते सरकार बनाने में देरी की. इसका खामियाजा तो भुगतना ही था. ये आज कल करते रहे, और उधर गुपचुप तरीके से अंदरखाने भाजपा क्या पकाती रही, किसी को हवा तक नहीं लगी. मुझे इस बात का अंदाजा है कि शायद एनसीपी के विधायकों को लालच दिया जाता रहा इतने दिनों तक. एनसीपी के लिए यह बहुत घातक है कि उसकी पार्टी टूटती रही और उसको पता तक नहीं चला. आखिर शरद पवार की रणनीति कहां चली गयी थी? मैं मानती हूं कि शरद पवार को सबसे बड़ा धक्का लगा होगा. इतने दिनों में बार-बार यह सवाल पूछा जाता था कि मोदी और शाह चुप क्यों हैं और क्या कर रहे हैं. हरियाणा में कुछ ही दिन में दुष्यंत चौटाला को साथ लेकर सरकार बना लिया, लेकिन महाराष्ट्र में कम सीटें मिलने पर चुप्पी साध ली. यानी कोई तो वजह जरूर रही होगी, जो महाराष्ट्र जैसे वित्तीय राज्य पर भाजपा चुप रहे!
नतीजा साफ है कि महाराष्ट्र को लेकर भाजपा ने अपनी रणनीति बदली है. उसने चुप रहकर बाकी सभी पार्टियों पर साइकोलॉजिक वार किया है. भाजपा अंदर ही अंदर मनोवैज्ञानिक तरीके से अपना गेम खेल रही थी, लेकिन बाकी पार्टियां बाहर ही बाहर खिचड़ी पकाने में लगी हुई थीं. दरअसल, भाजपा का जो बाकी राज्यों में रवैया रहा कि वह दूसरी पार्टी को फौरन तोड़ कर किसी न किसी तरह से सरकार बना लेती थी. लेकिन, इस बार बहुत शांत तरीके से अपने अंदाज से उलट होकर भाजपा ने अपनी रणनीति बदली है और साइकोलॉजिकल वार के जरिये शरद पवार को एक झटके में तोड़ दिया, जो चुनाव में उभर कर आये थे. भाजपा ने इस रणनीति से शरद पवार को कमजोर किया है, कांग्रेस को एक्सपोज कर दिया कि वह अपनी विरोधी पार्टी शिवसेना के साथ भी सरकार बना सकती है, और उद्धव ठाकरे को तो कहीं का नहीं छोड़ा. कमाल की है यह रणनीति, जिसमें सारी विरोधी पार्टियां बुरी तरह से पिट जाएं.
-वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित