16.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

वर्षारंभ : इस वर्ष अग्निपरीक्षा से गुजरेंगी ये बड़ी हस्तियां

यह वर्ष देश-विदेश की प्रमुख हस्तियों की अग्निपरीक्षा का है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जहां देश की तमाम समस्याओं को सुलझाने की फिरसे पहल करनी है, वहीं दूसरे देशों के साथ अपने राजनीितक और आर्थिक संबंधों को भी मजबूत करना है. गृहमंत्री के तौर पर अमित शाह ने बीते वर्ष कईअहम फैसले लिये, जिन्हें लेकर […]

यह वर्ष देश-विदेश की प्रमुख हस्तियों की अग्निपरीक्षा का है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जहां देश की तमाम समस्याओं को सुलझाने की फिरसे पहल करनी है, वहीं दूसरे देशों के साथ अपने राजनीितक और आर्थिक संबंधों को भी मजबूत करना है. गृहमंत्री के तौर पर अमित शाह ने बीते वर्ष कईअहम फैसले लिये, जिन्हें लेकर तमाम विवाद भी हुए. इस वर्ष उन विवादों को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने की चुनौती उनके सामने है. बिहार और दिल्ली मेंइस साल चुनाव भी हैं, जहां नीतीश कुमार और अरविंद केजरीवाल पर अपनी सत्ता को बचाने का दबाव रहेगा. एक तरफ जहां नवनिर्वाचित ब्रिटिश प्रधानमंत्रीबोरिस जॉनसन का कार्यकाल अभी शुरू ही हुआ है, वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को अगले चुनाव की तैयारी करनी है. देश-विदेश की इन हस्तियों के सामनेमौजूद चुनौतियों पर एक नजर…
नरेंद्र मोदी
बीते वर्ष विपक्षी एकजुटता के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पार्टी लोकसभा चुनाव में तीन सौ से अधिक सीटें जीतने में सफलरही थी. हालांकि अर्थव्यवस्था में मंदी और रोजगार की स्थिति ने उनके लिए कम चुनौतियां पेश नहीं कीं, जबकि अर्थव्यवस्था और रोजगार के क्षेत्र में सुधारलाने के लिए उन्होंने कई कदम उठाये हैं. बीते वर्ष दिसंबर में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिकता पंजी (एनआरसी) को लेकरदेशव्यापी विरोध प्रदर्शन का सामना भी उन्हें करना पड़ा.
इस वर्ष भी देश-विदेश, दोनों ही स्तरों पर उन्हें कई चुनौतियों से लड़ना है. फरवरी में आर्थिक औरराजनीतिक दोनों मोर्चों पर उनके द्वारा उठाये कदम पर न सिर्फ विपक्षी, बल्कि आम जनता की भी नजर होगी. एक फरवरी को आम बजट प्रस्तुत होना है.
एेसे में नरेंद्र मोदी से लोगों को आशा है कि बीते वर्ष के उलट वे अर्थवस्था काे पटरी पर लाने के लिए कोई ठोस पहल करेंगे. रोजगार सृजन को लेकर भीइस वर्ष उन्हें बड़ी पहल करनी होगी. सीएए और एनआरसी के प्रस्तावों को लेकर उपजी गलतफहमियों को दूर करना भी उनके लिए बड़ी चुनौती होगी. अगलेदो वर्षों में जिन राज्यों में चुनाव होने हैं, उसे लेकर भी 2020 में प्रधानमंत्री को मंथन करना होगा, क्योंकि बीते एक साल के भीतर भाजपा पांच राज्यों मेंसत्ता से बाहर हो चुकी है.
विदेश की अगर बात करें, तो विशेष रूप से चीन-भारतीय संबंधों में स्थिरता पैदा करना प्रधानमंत्री की प्राथमिकता होनी चाहिए,क्योंकि दिल्ली और बीजिंग 2020 में राजनयिक संबंधों की 70वीं वर्षगांठ का जश्न मनायेंगे. इस अवसर पर प्रत्येक देश में 35 कार्यक्रमों की योजना तैयारकी गयी है. वहीं, इस वर्ष चीन में होनेवाले अनौपचारिक शिखर सम्मेलन के तीसरे संस्करण के लिए चीनी राष्ट्रपति के निमंत्रण को भी प्रधानमंत्री ने स्वीकारकर लिया है. दोनों देशों के राजनीतिक-आर्थिक संबंधों में मजबूती आती है या नहीं, इस पर देश की निगाह होगी. भारत-अमेरिका प्रस्तावित व्यापार समझौतेसे भी लोगों को इस वर्ष काफी उम्मीदें है.
यह साझेदारी अमेरिका और भारत के संबंधों को मजबूती दे सकती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भारत-यूरो समझौतेके अगले संस्करण के जरिये यूरोप के साथ भारत के व्यापार, निवेश, सुरक्षा आदि का विस्तार भी करना होगा. पूरे वर्ष प्रधानमंत्री को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीरपुतिन के साथ द्विपक्षीय बैठकों की शृंखला के माध्यम से रूस के साथ सहयोग के नये क्षेत्रों को खोलने की तलाश करनी होगी. जापान के अलावा दक्षिण-पूर्वएशिया, खाड़ी देशों, मध्य एशिया, जापान के साथ संबंधों को संभालने और सबके साथ साझेदारी को विस्तार देने के कदम भी 2020 में प्रधानमंत्री को उठानेहोंगे. बांग्लादेश, अफगानिस्तान, लैटिन अमेरिका व अफ्रीकी देशों के साथ रिश्तों को संभालने और उनके साथ व्यापारिक साझेदारी के लिहाज से भी यह वर्षअहम होगा…
अमित शाह
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के लिए घरेलू मोर्चे पर साल 2020 में तमाम तरह की चुनौतियां हैं. सबसे बड़ी चुनौती राष्ट्रीय जनसंख्यारजिस्टर (एनपीआर) की प्रक्रिया को निर्धारित अवधि में पूरा करने की है. जनगणना-2021 से पहले सरकार को बड़ी तैयारी के साथ इस कार्य को आगे बढ़ानाहोगा. दूसरी चुनौती, जम्मू-कश्मीर में स्थिति सामान्य करने को लेकर होगी, जहां विशेष राज्य का दर्जा हटाने के बाद बीते पांच महीनों से कड़ी निगरानी है.शांति बहाली के लिए सरकार को नये साल में कई स्तरों पर प्रयास करना होगा.
फिलहाल, नागरिकता संशोधन कानून, 2019 और नेशनल रजिस्टर ऑफसिटिजनशिप (एनआरसी) को लेकर देश के विभिन्न हिस्सों में जारी धरना-प्रदर्शन सरकार के लिए चिंताजनक है. एनपीआर मुद्दे पर राज्यों का रुख महत्वपूर्णहोगा. इसे लेकर तमाम तरह के भ्रम हैं, जिसे सरकार खत्म करने की कोशिश कर रही है. केंद्रीय गृह मंत्री के तौर पर अमित शाह की नये साल में अयोध्यामें राम मंदिर के निर्माण प्रक्रिया में अहम भूमिका होगी. गृह मंत्रालय ने अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट से जुड़े फैसले से संबंधित सभी मामलों के लिए एडिशनलसेक्रेटरी की निगरानी में अलग डेस्क बनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने बीते 9 नवंबर को अपने फैसले में राम मंदिर निर्माण के लिए तीन महीने के भीतर ट्रस्ट बनानेका आदेश दिया था. हाल में गृह मंत्री अमित शाह ने दावा किया था कि जल्द ही राम मंदिर की निर्माण प्रक्रिया शुरू की जायेगी. फिलहाल, गृह मंत्रालय बहुतसावधानी के साथ आगे की अन्य योजनाओं को बना रहा है और पूरी तैयारी के साथ लागू कर रहा है.
डोनाल्ड ट्रंप
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सामने 2020 में चुनौतियों का अंबार होगा. जहां उन्हें घरेलू मोर्चे पर सीनेट में महाभियोग का सामनाकरना है, वहीं आम चुनाव के लिए नये सिरे से तैयारी करनी है़ विदेश नीति के स्तर पर भी उन्हें एक साथ कई समस्याओं से जूझना होगा. अमेरिकी सैनिकअभी भी अफगानिस्तान में जारी अमेरिकी इतिहास के सबसे लंबे युद्ध में शामिल हैं. उत्तर कोरिया अपने नाभिकीय हथियारों के प्रोजेक्ट से अभी डिगा नहीं है.दूसरी ओर, ईरान के साथ अमेरिका का तनाव कम नहीं हो रहा है, वहीं ट्रंप की सीरिया से सैनिकों की वापसी की घोषणा नयी समस्या पैदा कर सकती है.रूस और तुर्की के साथ संबंध पहले से ही ठीक नहीं हैं. उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन और ट्रंप के बीच ऐतिहासिक बैठकें हो चुकी हैं, लेकिनउसका कोई हल नहीं निकला. पूर्व में तेहरान के साथ हुए ‌नाभिकीय समझौते से अमेरिका के बाहर निकलने के बाद अब दोनों देशों के बीच तनाव काफी बढ़चुका है.
बोरिस जॉनसन
ब्रिटेन के हालिया आम चुनाव में बड़ी सफलता हासिल कर दोबारा प्रधानमंत्री बननेवाले बोरिस जॉनसन की नये साल में कड़ी परीक्षा होगी.‘गेट ब्रेक्जिट डन’ के जिस नारे के साथ जॉनसन चुनाव मैदान में उतरे थे, अब अगले कुछ दिनों में उसे साकार करने के लिए उन्हें कड़ी मशक्कत करनीहोगी. विशेषज्ञों का मानना है कि बोरिस जॉनसन को दूसरे विश्वयुद्ध के बाद सबसे कठिन संक्रमण के दौर से गुजरना है. दरअसल, बोरिस के सामने ब्रेक्जिटही नहीं, कई अन्य चुनौतियां भी हैं, जैसे- मंद पड़ती अर्थव्यवस्था, ब्रेक्जिट के बाद यूरोपीय समूह के साथ व्यापार संबंधों और अमेरिका एवं अन्य देशों के साथराजनीतिक-आर्थिक संबंधों को सुधारने के लिए नये सिरे से पहल आदि. ब्रेक्जिट प्रक्रिया पूरा करने के लिए निर्धारित समयावधि 31 जनवरी, 2020 है. हाउसमें कंजरवेटिव सरकार का बहुमत है, लिहाजा ब्रेक्जिट के लिए ‘विड्राॅल एग्रीमेंट बिल’ पास करने में आसानी होगी. लेकिन ब्रेक्जिट के अलावा एसएनपी भीकंजरवेटिव सरकार के लिए चुनौती प्रस्तुत करेगी.
नीतीश कुमार
इस वर्ष बिहार में विधानसभा चुनाव होना हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी सत्ता को बचाये रखने की होगी.लेकिन जदयू, भाजपा और एलजेपी के बीच सीट बंटवारे को लेकर अभी से विवाद सामने आने लगे हैं. लोकसभा चुनाव में भले ही भाजपा-जदयू बिहार मेंक्लीन स्वीप करने में कामयाब रही हो, लेकिन उपचुनाव में जदयू का ग्राफ गिरा है और राजद का जनाधार बढ़ा है. हाल ही में झारखंड में गठबंधन के सफलप्रयोग से राजद को जैसे संजीवनी मिल गयी है. तेजस्वी यादव व कांग्रेस मिल कर इस सफलता को बिहार में भी दोहराना चाहेंगे. ऐसे में नीतीश कुमार कोपांचवीं बार मुख्यमंत्री बनने के लिए विपक्ष से कड़ा मुकाबला करना होगा.
बीते साल बाढ़ की विभीषिका ने राज्य में जो तबाही मचायी थी उससे क्या सबक सीखा गया, इस बार उस पर भी लोगों की निगाहें होगी. शिक्षा, स्वास्थ्य और महिला सुरक्षा को बेहतर करना भी इस वर्ष उनकी प्राथमिकता होनी चाहिए. नीतीश कुमार की महत्वाकांक्षी परियोजना जल-जीवन-हरियाली को उद्योग सेजोड़ने का उनका प्रयास चुनाव से पहले कार्यरूप ले पाता है या नहीं, यह देखना भी इस वर्ष दिलचस्प होगा. वहीं, तेजस्वी यादव के सामने भी अपनी पार्टी केवजूद को बचाये रखने की चुनौती है़
अरविंद केजरीवाल
दिल्ली विधानसभा के चुनाव फरवरी में प्रस्तावित हैं. ऐसे में सवाल है कि क्या 15 साल तक सत्ता में रह चुकी कांग्रेस के लिए कोई मौकाहै या फिर भाजपा 22 साल बाद सत्ता में वापसी करेगी. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में कांग्रेस के लिए लड़ाई बिल्कुल भी आसान नहीं है. भाजपा भरपूर कोशिशकर रही है, लेकिन अपने पांच साल में किये कार्यों के भरोसे केजरीवाल सत्ता में वापसी को लेकर आश्वस्त हैं. साल 2015 के चुनाव में केजरीवाल की पार्टी नेराज्य की 70 सीटों में 67 सीटें जीत कर विपक्षी दलों का सफाया कर दिया था. पांच साल के बाद केजरीवाल ने भाजपा समेत सभी दलों को उनकी सरकारके कार्यों की समीक्षा के लिए चुनौती दी है. सरकार के रिपोर्ट कार्ड में भ्रष्टाचार मुक्त और आम जन के लिए बेहतर शासन का भले ही दावा किया गया है,लेकिन भाजपा का शीर्ष नेतृत्व वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए केजरीवाल सरकार पर हमलावर है. भाजपा द्वारा दिल्ली में मुख्यमंत्री पद के लिए किसीचेहरे को आगे नहीं किया गया है, जबकि आम आदमी पार्टी का पूरा चुनावी अभियान केजरीवाल के इर्द-गिर्द है. केजरीवाल सरकार इस बात को लेकर आश्वस्तहै कि बिजली-पानी मुफ्त करने जैसी घोषणाएं आम जन को आकर्षित करेंगी. कुल मिला कर यह पूरा चुनावी समर केजरीवाल बनाम अन्य होने की संभावना
है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें