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इन 7 एप की मदद से आप सोयेंगे गहरी नींद

नींद न आना इन िदनों बड़ी समस्या बनती जा रही है. इससे न सिर्फ हमारा स्वास्थ्य, बल्कि हमारी काम करने की क्षमता भी प्रभावित हो रही है, लेकिन आजकल कई ऐसे एप मौजूद हैं, जिनका इस्तेमाल हमें चैन की नींद दे सकता है. हमारी नींद के तरीके को बेहतर बनाने वाले एप, कूलिंग की नयी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 18, 2019 8:45 AM
नींद न आना इन िदनों बड़ी समस्या बनती जा रही है. इससे न सिर्फ हमारा स्वास्थ्य, बल्कि हमारी काम करने की क्षमता भी प्रभावित हो रही है, लेकिन आजकल कई ऐसे एप मौजूद हैं, जिनका इस्तेमाल हमें चैन की नींद दे सकता है. हमारी नींद के तरीके को बेहतर बनाने वाले एप, कूलिंग की नयी तकनीक समेत गैजेट्स की दुनिया की खबरों के साथ प्रस्तुत है आज का इन्फो टेक्नोलॉजी पेज…
आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में तनाव एक नियमित दिनचर्या बन गयी है. इस कारण अनेक लोग रात में नींद न आने या फिर गहरी नींद न सो पाने जैसी समस्या से जूझ रहे हैं. ऐसे में सात एप्लिकेशन की मदद से इस समस्या से निजात पाया जा सकता है.
स्लिप साइकिल
स्लिप साइकिल की मदद से आप स्टैंडर्ड अलॉर्म क्लॉक का समय सेट कर सकते हैं. यह एप माइक्रोफोन की सहायता से हमारे सोने के तरीके पर नजर बनाये रखता है और जब हम एकदम हल्की नींद में होते हैं तब यह हमें जगाता है. इससे जगने के बाद भारीपन महसूस नहीं होता. इसके लिए आपको क्लॉक में उस समय का विंडो सेट करना होता है, जिस समय आप जगते हैं, जैसे सुबह सात से साढ़े सात बजे के बीच. यह आपके नींद से बाहर आने का सबसे अच्छा समय होता है. यहां तक की झपकी लेने के लिए भी इस विंडो को दो बार टैप किया जा सकता है.
एप्पल बेडटाइम
अगर आप अपने जगने के समय पर ज्यादा नियंत्रण चाहते हैं तो क्लॉक एप के तौर पर एप्पल बेडटाइम का इस्तेमाल कर सकते हैं. यह एप स्लिप साइकिल की तरह ही है, लेकिन इसके साथ आप सुबह उठने का सटीक समय निर्धारित कर सकते हैं, जैसे सुबह के छह बजे.
यहां आप यह भी चुन सकते हैं कि सप्ताह के किस दिन आपका अलॉर्म ऑफ हो जाये (केवल कार्यदिवस में या सप्ताहांत में या किसी विशेष दिन आदि) यानि यह आपको सोने दे. आप यह भी चुन सकते हैं कि आपको कितने घंटे सोना है. इस विकल्प को चुनने के बाद एप आपको बतायेगा कि निर्धारित समय पर जगने के लिए रात में आपको कितने बजे सोना चाहिए. सोने से पहले यह आपको एक पुश नोटिफिकेशन भी देगा.
पिलो
पिलो उन लोगों के लिए एकदम सही एप है जो अपने सोने के तरीके के बारे में सब कुछ जानना चाहते हैं. बेडटाइम और स्लिप साइकिल की तरह ही यह एप अापके सोने के तरीके पर नजर रखता है और हल्की नींद में होने पर आपको जगाता है. इस फीचर का उपयोग दिन के मध्य में आराम करने के लिए विभिन्न समय को सेट करने के लिए भी किया जा सकता है. जैसे 15 मिनट का पावर नैप, 45 मिनट का रिकवरी नैप और 120 मिनट का फुल साइकिल नैप. यह एप आपके हॉर्ट रेट, आईईएम साइकिल (इनबॉर्न एरर्स ऑफ मेटाबॉलिज्म)और आपको नींद में आने में कितना समय लगा, इसकी जानकारी भी देता है.
पिज्ज
नींद न आनेवालों के लिए पिज्ज एप किसी वरदान से कम नहीं. यह एप संगीत के माध्यम से पहले आपको शांत करता है और उसके बाद आपको गहरी नींद में ले जाता है.
इसमें आप अपने मन-मुताबिक शांति प्रदान करनेवाला, फिल्म की शैली में साउंडट्रैक इस तरह सेट कर सकते हैं जो एक निर्धारित समय के बाद (जैसे एक घंटे के बाद) धीमा होता चला जायेगा. इस तरह धीरे-धीरे आपका मन शांत होगा और आप नींद की आगोश में आ जायेंगे. इस एप में महिला व पुरुष दोनों की आवाज में आपको कई कहानियां भी मिलेंगी, जिसे आप सुन सकते हैं. लेकिन अगर कथा वाचक की आवाज आपको पसंद नहीं आ रही तो आज एप को बंद भी कर सकते हैं.
हेडस्पेस : मेडिटेशन
हेडस्पेस : मेडिटेशन एप ध्यान के सत्र को छोटे-छोटे व मददगार हिस्सों में बांटकर ध्यान करना अासान बनाता है. असल में यह आपके लक्ष्यों के आधार पर आपको उसके विभिन्न सत्र के लिए तैयार करता है. यह आपको यह याद दिलाने के लिए पुश नोटिफिकेशन भी भेजेगा कि आपको दिनभर ध्यान लगाना है. ध्यान का यह सत्र कुछ मिनटों का होता है. अगर आप ऐसे व्यक्ति हैं, जिसके दिमाग में सोने से पहले दुनियाभर के ख्याल आते रहते हैं, तो यह एप आपके लिए है. इससे आपको एकाग्र होने में काफी मदद मिलेगी, साथ ही नींद भी अच्छी आयेगी.
काम
हेडस्पेस : मेडिटेशन की तरह काम भी सोने से पहले आपके मन को एकदम शांत कर देगा. इसके सत्र लंबे होते हैं और ध्यान को आसान बनाने के लिए आप समय-समय पर अपने कार्यक्रम निर्धारित कर सकते हैं. यह एप प्रकृति से जुड़ी अनेक ध्वनियाें का विकल्प उपलब्ध कराता है और आपके फोन को प्राकृतिक परिदृश्य वाले एक विशाल चित्र में बदल देता है. इसके पहले ही सत्र से आपको शांत होने में मदद मिलने लगती है. इसकी प्राकृतिक ध्वनियां और संगीत आपको शांति की गोद में ले जाते हैं. सत्र के समय आपको अपने फोन को साइलेंट करना होगा.
पॉडकास्ट
अगर ऊपर के सभी एप का इस्तेमाल करने के बाद भी आप चैन की व गहरी नींद नहीं ले पा रहे हैं तो पॉडकास्ट का इस्तेमाल करके देखें. यह एप हंसी का खजाना है. सोने से पहले इस एप को चलाने के बाद हास्य की खुराक के साथ आपका मन एकदम तरोताजा हो जायेगा. इसमें नीचे की ओर स्लिप टाइमर लगा है, जिसे लगाकर यूजर को सोने की सलाह दी जाती है. क्योंकि हो सकता है, हंसते-हंसते आप इतनी गहरी नींद में सो जायें कि सुबह आपकी नींद ही ना खुले.
नयी कूलिंग तकनीक इलास्टोकैलोरिक करेगी बिजली की बचत
अमेरिका स्थित मैरीलैंड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने इलास्टोकैलोरिक नामक एक नयी कूलिंग तकनीक विकसित की है, जिसमें निकेल और टाइटेनियम जैसी मिश्र धातुओं का उपयोग किया गया है. इस तकनीक को एडिटिव तकनीक का उपयोग कर बनाया गया है. यह अध्ययन साइंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है.
सॉलिड-स्टेट इलास्टोकैलोरिक कूलिंग तकनीक, पिछले एक दशक से तैयार की जा रही है. यह वैकल्पिक कूलिंग तकनीक में सबसे आगे है. वर्तमान में जो तकनीक है वह एक समय के बाद ठंडा करना कम कर देती है जिसमें सुधार करना एक बड़ी चुनौती बनी हुई है. इस चुनौती से पार पाने के लिए एक नयी तकनीक विकसित की गयी है.
यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड की अगुवाई में क्लार्क स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग के प्रोफेसर इचिरो टेकुची ने एक थ्रीडी प्रिंटर की सहायता से निकेल और टाइटेनियम धातुओं के मिश्रण का उपयोग कर एक बेहतर इलास्टोकैलोरिक कूलिंग तकनीक विकसित की है. नयी तकनीक वर्तमान तकनीक की तुलना में अधिक कुशल, और पर्यावरण के अनुकूल है. इस तकनीक का उपयोग बड़े उपकरणों में भी किया जा सकता है.
टेकुची की मानें तो, कूलिंग के क्षेत्र में एडिटिव तकनीक की जरूरत है. एडिटिव तकनीक को आमतौर पर 3डी प्रिंटिंग के रूप में जाना जाता है. टेकुची लगभग एक दशक से इस तकनीक को विकसित कर रहे है. टेकुची के साथ उनकी टीम ने इस नयी कूलिंग तकनीक का करीब चार महीने तक परीक्षण किया.
इस अवधि में इस तकनीक ने दस लाख राउंड को पार किया लेकिन इसकी कूलिंग में कोई कमी नहीं आयी. इस शोध के लिए 2010 में टेकुची को यूएमडी आउटस्टैंडिंग इन्वेंशन ऑफ द ईयर का पुरस्कार दिया गया था. इसी अवधि में इलास्टोकैलोरिक कूलिंग को थर्मोइलास्टिक कूलिंग के रूप में जाना गया.
तुलनात्मक रूप से कैलोरी कूलिंग तकनीक तीन हिस्सों में बंटी हुई है- मैग्नेटोकैलोरिक, इलेक्ट्रोकैलोरिक और इलास्टोकैलोरिक. तीनों ही तकनीकें पर्यावरण के अनुकूल हैं. इनसे सबसे पुराना मैग्नेटोकैलोरिक तकनीक है. इसे बीते चालीस वर्षों से विकसित किया जा रहा है और अब यह व्यावसायिक तौर पर उपयोग किये जाने के लिए तैयार है.

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