!!क्योतो से ब्रजेश कुमार सिंह!!
जापान के क्योतो शहर में है तोजी मंदिर. ये मंदिर जापान के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है. हालांकि तोजी मंदिर कोई एक मंदिर नहीं है, बल्कि कई मंदिरों का समूह है. दरअसल आठवीं शताब्दी के आखिरी दशक में जापान के तत्कालीन शासक कम्मू ने नारा की जगह क्योतो को अपनी राजधानी बनाया, तो शहर में अपने महल के पूर्व और पश्चिम में दो बड़े मंदिरों की स्थापना की, जो तोजी और साजी मंदिर के तौर पर जाने गये.
जापानी में जहां ‘तोजी’ का मतलब होता है ‘पूर्व’, वहीं ‘साजी’ का मतलब है ‘पश्चिम’. तोजी मंदिर के आस-पास और भी मंदिर बनते चले गये और ये मंदिरों के समूह में तब्दील हो गया. तोजी मंदिर प्रांगण में जो पैगोडा है, वो पहली बार 826 ईसवी में बना था, लेकिन कालांतर में बिजली गिरने से चार बार ये जल कर खाक हो गया और आखिरी बार इसे 1644 में बनाया गया. फिलहाल ये 187 फीट की ऊंचाई के साथ जापान का सबसे ऊंचा पैगोडा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने जापान दौरे के दूसरे दिन इस मंदिर में गये. उनके साथ मौजूद थे जापान के प्रधानमंत्री शिंजो एबे. भारतीय समय के हिसाब से सुबह साढ़े छह बजे मोदी इस मंदिर में पहुंचे थे.
चूंकि तोजी मंदिर बौद्ध धर्म का मंदिर है, इसलिए मोदी ने आज के दिन अपनी पोशाक भी सफेद रंग की चुनी थी. ऊपर कुर्ता और जैकेट से लेकर नीचे पाजामा तक, सब कुछ सफेद. दरअसल बौद्ध धर्म में सफेद रंग शांति का प्रतीक है, जो इस धर्म के संस्थापक भगवान बुद्ध के प्रमुख उपदेशों में से एक है. मोदी जब इस मंदिर पर पहुंचे, तो बड़ी तादाद में स्थानीय लोग तो मौजूद थे ही, आसपास के शहरों में रहने वाले भारतीय भी यहां आ गये थे.
इनमें से कुछ के हाथों में भारत के झंडे, तो कुछ के हाथ में थी मोदी की तसवीर. बोधगया के निवासी लाल सिंह ऐसे ही लोगों में से एक थे, जो पिछले बारह वर्षो से क्योतो के नजदीक के शहर ओसाका में रहते हैं. ओसाका में ही शनिवार के दिन मोदी का विशेष विमान उतरा था और वहां से सड़क मार्ग से वो पहुंचे थे क्योतो. लाल सिंह को लगता है कि अगर मोदी के दौरे से जापान आधारभूत सुविधाओं के मामले में भारत की मदद करने को तैयार हो जाये, तो क्योतो और ओसाका जैसा ही उनका शहर बोधगया भी सुंदर बन सकता है.
मोदी तोजी मंदिर पर मौजूद लोगों का अभिवादन स्वीकार कर एक और मंदिर के दर्शन के लिए गये. दूसरे मंदिर का नाम था किनकाकूजी मंदिर. इसे स्वर्ण मंदिर के तौर पर भी जाना जाता है. मुख्य मंदिर सुनहरा है, इसलिए स्वर्ण मंदिर जैसी अनुभूति होती है यहां. इस मंदिर में आने के बाद मोदी अलग मिजाज में दिखे. सामान्य तौर पर राजकीय दौरों में जो औपचारिकता रहती है, उसके उलट मोदी इस मंदिर के प्रांगण में मौजूद सैकड़ों जापानी युवक, युवतियों और बच्चों से मिले.
बड़े ही सहज अंदाज में. किसी का अभिवादन स्वीकार किया, तो किसी के आग्रह पर फोटो भी खिंचवायी. भारत में प्रधानमंत्री के साथ सुरक्षा का जो कड़ा घेरा रहता है, उसके उलट जापान के इस मंदिर में मोदी बिना सुरक्षा के लंबे चौड़े ताम-झाम के सहज अंदाज में चहलकदमी करते दिखे. मंदिर कैंपस में ही मौजूद एक छोटे से अश्वेत बच्चे का कान पकड़ कर लाड़ भी जताया. इसी तरह का प्यार और स्नेह वो उन सभी लोगों पर उड़ेलते दिखे, जो उनके रास्ते में आये.
दरअसल मोदी सामान्य कूटनीति की जगह लोगों का दिल जीतने की मुहिम में लगे नजर आये. उनकी और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे की गहरी दोस्ती है, ये सभी जानते हैं. इसकी झलक मोदी के दौरे के पहले दिन भी मिली, जब आबे तोक्यो से क्योतो आये मोदी का स्वागत करने के लिए और फिर उनके सम्मान में निजी रात्रिभोज भी रखा. इस भोज के दौरान जिस प्रेम में मोदी शिंजो आबे के गले मिले, उससे ये अंदाजा लग गया कि दोनों के रिश्ते कितने गहरे हैं. सार्वजनिक तौर पर मोदी किसी को गले लगाते नजर आये, ऐसा कम ही देखने को मिलता है.
शिंजो एबे के लिए मोदी खास तौर पर दो किताबें भी तैयार करा कर लाये थे. पहली स्वामी विवेकानंद से जुड़ी थी. अमेरिका जाने के क्र म में 1893 में स्वामी विवेकानंद जापान भी आये थे. उस समय उनके जापान के बारे में जो विचार थे, उन्हें एक किताब की शक्ल में संग्रहीत किया गया, शिंजो को उपहार में देने के लिए. कोलकाता में ये पुस्तक तैयार करायी गयी. यही नहीं, मोदी ने एबे को संस्कृत में भागवत गीता की प्रति तो भेंट की ही, खास जापानी भाषा में भी इसका अनुवाद करा कर किताब के तौर पर भेंट की.
दोनों नेताओं के आपसी प्रेम के मद्देनजर इस संभावना को काफी बल मिल रहा है कि मोदी के मौजूदा दौरे में भारत और जापान के बीच सिविल न्यूक्लियर करार हो सकता है. मतलब ये कि जिस तरीके से वर्ष 2008 में परमाणु ऊर्जा के गैर-हथियारी इस्तेमाल के लिए अमेरिका ने भारत को परमाणु ईंधन देना मंजूर कर लिया था, वैसा ही जापान फिर कर सकता है. वर्ष 2010 से ही इसके लिए भारत और जापान के बीच बातचीत चल रही है. द्वितीय विश्व युद्ध में परमाणु हथियार की तबाही जापान ने ङोली थी, इसलिए बिना परमाणु हथियारों के परीक्षण पर रोक की शर्त के वो इस समझौते पर हस्ताक्षर करने को जल्दी तैयार नहीं होगा, ऐसा विशेषज्ञों का मानना है. लेकिन क्या मोदी को परमाणु करार का तोहफा दे सकते हैं शिंजो आबे, चर्चा इसे लेकर तेज है.
परमाणु, आर्थिक या फिर सामरिक स्तर पर भारत और जापान के बीच किस तरह के समझौते हो सकते हैं, इस पर तो अगले तीन दिनों में सच्चाई सामने आयेगी, लेकिन सांस्कृतिक तौर पर भारत और जापान को करीब लाने की कवायद तो मोदी ने पहले दिन से ही शुरू कर दी है और इसके सकारात्मक नतीजे भी आये हैं. शनिवार की शाम ही मोदी और आबे की मौजूदगी में जापान में भारत की राजदूत दीपा गोपालन वाधवा और क्योतो शहर के मेयर दाइसाका कोदाकावा ने उस करार पर हस्ताक्षर किये, जिसके तहत क्योतो की तर्ज पर ही काशी यानी वाराणसी को विकसित करने की योजना है. दरअसल मोदी देश में बड़े पैमाने पर स्मार्ट सिटी विकसित करने की योजना पर काम कर रहे हैं और उसके लिए क्योतो से बेहतर कोई रोल मॉडल नहीं हो सकता, जिसने अपनी परंपरा के साथ आधुनिकता का सुंदर सामंजस्य बिठा रखा है. एक तरफ हजारों वर्ष पुराने मंदिर हैं शहर में तो दूसरी तरफ यातायात से लेकर तमाम आधुनिक नागरिक सुविधाएं मुहैया हैं.
काशी कब तक क्योतो बन पायेगी, इसके बारे में तो फिलहाल कोई अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. लेकिन मोदी की भावना पक्के तौर पर सामने जरूर आ गयी है. क्योतो के मेयर को मोदी ने रविवार के दिन जो पुस्तक भेंट की, उस पर लिखा- ‘भारत की प्राचीन नगरी बनारस का मैं जन प्रतिनिधि हूं और आज जापान के प्राचीन नगर क्योतो में मेयरश्री से जानकारी पाया और कालांतर में जापान और भारत मिल कर सांस्कृतिक नगरों का कैसे विकास करें. उसके लिए शुरु आत का आज शुभिदवस है. बहुत-बहुत धन्यवाद.’
(लेखक संपादक-गुजरात, एबीपी न्यूज हैं)