आयुर्वेदिक आहार-विहार से माघ में खुद को रखें स्वस्थ
डॉ वेंकटेश कात्यायन पांडेय आयुर्वेदाचार्य आरोग्यं आयुर्वेद, मोराबादी, रांची माघ महीने में बर्फीली हवाओं के बीच मकर संक्रांति के आगमन के साथ ही सूर्य धीरे-धीरे उत्तरायण की ओर होने लगता है और उसकी ऊष्मा बढ़ने लगती है. हवा में रूखापन भी बढ़ने लगता है. वातावरण में चंद्रमा का प्रभाव धीरे-धीरे क्षीण होना शुरू हो जाता […]
डॉ वेंकटेश कात्यायन पांडेय
आयुर्वेदाचार्य
आरोग्यं आयुर्वेद, मोराबादी, रांची
माघ महीने में बर्फीली हवाओं के बीच मकर संक्रांति के आगमन के साथ ही सूर्य धीरे-धीरे उत्तरायण की ओर होने लगता है और उसकी ऊष्मा बढ़ने लगती है. हवा में रूखापन भी बढ़ने लगता है. वातावरण में चंद्रमा का प्रभाव धीरे-धीरे क्षीण होना शुरू हो जाता है और सूर्य के अमृत तत्व की प्रधानता रहती है. शाक, फल, वनस्पतियां इस अवधि में अमृत तत्व को अपने में सर्वाधिक आकर्षित करती हैं और उसी से पुष्ट होती हैं. इस बदलते मौसम में हमारा आहार-विहार कैसा हो, इसकी आयुर्वेद में विस्तार से चर्चा है.
माघ महीना हमारे जीवन के एक नये बसंत का आगमन है. इस समय हेमंत ऋतु का समापन होता है और शिशिर ऋतु शुरू होती है. एक तरह से यह जाड़े और गर्मी के बीच का संक्रमण काल है. इस दौरान शरीर को स्वस्थ रखने के लिए विशेष सावधानी की जरूरत होती है. आयुर्वेद में इसके लिए विस्तार से ऋतुचर्या, दिनचर्या, रात्रिचर्या का वर्णन किया गया है. माघ महीने में ठंड घटती-बढ़ती रहती है, आहार-विहार में जिसका ख्याल रखना आवश्यक है.
ठंड में शरीर के रोम सिकुड़ने से शरीर का ताप बाहर नहीं निकल पाता और अंदर की गर्मी पड़ी रहती है. हमारे हृदय को बहुत अधिक काम करना होता है इसलिए भी हमारे जठराग्नि प्रबल रहती है, इसलिए हम इस मौसम में भारी खाद्य पदार्थ भी पचाने में सक्षम होते हैं. भोजन जितने अच्छे से पचेगा उतना ही अधिक रस हमारे शरीर में बनेगा. रस से सुंदर रक्त बनेगा. मांस, मज्जा और इसकी गुणवत्ता की वृद्धि से हमारा शरीर निरोग व सुडौल बनता है.
माघ महीने में प्रातः काल दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर आंवला पाक, तीसी व मेथी के पाक या लड्डू का सेवन करें. बाजरे का दलिया, गुड़ का सेवन करें. रात में चांदी भस्म, सितोपलादि, स्वर्ण-भस्म, मकरध्वज, मिश्री का दूध, मक्खन, मलाई के साथ सेवन करें तो यह हमें सालभर बीमारी से बचाने में सहायक होता है.
इस दौरान स्वस्थ रहने के लिए कुछ आवश्यक शर्ते हैं. जैसे हमारा समय पर जागरण हो, दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होने की प्रक्रिया जिसे हम शौच कहते हैं वह समय पर हो. उठते ही मुख प्रक्षालन के बाद गुनगुने पानी का सेवन करें. हम सिर पर सप्ताह में तीन बार तेल की मालिश करें. योग, प्राणायाम, स्नान का हमें रोज करना चाहिए.
इस मौसम में हरीतकी (हर्र) और सोंठ का सेवन रोज करें तो हमें यह स्वस्थ रखेगा. साथ ही अपना मन-चित्त प्रसन्न रखना चाहिए. इस ऋतु में मौसम के उतार-चढ़ाव को देखते हुए जुकाम, बुखार, निमोनिया की आशंका अधिक रहती है. इसलिए माघ महीने में अगर किसी दिन ठंड कम भी पड़ रही हो तो पर्याप्त ऊनी वस्त्र धारण करें. ऐसी चीजों के सेवन से बचें जिनका प्रभाव शीतल हो.
तिल-गुड़ का महत्व : मकर संक्रांति पर शीत काल अपने यौवन पर रहता है. शीत के प्रतिकार तिल, तेल आदि बताये गये हैं. माघ महीने में ठंड रहने के कारण अनेक प्रकार के स्वास्थ्यवर्धक पाक, मेवों, दूध, गुड़-मूंगफली आदि का महत्व बताया गया है, क्योंकि तिल आपके शरीर के तापमान को बनाये रखता है और इसमें प्रचुर मात्रा में कैल्शियम, विटामिन डी, अमीनो एसिड, एंटीऑक्सीडेंट शरीर को बीमारी से लड़ने की प्रचुर क्षमता प्रदान करते हैं. दिल को मजबूती प्रदान करते हैं.
मूत्र संबंधित बीमारियों में भी तिल प्रयोग करना चाहिए. तिल खासतौर पर अस्थि यानी हड्डी, त्वचा, केश व दांतों को मजबूत बनाता है. बादाम की अपेक्षा तिल में छह गुना से भी अधिक कैल्शियम है, इसलिए इस ऋतु में आनेवाले व्रत-त्योहार में तिल के सेवन करने के लिए कहा गया है.
बदलते मौसम में सावधानी जरूरी
चूंकि इस ऋतु में ठंड कभी तीव्र तो कभी कम हो जाती है. अतः बहुत सावधानी से आहार-विहार को अपनाना चाहिए. स्वास्थ्य के लिहाज से, आयुर्वेद में मूली और धनिया माघ में खाना वर्जित बताया गया है. दरअसल, मूली की प्रकृति ठंड़ी होती है और यह पानी से भरी होती है. माघ में मूली के साथ धनिया पत्ती खाना जहर समान होता है. यह कफ, जुकाम और वायरल फीवर का कारण बन सकता है. साथ ही पेट में कृमि भी हो सकते हैं.
ऐसी दिनचर्या त्यागें : देर तक सोना, देर से उठना, आलसी बने रहना, व्यायाम न करना, बहुत ज्यादा स्नान करना, ठंड को सहना, रात्रि को देर से भोजन.
ठंड की तकलीफों से बचायेगा यह काढ़ा
आयुर्वेद में काढ़े का विशेष महत्व है. ठंड में सर्दी-खांसी, गले की खराश आदि की तकलीफ में काढ़े से राहत पा सकते हैं. इससे प्रतिरोधक तंत्र को भी मजबूती मिलती है. इसे बनाने के लिए पतीले में दो गिलास पानी तेज आंच पर उबालें. पानी उबलने पर जीरा, सौंफ और अजवाइन मिलाएं और फिर आंच धीमी कर सभी सामग्रियों को पकने दें. जब पानी का रंग भूरा होने लगे तो दालचीनी के साथ बड़ी और छोटी इलायची डालें. कुछ देर में उतार लें और एक गिलास में एक चुटकी काली मिर्च डाल कर काढ़े को उसमें डालें और पीएं.
क्या करें क्या न करें
पतला, शीतल, वातवर्धक भोजन.
भूखे पेट रहना एवं अधिक उपवास.
शर्बत एवं शीतल पेय का सेवन.
कटु, तिक्त व काषाय भोजन का ज्यादा सेवन.
संतरा, रसभरी या मुसंबी जैसे रसीले फलों का सेवन.
आमचूर, आम का अचार, खट्टी दही,मूली, धनिया पत्ता का इस्तेमाल.