ऑस्ट्रेलिया में जंगली आग का कहर
ऑस्ट्रेलिया इस सदी के सबसे भयावह जंगल की अाग से जूझ रहा है. पिछले वर्ष सितंबर से ही यह आग ऑस्ट्रेलिया को झुलसा रही है. आग इतनी खतरनाक है कि इसकी लपटों और धुएं से दिन में आसमान का रंग नारंगी, लाल और काले रंग में तब्दील हो जाता है. इस आग में लाखों हेक्टेयर […]
ऑस्ट्रेलिया इस सदी के सबसे भयावह जंगल की अाग से जूझ रहा है. पिछले वर्ष सितंबर से ही यह आग ऑस्ट्रेलिया को झुलसा रही है. आग इतनी खतरनाक है कि इसकी लपटों और धुएं से दिन में आसमान का रंग नारंगी, लाल और काले रंग में तब्दील हो जाता है. इस आग में लाखों हेक्टेयर वन क्षेत्र जलकर खाक हो चुका है. बीस हजार से अधिक घर नष्ट हो गये हैं और बड़ी संख्या में लोगों को बेघर होना पड़ा है. करोड़ों जीव-जंतु भी इस आग से प्रभावित हुए हैं.
न्यू साउथ वेल्स पर सर्वाधिक असर
आग से ऑस्ट्रेलिया के सभी राज्य प्रभावित हैं, लेकिन इसका सर्वाधिक असर न्यू साउथ वेल्स में देखने को मिला है. 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान और तेज हवाओं के कारण यह आग ज्यादा भड़क गयी. इसके बाद आग बुझा रहे फायरफाइटर्स के लिए भी हालात मुश्किल हो गये. इस राज्य का छोटा शहर बालमोरल आग से सबसे ज्यादा प्रभावित है. अनियंत्रित आग के चलते यहां आपातकाल लागू कर दिया गया है.
पार्क, जंगल के बीच रास्ते और कैंपिंग ग्राउंड बंद कर दिये गये हैं और छुट्टी बिताने आये लोगों को न्यू साउथ वेल्स तट के आसपास का 260 किमी का इलाका खाली करने के लिए कहा गया है. वहीं हजारों लोगों को अपना घर छोड़कर शिविरों में रहना पड़ रहा है. इस राज्य के सिडनी शहर में भी हालात मुश्किलों भरे हैं. धुएं के कारण दिसंबर में सिडनी की हवा की गुणवत्ता बेहद खराब हो गयी.
हवा खतरनाक स्तर से 11 गुना अधिक पर पहुंच गयी. इस राज्य में अभी भी सौ से अधिक जगहों पर आग की लपटें उठ रही हैं. न्यू साउथ वेल्स के बाद दूसरा सबसे प्रभावित राज्य विक्टोरिया है. यहां के तकरीबन आठ लाख हेक्टेयर क्षेत्र आग की चपेट में है. यहां नवंबर, 2019 के अंत में आग लगी थी, लेकिन बीते कुछ दिनों से भयावह रूप अख्तियार कर ली है और तबाही मचा रही है.
पूर्वी गिप्पसलैंड में आठ जनवरी तक दो लोगों की मौत हो गयी थी और 43 घर आग में नष्ट हो गये थे. यहां के छोटे से शहर मल्लाकूटा में 31 दिसंबर को लोग राहत के लिए घर छोड़कर समुद्रतट पर जा पहुंचे थे, क्योंकि हवा के रुख बदलने के कारण आग तट तक नहीं पहुंची थी.
80 लाख हेक्टेयर क्षेत्र आग की चपेट में
जंगलों में लगी आग ने ऑस्ट्रेलिया के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य न्यू साउथ वेल्स में सर्वाधिक क्षति पहुंचायी है. इस इलाके का लगभग 50 लाख हेक्टेयर क्षेत्र आग की चपेट में आ चुका है. लगभग 16 हजार घर नष्ट हो गये हैं, जबकि 700 से अधिक घर क्षतिग्रस्त हो गये हैं.
कुल मिलाकर ऑस्ट्रेलिया के छह राज्यों के लगभग 80 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में आग से तबाही मची है. यह क्षेत्र बेल्जियम और डेनमार्क जैसे देशों से बड़ा है.
इस आपदा ने देशभर में कम से कम 27 लोगों की जान ली है, जिनमें कई फायरफाइटर वॉलंटियर भी शामिल हैं.
मारे गये हैं लाखों पशु-पक्षी
केवल न्यू साउथ वेल्स में ही 50 करोड़ जानवर प्रभावित हुए हैं, जिनमें लाखों के मारे जाने की संभावना है. इस राज्य ने अाग से प्रभावित होनेवाले जानवरों में पक्षी, सरीसृप और स्तनधारी (चमगादड़ को छोड़कर) को शामिल किया है. इस सूची में कीट-पतंगे और मेंढ़क को भी जगह नहीं दी गयी है. प्रभावित जानवरों की संख्या अनुमान से कहीं अधिक हो सकती है.
फेडरल एनवॉयरमेंट मिनिस्टर सुसन ले का अनुमान है कि न्यू साउथ वेल्स की तकरीबन एक तिहाई कोआला इस आपदा में मारी जा सकती हैं और एक तिहाई के निवास स्थान नष्ट होने की संभावना है. सिडनी यूनिवर्सिटी की इकोलॉजिस्ट का कहना है कि कोआला देशभर में फैले हुए हैं,
इसलिए इस आग से उनके तत्काल विलुप्ति का खतरा नहीं है. लेकिन जिन जीवों की जनसंख्या कम है, अगर इस आग में उनके निवास स्थान को क्षति पहुंची हैं तो वे पूरी तरह समाप्त हो सकते हैं. ऐसे जीवों में कुछ विशेष प्रकार के मेंढक और पक्षी शामिल हैं.
ऑस्ट्रेलिया में 10 हजार ऊंटों को मारने का आदेश
पानी की कमी के कारण दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया में 10 हजार जंगली ऊंटों को मारने का आदेश जारी किया गया है. आदेश के अनुसार, हेलीकॉप्टर से पेशेवर शूटर 10 हजार ऊंटों को मार गिरायेंगे. दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया के लोग लगातार शिकायत कर रहे थे कि ऊंट पानी की तलाश में उनके घरों में घुस जाया करते हैं. इसके बाद ऊंटों को मारने का फैसला किया गया है.
साउथ ऑस्ट्रेलियन डिपार्टमेंट फॉर एनवायर्नमेंट एंड वाटर (डीईडब्ल्यू) ने कहा यह इसलिए जरूरी है क्योंकि इनकी संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है और इस समय देश में पानी की किल्लत है. ऊंट अपेक्षाकृत अधिक पानी पीते हैं. पानी की तलाश में घरों में पहुंचनेवाले ऊंटों के पहुंचने से भगदड़ मच जाती है.
नेताओं को चिंता है कि ये जानवर ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ा रहे हैं, क्योंकि वो एक साल में एक टन कॉर्बन डाइऑक्साइड के बराबर मीथेन का उत्सर्जन करते हैं. राष्ट्रीय कीट ऊंट प्रबंधन योजना के अनुसार, जंगली ऊंट की आबादी हर नौ साल में दोगुनी हो जाती है. कॉर्बन खेती के विशेषज्ञ टिम मूर ने मुताबिक, ये जानवर प्रति वर्ष मीथेन का उत्सर्जन कर रहे हैं और यह सड़कों पर अतिरिक्त 4,00,000 कारों के बराबर है.
मानवीय गतिविधियां भी हैं आपदा का कारण
ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में आग लगने की घटना कोई नयी नहीं है. हर साल गर्मी के मौसम में यहां ऐसा होता है. इसलिए गर्मी के मौसम को यहां आग का मौसम भी कहते हैं. गर्म और सूखे मौसम के कारण यहां के जंगलों में बड़ी आसानी से आग लग जाती है और धीरे-धीरे फैल जाती है. अाग लगने की अधिकांश घटना के लिए प्राकृतिक कारणों को जिम्मेदार माना जाता है.
उदाहरण के लिए, अत्यधिक गर्मी और सूखे के कारण झुलसे जंगलों में बिजली का गिरना भी आग लगने की वजह बनती है. स्टेट एजेंसी विक्टोरिया इमरजेंसी के अनुसार, 2019 के दिसंबर के उत्तरार्ध में विक्टोरिया के पूर्वी गिप्पसलैंड क्षेत्र में बिजली गिरने से आग की शुरुआत हुई, जिसने महज पांच घंटे में ही 20 किलोमीटर क्षेत्र को अपनी गिरफ्त में ले लिया.
जंगल की इस आग के लिए मानवीय गतिविधियां भी जिम्मेदार हो सकती हैं. पुलिस का कहना है कि नवंबर के बाद जानबूझकर जंगलों में आग लगाने के लिए न्यू साउथ वेल्स की पुलिस ने 24 लोगों को आरोपित किया है और आग लगाने संबंधी अपराध के लिए 183 लोगों पर कानूनी कार्रवाई की गयी है.
भारत में भी बढ़ी जंगलों की आग
20 जुलाई, 2018 को सदन में सरकार द्वारा बताया गया कि देश में जंगली आग की 35,888 घटनाएं हुई. सर्दियों और मॉनसून पूर्व अवधि में लंबे समय तक सूखा रहने से वन्य क्षेत्रों के तापमान में वृद्धि हो जाती है, जो आग लगने का बड़ा कारण बनता है.
फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार, देशभर में आग लगने की 4,225 घटनाएं नवंबर, 2018 से फरवरी, 2019 के बीच रहीं. साल 2016 में 24,817, 2017 में 35,888 और 2018 में 37,059 बार जंगलों में आग लगी.
ग्लोबल फारेस्ट वॉच की रिपोर्ट के मुताबिक, 2003 से 2017 के बीच भारत में जंगली आग में 46 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि 2015-2017 के बीच इसमें 125 प्रतिशत का इजाफा हुआ है.
इन कारकों ने स्थिति को गंभीर बनाया
ऑस्ट्रेलियामें आग का मौसम (ग्रीष्म ऋतु) हमेशा ही खतरनाक होता है. वर्ष 2009 में विक्टोरिया में इस आग ने एक ही दिन में 173 लोगों की जान ले ली थी. आग के फैलते जाने और उसे बुझाने में परेशानी के कारण इस वर्ष की स्थिति असामान्य रूप से गंभीर हो गयी है.
यह देश सदी के सर्वाधिक भयावह सूखे की चपेट में है. यहां के मौसम विज्ञान ब्यूरो का कहना है कि पिछले बसंत में रिकॉर्ड सूखा दर्ज किया गया है.
बीते दिसंबर चलनेवाली गर्म हवा के कारण राष्ट्रव्यापी तापमान रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया. कुछ स्थानों पर तो यह 40 डिग्री सेल्सियस से भी ऊपर चला गया.
तेज हवा के कारण आग और धुआं तेजी से फैले, जिसने आग को बढ़ा दिया.
विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन ने आग और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के दायरे को और प्रतिकूल किया है. इसी कारण मौसमी बदलाव में अति देखने को मिल रही है. न्यू साउथ वेल्स के फायर एंड रेस्क्यू डिपार्टमेंट के पूर्व कमिश्नर सहित इमरजेंसी सर्विस अधिकारियों ने 2019 में प्रधान मंत्री स्कॉट मॉरिसन को एक पत्र लिखा था,
जिसमें ऑस्ट्रेलिया पर जलवायु परिवर्तन के इन प्रभावों को लेकर चेताया गया था. इसके जवाब में मॉरिसन ने कॉर्बन उत्सर्जन को कम करने की प्रतिबद्धता पर जोर दिया था और देश को आग से बचाने के लिए सोच-समझकर नीतियां बनाने की बात भी कही थी.
सरकार ने आग पर काबू पाने के लिए किये उपाय
ऑस्ट्रेलिया के राज्य और संघीय अधिकारी महीनों से इस संकट से निपटने के लिए काम कर रहे हैं. इसी महीने विक्टोरिया ने आपदा की स्थिति और न्यू साउथ वेल्स ने आपातकालीन स्थिति घोषित की है. दोनों राज्यों ने आग से निपटने के लिए असाधारण शक्तियां और अतिरिक्त सरकारी संसाधन दोनों उपलब्ध कराये हैं. वहीं क्वींसलैंड राज्य ने भी बीते नवंबर संक्षिप्त रूप से आपातकालीन स्थिति की घोषणा की थी.
अकेले न्यू साउथ वेल्स में ही दो हजार फायरफाइटर्स आग पर काबू पाने में लगे हुए हैं, जबकि अमेरिका, कनाडा और न्यूजीलैंड ने भी मदद के लिए अतिरिक्त फायरफाइर्स भेजे हैं.
संघीय सरकार ने भी आग पर काबू पाने, लोगों को निकालने, खोज व बचाव और साफ-सफाई के लिए सेना के जवान, वायुसेना के विमान और नेवी क्रूज जैसी सैन्य सहायता मुहैया करायी है.
मॉरिसन प्रशासन ने संघीय सहायता के तहत तीन अरब ऑस्ट्रेलियाई डॉलर का अनुदान दिया है ताकि स्कूल और स्वास्थ्य सुविधाओं से जुड़ी महत्वपूर्ण बुनियादी संरचनाओं का पुनर्निमाण किया जा सके.
10 दिनों से अधिक समय से आग बुझाने के लिए जूझ रहे वॉलंटियर फायरफाइटर्स की मदद के लिए प्रधानमंत्री ने पहले ही प्रति वॉलंटियर 4,200 डॉलर की राशि देने की घोषणा की है. इतना ही नहीं, इन फायरफाइटर्स को मुआवजा और अतिरिक्ति छुट्टी देने की बात भी प्रधानमंत्री ने कही है.
ऑस्ट्रेलिया की आग ‘क्लाइमेट सुसाइड’!
सा ल 2019 में दुनियाभर के कई हिस्सों में लगी आग से बड़े स्तर पर जानमाल का नुकसान हुआ, लेकिन ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी आग कहीं अधिक डरावनी है. वजह साफ है कि ग्लोबल वार्मिंग, जिससे हरा-भरा क्षेत्र राख के ढेर में तब्दील हो रहा है.
ऑस्ट्रेलिया में बीते दिसंबर महीने में औसत तापमान 41.8 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया. दक्षिणी गोलार्ध में दिसंबर गर्मियों की शुरुआत का महीना होता है.
मौसम का अप्रत्याशित मिजाज और उतार-चढ़ाव मौजूदा भयावह आगजनी का कारण बन रहा है. विशेषज्ञ तेजी से आते मौसमी बदलाव की वजह ग्लोबल वार्मिंग को मानते हैं. आग लगने से लेकर बाढ़ की विभीषका तक के लिए जिम्मेदार जलवायु परिवर्तन है. अब सवाल है कि इन समस्याओं से निपटने के लिए हमारी तैयारी कैसी है.
ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी की क्लाइमेट साइंटिस्ट नेरेली अब्राहम के अनुसार, एक डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी से हुई ग्लोबल वार्मिंग का असर इतना डरावना है, तो तीन डिग्री सेल्सियस या अधिक का प्रभाव कितना खतरनाक होगा? दुर्भाग्य से हम उसी रास्ते पर तेजी से बढ़ रहे हैं.
वैश्विक समस्या, पर कोई गंभीर नहीं
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन का कहना है कि मौजूदा समस्या के समाधान के लिए वैश्विक स्तर पर पहल हो. हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि अगर ऑस्ट्रेलिया ने अपने स्तर पर तैयार की होती, तो तबाही से कुछ हद तक बचा जा सकता था. ऑस्ट्रेलिया वैश्विक स्तर पर कुल कॉर्बन उत्सर्जन के 1.3 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार है. यहां जीवाश्म ईंधन उद्योग का बड़ा प्रभाव है. ये उद्योग ऑस्ट्रेलिया के राजनीति दलों की सहायता भी करते हैं.
सभी बड़ी और समृद्ध अर्थव्यवस्था वाले देश विशेषकर अमेरिका और यूरोपीय देशों की आर्थिक गतिविधियों के चलते औसत तापमान में वृद्धि हो रही है.
भारत और चीन जैसी बड़ी विकासशील अर्थव्यवस्था वाले देशों की उत्सर्जन रोकने में अहम भूमिका हो सकती है.
पिछले 10 सालों में जितना कॉर्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन हुआ है, उतना मानव इतिहास में कभी नहीं हुआ. पर्यावरण विशेषज्ञ जोर देते हैं कि यह आंख मूंदने का नहीं, बल्कि जागने का समय है.
औसत तापमान वृद्धि से बढ़ा संकट
वर्तमान में औसत वैश्विक तापमान 20वीं सदी के औसत से 1.71 डिग्री फॉरेनहाइट से अधिक हो चुका है. बढ़ती गर्मी कई सर्द हिस्सों को भी अपने चपेट में ले रही है.
नीदरलैंड, जर्मनी, बेल्जियम आदि देशों में तापमान के नये रिकॉर्ड बन रहे हैं. बढ़ती उष्णता से कई क्षेत्रों में आग लग रही है और इसका लंबा दौर चल रहा है. बीते वर्ष अलास्का और कैनरी द्वीप में सूखा रहा. गर्मी से वनस्पतियां नष्ट हो रही हैं.
अमेजन वनों में हो चुका है नुकसान
पिछले वर्ष जून में वनों के नष्ट होने में 90 प्रतिशत व जुलाई में 28 प्रतिशत की वृद्धि हुई.
धरती की जलवायु प्रणाली में अमेजन की अहम भूमिका है. यह एक चौथाई कॉर्बन को नियंत्रित करता है और हर साल पांच प्रतिशत कॉर्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करता है.
अन्य हिस्सों में भी जंगलों की आग
- 2019 में साइबेरिया के जंगल में 21 हजार मील क्षेत्र आग की चपेट में था.
- कैनरी द्वीप के जंगलों में लगी आग से बड़ी संख्या में लोगों को विस्थापित होना पड़ा.
- अलास्का में साल भर आग लगने का सिलसिला चलता रहा.
- डेनमार्क में भी आग लगी. इससे ग्रीनलैंड में बर्फ तेजी से पिघल सकती है.
2018 में कैलीफोर्निया विनाशकारी जंगली आग की चपेट में था.
पिछले साल बोलिविया के चिक्विटैनो जंगलों में लगी आग से आठ लाख एकड़ जंगल नष्ट हो गये. इस पारिस्थितिकीय नुकसान की भरपाई करने में दो सदी लग जायेगी.