गणतंत्र दिवस और भारत के समक्ष चुनौतियां

नृपेन्द्र अभिषेक नृप महाप्रलय की ध्वनियों में जो जनता सोती है, गणतंत्र दिवस आज उनको दे रही चुनौती है. गणतंत्र दिवस हमारी प्राचीन संस्कृति का गरिमा का गौरव दिवस है. भारत आज लोकतंत्र की मशाल जलाते हुए दुनिया में आशा-उमंग, शांति के आकर्षण का केंद्र बिंदु बन गया है. इसी दिन हमारे संविधान के शरीर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 25, 2020 9:06 AM
नृपेन्द्र अभिषेक नृप
महाप्रलय की ध्वनियों में जो जनता सोती है, गणतंत्र दिवस आज उनको दे रही चुनौती है. गणतंत्र दिवस हमारी प्राचीन संस्कृति का गरिमा का गौरव दिवस है. भारत आज लोकतंत्र की मशाल जलाते हुए दुनिया में आशा-उमंग, शांति के आकर्षण का केंद्र बिंदु बन गया है.
इसी दिन हमारे संविधान के शरीर में प्राणार्पण हुआ था. 26 जनवरी 1950 को, हमारा देश भारत संप्रभु, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी और लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में घोषित हुआ. गणतंत्र दिवस मनाने का मुख्य कारण यह है कि इस दिन हमारे देश का संविधान प्रभाव में आया था. 26 जनवरी 1950 के दिन ‘भारत सरकार अधिनियम’ को हटाकर भारत के नवनिर्मित संविधान को लागू किया गया, इसलिए उस दिन से 26 जनवरी को भारत में गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाने लगा. यह भारत के तीन राष्ट्रीय पर्वों में से एक है. इस दिन पहली बार 26 जनवरी 1930 में पूर्ण स्वराज का कार्यक्रम मनाया गया, जिसमें अंग्रेजी हुकूमत से पूर्ण आजादी के प्राप्ति का प्रण लिया गया था.
भारत की राजधानी दिल्ली में गणंतंत्र दिवस पर विशेष आयोजन होते हैं. देश के प्रधानमंत्री द्वारा इंडिया गेट पर शहीद ज्योति का अभिनंदन करने के साथ ही उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किये जाते हैं. कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आम जनता भी आतुर रहती है.
यहां पर कई तरह की सांस्कृतिक और पारंपरिक झांकिया निकाली जाती हैं, जो कि देखने में काफी मनमोहक होती हैं. इसके साथ ही इस दिन का सबसे विशेष कार्यक्रम परेड का होता है, जिसे देखने के लिए लोगों में काफी उत्साह होता है. यह वह कार्यक्रम होता है, जिसके द्वारा भारत अपने सामरिक तथा कूटनीतिक शक्ति का भी प्रदर्शन करता है और विश्व को यह संदेश देता है कि हम अपने रक्षा में सक्षम है.
आज हमारा संविधान विभन्न बीमारियों से ग्रसित हो गया है. भ्रष्टाचार, बलात्कार, प्रदूषण, जनसंख्या नियंत्रण जैसे अनेक समस्याओं ने भारत मां को लहूलुहान कर दिया है. आज भी हमारा गणतंत्र कितनी ही कंटीली झाड़ियों में फंसा हुआ प्रतीत होता है. अनायास ही हमारा ध्यान गणतंत्र की स्थापना से लेकर ‘क्या पाया, क्या खोया’ के लेखे-जोखे की तरफ खींचने लगता है. इस ऐतिहासिक अवसर को हमने मात्र आयोजनात्मक स्वरूप दिया है, अब इसे प्रयोजनात्मक स्वरूप दिये जाने की जरूरत है. इस दिन हर भारतीय को अपने देश में शांति, सौहार्द और विकास के लिए संकल्पित होना चाहिए.
कर्तव्य-पालन के प्रति सतत जागरूकता से ही हम अपने अधिकारों को निरापद रखने वाले गणतंत्र का पर्व सार्थक रूप में मना सकेंगे और तभी लोकतंत्र और संविधान को बचाये रखने का हमारा संकल्प साकार होगा.
अपनी ममता से देश का बचपन संवारने वाली महिलाओ के साथ हो रहे अनेक प्रकार की हिंसा से उन्हें घायल कर दिया जाता है. एक तरफ लड़किया भारत का नाम विश्व मंच पर रौशन कर रही हैं, वहीं दूसरी ओर महिलाओं का बलात्कार किया जाता है, तेजाब से और दहेज के लिए मार दिया जाता है.
क्या सच में संविधान में जो अधिकार महिलाओं को मिले हैं, उनको अब तक मिल पाया है. सात दशक बाद भी सवालों का परचम लहराती हुई पूरे भारत के सामने जबाब के लिए खड़ी है. प्रश्न यह है कि नारी के उदर से जन्म लेकर उसकी गोद में मचल कर, माता की ममता, बहन का स्नेह, प्रेयसी का प्यार तथा पत्नी का समर्पण पाकर भी पुरुष नारी के प्रति पाषाण कैसे बन गया? आखिर विवशता की आग में कब तक जलती रहेगी महिलाएं, तमाम सवाल बन के संविधान के समक्ष खड़ा है. कब तक महिलाओं को सामाजिक अधिकार मिलेगा जो संविधान ने दिया है?
राजनीतिक व्यवस्था समाज को चुस्त, ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ, अनुशासित कानून बनाया जाये और प्रत्येक नागरिक चाहे जो कोई हो बेरोजगार या अमीर, सेवादार या किसान सब अपनी प्रत्यक्ष संपत्ति जायदाद का खुलासा करें कि जो भी चल-अचल धन है वही है और अप्रत्यक्ष कहीं भी देश या विदेश में मिलने पर जब्त होगा तो सजा मिलेगी.
हमारी ज्यादातर प्रतिबद्धताएं व्यापक न होकर संकीर्ण होती जा रही हैं जो कि राष्ट्रहित के खिलाफ हैं. राजनैतिक मतभेद भी नीतिगत न रह कर व्यक्तिगत होते जा रहे हैं. जनतंत्र-गणतंत्र की प्रौढ़ता को हम पार कर रहे हैं, लेकिन आम जनता को उसके अधिकार, कर्तव्य, ईमानदारी समझाने में पिछड़े, कमजोर, गैर जिम्मेदार साबित हो रहे हैं. चूंकि स्वयं समझाने वाला प्रत्येक राजनीतिक पार्टियां, नेता स्वयं ही कर्तव्य, ईमानदारी से अछूते, गैर जिम्मेदार हैं, इसलिए असमानता की खाई गहराती जा रही है और असमानता, गैरबराबरी बढ़ गयी है. जबकि बराबरी के आधार पर ही समाज की उत्पत्ति हुई थी.
गणतंत्र के सूरज को राजनीतिक अपराधों, घोटालों और भ्रष्टाचार के बादलों ने घेर रखा है. हमें किरण-किरण जोड़कर नया सूरज बनाना होगा. हमने जिस संपूर्ण संविधान को स्वीकार किया है, उसमें कहा है कि हम एक संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी, पंथ-निरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य हैं. भ्रष्टाचार वह जहर है जिसने पूरी मानवता व नैतिकता को स्वाहा कर दिया है. जिस देश मे दूध की नदियां बहती थी, वहां आज भ्रष्टाचार की गंगोत्री बहती है.
संविधान लागू होने के सात दशक बाद भी हमारे संविधान के तीन आधारभूत स्तम्भो विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका पर भ्रष्टाचार का काला साया मंडरा रहा है. पूरी व्यवस्था प्रदूषित होती जा रहा है. आज आजाद हुए सात दशक पार कर गये, अब तक हमने बहुत कुछ हासिल किया है, वहीं हमारे इन संकल्पों में बहुत कुछ आज भी आधे-अधूरे सपनों की तरह हैं.
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं.)

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