एनके सिंह, वरिष्ठ पत्रकार
महाराष्ट्र में अचानक घटनाक्रम का यू-टर्न लेना और रातों-रात एनसीपी नेता शरद पवार का भाजपा से मिलना और कुछ ही घंटों में राज्यपाल द्वारा भाजपा के फड़णवीस को फिर मुख्यमंत्री की शपथ दिलाना और पवार के भतीजे अजीत पवार को उप-मुख्यमंत्री बनाना, किसी थ्रिलर फिल्म की तरह है. लेकिन न तो पवार गलत थे, न हीं भाजपा का ‘शीर्ष नेतृत्व’. गलत तो हम विश्लेषक थे, जो पवार के अचानक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने और उसके बाद उस मुलाकात को ‘बस किसानों के मसले पर बातचीत’ बताने से गुमराह हो गये. पवार का इतिहास जानने के बाद और महाराष्ट्र में उनकी राजनीति का आकलन करने के बाद मोदी से मुलाकात को विश्लेषण में सर्वोपरि स्थान न देने से हम गलत हो गये.
भाजपा कुतर्क जरूर कर रही है यह कह कर कि जनता ने तो भाजपा को शिवसेना के साथ सरकार बनाने का जनमत दिया था, लेकिन शिवसेना ने जनता के साथ धोखा किया. भाजपा यह भूल गयी कि 2015 में जनमत तो बिहार में भी नीतीश और लालू को मिला और साथ ही वह जनमत भाजपा के खिलाफ भी था, तो फिर वही भाजपा आज िबहार की सत्ता में किस नैतिक आधार पर काबिज है?
इस पूरे खेल में सबसे ज्यादा फायदा भाजपा का और सबसे बड़ा नुकसान शिवसेना का (और दूसरे नंबर पर कांग्रेस का) हुआ. शिवसेना अपनी आक्रामक हिंदुत्व और कुछ हद तक मराठावाद के लिए जानी जाती थी.
पवार की राजनीति कभी भी हिंदू-विरोधी नहीं रही है और उनकी राजनीति मराठा-किसान (खासकर गन्ना किसान) नेता की रही थी. आनेवाले दिनों में पवार की राजनीति में थोड़ा बदलाव आयेगा और वह नीतीश कुमार की तरह सत्ता में तो भाजपा के साथ रहेंगे, लेकिन हर दूसरे दिन मुसलमानों के अधिकारों और किसान के कल्याण की बात कर यह संदेश देना चाहेंगे कि वह सत्ता के पास भी हैं और दूर भी. इसका लाभ उन्हें यह होगा कि जब चाहेंगे, किसानों के नाम पर भाजपा को ब्लैकमेल करेंगे और फिर कभी भी सरकार से अलग हो सकेंगे. मुसलमान विकल्पहीनता के कारण पवार का दामन थामेगा और किसान भी उनसे खुश रहेगा.