राजनीति हो पायेगी अपराधमुक्त!
सर्वोच्च न्यायालय की संसदीय व्यवस्था को साफ-सुथरा बनाने की कोशिश चुनावी राजनीति में बेशुमार धन-बल का इस्तेमाल और नीति-निर्माण में दागियों की बढ़ती दखल चिंताजनक है. इस मसले पर एक बार फिर सर्वोच्च न्यायालय ने सख्त रुख अख्तियार किया है. न्यायालय ने राजनीति को साफ-सुथरा बनाने के लिए राजनीतिक दलों और चुनाव आयोग को कई […]
- सर्वोच्च न्यायालय की संसदीय व्यवस्था को साफ-सुथरा बनाने की कोशिश
चुनावी राजनीति में बेशुमार धन-बल का इस्तेमाल और नीति-निर्माण में दागियों की बढ़ती दखल चिंताजनक है. इस मसले पर एक बार फिर सर्वोच्च न्यायालय ने सख्त रुख अख्तियार किया है. न्यायालय ने राजनीति को साफ-सुथरा बनाने के लिए राजनीतिक दलों और चुनाव आयोग को कई दिशा-निर्देश दिये हैं.
नये नियमों से राजनीति का अपराधीकरण कितना रुकेगा, यह राजनीतिक पार्टियों की वैचारिक सुचिता पर निर्भर करेगा और चुनाव आयोग की प्रभावी भूमिका से तय होगा. सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश, वर्तमान राजनीति में दागियों की मौजूदगी और सुधार की आवश्यकता पर केंद्रित है आज का इन-दिनों…
राजनीति में अपराधिक पृष्ठभूमि वाले जन प्रतिनिधियों का दखल लगातार बढ़ रहा है. जिताऊ उम्मीदवार का हवाला देकर ज्यादातर पार्टियां हर चुनाव में ऐसे उम्मीदवारों को मैदान में उतारती हैं, जो धनबल से चुनावी मंजिल को हासिल करने में सक्षम हों. राजनीति के बढ़ते अपराधीकरण को रोकने के लिए उच्चतम न्यायालय ने हाल में एक अहम फैसला सुनाया है. जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस एस रवींद्र भट की खंडपीठ ने अपने इस महत्वपूर्ण फैसले में देश के तमाम राजनीतिक दलों के लिए जरूरी दिशा-निर्देश जारी किये हैं.
दागदार छवि वालों को क्यों उतारती हैं पार्टियां
उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि राजनीतिक दलों को आपराधिक मामलों में घिरे अपने उम्मीदवारों से संबंधित जानकारी पार्टी की वेबसाइट पर उपलब्ध करानी होगी. साथ ही दलों को यह भी बताना होगा कि किन वजहों से ऐसे व्यक्ति को उम्मीदवार के रूप में चुना गया है. दागदार छवि वाले प्रत्याशी की जानकारी सोशल मीडिया जैसे-फेसबुक और ट्विटर हैंडल से भी साझा करना आवश्यक है.
पार्टियों को यह भी निर्देश दिया गया है कि कम से कम एक स्थानीय और एक राष्ट्रीय अखबार में पार्टी को ऐसे उम्मीदवार के बारे में बताना होगा. उम्मीदवार बनाये जाने के 72 घंटों के भीतर पार्टी को उससे जुड़ी जानकारी चुनाव आयोग के साथ साझा करनी होगी. निर्देशों का अनुपालन नहीं करने पर चुनाव आयोग संबंधित पार्टी पर कार्रवाई करेगा.
राजनीतिक दलों का निराशाजनक रवैया
सितंबर, 2018 में पांच जजों की खंडपीठ ने यह आदेश दिया था कि केंद्र सरकार चुनाव लड़नेवाले अपराधिक पृष्ठभूमि के उम्मीदवारों को प्रतिबंधित करने के लिए तुरंत कानून बनाये. सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश के बावजूद सरकार और आयोग का रवैया निराशाजनक रहा. एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उम्मीदवारों के चयन का आधार योग्यता होनी चाहिए, न की केवल उनका जिताऊ होना. न्यायाधीशों ने कहा है कि अगर पार्टियां और चुनाव आयोग इसे लागू नहीं करते हैं, तो इसे न्यायालय की अवमानना माना जायेगा.
17वीं लोकसभा के 1500 प्रत्याशियों पर आपराधिक मामले
नेशनल इलेक्शन वॉच और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने लाेकसभा चुनाव 2019 में खड़े 8049 उम्मीदवारों में से 7928 उम्मीदवारों के शपथपत्र का विश्लेषण किया था. इस विश्लेषण के अनुसार,
1500 (19 प्रतिशत) उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामलों की घोषणा की थी.
1070 (13 प्रतिशत) उम्मीदवारों ने शपथपत्र में अपने खिलाफ गंभीर आपराधिक मामलों (बलात्कार, हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण, महिलाओं के खिलाफ अत्याचार आदि) की बात स्वीकार की थी.
56 उम्मीदवारों ने शपथपत्र में अपने खिलाफ दोषसिद्धि की बात स्वीकार की थी.
55 उम्मीदवारों ने भारतीय दंड संहिता की धारा यानी आइपीसी की धारा-302 के तहत अपने खिलाफ हत्या के आरोप को स्वीकार किया था.
184 उम्मीदवारों ने भारतीय दंड संहिता की धारा-307 के तहत अपने खिलाफ हत्या का प्रयास के आरोप की घोषणा की थी.
126 उम्मीदवार ऐसे थे, जिन्होंने महिलाओं के खिलाफ आरोप की बात स्वीकार की थी. इन 126 में नौ उम्मीदवारों ने आइपीसी की धारा 376 के तहत खुद पर बलात्कार का आरोप होने की बात की घोषणा की थी.
47 उम्मीदवारों ने खुद पर अपहरण के आराेप की बात स्वीकारी थी.
95 उम्मीदवारों ने स्वीकार किया था कि उनके खिलाफ वैमनस्य फैलाने के आरोप हैं.
भाजपा के 40 प्रतिशत उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले
17वीं लोकसभा चुनाव के प्रत्याशियों के शपथपत्र के मुताबिक भाजपा के 433 उम्मीदवारों में से 175 (40 प्रतिशत) के खिलाफ आपराधिक मामले थे, जबकि कांग्रेस के 419 में से 164 (39 प्रतिशत), बसपा के 381 में से 85 (22 प्रतिशत), सीपीआइ (एम) के 69 में से 40 (58 प्रतिशत) और 3,370 निर्दलीय में से 400 (12 प्रतिशत) पर आपराधिक मामले दर्ज थे. भाजपा के 433 में से 124 उम्मीदवारों (29 प्रतिशत) पर, कांग्रेस के 419 में से 107 (26 प्रतिशत), बसपा के 381 में से 61 (16 प्रतिशत), सीपीआइ (एम) के 69 में से 24 (35 प्रतिशत) और 3,370 उम्मीदवारों में से 292 (नौ प्रतिशत) पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज थे.
43 प्रतिशत सांसद दागी
साल 2019 में जीतकर आये कुल सांसदों में से 233 (43 प्रतिशत) सांसदों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामलों की बात स्वीकार की है.
159 (29 प्रतिशत) विजयी उम्मीदवारों ने यह घोषणा की थी कि उनके खिलाफ बलात्कार, हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण, महिलाओं के खिलाफ अत्याचार जैसे गंभीर आपराधिक मामले हैं.
39 प्रतिशत भाजपा सांसद (301 में 116), कांग्रेस के 57 प्रतिशत (51 में 29), डीएमके के 43 प्रतिशत (23 में 10), तृणमूल कांग्रेस के 41 प्रतिशत (22 में नौ) और जद (यू) के 81 प्रतिशत (16 में 13) सांसदों ने खुद के ऊपर आपराधिक मामले घोषित किये हैं.
29 प्रतिशत (301 में 87), कांग्रेस के 37 प्रतिशत (51 में 19), डीएमके के 26 प्रतिशत (23 में छह), तृणमूल कांग्रेस के 18 प्रतिशत (22 में चार) और जद(यू) के 50 प्रतिशत (16 में आठ) सांसदों ने अपने ऊपर गंभीर आपराधिक मामले घोषित किये हैं.
राजनीति के अपराधीकरण में उत्तर प्रदेश शीर्ष पर
वर्ष 2018 में केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया था कि 1,765 सांसद और विधायक यानी संसद और राज्य विधानसभा के 36 प्रतिशत सदस्य 3,045 आपराधिक मामलों में मुकदमे का सामना कर रहे हैं.
यह सूचना राजनीति के चरम अपराधीकरण की गंभीर तस्वीर पेश करती है. देश में कुल 4,896 सांसद व विधायक हैं. इन मामलों की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में कराने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल शपथ पत्र में केंद्र सरकार ने बताया था कि 248 दागी सांसदों व विधायकों व 539 लंबित मामलों के साथ उत्तर प्रदेश शीर्ष पर है.
178 सांसदों व विधायकों और 324 लंबित मामलों के साथ तमिलनाडु दूसरे व 144 सांसदों, विधायकों व 306 लंबित मामले के साथ बिहार तीसरे स्थान पर है. 139 दागी सांसदों, विधायकों अौर 303 लंबित मामलों के साथ पश्चिम बंगाल चौथे और 132 दागियाें व 140 लंबित मामले के साथ आंध्र प्रदेश पांचवे स्थान पर है. केरल के 114 (373 लंबित मामले) और कर्नाटक के 82 (लंबित मामले 137) सांसद व विधायक आपराधिक मुकदमों का सामना कर रहे हैं.
बंगाल से चुने गये 55 प्रतिशत से ज्यादा सांसद दागी
17वीं लोकसभा के लिए राज्यवार चुने गये दागी उम्मीदवारों के मामले में पश्चिम बंगाल की स्थिति कम चिंताजनक नहीं है. पश्चिम बंगाल के 55 प्रतिशत सांसद आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं. वहीं, बिहार के 82 प्रतिशत सांसदों पर आपराधिक मामले हैं, जबकि 2014 में यह प्रतिशत 70 था. यहां से चुने गये 56 प्रतिशत सांसदों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं, जबकि 2014 में यह प्रतिशत 18 था. झारखंड के 29 प्रतिशत सांसद आपराधिक जबकि 14 प्रतिशत गंभीर आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं.
झारखंड के 50 प्रतिशत विधायकों पर आरोप
बीते वर्ष दिसंबर में झारखंड की 81 सदस्यीय विधानसभा के लिए चुने गये कुल विधायकों में 41 पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. सत्तारूढ़ दल झारखंड मुक्ति मोर्चा के 30 में से 17 विधायकों पर और कांग्रेस के 16 में से आठ विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. विपक्षी दल भाजपा के 25 में 11 विधायकों पर आपराधिक मामले हैं. वर्ष 2014 में झारखंड विधान सभा चुनाव में विजयी कुल 81 विधायकों में से 55 पर आपराधिक मामले दर्ज थे.
इडुक्की से कांग्रेसी के सांसद पर सबसे ज्यादा आरोप
वर्ष 2019 में चुने गये 10 सांसदों ने अपने ऊपर दोषसिद्ध मामले घोषित किये हैं. इन 10 सांसदों में से पांच भाजपा, चार कांग्रेस और एक वाइएसआरसीपी के हैं. केरल के इडुक्की से कांग्रेसी सांसद डीन कुरियाकोसे के खिलाफ सर्वाधिक 204 दोषसिद्ध मामले हैं.
वहीं 11 सांसदों ने अपने ऊपर हत्या से संबंधित मामलों की बात घोषित की है, जबकि 30 सांसदों ने हत्या का प्रयास व 19 ने महिलाओं के ऊपर अत्याचार की बात स्वीकार की है. इन 19 में से तीन ने घोषणा की है कि उनके खिलाफ बलात्कार से संबंधित मामले हैं. छह सांसदों ने अपने खिलाफ अपहरण तो 29 ने भड़काऊ भाषण संबंधित मामले खुद पर होने की घोषणा की है.