रोशनी अकादमी से रोशन होती जिंदगियां

दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों के सरकारी स्कूलों में पढ़नेवाली कमजोर तबके की लड़कियों के लिए रोशनी अकादमी किसी वरदान से कम नहीं है. यह एक गैर सरकारी संगठन है, जिसकी कर्ता-धर्ता हैं सायमा हसन. आइए जानें, सायमा के काम और इस मुकाम तक पहुंचने की जद्दोजहद के बारे में. सेंट्रल डेस्क सायमा हसन […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 22, 2014 4:31 AM
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दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों के सरकारी स्कूलों में पढ़नेवाली कमजोर तबके की लड़कियों के लिए रोशनी अकादमी किसी वरदान से कम नहीं है. यह एक गैर सरकारी संगठन है, जिसकी कर्ता-धर्ता हैं सायमा हसन. आइए जानें, सायमा के काम और इस मुकाम तक पहुंचने की जद्दोजहद के बारे में.

सेंट्रल डेस्क

सायमा हसन की ‘रोशनी अकादमी’ उन लड़कियों की जिंदगी में उजाला भरती है, जिन्हें यह यकीन ही नहीं है कि वे भी कुछ कर सकती हैं. सायमा के काम की शुरुआत होती है, उपेक्षित तबके की प्रतिभाशाली लड़कियों की खोज से. फिर उन्हें गढ़ने-तराशने का काम शुरू होता है. आपसी संवाद कार्यक्रमों के जरिये उनमें आत्मविश्वास के साथ-साथ तार्किक सोच पैदा की जाती है. सामाजिक तौर-तरीके और जीवन कौशल सिखाया जाता है. इससे उन्हें खुद के भीतर छिपी क्षमताओं को पहचानने में मदद मिलती है.

लेकिन यह सब इतना आसान नहीं था. सायमा ने इसके लिए एक लंबा सफर तय किया है. स्कूली शिक्षा के बाद पत्रकारिता की पढ़ाई करनेवाली सायमा का मन शिक्षा और समाजसेवा के कार्यो में भी लगा रहा. अमेरिका में विभिन्न जन कल्याणकारी कार्यक्रमों के लिए पैसे जुटाने से लेकर अपने हाथों से राहत कार्यो में मदद का अनुभव भी उन्हें हासिल है. सेवा कार्यो के प्रति अपने इसी झुकाव की वजह से उन्होंने स्टैनफोर्ड से राजनीति विज्ञान की पढ़ाई की.

इसके बाद अमेरिका के जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता रॉबर्ट रीच के साथ हूवर इंस्टीटय़ूट में एक शोध के दौरान सायमा को भारत के विकास की राह में रोड़ा बननेवाली समस्याओं को करीब से जानने-समझने का मौका मिला. अमेरिका में जन्मी, पली-बढ़ी और पढ़ी-लिखी सायमा बताती हैं, इस दौरान मैंने जाना कि भारत के लोगों की बेहतरी के उपाय किस तरह किये जा सकते हैं.

बहरहाल, अमेरिका में कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद सायमा एक वेल्थ मैनेजमेंट कंपनी में विेषक के तौर पर जुड़ीं. काम अच्छा था और सैलरी भी. लेकिन पुरखों के देश भारत में कोई सेवा कार्य करने की बचपन की चाह सायमा के भीतर हिलोरें मारने लगी और वेल्थ मैनेजमेंट एनालिस्ट की नौकरी तीन हफ्ते के ही भीतर छोड़ कर वह भारत आ गयीं. यहां शिक्षा व्यवस्था की स्थिति जानने के लिए वह दिल्ली में एक सरकारी स्कूल गयीं. इस वाकये को सायमा कुछ इस तरह बयान करती हैं, दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में मेरी मुलाकात प्रिया से हुई, जो उस स्कूल की टॉपर छात्र थी. मैंने उससे पूछा कि स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद तुम आगे क्या करना चाहोगी. इसके जवाब में प्रिया ने कहा कि मैं किसी घर में नौकरानी या आया का काम करूंगी. हमारा परिवार पीढ़ियों से यह काम करता आ रहा है. सायमा आगे कहती हैं कि यह सुन कर मुङो आश्चर्य हुआ कि इतनी प्रतिभाशाली होने के बावजूद वह लड़की सिर्फ इसलिए आया का काम करना चाहती थी क्योंकि उसे अपनी क्षमता, आनेवाले अवसरों और विकल्पों की पहचान नहीं थी.

भारतीय लड़कियों के लिए कुछ करने की तमन्ना रखनेवाली सायमा ने स्टैनफोर्ड में पढ़ाई के दौरान ही लड़कियों को आत्मविश्वास और जीवन कौशल की सीख देने के लिए जरूरी दो हफ्ते का कोर्स किया. सायमा ने जून 2008 में भारत के लिए उड़ान भरी और यहां पहुंचकर अपने मकसद को अंजाम देने के लिए जुट गयीं. पहले कार्यक्रम के लिए उन्होंने चार सरकारी स्कूलों में पढ़नेवाली 30 लड़कियों को चुना. इस अनुभव को बयान करते हुए वह कहती हैं, यह मेरे लिए एक तरह से जिंदगी बदल देनेवाला अनुभव था. सायमा आगे बताती हैं, शुरू में तो वो लड़कियां आंख मिलाने से भी बचती थीं, लेकिन दो हफ्ते बाद वे सौ लोगों के सामने स्टेज पर खड़ी होकर अपनी बात कहने के लायक हो गयी थीं. अपने घर-परिवार का साथ और विश्वास हासिल कर अब इनकी आंखों में बड़े डॉक्टर और वकील बनने के सपने तैरने लगे थे.

सायमा हसन की रोशनी अकादमी में उन हस्तियों को आमंत्रित किया जाता है, जिन्होंने कमजोर तबके से ऊपर उठ कर समाज में एक अपना मुकाम हासिल किया है. ये हस्तियां इन लड़कियों को कंप्यूटर का ज्ञान, बातचीत के तौर-तरीके, आत्म सम्मान का बोध, स्वास्थ्य, स्वच्छता जैसे जीवन के लिए जरूरी कौशल की सीख देती हैं. आज इस अकादमी से जीवन मंत्र पाकर हजारों लड़कियां अच्छे संस्थानों में पढ़-लिख कर समाज में अपनी एक अलग पहचान बना रही हैं.

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