महाराष्ट्र : वर्चस्व की लड़ाई है यह
मनीषा प्रियम, राजनीतिक विश्लेषक राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, कांग्रेस और शिवसेना ने जैसे ही यह बयान दिया कि उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री होंगे और तीनों मिल कर सरकार बनायेंगे, उसके एक घंटे के भीतर ही देवेंद्र फड़णवीस राजभवन गये. कल सुबह पांच बजे राष्ट्रपति शासन हटाया गया और फिर सुबह-सुबह ही, इससे पहले कि कोई राजनीतिक गठन […]
मनीषा प्रियम, राजनीतिक विश्लेषक
क्योंकि अजीत पवार ने एनसीपी के एमएलए के हस्ताक्षर किये हुए पत्र को राज्यपाल के सामने भले ही रखा है, लेकिन शपथ ग्रहण के बाद शरद पवार ने उद्धव ठाकरे के साथ एक प्रेस वार्ता की और कहा कि एनसीपी के एमएलए अजीत पवार के साथ नहीं बल्कि शरद पवार के साथ हैं. तो अब राजनीतिक मामला यहां जाकर अटक गया है कि देवेंद्र फड़णवीस विधानसभा में अपनी सरकार का बहुमत साबित कर पायेंगे या नहीं. उस दिन यह भी स्पष्ट होगा कि अजीत पवार और शरद पवार के बीच जो दरार आयी है, उसका राजनीतिक असर क्या होगा. महाराष्ट्र के सदन में जो मामला इस बात से शुरू हुआ था कि किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला और गठबंधन के साथी भाजपा और शिवसेना साथ नहीं जाना चाहते थे, उस मामले का अंत इस प्रश्न पर जाकर अटक गया है कि शरद पवार की एनसीपी कायम रह पायेगी या नहीं?
अजीत और शरद के बीच के दरार का असर शरद पवार के नेतृत्व पर क्या पड़ेगा? क्या शरद पवार बड़े मराठा नेता के रूप में अपने आपको कायम रख पायेंगे? तो अभी इस मामले का क्या होगा, इस बारे में स्पष्ट तौर पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता है. असल में अब यह शरद पवार और अजीत पवार के बीच का शक्ति प्रदर्शन बन चुका है. जो इसमें जीतेगा उसी का महाराष्ट्र में वर्चस्व होगा. मराठवाड़ा की लड़ाई अब वास्तव में शरद और अजीत के बीच की लड़ाई हो गयी है. जिसका अस्तित्व रह पायेगा, वही महाराष्ट्र का नेता बनेगा.