हां, हम काले हैं: काली चट्टानों से फूटते निर्झर थे खगेंद्र ठाकुर
कुमार मुकुल, कवि आज जब पत्रकार मित्र से यह दु:खद सूचना मिली कि डॉ खगेंद्र ठाकुर नहीं रहे, तो अचानक धक्का सा लगा़ उनसे मिले इधर एक अरसा हो गया था, पर मन में यह था कि अगली बार पटना जाने पर उनके घर जाना, मिलना, बैठना, बतियाना होगा, हमेशा की तरह़ अफसोस, अब ऐसा […]
कुमार मुकुल, कवि
25 साल पहले जब पहली बार मैं सहरसा से पटना आया था तब उनसे जनशक्ति के दफ्तर में मुलाकात होती थी. मेरी कुछ कविताएं उन्होंने तब जनशक्ति में छापी थीं. लेखन के आरंभिक दौर में हम जैसे युवा लेखकों के लिए इस तरह वे खड़े होने को नयी जमीन बनानेवालों में थे. बाद में वे जब पड़ोस के मुहल्ले के निवासी हो गये तब पड़ोसी व लेखक मित्र राजूरंजन प्रसाद के साथ जब तब उनके यहां जाना होता था. तब जमकर चाय-नाश्ते के बीच हमलोगों में देश-दुनिया के तमाम विषयों पर बातें होतीं. पटना में रहते हुए वे हम जैसे लेखकों के लिए बाहर के बड़े लेखकों से जोड़ने वाले एक पुल की तरह थे. प्रगतिशील लेखक संघ के कार्यक्रमों में जब नामवर सिंह, भगवत रावत आदि बाहर के बड़े लेखकों का आगमन होता, तो खगेंद्र जी के सौजन्य से हमें इन लेखकों का साथ पाने का मौका मिलता.
खगेंद्र ठाकुर मूलत: आलोचक थे. उनके अनुसार-आलोचक का बुनियादी दायित्व किसी रचनाकार या रचना के प्रति नहीं, पाठकों के प्रति भी नहीं, बल्कि संबद्ध सामाजिक शक्तियों के ऐतिहासिक ध्येय के प्रति होता है. इस संदर्भ में वे लेखक से सामाजिक प्रतिबद्धता की मांग करते थे. उन्होंने कविताएं भी लिखीं और उनके दो कविता संकलन आए, हालांकि उनकी कविताएं बाकी आलोचकों की कविताओं की तरह उनकी आलोचना से होड़ नहीं ले पातीं. बावजूद इसके वे उनके आत्मसंघर्ष को सरलता से बखूबी प्रकट करती हैं-
विधान पार्षद राम वचन राय ने उनके निधन पर शोक जताते हुए कहा कि खगेंद्र जी बड़े ही संघर्षशील व्यक्ति थे. राजनीति और साहित्य दोनों पर उनकी गहरी पकड़ थी. वह अच्छे संगठनकर्ता थे. प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़कर इसे नयी ऊंचाई दी. वह सबको साथ लेकर चलने वालों में से थे. सभी विचारधारा के लोगों से उनके मधुर संबंध थे. अपने अंतिम समय तक वे सक्रिय रहे. साहित्यिक समाज में उन्हें बहुत सम्मान हासिल था. मेरी विनम्र श्रद्धांजलि उन्हें है.
उनके निधन पर लेखक ऋषिकेश सुलभ ने कहा कि खगेंद्र जी मेरे लिए केवल एक लेखक ही नहीं बल्कि परिवार के वरीय सदस्य थे. उनसे हमारा लगभग 45 वर्ष पुराना पारिवारिक संबंध रहा है. उनका जाना बेहद पीड़ादायक है. प्रगतिशील आंदोलन को उन्होंने अपने नेतृत्व से गतिशील बनाये रखा. उनकी आस्था मनुष्य की गरिमा के लिए चलने वाले संघर्षों में थी. वे चिंतक, आलोचक के साथ ही कवि भी थे.
खगेंद्र ठाकुर अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेस) के लंबे समय तक राष्ट्रीय महासचिव रहे. पिछले साल सितंबर माह में जयपुर में हुए प्रलेस के राष्ट्रीय सम्मेलन में भी उन्होंने हिस्सा लिया था. इससे पूर्व वे बिहार प्रगतिशील लेखक संघ के भी महासचिव रह चुके थे. सुल्तानगंज (भागलपुर) के मुरारका कॉलेज में हिंदी के प्राध्यापक रहे. साहित्य के साथ साथ शिक्षक आंदोलन से भी खगेंद्र ठाकुर का गहरा जुड़ाव था. शिक्षक आंदोलन, कम्युनिस्ट पार्टी और लेखक संघ की व्यस्तता के कारण नौकरी के दौरान ही उन्होंने अवकाश ग्रहण कर लिया था. वे पटना से निकलने वाले ‘जनशक्ति ‘ अखबार के साहित्य संपादक भी थे. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआइ) से वे आजीवन जुड़े रहे. बिहार का बंटवारा होने पर वे झारखंड की कम्युनिस्ट पार्टी से संबद्ध हो गये. उनका गृह जिला भी झारखंड के गोड्डा में है. कम्युनिस्ट पार्टी उन्हें एक बार राज्यसभा भेजना चाहती थी लेकिन खगेंद्र ठाकुर ने विनम्रतापूर्वक मना कर दिया. कम्युनिस्ट पार्टी व मार्क्सवाद के प्रति उनकी आस्था हमेशा अडिग रही.
बिहार के प्रगतिशील साहित्यिक व सांस्कृतिक आंदोलन के खगेंद्र ठाकुर शलाका पुरुष रहे. संगठन व सृजन इन दोनों को उन्होंने अलग-अलग कर नहीं देखा. बाबा नागार्जुन खगेन्द्र ठाकुर के प्रिय कवियों में थे. उन्होंने अपनी एक पुस्तक नागार्जुन पर लिखी. जयप्रकाश आंदोलन के नेतृत्व में चले छात्र आंदोलन के दौरान नागार्जुन जब जेल से बाहर आये तो उन्होंने पहला साक्षात्कार खगेन्द्र ठाकुर को दिया जिसमें उन्होंने आंदोलन को लेकर काफी तल्ख टिपणियां की थी. नागार्जुन के अलावा खगेंद्र ठाकुर ने रामधारी सिंह दिनकर, भगवत शरण उपाध्याय पर किताब लिखी. खगेंद्र ठाकुर ने छायावाद पर शोध किया था. कुछ वर्ष पूर्व उन्होंने कहानियों की आलोचना पर केंद्रित पुस्तक लिखी थी ‘ विकल्प की प्रक्रिया उनकी एक अन्य चर्चित कृति रही है. विभिन्न पुस्तकों के लेखक खगेंद्र ठाकुर ने कई पत्र-पत्रिकाएं निकालीं, बिहार में घूम-घूम कर, दूर दराज के क्षेत्रों में प्रगतिशील लेखक संगठन के लिए दौरा किया. 1980 में जब प्रेमचंद की जनशताब्दी मनाई जा रही थी तब खगेन्द्र ठाकुर ने पूरे बिहार में सैकड़ों सभाओं व कार्यक्रमों का आयोजन किया.